शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कहाँ खो गई हमारी बेटियां

जिले के 29 गांवों में बेटियों को अब भी समझा जाता है बोझ
जिले का लिंगानुपात सुधरकर 888 पर पहुंचा
अब लिंगानुपात में पिछड़े गांवों पर फोकस करेगा स्वास्थ्य विभाग
पिछले वर्षों के मुकाबले जिले में बढ़ा है लिंगानुपात

नरेंद्र कुंडू
जींद। एक ओर जहां सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, वहीं जिला में अब भी लोगों की सोच बेटियों के प्रति पूरी तरह नहीं बदली है। जिले में 29 गांव ऐसे हैं, जिन गांवों में बेटियों को अब भी बोझ समझा जाता है। यह इसी का परिणाम है कि इन 29 गांवों में इस समय भी लिंगानुपात 550 से नीचे है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में चलाए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के काफी सकारात्मक परिणा

म सामने आए हैं। इसके चलते पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष जिले का लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। इस वर्ष जिले का लिंगानुपात 857 से बढ़कर 888 पर पहुंच गया है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सख्त रुख अपनाया गया है। इसी के चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा जिले ही नहीं बल्कि जिले से बाहर भी 33 ऐसे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जा चुकी है, जिन अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर विभाग को लिंग जांच करने जैसी संदिग्ध गतिविधियों की भनक लगी। 

आधे से ज्यादा गांवों में ही सुधरा लिंगानुपात


जिले में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा 39 ऐसे गांवों को चिन्हित किया गया था जिनका लिंगानुपात 555 से कम था। इनमें से 28 गांवों के लिंगानुपात में काफी सुधार है। शेष बचे 11 गांवों में मुहिम का असर खास नहीं रह पाया। इन 11 गांवों के अलावा 18 और गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों को बोझ समझा जाता है।  इन 39 गांवों में से अब 11 गांव ही ऐसे बचे हैं जिनका लिंगानुपात 550से कम है। बाकि 28 गांवों के लिंगानुपात में सुधार हुआ है और इन गांवों का लिंगानुपात 550 से ऊपर पहुंच गया है। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा 33 बार की जा चुकी हैं छापेमारी

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले वर्ष 33 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की गई। इनमें 18 बार छापेमारी जींद जिले में, 13 बार दूसरे जिलों में तथा तीन बार प्रदेश के साथ लगते उत्तरप्रदेश व हिमाचल में छापेमारी की गई हैं। 

इस वर्ष इन-इन गांवों का लिंगानुपात 550 से नीचे

गांव का नाम लिंगानुपात 
सेढ़ा माजर 181
रजाना खुर्द 200
खतला 285
कटवाल 285
फैरण खुर्द 333
रोजखेड़ा 333
रजाना कलां 354
जलालपुर खुर्द 363
हसनपुर 363
ऐंचरा कलां 375
श्रीरागखेड़ा 375
जीवनपुर 384
मांडोखेड़ी 428
मंगलपुर 431
डुमरखां खुर्द 433
ढाणी रामगढ़ 470
दुड़ाना 500
किलाजफरगढ़ 509
खेड़ी मसानियां 520
नगूरां         520
खोखरी 521
चंदनपुर 521
कलोदा खुर्द 533
खेड़ी जाजवान 538
जैजवंती 538
देशखेड़ा 545
वर्ष के अनुसार जिले का लिंगानुपात का आंकड़ा
वर्ष लिंगानुपात
2005 860
2006 890
2007 896
2008 894
2009 847
2010 869
2011       837
2012 833
2013 831
2014 863
2015 857
जनवरी से सितंबर 2016 तक 888

उठाए जा रहे हैं कठोर कदम

 जिले में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। प्रत्येक  गांव में गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, ताकि विभाग इन महिलाओं पर नजर रख सके। समय-समय पर अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जाती है। गांवों में एएनएम, आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, पंचों, सरपंचों व सामाजिक संगठनों के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। लोगों की मानसिकता बदलने के लिए जिले की तीन नेशनल खिलाडिय़ों को रोल मॉडल बनाया गया है, वहीं जानकी फिल्म के माध्यम से भी लोगों को जागरूक किया जाता है। पिछले वर्षों की तुलना में जिले के लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। जिन गांवों का लिंगानुपात कम है, उन गांवों पर विभाग का विशेष फोकस रहेगा।  
डॉ. प्रभूदयाल, डिप्टी सिविल सर्जन
नागरिक अस्पताल, जींद

आशा वर्कर रख रहीं हैं नजर 

गांव में आंगनबाड़ी वर्कर व आशा वर्कर नियमित रूप से गर्भवती महिलाओं के संपर्क में रहती हैं। गांव में भ्रूण हत्या की कोई बात नहीं है। यदि लिंगानुपात कम है तो यह कुदरत की ही देन है। गांव व पंचायत इस विषय में बहुत गंभीर है।

कृष्ण कुमार सरपंच रजाना खुर्द।






शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी ने दी फसल में दस्तक

हॉपर व तना गलन को रोकने में पेस्टीसाइड भी नहीं है कारगर
चार किस्म के हैं हॉपर नामक कीट
समझदारी की फसल के बचाव का एकमात्र तरीका  

नरेंद्र कुंडू
जींद। खेतों में किसान का पीला सोना (धान) लगभग पक्ककर तैयार है लेकिन धान की इस अंतिम चरण की प्रक्रिया में पहुंचने के साथ धान में हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। धान की फसल में हॉपर से ज्यादा नुकसान तना गलन का है। क्योंकि हॉपर कीट तो खेत में खड़ी फसल के कुछ ही को नुकसान पहुंचाता है लेकिन तना गलन नामक बीमारी के ज्यादा क्षेत्र में फैलने की संभावनाएं हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि हॉपर व तना गलन से फसल को बचाव के लिए पेस्टीसाइड भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसलिए किसानों को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पेस्टीसाइड पर अपना खर्च करने की बजाए सावधानी के साथ अपनी फसल की तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

चार किस्म का है रस चुसक हॉपर कीट 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार हॉपर एक रस चुसक कीट है और इसकी चार किस्में अभी तक देखी जा चुकी हैं। हॉपर कीट सफेद, हरा, ब्राउन व काले रंग का होता है। ब्राउन व काला हॉपर पौधे के तने का रस चूसता है, वहीं सफेद व हरा हॉपर पौधे के पत्तों का रस चूसता है। पत्ते व तने का रस चूसने के कारण यह काले पड़ जाते हैं। तने व पत्ते का रस चूस लिए जाने के कारण यह काला पडऩे के बाद सुख कर गिर जाता है।

हॉपर के प्रकोप से खेत में इस तरह के दिखाई देंगे लक्षण

जिस खेत में हॉपर का प्रकोप होगा, उस खेत में किसी-किसी स्थान पर गोलाकार, त्रिभुजाकार या अंडाकार के आकार में फसल खराब हुई दिखाई देगी। खेत में जिस क्षेत्र में छाया होगी, वहां से इसकी शुरूआत होगी।

क्या है तना गलन बीमारी

तना गलन बीमारी उन क्षेत्र में आती है, जहां पर जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होती है या पानी हल्का होता है। इसलिए पौधे को जमीन से पर्याप्त मात्रा में फासफोर्स नहीं मिल पाता। यह बीमारी फसल की रोपाई के शुरूआत में व पकाई के समय में आती है। इस बीमारी के आने पर पौधे का तना नीचे से काला पड़ जाता है। पौधे में जाइलम व फ्लोयम नाम की दो नलियां होती हैं। जाइलम नाम की नाली जमीन से पौधे के लिए पानी व खुराक पहुंचाती है। वहीं फ्लोयम नाम की नाली पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाले भोजन को पौधे के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाती है लेकिन तने के गलने के कारण यह दोनों नालियां खत्म हो जाती हैं। इससे पौधे तक खुराक व भोजन नहीं पहुंचने के कारण पौधा काला होकर गिर जाता है। ऐसे में पेस्टीसाइड का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।

तना गलन में क्या करें किसान

तना गलन बीमारी उस समय फसल में आती है, जब फसल पकने में एक सप्ताह तक का समय बाकि रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि फसल का पानी सुखा दें और फसल की कटाई कर गिरी में (एक जगह) लगा दें। ऐसा करने से फसल का जो दाना कच्चा है, वह भी पक्क कर तैयार हो जाएगा। हॉपर कीट व तना गलन की बीमारी का कोई उपचार नहीं है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह पेस्टीसाइड पर फिजुलखर्ची नहीं करें। हॉपर कीट से बचाव के लिए किसान प्रति एकड़ में 300 ग्राम डीडीवीपी को दस किलो रेत में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  इसके अलावा कोई उपचार नहीं हैं। बाकि हॉपर से किसानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यह पूरे खेत में नुकसान की बजाए कुछ ही क्षेत्र में नुकसान करता है। वहीं तना गलन बीमारी आने पर किसान फसल को पकाई से दो-तीन पहले काटकर धान को गिरी में लगा सकते हैं।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
कृषि विभाग, जींद  

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

किसानों के लिए फायदे की खेती है सरसों

कम खर्च में किसान को मिलता है अधिक मुनाफास्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसलों में सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है। सरसों की खेती में किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। सरसों की खेती के उत्पादन के लिए किसान को शारीरिक श्रम भी काफी कम करना पड़ता है और कीड़ों व बीमारी के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। वहीं सरसों से निकलने वाला तेल भी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है। इसलिए किसान सरसों की खेती को अपना कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

यह है सरसों की बिजाई का उपयुक्त समय

सरसों की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय 25 सितंबर से 15 अक्तूबर का समय सबसे उपयुक्त है। ड्रील मशीन व हाथ की छांट से भी सरसों की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के दौरान 25 किलो यूरिया तथा 40 किलो सिंगल सुपर फासफोर्स खाद डालें। इसके बाद सरसों की फसल में पहला पानी लगाने के बाद 25 किलो यूरिया खाद डालें।

इन-इन किस्मों की कर सकते हैं बिजाई

अधिक पानी वाले क्षेत्र में किसान हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 749, लक्ष्मी व वरूण किस्म की बिजाई कर सकते हैं। कम पानी वाले क्षेत्र में हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 406 व करनाल की 30 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। जहां पर जमीनी पानी खारा है वहां पर किसान करनाल की 88 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। 88 नंबर किस्म में अन्य किस्मों की बजाए तेल की मात्रा अधिक है। वहीं प्राइवेट क्षेत्र की भी कई किस्में इस समय बाजार में हैं। इनमें बायर कंपनी की 5444 व 5450 किस्म, श्रीराम कंपनी की रानी किस्म तथा माइको कंपनी की माइको बोल्ड किस्म भी अच्छी है।

कीटों व बीमारियों के मामले में भी सुरक्षित है सरसों की फसल

रबी की दूसरी फसलों में जहां कीटों व बीमारियों के प्रकोप का ज्यादा भय किसान को रहता है, वहीं सरसों की फसल कीटों व बीमारियों के मामले में काफी सुरक्षित है। क्योंकि सरसों की फसल में कीट व बीमारियां नामात्र ही आती हैं। सरसों की बजाई के समय पेंटिड बग (धोलिया) का थोड़ा बहुत प्रभाव हो सकता है लेकिन सरसों में महज राख का छिड़काव करने से यह कीट अपने आप नियंत्रित हो जाता है।

स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है। क्योंकि इस फसल में सबसे कम कीटनाशकों का प्रयोग होता है और खाने में सरसों का तेल लेने से शरीर स्वस्थ रहता है। वहीं हार्ट के मरीजों के लिए भी सरसों का तेल काफी लाभदायक है।

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्योंकि इस फसल में रबी की दूसरी फसलों से नामात्र खर्च होता है और मुनाफा अधिक होता है। गेहूं की फसल में जहां एक एकड़ में आठ से नौ हजार रुपये का खर्च आता है तो सरसों की फसल में महज तीन से चार हजार रुपये का ही खर्च आता है। कीटों व बीमारियों के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। किसान को इस फसल में शारीरिक मेहनत भी काफी कम करनी पड़ती है। इसलिए किसानों को सरसों की खेती की तरफ अपना रूझान बढ़ाना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
जींद।