मंगलवार, 9 अगस्त 2016

'बिग बॉस में शिरकत करेगी म्हारी रेसलर हार्ड केडी'

ग्रेट खली की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूडब्ल्यूई में तिरंगा लहराना है लक्ष्य
जालंधर में ग्रेट खली की अकेडमी में ले रही है प्रशिक्षण
रेसलिंग की नेशनल खिलाड़ी बुलबुल को रिंग में चटा चुकी है धूल 
कविता की बढ़ती लोकप्रियता को देख बिग बॉस से मिला ऑफर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय स्तर पर नौ वर्षों तक वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिर कविता दलाल अब कांटीनेंटल वेटलिफ्टर इंटरटेरमेंट (सीडब्ल्यूई) में रेसलर के रूप में धूम मचा रही है। कविता दलाल महज तीन के ही प्रशिक्षण के दौरान दिल्ली की मशहूर रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर बुलबुल को रिंग में धूल चटा चुकी है। सीडब्ल्यूई के रिंग में कविता दलाल अब हार्ड केडी के नाम से अपनी एक नई पहचान बना चुकी है। कविता दलाल का अब अगला लक्ष्य देश के मशहूर रेसलर दा ग्रेट खली की तर्ज पर वल्र्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में तिरंगा लहराना है। यदि कविता दलाल अपने इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं तो वह देश की पहली महिला रेसलर बन जाएंगी। इसके लिए कविता दलाल ने अक्तूबर में दा ग्रेट खली द्वारा गुरुग्राम में आयोजित करवाई जा रही सीडब्ल्यूई में भाग लेने वाले विदेशी रेसलरों को भी चुनौती दी है। डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में फाइट करने के लिए कविता जालंधर में स्थित खली की अकेडमी में प्रशिक्षण ले रही है और इसके लिए कविता प्रतिदिन आठ घंटे कठिन अभ्यास कर रही है। सीडब्ल्यूई में लगातार बढ़ रही कविता की लोकप्रियता को देख बिग बॉस के घर में शामिल होने के लिए कविता को निमंत्रण मिल चुका है। कविता ने बिग बॉस के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 
 खली की अकेडमी में एक रेसलर के साथ पंजा लड़ाती कविता।

यह है कविता के जीवन का सफर

जींद जिले के मालवी गांव निवासी कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और वालीबाल के अच्छे खिलाड़ी हैं। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए 
सूट सलवार में दिल्ली की रेसलर बुलबुल की चुनौती स्वीकार करती कविता।
बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। इसके बाद कविता के पति गौरव ने कविता को फिर से खेलों के लिए प्रेरित किया। पति से मिले सहयोग के बाद कविता ने फिर से वेटलिफ्टिंग में अपना अभ्यास शुरू कर दिया। 


ग्रेट खली की अकेडमी में अभ्यास करती कविता दलाल।

वेटलिफ्टिंग में यह रही कविता दलाल की उपलब्धियां

1. वर्ष 2006 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 
2. वर्ष 2007 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता। 
3. वर्ष 2008 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
4. वर्ष 2010 में नेशनल वुशू चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
5. वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
6. वर्ष 2013 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
7. वर्ष 2014 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
8. वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीता।
9. वर्ष 2016 में गुहाटी में आयोजित साऊथ एशियन गेम में स्वर्ण जीता। 

प्रति दिन आठ घंटे अभ्यास करती है कविता दलाल 

वेटलिफ्टिंग के बाद कविता दलाल अब सीडब्ल्यूई के रिंग में कठोर परिश्रम कर रही है। कविता दिन में आठ घंटे अभ्यास करती है। रिंग में उतरने से पहले जिम व एक्सरसाइज करती है। इसके बाद सुबह व शाम को दो से तीन घंटे खली की निगरानी में रिंग में अभ्यास करती है। 
अभ्यास के दौरान कविता का फोटो।

पहली ही फाइट में नेशनल रेसलर को कर दिया चित

कविता दलाल ने सीडब्ल्यूई के रिंग में महज तीन दिन के प्रशिक्षण के बाद ही नेशनल रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर लिया। नेशनल रेसलर बुलबुल ने जब रिंग में खड़े होकर फाइट करने के लिए रेसलरों को ललकारा तो ऑडियंश में बैठी कविता ने बुलबुल की चुनौती स्वीकार की। कविता सूट सलवार में ही रिंग में कूद पड़ी। रिंग में सूट सलवार में उतरी कविता को देख सभी दर्शक हैरान थे। कविता ने अपनी पहली फाइट में नेशनल रेसलर बुलबुल को रिंग में चित कर दिया। कविता द्वारा सूट सलवार में रिंग में उतर कर की गई फाइट ने कविता को पूरे देश में प्रसिद्धी दिलवा दी। कविता की इस फाइट का एक विडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। 

बिग बॉस में भी करूंगी हरियाणा का नाम रोशन

सीडब्ल्यूई से मुझे एक नई पहचान मिली है और इस खेल में मेरी बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए मुझे बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। मैने बिग बॉस के ऑफर को स्वीकार कर लिया है। जैसे ही बिग बॉस से कार्यक्रम का शैड्यूल मिलेगा मैं इसमें शामिल होकर यहां पर अपने हरियाणा का नाम रोशन करूंगी। 
कविता दलाल
रेसलर, सीडब्ल्यूई

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगी कविता 

कविता बहुत ही मेहनती लड़की है। एक बार यह जो लक्ष्य निर्धारित कर लेती है, फिर उसे पूरा करके ही दम लेती है। वेटलिफ्टिंग के बाद कविता का लक्ष्य सीडब्ल्यूई में विदेशी रेसलरों को धूल चटाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही कविता इस लक्ष्य को पूरा करेगी। अभी कविता को बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। बिग बॉस में भी कविता जरूरी विजयी रहेगी। 
संजय दलाल, भाई




फसल में नुकसान पहुंचाने से कोसों दूर है शाकाहारी कीटों की संख्या

रधाना गांव में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में महिला किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पाठशाला के आरंभ में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। इसके बाद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। आंकड़े में यह साफ नजर आया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। 
  फसल में कीटों की संख्या का अवलोकन करती  महिला किसान।
कीटाचार्या महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का काफी प्रकोप सामने आया था लेकिन इस बार कपास की फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या काफी कम है। फसल में नुकसान पहुंचाने वाली सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े की संख्या नामात्र है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी 0.5, हरा तेला 0.9, चूरड़ा 0.8 रही, जो कि फसल को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक हानि कागार से काफी दूर है। वहीं नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर लाल बानिया, माइट, मिलीबग, चेपा, पत्ते खाने वाले शाकाहारी में स्लेटी भूंड, टिड्डा तथा फूल खाने वाले में तेलन, भूरी पुष्पक कीट भी मिले लेकिन इनकी संख्या भी नामात्र ही मिली। वहीं मांसाहारी में डाकू बुगड़ा, हथजोड़ा, दीदड़ बुगड़ा, क्राइसोपा, बिंदुआ चूरड़ा, लफड़ो मक्खी, सुनहेरी मक्खी, लोपा मक्खी, लाल माइट, मकड़ी लालड़ो बिटल, लफड़ो बिटल भी कपास की फसल में मिली। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा है। इससे यह साफ है कि मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को रोकने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। 



गुरुवार, 4 अगस्त 2016

फिजूलखर्ची छोड़ जागरूकता के साथ धान की देखभाल करें किसान

थोड़ी सी सावधानी से ही किसान कर सकते हैं धान की फसल की बीमारियों का ऊपचार 
धान की फसल में ज्यादा पानी खड़ा रहने से पनपती हैं ज्यादातर बीमारियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा प्रदेश में खरीफ  की फसलों में से धान एक मुख्य फसल है। यह पानी की फसल होने के कारण इसमें फफूंद, जीवाणु, विषाणु से संबंधित बीमारियां आने का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। किसान जानकारी के अभाव में फसल को इन बीमारियों से बचाने के लिए अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। इससे फसल में किसान की लागत बढ़ती चली जाती है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से ही किसान पेस्टीसाइड पर होने वाले इस फिजूलखर्च से बच सकते हैं। धान की फसल में 16 से 17 किस्म की बीमारियां आती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन, शीत बलाइट, बदरा (ब्लास्ट) रोग, बकानी (पद गलन), जीवाणु अंगमारी, बैक्टेरियल लीफ  फलाइट, टुंगरा इत्यादी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें बीज ऊपचार कर तथा कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें फसल को पर्याप्त खुराक देकर रोका जा सकता है। बस इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। 

सीमित मात्रा में करें खाद का प्रयोग 

धान की फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को चाहिए कि वह धान की रोपाई के बाद 40 दिन तक ही फसल में यूरिया खाद डालें। यूरिया खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार में आधा कट्टे से ज्यादा खाद और पूरे सीजन में 110 किलो से ज्यादा यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। फसल की रोपाई के 40 दिन के बाद फसल में नीचे यूरिया खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल में चार अनुपात दो अनुपात एक के अनुसार खाद का प्रयोग करें। यानि के अगर फसल को चार किलो नाइट्रोजन देनी है तो उसमें दो किलो फास्फोर्स तथा एक किलो पोटास डालें। ताकि पौधों को पर्याप्त खुराक मिल सके।
धान की फसल के लिए खेत तैयार करता किसान।

फफुंदी से फैलने वाले रोग व उपचार 

धान की फसल में सात से आठ किस्म की ऐसी बीमारियां हैं जो फसल में अधिक पानी खड़ा रहने से होती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, पत्त गलन, शीत गलन, बदरा, शीत ब्लाइट नामक रोग फफुंदी से फैलने वाले रोग हैं। यदि फसल में इन रोगों के लक्षण नजर आने लगें तो किसान को फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए फसल में पानी को कम कर देना चाहिए। फसल में पानी कम कर इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। 

बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज

धान की फसल में बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज होती हैं। इसकी शुरूआत पत्ते, फिर तने और इसके बाद गर्दन पर होती है। इस रोग की शुरूआत में पत्ते पर आंख की निशान जैसे धब्बे हो जाते हैं। इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इस रोग से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि फसल के निसरते समय खेत में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए नमी रखें।  

टुंगरा रोग का नहीं कोई उपचार

धान की फसल में आने वाला टुंगरा रोग वायरस से फैलने वाला रोग है और इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इसलिए किसानों को इस रोग से फसल को बचाने के लिए पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए। इस रोग में धान की फसल में कुछ पौधे अन्य पौधों से लंबे बढ़ जाते हैं और फिर यह सफेद हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम केवल बीज ऊपचार से ही हो सकती है। 

खुराक की कमी से होने वाले रोग

धान की फसल में पीलिया व खैरा रोग खुराक की कमी से होते हैं। पीलिया रोग लोहे की कमी से होता है और खैरा रोग जिंक की कमी से होता है। इन रोगों से बचाने के लिए फसल को समय पर पर्याप्त मात्रा में खुराक की जरूरत होती है। 

ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची करते रहते हैं। जबकि किसान थोड़ी सी सावधानी से ही अधिकतर बीमारियों पर काबू पा सकते हैं। किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने से पहले बीज ऊपचार जरूर करना चाहिए। इसके बाद धान की फसल में अधिक पानी खड़ा नहीं करना चाहिए। जहां पर पानी खराब है, उस क्षेत्र के किसानों को फसल में अधिक पानी देने की बजाए केवल नमी रखनी चाहिए। यदि फसल में जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन इत्यादि रोग नजर आएं तो खेत का पानी सुखा देना चाहिए। खाद का प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकार, जींद


बुधवार, 20 जुलाई 2016

'देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने की खेती के टिप्स देंगे म्हारे किसान'

डीडी किसान चैनल की टीम ने कैमरे में कैद किए कीटाचार्य किसानों के अनुभव

दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच हुए सवाल-जवाब

थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कुदरती कीटनाशियों को बताया अचूक हथियार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
म्हारे कीटाचार्य किसान अब देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने (कपास) की खेती करने के टिप्स देंगे। ताकि खाने की थाली को जहरमुक्त बनाकर आने वाली पीढिय़ों को अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छा पर्यावरण मुहैया करवाया जा सके। इसके लिए डीडी किसान चैनल की टीम ने मंगलवार को जिले के रधाना गांव में प्रश्र मंच कार्यक्रम का आयोजन कर कीटाचार्य महिला व पुरुष किसानों के अनुभवों को अपने कैमरे में कैद किया। कार्यक्रम के दौरान लगभग दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच खूब सवाल-जवाब हुए। कीटाचार्य किसानों ने अपने अनुभव में बताया कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। जहरमुक्त खेती की पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान बेहद जरूरी है। कीटनाशकों के प्रयोग को रोकने में कुदरती कीटनाशी ही एकमात्र अचूक हथियार हैं। कार्यक्रम की रिकार्डिंग के दौरान प्राकृतिक रूप से कपास की फसल की देखभाल तथा कुदरती तरीके से फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने के मुद्दे पर विशेष फोक्स रहा। कीटाचार्य किसानों ने बड़ी ही बेबाकी के साथ सभी सवालों के जवाब दिए और कार्यक्रम में मौजूद कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के जवाबों पर अपनी सहमति जताकर तकनीकि रूप से मोहर लगाने का काम किया। टीम के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए कीटाचार्य महिला और पुरुष किसानों ने बताया कि वह किस तरह से पिछले आठ-दस वर्षों से बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए व नामात्र उर्वरकों का प्रयोग कर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देकर अच्छा उत्पादन तो ले ही रहे हैं, साथ-साथ समाज को अच्छा पर्यावरण व शुद्ध भोजन मुहैया करवाने का काम कर रहे हैं। 
 कार्यक्रम में महिला किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।

यह-यह लोग कार्यक्रम में हुए शामिल

कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र की तरफ से वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक यशपाल मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब की तरफ से कुलदीप ढांडा, कीटाचार्य रणबीर मलिक, सविता, अंग्रेजो, जिला पार्षद अमित निडानी, डीडी किसान चैनल से सीनियर प्रोडेक्शन एग्जीकिटिव विकास डबास, एंकर आदिती शर्मा, सीनियर वीडियोग्राफर नरेश गोलिया, विक्रम किशोरी, कैमरामैन शंभुनाथ मिश्रा, इंजीनियर जोगेंद्र कुमार, तकनीशियन हेमंत, वीडियो सहायक अंकित अग्रवाल, हेमंत विष्ठ मौजूद रहे।

इस-इस दिन होगा कार्यक्रम का प्रसारण

कीटाचार्य पुरुष किसानों के कार्यक्रम का प्रसारण बृहस्पतिवार 21 जुलाई शाम को साढ़े सात बजे, शुक्रवार 22 जुलाई को दोपहर तीन बजे किया जाएगा। जबकि महिला किसानों के कार्यक्रम को बृहस्पतिवार 28 जुलाई शाम साढ़े सात बजे तथा शुक्रवार 29 जुलाई को दोपहर तीन बजे प्रसारित किया जाएगा।

 यह हुए सीधे सवाल-जवाब

 कार्यक्रम में पुरुष किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।
सवाल 01. कपास की अच्छी फसल लेने के लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए।
जवाब : अच्छी फसल लेने के लिए सबसे पहले बिजाई से पूर्व धरती की अच्छी जुताई की जाए। बिजाई से पूर्व खेत में देसी खाद का प्रयोग किया जाए। डोलियां बनाकर बिजाई की जाए। बिजाई के बाद समय पर पानी लगाना चाहिए।
सवाल 02. कीटनाशकों के इस्तेमाल में क्या सावधानियां रखनी चाहिए।
जवाब : किसानों ने बताया कि वह पिछले आठ-दस वर्षों से बिना कीटनाशकों के खेती कर रहे हैं और इस दौरान उन्हें कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 03 : कपास की फसल में पहली सिंचाई कब होनी चाहिए।
जवाब : बिजाई के 40 दिन बाद सिंचाई की जा सकती है। सिंचाई से पहले अच्छी तरह से निराई व गुडाई करनी चाहिए। यदि जमीन में नमी कम है तो पहले भी सिंचाई की जा सकती है। पौधों की जरूरत को ध्यान में रख कर सिंचाई करें और सितम्बर माह में सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि इस माह में पौधे पर फूल व बौकी आनी शुरू हो जाती हैं।
सवाल 04 : क्या कीटनाशकों के बिना खेती संभव है।
जवाब : कीटों को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे अचूक शस्त्र हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार ही भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। जब पौधे को शाकाहारी कीट की जरूरत नहीं होती जब पौधे उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। वहीं कृषि विशेषज्ञ ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताते हुए बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीट अपना जीवन चक्र कम कर बच्चे देने की क्षमता बढ़ा लेते हैं और इससे फसल में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।
सवाल 05 :  कीटनाशकों से मिट्टी को क्या नुकसान होता है।
जवाब : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म कीट मर जाते हैं तथा इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट होती है। कीटनाशकों का प्रभाव जमीन व वातावरण में लंबे समय तक रहता है। जो हवा व खाने के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर बीमारियां पैदा करते हैं।
सवाल 06 : कपास की फसल में किस-किस रोग का खतरा रहता है।
जवाब : कपास की फसल में लीफ करल नामक वायरस का खतरा ज्यादा रहता है और सफेद मक्खी इस वायरस को फैलाने में सहायक है। कुछ कृषि अधिकारियों का मानना है कि लीफ करल वाले पौधे को उखाड़ दें लेकिन पौधे को उखाडऩे की बजाए यदि उसे पर्याप्त मात्रा में खुराक दें तो पौधा अच्छा उत्पादन दे सकता है।
सवाल 07 : क्या कपास में आने वाले कीट भी फसल को फायदा पहुंचा सकते हैं।
जवाब : प्रकृति ने इस धरती पर जिस भी जीव को जन्म दिया है, उसकी कहीं ना कहीं बहुत जरूरत है। ऐसा ही फसल में मौजूद कीटों पर भी लागू होता है। कुछ ऐसे शाकाहारी कीट हैं जो पत्तों में सुराख करते हैं और इस सुराख से ही नीचे के पत्तों पर धूप पहुंचती है तो नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बनाते हैं। वहीं ब्रिस्टल बीटन (तेलन) नामक शाकाहारी कीट कपास की फसल में पर-परागण का काम करती है। इस प्रकार कीट भी फसल को फायदा पहुंचाते हैं।
सवाल 08 : कपास की फसल में सफेद मक्खी की रोकथाम के क्या ऊपाये हैं।
जवाब : सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में हथजोड़ा, क्राइसोपा, मकडिय़ां, बीटल नामक मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद रहते हैं, जो सफेद मक्खी व इसके बच्चों को खाकर इसे नियंत्रित करने का काम करते हैं। वहीं कुछ ऐसे कीट भी हैं जो इसके अंड़ों में अपने अंडे देकर सफेद मक्खी संख्या को बढऩे से रोकते हैं।
सवाल 09 : औसतन कितनी सफेद मक्खी होने पर कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
जवाब : कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आर्थिक हानि कागार (ईटीएल) के अनुसार प्रति पत्ता जब सफेद मक्खी की संख्या 6 से अधिक हो तो ही कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए लेकिन पिछले आठ से दस साल के अनुभव में आज तक सफेद मक्खी ने कभी भी उनकी फसल में यह ईटीएल लेवल पार नहीं किया है। इसलिए उन्हें सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 10 : कपास में चुगाई के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिएं।
जवाब : चुगाई के दौरान साफ कपड़े (पल्ली) का प्रयोग किया जाए, चुगाई के दौरान सिर पूरी तरह से कपड़े से ढका होना चाहिए। पक्के हुए फावे को ही निकालें। औस साफ होने पर ही चुगाई करनी चाहिए। पत्तों व कीटों को फावों से दूर रखें ताकि कपास की गुणवत्ता पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़े।










सोमवार, 4 जुलाई 2016

महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर रही कीटाचार्य महिलाएं : एडीसी

रधाना  गांव में हुआ महिला पाठशाला का शुभारंभ

जींद। महिला सशक्तिकरण की जो मिशाल जींद जिले की महिलएं पेश कर रही हैं, ऐसी मिशाल प्रदेश के दूसरे जिलों में उन्हें कहीं पर भी देखने को नहीं मिली है। यह बात एडीसी आमना तसनीम ने शनिवार को रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कीटाचार्य महिलाओं को संबोधित  करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग के एसडीओ राजेंद्र गुुप्ता, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के प्रधान रणबीर मलिक सहित काफी संख्या में महिल किसान  मौजूद रही। एडीसी ने रिबन काट कर पाठशाला का शुभारंभ किया। महिला किसानों ने पाठशाला में पहुंचने पर एडीसी मैडम का स्वागत किया।
रधाना गांव में रिबन काटकर पाठशाला का उद्घाटन करती एडीसी। 
एडीसी ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान, रेवाड़ी, झज्जर, सोनीपत सहित कई जिलों में काम किया है और इस दौरान वह वहां की महिलाओं से भी मिलती रही हैं। लेकिन जिस तरह जींद जिले के निडाना, निडानी, ललितखेड़ा तथा रधाना गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कृषि के कार्य में अपना योगदान कर रही हैं और फसल में मौजूद कीटों के बारे में इतनी बारिकी से जानकारी रखती है, इस तरह की मिशाल उन्हें दूसरे जिलों में देखने को नहीं मिली है। ललितखेड़ा की कीटाचार्य महिला किसानों ने तेरे कांधे टंकी जहर की मेरै कसुती रड़कै हो तथा रधाना की महिलाओं ने खेत मैं खड़ी ललकारूं देखे हो पिया जहर ना लाइये गीत से फसल में मौजूद कीटों को बचाने का आह्वान किया। कीटाचार्या सविता ने बताया कि यदि फसलों में इसी तरह से कीटनाशकों का प्रयोग होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आने वाली पुस्तों को विरासत में बीमारियां देकर जाएंगे। अंग्रेजों ने बताया कि कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट खुद ही कुदरती कीटनाशी का काम कर देते हैं। वह पिछले आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों के ही खेती कर रहे हैं।
रधाना गांव  में महिला पाठशाला को संबोधित करती एडीसी।
उन्होंने बताया कि पौधों को कीटनाशकों की नहीं खुराक की जरूरत होती है। एडीसी ने महिलाओं को कीट ज्ञान पद्धति पर एक पुस्तक तैयार करने का आह्वान किया ताकि कीट ज्ञान को दूसरे जिलों के किसानों तक भी पहुंचाया जा सके।






रधाना गांव में पाठशाला में मौजूद महिलाएं।

 पाठशाला में अपने अनुभव बताती महिलाएं।

रविवार, 17 जनवरी 2016

आने वाली पीढिय़ों को अच्छा स्वास्थ्य देने के लिए कीट ज्ञान एकमात्र उपाय : डॉ. प्रेमलता

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक 
कीटाचार्य किसानों से रूबरू होने के लिए निडानी पहुंचा कृषि वैज्ञानिकों का दल   

नरेंद्र कुंडू 
जींद। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रेमलता ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष व महिला किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। कीटों के बारे में जितना भी व्यवहारिक ज्ञान यहां के कीटाचार्य किसानों को है, उतना ज्ञान तो वैज्ञानिकों को भी नहीं है। आने वाली पीढिय़ों को यदि अच्छा स्वास्थ्य व अच्छा वातावरण मुहैया करवाना है तो उसके लिए फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को पूरी तरह से बंद करना होगा और यह तभी संभव है जब किसानों को फसल में मौजूद कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों की जानकारी होगी। कीट ज्ञान के मॉडल को लागू किए बिना खाने की थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है। डॉ. प्रेमलता शुक्रवार को कृषि वैज्ञानिकों के एक दल के साथ खेल गांव निडानी में आयोजित कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों से रूबरू हो रही थी। इस दौरान उनके साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, केरला, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान सहित 11 प्रदेशों के लगभग 22 कृषि वैज्ञानिकों का दल मौजूद था। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों की प्रस्तुतियों से कृषि वैज्ञानिकों का पूरा दल किसानों के कीट ज्ञान का कायल हो गया। 
 कार्यक्रम में मंच पर मौजूद वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से बताया कि जब से कीड़े व किसान की लड़ाई शुरू हुई है, तब से इस लड़ाई में हार का सामना किसान को ही करना पड़ा है। क्योंकि किसान को कीड़ों की पहचान ही नहीं है और जब तक जंग में दुश्मन की पहचान नहीं होगी तब तक जंग जीतना संभव नहीं है। कीटनाशकों से कीटों को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इसका ताजा उदाहरण पिछले वर्ष कपास की फसल में हुआ सफेद मक्खी का प्रकोप है। जहां-जहां पर किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आए हैं। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि उन्होंने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया और इसी के चलते उनकी फसलों में सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई। कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मांसाहारी कीट प्रर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय की कृषि वैज्ञानिक डॉ. कुसुम राणा ने कहा कि यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीटों पर अनोखा शोध किया है और देश के प्रत्येक किसान को इस ज्ञान की जरूरत है। क्योंकि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से आज हमारा खान-पान व वातावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है और कीटनाशक ही कैंसर जैसी घातक बीमारियों की जड़ हैं। 
कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों के विचार सुनते कृषि वैज्ञानिक।

कुए के पास खुद ही चलकर आता है प्यासा 

उड़ीसा से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. धर्मबीर ने प्यासे के कुए के पास आने वाली कहावत का उदाहरण देते हुए कहा कि अभी तक जिस ज्ञान को उन्होंने केवल किताबों में ही पढ़ा था उस ज्ञान के आज उन्होंने व्यवहारिक रूप से दर्शन कर लिए हैं। किसानों से यह ज्ञान हासिल करने के लिए ही वह इतनी दूर चलकर आए हैं। झारखंड से आई कृषि वैज्ञानिक डॉ. माया ने महिला किसानों से घर के कामकाज को संभालने के साथ-साथ खेत का काम करने के लिए उनके समय प्रबंधन की जानकारी ली। जम्मू से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. जसबीर मनास ने कहा कि यहां उन्होंने अपनी जिंदगी का यह पहला अनुभव देखने को मिला है कि किस तरह से महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों का सहयोग करती हैं। झारखंड से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि इस काम पर कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा भी रिसर्च किए जाने की जरूरत है। महाराष्ट्र से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. संतापुरी ने किसानों से ग्रुप में काम करने के अनुभव पर चर्चा की। 




आने वाली पीढिय़ों को अच्छा स्वास्थ्य देने के लिए कीट ज्ञान एकमात्र उपाय : डॉ. प्रेमलता

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक
कीटाचार्य किसानों से रूबरू होने के लिए निडानी पहुंचा कृषि वैज्ञानिकों का दल
अमर उजाला ब्यूरो
जींद। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रेमलता ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष व महिला किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। कीटों के बारे में जितना भी व्यवहारिक ज्ञान यहां के कीटाचार्य किसानों को है, उतना ज्ञान तो वैज्ञानिकों को भी नहीं है। आने वाली पीढिय़ों को यदि अच्छा स्वास्थ्य व अच्छा वातावरण मुहैया करवाना है तो उसके लिए फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को पूरी तरह से बंद करना होगा और यह तभी संभव है जब किसानों को फसल में मौजूद कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों की जानकारी होगी। कीट ज्ञान के मॉडल को लागू किए बिना खाने की थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है। डॉ. प्रेमलता शुक्रवार को कृषि वैज्ञानिकों के एक दल के साथ खेल गांव निडानी में आयोजित कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों से रूबरू हो रही थी। इस दौरान उनके साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, केरला, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान सहित 11 प्रदेशों के लगभग 22 कृषि वैज्ञानिकों का दल मौजूद था। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों की प्रस्तुतियों से कृषि वैज्ञानिकों का पूरा दल किसानों के कीट ज्ञान का कायल हो गया।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से बताया कि जब से कीड़े व किसान की लड़ाई शुरू हुई है, तब से इस लड़ाई में हार का सामना किसान को ही करना पड़ा है। क्योंकि किसान को कीड़ों की पहचान ही नहीं है और जब तक जंग में दुश्मन की पहचान नहीं होगी तब तक जंग जीतना संभव नहीं है। कीटनाशकों से कीटों को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इसका ताजा उदाहरण पिछले वर्ष कपास की फसल में हुआ सफेद मक्खी का प्रकोप है। जहां-जहां पर किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आए हैं। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि उन्होंने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया और इसी के चलते उनकी फसलों में सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई। कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मांसाहारी कीट प्रर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। चौधरी चरण ङ्क्षसह कृषि विश्वविद्यालय की कृषि वैज्ञानिक डॉ. कुसुम राणा ने कहा कि यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीटों पर अनोखा शोध किया है और देश के प्रत्येक किसान को इस ज्ञान की जरूरत है। क्योंकि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से आज हमारा खान-पान व वातावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है और कीटनाशक ही कैंसर जैसी घातक बीमारियों की जड़ हैं।
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कुए के पास खुद ही चलकर आता है प्यासा
उड़ीसा से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. धर्मबीर ने प्यासे के कुए के पास आने वाली कहावत का उदाहरण देते हुए कहा कि अभी तक जिस ज्ञान को उन्होंने केवल किताबों में ही पढ़ा था उस ज्ञान के आज उन्होंने व्यवहारिक रूप से दर्शन कर लिए हैं। किसानों से यह ज्ञान हासिल करने के लिए ही वह इतनी दूर चलकर आए हैं। झारखंड से आई कृषि वैज्ञानिक डॉ. माया ने महिला किसानों से घर के कामकाज को संभालने के साथ-साथ खेत का काम करने के लिए उनके समय प्रबंधन की जानकारी ली। जम्मू से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. जसबीर मनास ने कहा कि यहां उन्होंने अपनी जिंदगी का यह पहला अनुभव देखने को मिला है कि किस तरह से महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों का सहयोग करती हैं। झारखंड से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि इस काम पर कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा भी रिसर्च किए जाने की जरूरत है। महाराष्ट्र से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. संतापुरी ने किसानों से ग्रुप में काम करने के अनुभव पर चर्चा की।
फोटो कैप्शन
15जेएनडी 01 : कार्यक्रम में मंच पर मौजूद वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक।
15जेएनडी 02 : कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों के विचार सुनते कृषि वैज्ञानिक।