बुधवार, 20 मई 2015

बेजुबान चित्रों में रंगों से जान फूंक रहे कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक

राष्ट्रपति भवन तथा कई म्यूजिमों में शोभा बढ़ा रही दीपक की पेंटिंगें
पेंटिंग प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं दीपक कौशिक 

नरेंद्र कुंडू
जींद। भले ही रंग बेजुबान होते हैं लेकिन रंगों की भाषा के भाव पढऩे वाले या यूं कहे कि रंगों को समझने वाले कद्रदान इस भाषा को पढ़ते भी हैं और सुनते भी। शहर के रामराये गेट निवासी चित्रकार दीपक कौशिक भी कुछ इसी तरह से इन रंगों का दीवाना है। चित्रकार दीपक कौशिक चित्रकला में इतना निपूर्ण है कि वह रंगों से बेजुबान चित्रों व मूर्तियों में जान डाल देता है। दीपक कौशिक की उंगलियों में ऐसा जादू है कि उसकी उंगलियां जिस भी चित्र को छू लेती हैं वह एकदम से संजीव हो जाती है या यूं कहे की वह एक तरह से बोलने लगती है। दीपक कौशिक मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) की डिग्री हासिल करने के बाद से गोपाल स्कूल में कला अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है और यहां बच्चों को कला के गुर सिखा रहा है। दीपक कौशिक की कला का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा तराशे गए आठ बच्चे भी स्टेट गर्वनर अवार्ड हासिल कर चुके हैं। आर्टिस्ट दीपक द्वारा तैयार की गई कई पेंटिंगें आज भी कई म्यूजियमों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की शोभा बढ़ा रही हैं। दीपक द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में ऐसा जादू है कि कोई भी व्यक्ति न चाहते हुए भी अपने आप कलाकृति की तरफ आकर्षित हो जाता है। आर्टिस्ट दीपक वॉटर कलर पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, मिक्स मीडिया, कोलाज मूर्तिकला, पैंसील, चॉरकोल, पेस्टल, ड्राय पेस्टल सभी कलाओं में पारंगत है। इतना ही नहीं दीपक समय-समय पर अपनी पेंटिंगों के माध्यम से लोगों को सामाजिक कुरीतियों के बारे में भी जागृत करने का काम करता रहता है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल द्वारा शराबबंदी के दौरान लोगों को नशे के प्रति जागरूक करने के लिए भी दीपक ने काफी काम किया है। नशाखोरी पर पेंटिंगें बनाकर दीपक ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इसी के चलते दीपक को सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं दीपक एक अच्छा कार्टुनिस्ट भी है। दीपक पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, सांसद रमेश कौशिक सहित कई राजनेताओं व अन्य हस्तियों के अच्छे-अच्छे कार्टून तैयार कर उन्हें भेंट कर चुका है।

पिता से मिली पेंटिंग करने की प्रेरणा  

आर्टिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि उसे पेटिंग करने की प्रेरणा अपने पिता से मिली है। दीपक के पिता ज्योतिषी हैं और उस समय में हाथ से जन्मपत्री तैयार की जाती थी। दीपक अपने पिता की बची हुई पेंसिलों से पेंटिंग करने लगा तो पिता ने अपने बेटे की कला को परखते हुए उसे पेंटिंग करने के लिए सामान उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया है। इस तरह धीरे-धीरे पेंटिंग के प्रति दीपक का रूझान बढऩे लगा। १२वीं की परीक्षा पास करने के बाद दीपक ने पढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन उसके मन में कुछ सीखने की इच्छा थी। इसके बाद दीपक ने 2005 में चंडीगढ़ के राजकीय कला महाविद्यालय में मूर्ति कला में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई जारी की। इसके बाद यहीं से दीपक ने अपनी एमएफए की पढ़ाई पूरी की।
वित सचिव को पेंटिंग भेंट करते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

तीसरी कक्षा में लड़ा था पहला कम्पीटिशन

दीपक कौशिक बताते हैं कि उन्होंने तीसरी कक्षा में अपने जीवन का पहला कम्पीटिशन लड़ा था। दीपक ने बताया कि जब वह तीसरी कक्षा में था तो इसी दौरान रैडक्रॉस सोसायटी द्वारा जींद के अर्जुन स्टेडियम में चित्रकला कम्पीटिशन का आयोजन किया गया था। जिस दिन कम्पीटिशन था उस दिन दीपक को बुखार हो गया लेकिन दीपक के अध्यापकों ने दीपक को कम्पीटिशन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया तो दीपक ने कम्पीटिशन में भाग लिया और इस कम्पीटिशन में दीपक को पुरस्कार भी मिला। दीपक ने बताया कि आज तक उसने जितने भी कम्पीटिशनों में भाग लिया उन सभी कम्पीटिशनों में उन्होंने अहम स्थान प्राप्त किया है।
पेंटिंग में रंग भरते आर्टिस्ट दीपक कौशिक।

जींद में नहीं किसी भी तरह की कला को आगे बढ़ाने का वातावरण 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक का कहना है कि जींद जिला आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। यहां किसी भी कला को आगे बढ़ाने के लिए वातावरण सही नहीं है। यहां अच्छी सुविधाएं नहीं होने के कारण कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते। इसके लिए कलाकारों को जींद को छोड़कर बाहर का रुख करना पड़ता है।

5500 फुट लंबी कलाकृति है सबसे यादगार 

कार्टुनिस्ट दीपक कौशिक ने बताया कि वैसे तो एक चित्रकार के लिए हर कलाकृति बेहतर व यादगार होती है। पर यूटी चंडीगढ़ द्वारा आयोजित फुड फेस्टीवल में बनाई गई 5500 फुट लंबी पेंटिंग व अन्ना हजारे के आंदोलन में बनाई गई 750 फुट लंबी पेंटिंग सबसे यादगार कलाकृतियां हैं। इन कलाकृतियों से जो अनुभव मिला वह हमेशा याद रहेगा।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पेंटिंग भेंट करते दीपक कौशिक।

यह-यह प्रमुख पुरस्कार प्राप्त किए

1. स्कूल शिक्षा के दौरान 100 से अधिक पुरस्कार प्राप्त किए।
2. सामाजिक चेतना के लिए रैड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार
3. ललित कला अकादमी अवार्ड (चंडीगढ़)
4. सुजान सिंह मैमोरियल अवार्ड
5. भारत विकास परिषद द्वारा सम्मान
6. संस्कार भारती पूणे द्वारा कला सम्मान
7. पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा सम्मान
8. पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद द्वारा सम्मान
9. पूर्व मानव संस्थान मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा सम्मान
10. हरियाणा शिक्षा मंत्री वित्त मंत्री द्वारा सम्मान
11. कला महाविद्यालय की वार्षिक कला प्रदर्शनियों में 2005, 2006, 2007, 2008  व 2011 में पुरस्कार प्राप्त किया।
12. राष्ट्रपति भवन में नवंबर 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की अपनी कलाकृति भेंट की।

यहां-यहां शोभा बढ़ा रही हैं दीपक की कलाकृतियां 

1. राष्ट्रपति भवन दिल्ली
 दीपक कौशिक द्वारा तैयार की गई पेंटिंग।
2. चंडीगढ़ म्यूजियम
3. शिमला म्यूजियम
4. कला समीक्षक वीएस गोस्वामी
5. होम सैक्टरी यूटी चंडीगढ़
6. फाइनेंस सैक्रेटरी चंडीगढ़
7. पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय
8. यूटी गेस्ट हाउस
9. यूटी टूरिजम
10. यूटी एजुकेशन
11. माऊट व्यू होटल


 पेंटिंग प्रतियोगिता में पेंटिंग करते दीपक कौशिक। 







बीज-खाद के लिए हाथ नहीं फैलाएं अन्नदाता

किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना झांझ कलां का सुरेश
अपनी सुझबुझ से सुरेश ने तैयार की गेहूं की अनोखी किस्म
किसान सुरेश रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए देशी पद्धति से करता है खेती

नरेंद्र कुंडू 
जींद। वैसे तो किसान को अन्नदाता का दर्जा दिया गया है लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरित हो चले हैं। सब्सिडी पर बीज, खाद इत्यादि खरीदने के लिए देश का यह अन्नदाता बाजार में हाथ फैलाए खड़ा रहता है। यदि किसान स्वयं अपने खेत में ही बीज, खाद तैयार करने लगे तो उसे छोटी-छोटी सब्सिडी के लिए बाजार में हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। यह मानना है झांझ कलां गांव निवासी किसान सुरेश ङ्क्षसहमार का। महज दसवीं पास सुरेश ङ्क्षसहमार पांच एकड़ में खेतीबाड़ी का कामकाज कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है। सुरेश की एक खूबी है जो उसे अन्य किसानों से अलग करती है। सुरेश समय-समय पर अपने खेत में तैयार हो रही फसलों पर अकसर नए-नए प्रयोग करता रहता है और अपनी इसी आदत के कारण सुरेश ने गेहूं की एक अनोखी किस्म तैयार कर दी है। सुरेश द्वारा अपने खेत में तैयार किए गए गेहूं के इस बीज की किस्म सामान्य गेहूं से अलग है। सामान्य गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की लंबाई लगभग दो गुणा तक ज्यादा है और इस गेहूं की बालियां भी सामान्य गेहूं की बालियों से लगभग डेढ़ गुणा ज्यादा लंबी है। सामान्य गेहूं के पौधों की बजाय इस गेहूं के पौधो भी काफी मजबूत हैं। अपनी इसी खूबी के कारण यह गेहूं दूर से अलग ही दिखाई देता है। दूसरे गेहूं से सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं की बालियां लंबी तथा मोटी होने के कारण इसका उत्पादन भी दूसरे गेहूं की किस्मों से लगभग दो गुणा ज्यादा होता है। सुरेश को यह बीज तैयार करने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा है। अब सुरेश के पास दस एकड़ का गेहूं का बीज तैयार है, जिसे सुरेश मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने दूसरे किसान साथियों को बिजाई के लिए देगा। ताकि अधिक से अधिक किसान इस बीज की बिजाई कर कम खर्च में अच्छा उत्पादन ले सकें। सुरेश की एक खास बात यह भी है कि वह दूसरे किसानों की तरह अपने खेत में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करता है। सुरेश पूरी तरह से कूदरती तरीके से खेती करता है और अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की बजाए देशी खाद का प्रयोग करता है। कम खर्च से अधिक पैदावर लेने के कारण खेती सुरेश के लिए घाटे का सौदा नहीं बल्कि आमदनी का मुख्य साधन बनी हुई है।

ऐसे तैयार हुआ बीज

झांझ कलां निवासी सुरेश कुमार ने अपने खेतों में ही घर बनाया हुआ है। लगभग तीन वर्ष पहले सुरेश अपने खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था। इसी दौरान सुरेश की नजर खेत में खड़े गेहूं के एक पौधे पर गई, जो उस गेहूं से पूरी तरह से अलग दिखाई दे रहा था। सुरेश ने उस गेहूं की बाली को तोड़कर घर पर सुरक्षित रख लिया। अगले वर्ष गेहूं की बिजाई के दौरान उस गेहूं की बाली से गेहूं निकालकर उसकी अलग से बिजाई कर दी। उस एक बाली से 100 के करीब दाने निकले। अच्छे तरीके से बिजाई किए जाने के कारण उस गेहूं का फुटाव भी अच्छा हुआ। सुरेश हर वर्ष इस गेहूं को सुरक्षित रखकर अगले वर्ष इसी तरीके से इसकी बिजाई कर देता। इस तरह सुरेश की तीन वर्ष की मेहनत के बाद आज सुरेश के पास लगभग दस एकड़ का बीज तैयार हो चुका है। सुरेश का कहना है कि वह दस एकड़ के इस बीज को अनाज मंडी में बिक्री करने की बजाए अपने साथी किसानों को बीज के तौर पर देगा, ताकि इस किस्म की अधिक से अधिक बिजाई कर अधिक से अधिक यह बीज तैयार किया जा सके। यह गेहूं की किस्म कौनसी है इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सुरेश कृषि वैज्ञानिकों का सहयोग भी लेगा।

क्या है इस गेहूं की किस्म की खूबी

तैयार की गई नई किस्म के गेहूं की बालियों को दिखाता किसान।
सुरेश द्वारा तैयार किए गए गेहूं के पौधे की लंबाई साढ़े चार फीट है, जबकि सामान्य किस्म के पौधों की लंबाई अढ़ाई से तीन फीट होती है। इस गेहूं की बालियों की लंबाई नौ इंच है, जबकि सामान्य किस्म के गेहूं की बालियों की लंबाई महज साढ़े पांच इंच की होती है। इस गेहूं की बालियों में सामान्य गेहूं की बालियों से गेहूं के दानों की संख्या भी काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के पौधे का तना सामान्य किस्म के पौधे के तने से काफी मोटा होता है। सुरेश के अनुसार सामान्य किस्म से उसके खेत में हर वर्ष प्रति एकड़ 40 से 45 मण कि औसत निकलती है जबकि इस गेहूं की औसत 75 से 80 मण प्रति एकड़ निकल रही है। इस किस्म के पौधे सामान्य किस्म से मोटे होने के कारण इससे पशुओं का चारा भी अधिक मिलता है।

अखिल भारतीय किसान मोर्चा करेगा सुरेश को प्रोत्साहित 

इस तरह के प्रगतिशील किसानों को प्रेरित करने के लिए अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा विशेष अभियान चलाए हुए है। अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चे का मुख्य उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद कर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना है। उन्हें जब इस किसान के बारे में पता चला तो उन्होंने इस किसान को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। मोर्चा इस किसान को साथ लेकर अन्य किसानों को भी जागरूक करेगा तथा इस किसान को सरकार से प्रोत्साहन दिलवाने के लिए प्रयास करेगा। ताकि इस तरह के किसानों को रोल मॉडल बनाकर दूसरे किसानों को प्रेरित किया जा सके।
सुनील कंडेला, प्रदेशाध्यक्ष
अखिल भारतीय किसान जागरूक मोर्चा

खेत में खड़ी नई किस्म की गेहूं को दिखाता किसान सुरेश।