शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी ने दी फसल में दस्तक

हॉपर व तना गलन को रोकने में पेस्टीसाइड भी नहीं है कारगर
चार किस्म के हैं हॉपर नामक कीट
समझदारी की फसल के बचाव का एकमात्र तरीका  

नरेंद्र कुंडू
जींद। खेतों में किसान का पीला सोना (धान) लगभग पक्ककर तैयार है लेकिन धान की इस अंतिम चरण की प्रक्रिया में पहुंचने के साथ धान में हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। धान की फसल में हॉपर से ज्यादा नुकसान तना गलन का है। क्योंकि हॉपर कीट तो खेत में खड़ी फसल के कुछ ही को नुकसान पहुंचाता है लेकिन तना गलन नामक बीमारी के ज्यादा क्षेत्र में फैलने की संभावनाएं हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि हॉपर व तना गलन से फसल को बचाव के लिए पेस्टीसाइड भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसलिए किसानों को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पेस्टीसाइड पर अपना खर्च करने की बजाए सावधानी के साथ अपनी फसल की तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

चार किस्म का है रस चुसक हॉपर कीट 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार हॉपर एक रस चुसक कीट है और इसकी चार किस्में अभी तक देखी जा चुकी हैं। हॉपर कीट सफेद, हरा, ब्राउन व काले रंग का होता है। ब्राउन व काला हॉपर पौधे के तने का रस चूसता है, वहीं सफेद व हरा हॉपर पौधे के पत्तों का रस चूसता है। पत्ते व तने का रस चूसने के कारण यह काले पड़ जाते हैं। तने व पत्ते का रस चूस लिए जाने के कारण यह काला पडऩे के बाद सुख कर गिर जाता है।

हॉपर के प्रकोप से खेत में इस तरह के दिखाई देंगे लक्षण

जिस खेत में हॉपर का प्रकोप होगा, उस खेत में किसी-किसी स्थान पर गोलाकार, त्रिभुजाकार या अंडाकार के आकार में फसल खराब हुई दिखाई देगी। खेत में जिस क्षेत्र में छाया होगी, वहां से इसकी शुरूआत होगी।

क्या है तना गलन बीमारी

तना गलन बीमारी उन क्षेत्र में आती है, जहां पर जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होती है या पानी हल्का होता है। इसलिए पौधे को जमीन से पर्याप्त मात्रा में फासफोर्स नहीं मिल पाता। यह बीमारी फसल की रोपाई के शुरूआत में व पकाई के समय में आती है। इस बीमारी के आने पर पौधे का तना नीचे से काला पड़ जाता है। पौधे में जाइलम व फ्लोयम नाम की दो नलियां होती हैं। जाइलम नाम की नाली जमीन से पौधे के लिए पानी व खुराक पहुंचाती है। वहीं फ्लोयम नाम की नाली पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाले भोजन को पौधे के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाती है लेकिन तने के गलने के कारण यह दोनों नालियां खत्म हो जाती हैं। इससे पौधे तक खुराक व भोजन नहीं पहुंचने के कारण पौधा काला होकर गिर जाता है। ऐसे में पेस्टीसाइड का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।

तना गलन में क्या करें किसान

तना गलन बीमारी उस समय फसल में आती है, जब फसल पकने में एक सप्ताह तक का समय बाकि रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि फसल का पानी सुखा दें और फसल की कटाई कर गिरी में (एक जगह) लगा दें। ऐसा करने से फसल का जो दाना कच्चा है, वह भी पक्क कर तैयार हो जाएगा। हॉपर कीट व तना गलन की बीमारी का कोई उपचार नहीं है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह पेस्टीसाइड पर फिजुलखर्ची नहीं करें। हॉपर कीट से बचाव के लिए किसान प्रति एकड़ में 300 ग्राम डीडीवीपी को दस किलो रेत में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  इसके अलावा कोई उपचार नहीं हैं। बाकि हॉपर से किसानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यह पूरे खेत में नुकसान की बजाए कुछ ही क्षेत्र में नुकसान करता है। वहीं तना गलन बीमारी आने पर किसान फसल को पकाई से दो-तीन पहले काटकर धान को गिरी में लगा सकते हैं।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
कृषि विभाग, जींद  

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