रविवार, 28 अगस्त 2016

गांव की सरपंच को भी भा गई महिला किसान खेत पाठशाला

अब बगैर कीटनाशकों के खेती के लिए महिलाओं को करेंगी प्रेरित

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में चल रही अमर उजाला फाउंडेशन व डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला अब गांव की सरपंच को भा गई है। महिला सरपंच मंजु प्रत्येक शनिवार को लगने वाली इस पाठशाला में कीट ज्ञान की ताल्लीम ले रही हैं।
रधाना गांव के खेतों में लगी पाठशाला में उपस्थित महिलाएं।
शनिवार को लगी पाठशाला में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। खेत पाठशाला के दौरान महिला कीटाचार्यों ने शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। पिछले सप्ताह की ही तरह इस बार भी फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, अंग्रेजो, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीट दोनों ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। शाकाहारी कीट कपास की फसल के पत्तों को काटकर उनमें सुराग बना देते हैं। पत्तों में सुराग होने से नीचे वाले पत्तों पर भी चली जाती है, जो पत्तों द्वारा भोजन तैयार करने में सहायक होती है। किसान के जानकारी के अभाव में फसल पर कीटों को देखकर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं, जिसका उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।

गांव की महिलाओं को भी करुंगी प्रेरित

दूसरी बार महिला किसान खेत पाठशाला में पहुंची रधाना गंाव की सरपंच मंजु ने बताया कि पिछले साल सफेद मक्खी की वजह से उनके यहां प्रति एकड़ दो क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ था। महंगे कीटनाशक स्पे्र करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इस पाठशाला में आकर कीटों के बारे में पता चला है, जिसके बारे में वह गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बताएंगी। 

रधाना गांव की सरपंच मंजू का फोटो।  





मंगलवार, 9 अगस्त 2016

'बिग बॉस में शिरकत करेगी म्हारी रेसलर हार्ड केडी'

ग्रेट खली की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूडब्ल्यूई में तिरंगा लहराना है लक्ष्य
जालंधर में ग्रेट खली की अकेडमी में ले रही है प्रशिक्षण
रेसलिंग की नेशनल खिलाड़ी बुलबुल को रिंग में चटा चुकी है धूल 
कविता की बढ़ती लोकप्रियता को देख बिग बॉस से मिला ऑफर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय स्तर पर नौ वर्षों तक वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिर कविता दलाल अब कांटीनेंटल वेटलिफ्टर इंटरटेरमेंट (सीडब्ल्यूई) में रेसलर के रूप में धूम मचा रही है। कविता दलाल महज तीन के ही प्रशिक्षण के दौरान दिल्ली की मशहूर रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर बुलबुल को रिंग में धूल चटा चुकी है। सीडब्ल्यूई के रिंग में कविता दलाल अब हार्ड केडी के नाम से अपनी एक नई पहचान बना चुकी है। कविता दलाल का अब अगला लक्ष्य देश के मशहूर रेसलर दा ग्रेट खली की तर्ज पर वल्र्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में तिरंगा लहराना है। यदि कविता दलाल अपने इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं तो वह देश की पहली महिला रेसलर बन जाएंगी। इसके लिए कविता दलाल ने अक्तूबर में दा ग्रेट खली द्वारा गुरुग्राम में आयोजित करवाई जा रही सीडब्ल्यूई में भाग लेने वाले विदेशी रेसलरों को भी चुनौती दी है। डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में फाइट करने के लिए कविता जालंधर में स्थित खली की अकेडमी में प्रशिक्षण ले रही है और इसके लिए कविता प्रतिदिन आठ घंटे कठिन अभ्यास कर रही है। सीडब्ल्यूई में लगातार बढ़ रही कविता की लोकप्रियता को देख बिग बॉस के घर में शामिल होने के लिए कविता को निमंत्रण मिल चुका है। कविता ने बिग बॉस के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 
 खली की अकेडमी में एक रेसलर के साथ पंजा लड़ाती कविता।

यह है कविता के जीवन का सफर

जींद जिले के मालवी गांव निवासी कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और वालीबाल के अच्छे खिलाड़ी हैं। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए 
सूट सलवार में दिल्ली की रेसलर बुलबुल की चुनौती स्वीकार करती कविता।
बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। इसके बाद कविता के पति गौरव ने कविता को फिर से खेलों के लिए प्रेरित किया। पति से मिले सहयोग के बाद कविता ने फिर से वेटलिफ्टिंग में अपना अभ्यास शुरू कर दिया। 


ग्रेट खली की अकेडमी में अभ्यास करती कविता दलाल।

वेटलिफ्टिंग में यह रही कविता दलाल की उपलब्धियां

1. वर्ष 2006 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 
2. वर्ष 2007 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता। 
3. वर्ष 2008 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
4. वर्ष 2010 में नेशनल वुशू चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
5. वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
6. वर्ष 2013 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
7. वर्ष 2014 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
8. वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीता।
9. वर्ष 2016 में गुहाटी में आयोजित साऊथ एशियन गेम में स्वर्ण जीता। 

प्रति दिन आठ घंटे अभ्यास करती है कविता दलाल 

वेटलिफ्टिंग के बाद कविता दलाल अब सीडब्ल्यूई के रिंग में कठोर परिश्रम कर रही है। कविता दिन में आठ घंटे अभ्यास करती है। रिंग में उतरने से पहले जिम व एक्सरसाइज करती है। इसके बाद सुबह व शाम को दो से तीन घंटे खली की निगरानी में रिंग में अभ्यास करती है। 
अभ्यास के दौरान कविता का फोटो।

पहली ही फाइट में नेशनल रेसलर को कर दिया चित

कविता दलाल ने सीडब्ल्यूई के रिंग में महज तीन दिन के प्रशिक्षण के बाद ही नेशनल रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर लिया। नेशनल रेसलर बुलबुल ने जब रिंग में खड़े होकर फाइट करने के लिए रेसलरों को ललकारा तो ऑडियंश में बैठी कविता ने बुलबुल की चुनौती स्वीकार की। कविता सूट सलवार में ही रिंग में कूद पड़ी। रिंग में सूट सलवार में उतरी कविता को देख सभी दर्शक हैरान थे। कविता ने अपनी पहली फाइट में नेशनल रेसलर बुलबुल को रिंग में चित कर दिया। कविता द्वारा सूट सलवार में रिंग में उतर कर की गई फाइट ने कविता को पूरे देश में प्रसिद्धी दिलवा दी। कविता की इस फाइट का एक विडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। 

बिग बॉस में भी करूंगी हरियाणा का नाम रोशन

सीडब्ल्यूई से मुझे एक नई पहचान मिली है और इस खेल में मेरी बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए मुझे बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। मैने बिग बॉस के ऑफर को स्वीकार कर लिया है। जैसे ही बिग बॉस से कार्यक्रम का शैड्यूल मिलेगा मैं इसमें शामिल होकर यहां पर अपने हरियाणा का नाम रोशन करूंगी। 
कविता दलाल
रेसलर, सीडब्ल्यूई

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगी कविता 

कविता बहुत ही मेहनती लड़की है। एक बार यह जो लक्ष्य निर्धारित कर लेती है, फिर उसे पूरा करके ही दम लेती है। वेटलिफ्टिंग के बाद कविता का लक्ष्य सीडब्ल्यूई में विदेशी रेसलरों को धूल चटाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही कविता इस लक्ष्य को पूरा करेगी। अभी कविता को बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। बिग बॉस में भी कविता जरूरी विजयी रहेगी। 
संजय दलाल, भाई




फसल में नुकसान पहुंचाने से कोसों दूर है शाकाहारी कीटों की संख्या

रधाना गांव में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में महिला किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पाठशाला के आरंभ में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। इसके बाद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। आंकड़े में यह साफ नजर आया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। 
  फसल में कीटों की संख्या का अवलोकन करती  महिला किसान।
कीटाचार्या महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का काफी प्रकोप सामने आया था लेकिन इस बार कपास की फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या काफी कम है। फसल में नुकसान पहुंचाने वाली सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े की संख्या नामात्र है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी 0.5, हरा तेला 0.9, चूरड़ा 0.8 रही, जो कि फसल को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक हानि कागार से काफी दूर है। वहीं नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर लाल बानिया, माइट, मिलीबग, चेपा, पत्ते खाने वाले शाकाहारी में स्लेटी भूंड, टिड्डा तथा फूल खाने वाले में तेलन, भूरी पुष्पक कीट भी मिले लेकिन इनकी संख्या भी नामात्र ही मिली। वहीं मांसाहारी में डाकू बुगड़ा, हथजोड़ा, दीदड़ बुगड़ा, क्राइसोपा, बिंदुआ चूरड़ा, लफड़ो मक्खी, सुनहेरी मक्खी, लोपा मक्खी, लाल माइट, मकड़ी लालड़ो बिटल, लफड़ो बिटल भी कपास की फसल में मिली। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा है। इससे यह साफ है कि मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को रोकने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। 



गुरुवार, 4 अगस्त 2016

फिजूलखर्ची छोड़ जागरूकता के साथ धान की देखभाल करें किसान

थोड़ी सी सावधानी से ही किसान कर सकते हैं धान की फसल की बीमारियों का ऊपचार 
धान की फसल में ज्यादा पानी खड़ा रहने से पनपती हैं ज्यादातर बीमारियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा प्रदेश में खरीफ  की फसलों में से धान एक मुख्य फसल है। यह पानी की फसल होने के कारण इसमें फफूंद, जीवाणु, विषाणु से संबंधित बीमारियां आने का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। किसान जानकारी के अभाव में फसल को इन बीमारियों से बचाने के लिए अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। इससे फसल में किसान की लागत बढ़ती चली जाती है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से ही किसान पेस्टीसाइड पर होने वाले इस फिजूलखर्च से बच सकते हैं। धान की फसल में 16 से 17 किस्म की बीमारियां आती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन, शीत बलाइट, बदरा (ब्लास्ट) रोग, बकानी (पद गलन), जीवाणु अंगमारी, बैक्टेरियल लीफ  फलाइट, टुंगरा इत्यादी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें बीज ऊपचार कर तथा कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें फसल को पर्याप्त खुराक देकर रोका जा सकता है। बस इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। 

सीमित मात्रा में करें खाद का प्रयोग 

धान की फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को चाहिए कि वह धान की रोपाई के बाद 40 दिन तक ही फसल में यूरिया खाद डालें। यूरिया खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार में आधा कट्टे से ज्यादा खाद और पूरे सीजन में 110 किलो से ज्यादा यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। फसल की रोपाई के 40 दिन के बाद फसल में नीचे यूरिया खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल में चार अनुपात दो अनुपात एक के अनुसार खाद का प्रयोग करें। यानि के अगर फसल को चार किलो नाइट्रोजन देनी है तो उसमें दो किलो फास्फोर्स तथा एक किलो पोटास डालें। ताकि पौधों को पर्याप्त खुराक मिल सके।
धान की फसल के लिए खेत तैयार करता किसान।

फफुंदी से फैलने वाले रोग व उपचार 

धान की फसल में सात से आठ किस्म की ऐसी बीमारियां हैं जो फसल में अधिक पानी खड़ा रहने से होती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, पत्त गलन, शीत गलन, बदरा, शीत ब्लाइट नामक रोग फफुंदी से फैलने वाले रोग हैं। यदि फसल में इन रोगों के लक्षण नजर आने लगें तो किसान को फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए फसल में पानी को कम कर देना चाहिए। फसल में पानी कम कर इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। 

बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज

धान की फसल में बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज होती हैं। इसकी शुरूआत पत्ते, फिर तने और इसके बाद गर्दन पर होती है। इस रोग की शुरूआत में पत्ते पर आंख की निशान जैसे धब्बे हो जाते हैं। इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इस रोग से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि फसल के निसरते समय खेत में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए नमी रखें।  

टुंगरा रोग का नहीं कोई उपचार

धान की फसल में आने वाला टुंगरा रोग वायरस से फैलने वाला रोग है और इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इसलिए किसानों को इस रोग से फसल को बचाने के लिए पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए। इस रोग में धान की फसल में कुछ पौधे अन्य पौधों से लंबे बढ़ जाते हैं और फिर यह सफेद हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम केवल बीज ऊपचार से ही हो सकती है। 

खुराक की कमी से होने वाले रोग

धान की फसल में पीलिया व खैरा रोग खुराक की कमी से होते हैं। पीलिया रोग लोहे की कमी से होता है और खैरा रोग जिंक की कमी से होता है। इन रोगों से बचाने के लिए फसल को समय पर पर्याप्त मात्रा में खुराक की जरूरत होती है। 

ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची करते रहते हैं। जबकि किसान थोड़ी सी सावधानी से ही अधिकतर बीमारियों पर काबू पा सकते हैं। किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने से पहले बीज ऊपचार जरूर करना चाहिए। इसके बाद धान की फसल में अधिक पानी खड़ा नहीं करना चाहिए। जहां पर पानी खराब है, उस क्षेत्र के किसानों को फसल में अधिक पानी देने की बजाए केवल नमी रखनी चाहिए। यदि फसल में जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन इत्यादि रोग नजर आएं तो खेत का पानी सुखा देना चाहिए। खाद का प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकार, जींद