गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

मजदूरी कर बेटे को करवाई मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई

तीन हजार की आबादी वाले भूराण गांव से आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाला गांव का पहला छात्र बनेगा रामफल का लड़का नवीन

परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल अपने बेटे को आईआईटी मुंबई से करवा रहा है कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई

बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी दिलवा रहा है उच्च शिक्षा 

रामफल अपनी पत्नी सुनीता के साथ।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जींद-पानीपत मार्ग पर स्थित भूराण गांव वैसे तो अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन गांव का ही एक 49 वर्षीय रामफल नामक व्यक्ति इस गांव का गौरव है। रामफल समाज के सामने एक अच्छे पिता की मिशाल पेश कर रहा है। रामफल अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर समाज को एक सुशिक्षित नागरिक देने का काम किया है। इतना ही नहीं रामफल ने अपने बेटे व बेटियों में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया। वह अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह अच्छी शिक्षा दिलवा रहा है। आज जहां रामफल की दोनों बेटियां जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं, तो वहीं रामफल का एक लड़का मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है। इस प्रकार प्रतिदिन महज 250 से 300 रुपये की मजदूरी करने वाला रामफल नाम का यह सख्श हर वर्ष अपने बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च करता है। जबकि रामफल की आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं देती कि वह अपने बच्चों के लिए इस तरह अच्छी शिक्षा की व्यवस्था कर सके। हर वर्ष ढाई से तीन लाख रुपये तो मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले रामफल के बेटे नवीन की पढ़ाई पर खर्च हो रहे हैं। रामफल ने अपने बच्चों को एक कामयाब इंसान बनाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की है। जिस तरह से रामफल अपनी परिस्थितियों से जूझ कर अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा कर एक अच्छे पिता का अपना फर्ज अदा कर रहा है तो ठीक उसी प्रकार से पढ़ाई में अव्वल दर्जा हासिल कर उसके बच्चे भी अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं। रामफल का बड़ा बेटा नवीन दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपने माता-पिता के सपने को साकार करने का प्रयास कर रहा है। कैमिकल इंजीनियरिंग में नवीन का यह तीसरा वर्ष चल रहा है और एक वर्ष के बाद यह अपनी इंजीनयरिंग की पढ़ाई पूरी कर तीन हजार की आबादी वाले इस गांव मेें मुंबई जैसे आईआईटी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला गांव का पहला छात्र होगा। परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल ने अपने बेटे नवीन को दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 12वीं की पढ़ाई के लिए राजस्थान के कोटा शहर में भेजा। नवीन ने भी बिना समय गंवाए १२वीं की पढ़ाई के साथ-साथ आईआईटी में दाखिले के लिए कोचिंग भी ली। 12वीं की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद नवीन ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास की और परीक्षा में अच्छी रैंकिंग हासिल करने के कारण नवीन का दाखिला आईआईटी मुंबई में हुआ। अपने पिता रामफल के साथ-साथ नवीन भी अपने गांव, जिले या प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के युवाओं के लिए एक मिशाल है, जिसने परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नवीन अपनी मेहनत के बूते पर अपने नाम के शब्द को बिल्कुल सार्थक सिद्ध कर रहा है। वहीं रामफल की बड़ी लड़की ममता जीएनएम का कोर्स कर रही है और पूजा बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। रामफल का सबसे छोटा लड़का आशीष जो अभी गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। रामफल की पत्नी सुनीता महज पांचवीं पास है और वह भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाकर एक अच्छे समाज के निर्माण करने के अपने पति रामफल के प्रयास में सहयोग कर रही है। 



शनिवार, 26 नवंबर 2016

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कहाँ खो गई हमारी बेटियां

जिले के 29 गांवों में बेटियों को अब भी समझा जाता है बोझ
जिले का लिंगानुपात सुधरकर 888 पर पहुंचा
अब लिंगानुपात में पिछड़े गांवों पर फोकस करेगा स्वास्थ्य विभाग
पिछले वर्षों के मुकाबले जिले में बढ़ा है लिंगानुपात

नरेंद्र कुंडू
जींद। एक ओर जहां सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, वहीं जिला में अब भी लोगों की सोच बेटियों के प्रति पूरी तरह नहीं बदली है। जिले में 29 गांव ऐसे हैं, जिन गांवों में बेटियों को अब भी बोझ समझा जाता है। यह इसी का परिणाम है कि इन 29 गांवों में इस समय भी लिंगानुपात 550 से नीचे है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में चलाए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के काफी सकारात्मक परिणा

म सामने आए हैं। इसके चलते पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष जिले का लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। इस वर्ष जिले का लिंगानुपात 857 से बढ़कर 888 पर पहुंच गया है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सख्त रुख अपनाया गया है। इसी के चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा जिले ही नहीं बल्कि जिले से बाहर भी 33 ऐसे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जा चुकी है, जिन अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर विभाग को लिंग जांच करने जैसी संदिग्ध गतिविधियों की भनक लगी। 

आधे से ज्यादा गांवों में ही सुधरा लिंगानुपात


जिले में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा 39 ऐसे गांवों को चिन्हित किया गया था जिनका लिंगानुपात 555 से कम था। इनमें से 28 गांवों के लिंगानुपात में काफी सुधार है। शेष बचे 11 गांवों में मुहिम का असर खास नहीं रह पाया। इन 11 गांवों के अलावा 18 और गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों को बोझ समझा जाता है।  इन 39 गांवों में से अब 11 गांव ही ऐसे बचे हैं जिनका लिंगानुपात 550से कम है। बाकि 28 गांवों के लिंगानुपात में सुधार हुआ है और इन गांवों का लिंगानुपात 550 से ऊपर पहुंच गया है। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा 33 बार की जा चुकी हैं छापेमारी

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले वर्ष 33 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की गई। इनमें 18 बार छापेमारी जींद जिले में, 13 बार दूसरे जिलों में तथा तीन बार प्रदेश के साथ लगते उत्तरप्रदेश व हिमाचल में छापेमारी की गई हैं। 

इस वर्ष इन-इन गांवों का लिंगानुपात 550 से नीचे

गांव का नाम लिंगानुपात 
सेढ़ा माजर 181
रजाना खुर्द 200
खतला 285
कटवाल 285
फैरण खुर्द 333
रोजखेड़ा 333
रजाना कलां 354
जलालपुर खुर्द 363
हसनपुर 363
ऐंचरा कलां 375
श्रीरागखेड़ा 375
जीवनपुर 384
मांडोखेड़ी 428
मंगलपुर 431
डुमरखां खुर्द 433
ढाणी रामगढ़ 470
दुड़ाना 500
किलाजफरगढ़ 509
खेड़ी मसानियां 520
नगूरां         520
खोखरी 521
चंदनपुर 521
कलोदा खुर्द 533
खेड़ी जाजवान 538
जैजवंती 538
देशखेड़ा 545
वर्ष के अनुसार जिले का लिंगानुपात का आंकड़ा
वर्ष लिंगानुपात
2005 860
2006 890
2007 896
2008 894
2009 847
2010 869
2011       837
2012 833
2013 831
2014 863
2015 857
जनवरी से सितंबर 2016 तक 888

उठाए जा रहे हैं कठोर कदम

 जिले में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। प्रत्येक  गांव में गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, ताकि विभाग इन महिलाओं पर नजर रख सके। समय-समय पर अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जाती है। गांवों में एएनएम, आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, पंचों, सरपंचों व सामाजिक संगठनों के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। लोगों की मानसिकता बदलने के लिए जिले की तीन नेशनल खिलाडिय़ों को रोल मॉडल बनाया गया है, वहीं जानकी फिल्म के माध्यम से भी लोगों को जागरूक किया जाता है। पिछले वर्षों की तुलना में जिले के लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। जिन गांवों का लिंगानुपात कम है, उन गांवों पर विभाग का विशेष फोकस रहेगा।  
डॉ. प्रभूदयाल, डिप्टी सिविल सर्जन
नागरिक अस्पताल, जींद

आशा वर्कर रख रहीं हैं नजर 

गांव में आंगनबाड़ी वर्कर व आशा वर्कर नियमित रूप से गर्भवती महिलाओं के संपर्क में रहती हैं। गांव में भ्रूण हत्या की कोई बात नहीं है। यदि लिंगानुपात कम है तो यह कुदरत की ही देन है। गांव व पंचायत इस विषय में बहुत गंभीर है।

कृष्ण कुमार सरपंच रजाना खुर्द।






शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी ने दी फसल में दस्तक

हॉपर व तना गलन को रोकने में पेस्टीसाइड भी नहीं है कारगर
चार किस्म के हैं हॉपर नामक कीट
समझदारी की फसल के बचाव का एकमात्र तरीका  

नरेंद्र कुंडू
जींद। खेतों में किसान का पीला सोना (धान) लगभग पक्ककर तैयार है लेकिन धान की इस अंतिम चरण की प्रक्रिया में पहुंचने के साथ धान में हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। धान की फसल में हॉपर से ज्यादा नुकसान तना गलन का है। क्योंकि हॉपर कीट तो खेत में खड़ी फसल के कुछ ही को नुकसान पहुंचाता है लेकिन तना गलन नामक बीमारी के ज्यादा क्षेत्र में फैलने की संभावनाएं हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि हॉपर व तना गलन से फसल को बचाव के लिए पेस्टीसाइड भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसलिए किसानों को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पेस्टीसाइड पर अपना खर्च करने की बजाए सावधानी के साथ अपनी फसल की तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

चार किस्म का है रस चुसक हॉपर कीट 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार हॉपर एक रस चुसक कीट है और इसकी चार किस्में अभी तक देखी जा चुकी हैं। हॉपर कीट सफेद, हरा, ब्राउन व काले रंग का होता है। ब्राउन व काला हॉपर पौधे के तने का रस चूसता है, वहीं सफेद व हरा हॉपर पौधे के पत्तों का रस चूसता है। पत्ते व तने का रस चूसने के कारण यह काले पड़ जाते हैं। तने व पत्ते का रस चूस लिए जाने के कारण यह काला पडऩे के बाद सुख कर गिर जाता है।

हॉपर के प्रकोप से खेत में इस तरह के दिखाई देंगे लक्षण

जिस खेत में हॉपर का प्रकोप होगा, उस खेत में किसी-किसी स्थान पर गोलाकार, त्रिभुजाकार या अंडाकार के आकार में फसल खराब हुई दिखाई देगी। खेत में जिस क्षेत्र में छाया होगी, वहां से इसकी शुरूआत होगी।

क्या है तना गलन बीमारी

तना गलन बीमारी उन क्षेत्र में आती है, जहां पर जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होती है या पानी हल्का होता है। इसलिए पौधे को जमीन से पर्याप्त मात्रा में फासफोर्स नहीं मिल पाता। यह बीमारी फसल की रोपाई के शुरूआत में व पकाई के समय में आती है। इस बीमारी के आने पर पौधे का तना नीचे से काला पड़ जाता है। पौधे में जाइलम व फ्लोयम नाम की दो नलियां होती हैं। जाइलम नाम की नाली जमीन से पौधे के लिए पानी व खुराक पहुंचाती है। वहीं फ्लोयम नाम की नाली पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाले भोजन को पौधे के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाती है लेकिन तने के गलने के कारण यह दोनों नालियां खत्म हो जाती हैं। इससे पौधे तक खुराक व भोजन नहीं पहुंचने के कारण पौधा काला होकर गिर जाता है। ऐसे में पेस्टीसाइड का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।

तना गलन में क्या करें किसान

तना गलन बीमारी उस समय फसल में आती है, जब फसल पकने में एक सप्ताह तक का समय बाकि रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि फसल का पानी सुखा दें और फसल की कटाई कर गिरी में (एक जगह) लगा दें। ऐसा करने से फसल का जो दाना कच्चा है, वह भी पक्क कर तैयार हो जाएगा। हॉपर कीट व तना गलन की बीमारी का कोई उपचार नहीं है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह पेस्टीसाइड पर फिजुलखर्ची नहीं करें। हॉपर कीट से बचाव के लिए किसान प्रति एकड़ में 300 ग्राम डीडीवीपी को दस किलो रेत में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  इसके अलावा कोई उपचार नहीं हैं। बाकि हॉपर से किसानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यह पूरे खेत में नुकसान की बजाए कुछ ही क्षेत्र में नुकसान करता है। वहीं तना गलन बीमारी आने पर किसान फसल को पकाई से दो-तीन पहले काटकर धान को गिरी में लगा सकते हैं।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
कृषि विभाग, जींद  

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

किसानों के लिए फायदे की खेती है सरसों

कम खर्च में किसान को मिलता है अधिक मुनाफास्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसलों में सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है। सरसों की खेती में किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। सरसों की खेती के उत्पादन के लिए किसान को शारीरिक श्रम भी काफी कम करना पड़ता है और कीड़ों व बीमारी के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। वहीं सरसों से निकलने वाला तेल भी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है। इसलिए किसान सरसों की खेती को अपना कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

यह है सरसों की बिजाई का उपयुक्त समय

सरसों की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय 25 सितंबर से 15 अक्तूबर का समय सबसे उपयुक्त है। ड्रील मशीन व हाथ की छांट से भी सरसों की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के दौरान 25 किलो यूरिया तथा 40 किलो सिंगल सुपर फासफोर्स खाद डालें। इसके बाद सरसों की फसल में पहला पानी लगाने के बाद 25 किलो यूरिया खाद डालें।

इन-इन किस्मों की कर सकते हैं बिजाई

अधिक पानी वाले क्षेत्र में किसान हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 749, लक्ष्मी व वरूण किस्म की बिजाई कर सकते हैं। कम पानी वाले क्षेत्र में हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 406 व करनाल की 30 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। जहां पर जमीनी पानी खारा है वहां पर किसान करनाल की 88 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। 88 नंबर किस्म में अन्य किस्मों की बजाए तेल की मात्रा अधिक है। वहीं प्राइवेट क्षेत्र की भी कई किस्में इस समय बाजार में हैं। इनमें बायर कंपनी की 5444 व 5450 किस्म, श्रीराम कंपनी की रानी किस्म तथा माइको कंपनी की माइको बोल्ड किस्म भी अच्छी है।

कीटों व बीमारियों के मामले में भी सुरक्षित है सरसों की फसल

रबी की दूसरी फसलों में जहां कीटों व बीमारियों के प्रकोप का ज्यादा भय किसान को रहता है, वहीं सरसों की फसल कीटों व बीमारियों के मामले में काफी सुरक्षित है। क्योंकि सरसों की फसल में कीट व बीमारियां नामात्र ही आती हैं। सरसों की बजाई के समय पेंटिड बग (धोलिया) का थोड़ा बहुत प्रभाव हो सकता है लेकिन सरसों में महज राख का छिड़काव करने से यह कीट अपने आप नियंत्रित हो जाता है।

स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है। क्योंकि इस फसल में सबसे कम कीटनाशकों का प्रयोग होता है और खाने में सरसों का तेल लेने से शरीर स्वस्थ रहता है। वहीं हार्ट के मरीजों के लिए भी सरसों का तेल काफी लाभदायक है।

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्योंकि इस फसल में रबी की दूसरी फसलों से नामात्र खर्च होता है और मुनाफा अधिक होता है। गेहूं की फसल में जहां एक एकड़ में आठ से नौ हजार रुपये का खर्च आता है तो सरसों की फसल में महज तीन से चार हजार रुपये का ही खर्च आता है। कीटों व बीमारियों के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। किसान को इस फसल में शारीरिक मेहनत भी काफी कम करनी पड़ती है। इसलिए किसानों को सरसों की खेती की तरफ अपना रूझान बढ़ाना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
जींद। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

'यूपी में भाजपा के चुनावी मुद्दे को रोशन करेगा जींद का दीपक'

चित्रकार दीपक के व्यंगात्मक कार्टूनों को भाजपा ने प्रचार सामग्री में किया शामिल
चित्रकार दीपक ने यूपी बचाओ नाम से तैयार की है कार्टून पुस्तिका 
कार्टूनिस्ट दीपक प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों पर भी प्रकाशित कर चुके हैं दो पुस्तकें 

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जींद के युवा चित्रकार दीपक कौशिक के कार्टून अपनी छाप छोड़ेंगे। चुनाव के इस दंगल में विरोधियों को घेरने के लिए भाजपा दीपक कौशिक द्वारा यूपी में हुए भ्रष्टाचार पर तैयार किए गए व्यंगात्मक कार्टूनों को अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में शामिल करने जा रही है। चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा यूपी बचाओ के नाम से यह कार्टून पुस्तिका तैयार की गई है।   
भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ हुई दीपक कौशिक की मुलाकात के बाद पार्टी पदाधिकारियों ने दीपक के कार्टूनों को चुनाव सामग्री में शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा द्वारा इस पुस्तिका की लाखों प्रतियां तैयार करवाई जाएंगी। 
पुस्तक के लिए कार्टून तैयार करते चित्रकार दीपक
चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा कार्टून पुस्तिका में उत्तरप्रदेश की वर्तमान व पूर्वोत्तर सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कार्टूनों के माध्यम से व्यंग किए गए हैं। इस पुस्तिका में यूपी के कैराना कांड, मथूरा कांड, रामवृक्ष कांड, यूपी की खस्ता हाल सड़कों, बिजली-पानी की समस्या पर कटाक्ष किए गए हैं। दीपक कौशिक ने बताया कि इस पुस्तिका में विरोधी दलों पर निशाना साधने के साथ-साथ मोदी सरकार की विकासकारी सोच को भी दर्शाया गया है। कौशिक ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ चुनाव प्रचार कैम्पेनिंग के लिए हुई बैठक में पार्टी पदाधिकारियों ने इस पुस्तिका को चुनाव सामग्री में शामिल करने का निर्णय लिया है। 
 भाजपा पदाधिकारियों को पुस्तक भेंट करते चित्रकार दीपक कौशिक।

अच्छे दिनों पर भी लिख चुके हैं पुस्तक

चित्रकार दीपक कौशिक इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन' और दो साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन-2' का प्रकाशन कर चुके हैं। अब यूपी में भी इन पुस्तकों को प्रकाशित किया जाएगा। 

हरियाणा की स्वर्ण जयंती पर निकालेंगे म्हारा हरियाणा पुस्तक

दीपक कौशिक ने बताया कि 'यूपी बचाओ' पुस्तक के प्रकाशन होने के बाद उनकी चौथी पुस्तक के प्रकाशन का काम भी अन्तिम दौर में है। 'म्हारा हरियाणा' नाम से प्रकाशित होने वाली यह पुस्तक विशेष तौर पर हरियाणा की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तैयार की जा रही है, जिसमें प्रदेश की कला-संस्कृति, राजनीति, जन-जीवन को महत्व दिया गया है। इस पुस्तक में कार्टूनों के माध्यम से जहां इन सब विषयों को उकेरा गया है। 





65 वर्षीय ओमपति ने 45 लाख खर्च कर बुझाई गांव की प्यास

गांव में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए 10 किलोमीटर दूर से दबवाई पाइप लाइन
पाइप लाइन दबाकर घर-घर दिया कनेक्शन

नरेंद्र कुंडू
जींद। छतीसगढ़ के धमतरी जिले की 104 वर्षीय कुंवरबाई द्वारा जहां अपनी बकरियां बेचकर गांव में शौचालय का निर्माण करवाकर एक मिशाल पेश की गई है, वहीं जींद जिले के गोहाना रोड पर स्थित लुदाना गांव निवासी 65 वर्षीय वृद्धा ओमपति ने अपनी पूंजी से 40 से 45 लाख रुपये खर्च कर गांव की प्यास बुझा कर एक नई मिशाल पेश की है। ओमपति ने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्थित सुंदर ब्रांच नहर से पाइप लाइन दबाकर गांव के लोगों को पीने के लिए पानी मुहैया करवाया है। ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के अलावा निशुल्क घर-घर कनेक्शन दिए हैं। इतना ही नहीं पास के गांव मालश्रीखेड़ा, भंभेवा व मोरखी गांव से होकर गुजर रही पाइप लाइन पर भी कई जगह हैंडपंप भी लगवाए गए हैं, ताकि राहगीर व पास के गांव के लोग भी इनसे अपनी प्यास बुझा सकें। 
पाइप लाइन दबाने के बाद गांव में बनाया गया पानी का टैंक।
जींद जिले के लुदाना गांव में भूमिगत पानी खराब होने के कारण गांव में पानी की भारी किल्लत थी। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दराज के क्षेत्र का रूख करना पड़ता था। गांव की पानी की किल्लत को देखते हुए गांव की 65 वर्षीय ओमपति ने ग्रामीणों को इस किल्लत से निजात दिलवाने का संकल्प लिया। ओमपति ने अपने खर्च से सुंदर ब्रांच नहर की सिवाना माल हैड से गांव तक पाइप लाइन दबवाई। सुंदर ब्रांच नहर से गांव तक दबी लगभग 10 किलोमीटर लंबी इस पाइप लाइन पर ओमपति के 40 से 45 लाख रुपये खर्च हुए। इतना ही नहीं ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के साथ-साथ घर-घर तक पानी का कनेक्शन भी दिया। प्रत्येक घर तक पानी का कनेक्शन होने के बाद गांव से पानी की किल्लत दूर हो गई। 
टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा 

छह हजार की आबदी वाले इस गांव में प्रत्येक घर को पीने के लिए पानी मिल सके इसके लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा गया है। प्रत्येक ब्लॉक को 20 से 25 मिनट तक पानी की सप्लाई की जाती है। पानी की बर्बादी नहीं हो इसके लिए सीमित समय तक ही पानी की सप्लाई की जाती है। 

पेयजल सप्लाई की देखरेख के लिए दो युवकों 

टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

को दिया रोजगार

गांव में सही तरीके से पेयजल की सप्लाई सुचारू रूप से हो सके इसके लिए ओमपति ने गांव के ही दो युवकों को जिम्मेदारी दी है। यह दोनों युवक गांव में पेयजल की सप्लाई की देखरेख करते हैं। इससे गांव के दो युवकों को रोजगार मिला है। 

भरापूरा है ओमपति का परिवार

समाजसेवी महिला ओमपति के परिवार में राजकुमार, अनिल व शमशेर नाम के तीन बेटे हैं। तीनों बेटे शादीशुदा हैं। इसके अलावा ओमपति के पांच पौत्री व तीन पौत्र भी हैं। ओमपति के पति बलबीर सिंह का देहांत हो चुका है। 
अपने परिवार के साथ मौजूद वृद्धा ओमपति।








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अध्यापकों की नर्सरी बना जींद जिले का ईक्कस गांव

2700 की आबादी वाले गांव में लगभग प्रत्येक घर में है सरकारी नौकरी, गांव में 100 से भी अधिक हैं अध्यापक

गांव में है सीनियर सेकेंडरी स्कूल व शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी गांव की विशेष पहचान

अर्जुन अवार्ड भी हासिल कर चुका है गांव का बास्केटबाल कोच

 गांव के बारे में जानकारी देते हरपाल व अन्य ग्रामीण।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर हिसार रोड पर स्थित ईक्कस गांव प्रदेश के लिए अध्यापकों की नर्सरी बन चुका है। महज 2700 की आबादी वाले इस गांव में लगभग प्रत्येक घर में एक अध्यापक है। गांव में शिक्षा का अच्छा प्रसार होने के कारण लगभग प्रत्येक घर में सरकारी नौकरी है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। ईक्कस गांव में 100 से भी अधिक अध्यापक हैं। गांव से निकलने वाले यह अध्यापक आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्कूलों में अपनी सेवाएं दे कर विद्यार्थियों को शिक्षा व संस्कार देने का काम कर रहे हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी ईक्कस की विशेष पहचान है। इस गांव से राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी भी निकल चुके हैं। इस गांव के एक खिलाड़ी को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने पर अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जहां ग्रामीणों में आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बना हुआ है, वहीं गांव का युवा वर्ग में भी जागरूकता होने के कारण वह नशे जैसी सामाजिक कुरीति से दूर है। गांव में शिक्षा के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि आजादी से कई वर्ष पहले ही इस गांव में स्कूल की स्थापना हो चुकी थी और आजादी के बाद 1987-88 में ग्रामीणों के प्रयास से गांव में
डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी। यह इसी सेंटर का परिणाम है कि गांव में सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। 

1927 में ग्रामीणों ने चंदे से बनवाई थी स्कूल की बिल्डिंग   

ग्रामीण हरपाल सिंह का कहना है कि गांव में आजादी से कई वर्ष पहले ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव है। वर्ष 1927 में ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाई थी। गांव में स्कूलबनने के बाद गांव में शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला। इसके बाद 1987-88 में गांव में डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी।

खेलों में भी है गांव की विशेष पहचान

गांव में शिक्षा के विस्तार के बारे में जानकारी देते मास्टर धज्जाराम।
ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी गांव की विशेष पहचान है। मास्टर ओम सिंह, मास्टर धज्जा सिंह, मास्टर भीम सिंह, मास्टर गज सिंह, मास्टर सतबीर सिंह ने कई वर्ष तक हरियाणा व पंजाब की कबड्डी की टीम में खेलते हुए टीम का मार्गदर्शन किया। इस गांव से कबड्डी व स्वीमिंग के कई अच्छे खिलाड़ी निकल चुके हैं।

लड़कों के साथ लड़कियों को भी मिला पढ़ाई का अवसर 

सेवानिवृत्ति मास्टर धज्जाराम का कहना है कि उन्होंने 1963  में गांव के स्कूल में प्राइमरी अध्यापक के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी लेकिन उनके गांव में ही स्कूल होने के कारण गांव की ज्यादातर लड़कियां पढ़ाई के लिए स्कूल आती थी। गांव के लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी शिक्षित होकर गांव का नाम रोशन किया।

परिवार से मिली अध्यापक बनने की प्रेरणा

गणित अध्यापिका राजलक्ष्मी का फोटो।
मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा मेरे परिवार से ही मिली। मेरे नाना जी भी अध्यापक थे और मेरे पिता जी भी अध्यापक थे। इसके बाद से ही हमारा पूरा परिवार अध्यापन की लाइन में है। मेरे भाई व भाभी भी अध्यापक हैं। मैं खुद भी गणित अध्यापिका हूं और पास के ही गांव ईंटल कलां के स्कूल में कार्यरत हूं। हमारे गांव में इस समय 100 से भी अध्यापक हैं। 
राजलक्ष्मी, गणित अध्यापिका

शिक्षा का हब बन चुका है गांव

अध्यापिका शालिन्दा का फोटो।
पूरे गांव में शिक्षा के प्रति अच्छा माहौल है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा गांव एक तरह से एजुकेशन का हब बन चुका है। गांव में सबसे अधिक सरकारी नौकरी हैं। मेरे पति भी अध्यापक हैं।
शालिन्दा, अध्यापिका

खेलों के क्षेत्र में तराश रहे युवाओं का भविष्य

स्वीमिंग कोच मनोज का फोटो।
गांव के ही डीपीई मनोज कुमार तथा हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर कार्यरत अशोक कुमार खेलों के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य संवार रहे हैं। डीपीई मनोज कुमार स्वीमिंग के कोच हैं तो एएसआई अशोक कुमार कबड्डी के कोच हैं और खेल कोटे से ही पुलिस में भर्ती हुए हैं। गांव से निकल कर जींद शहर में जाने के बावजूद भी यह दोनों कोच प्रतिदिन शाम को गांव में जाकर युवाओं को खेलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 150  के करीब खिलाड़ी इनसे खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई खिलाड़ी राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं।

अर्जुन अवार्ड हासिल कर चुके हैं कोच ओमप्रकाश

बास्केटबाल कोच ओमप्रकाश का फोटो।
बास्केट बाल कोच ओमप्रकाश ढुल ने बताया कि उन्होंने लगभग साढ़े 22 वर्ष तक आर्मी में सेवा दी और अब जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर सेवा दे रहे हैं। सेना में रहते हुए 1970-80 तक वह इंडिया टीम में खेले। 1975 में उनकी टीम एशिया की टॉप स्कोरर रही। सेना की तरफ से खेलते हुए लगातार 12 वर्ष तक उनकी टीम इंडिया में पहले स्थान की टीम रही। खेलों में उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें 1979-80 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद १९८५ में राष्ट्रपति द्वारा वशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।









रविवार, 28 अगस्त 2016

गांव की सरपंच को भी भा गई महिला किसान खेत पाठशाला

अब बगैर कीटनाशकों के खेती के लिए महिलाओं को करेंगी प्रेरित

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में चल रही अमर उजाला फाउंडेशन व डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला अब गांव की सरपंच को भा गई है। महिला सरपंच मंजु प्रत्येक शनिवार को लगने वाली इस पाठशाला में कीट ज्ञान की ताल्लीम ले रही हैं।
रधाना गांव के खेतों में लगी पाठशाला में उपस्थित महिलाएं।
शनिवार को लगी पाठशाला में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। खेत पाठशाला के दौरान महिला कीटाचार्यों ने शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। पिछले सप्ताह की ही तरह इस बार भी फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, अंग्रेजो, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीट दोनों ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। शाकाहारी कीट कपास की फसल के पत्तों को काटकर उनमें सुराग बना देते हैं। पत्तों में सुराग होने से नीचे वाले पत्तों पर भी चली जाती है, जो पत्तों द्वारा भोजन तैयार करने में सहायक होती है। किसान के जानकारी के अभाव में फसल पर कीटों को देखकर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं, जिसका उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।

गांव की महिलाओं को भी करुंगी प्रेरित

दूसरी बार महिला किसान खेत पाठशाला में पहुंची रधाना गंाव की सरपंच मंजु ने बताया कि पिछले साल सफेद मक्खी की वजह से उनके यहां प्रति एकड़ दो क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ था। महंगे कीटनाशक स्पे्र करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इस पाठशाला में आकर कीटों के बारे में पता चला है, जिसके बारे में वह गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बताएंगी। 

रधाना गांव की सरपंच मंजू का फोटो।