रविवार, 13 दिसंबर 2015

देश को कीट ज्ञान के मॉडल की सख्त जरूरत : डॉ. जेसी कत्याल

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान का कायल हुआ किसान आयोग  
निडाना में आयोजित हुई किसान संगोष्ठी 

नरेंद्र कुंडू
जींद। किसान आयोग के चेयरमैन एवं हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी डॉ. जेसी कत्याल ने जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम की प्रशंसा करते हुए कहा कि यदि हमें अपनी आने वाली पुस्तों को बचाना है तो कीट ज्ञान के इस मॉडल को प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू करना होगा। आज देश के किसानों को कीट ज्ञान के इस मॉडल की सख्त जरूरत है। आज प्रकृति के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रही है, वह हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है। डॉ. जेसी कत्याल बृहस्पतिवार को निडाना गांव के डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित किसान संगोष्ठी में कीटाचार्य महिला एवं पुरुष किसानों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ किसान आयोग के सचिव डॉ. आरएस दलाल, डॉ. एएम नरूला, डॉ. आरबी श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में पहुंचने पर कीटाचार्य किसानों, किसाल क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, राममेहर नंबरदार, स्कूल के प्रिंसीपल ने किसान आयोग के सदस्यों का स्वागत किया।
किसान आयोग के चेयरमैन डॉ कत्याल को पगड़ी पहना कर स्वागत करते राममेहर नंबरदार
किसानों को सम्बोधित करते किसान आयोग के चेयरमैन डॉ कत्याल
कार्यक्रम में मौजूद कीटाचार्या महिलाऐं
डॉ. कत्याल ने कहा कि जींद जिले के किसानों के अनुभव के सामने उनका 40-45 का अनुभव बिल्कुल नहीं के बराबर है। यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में बड़े कठिन परिश्रम के बाद यह ज्ञान हासिल किया है और अब वह निस्वार्थ भाव से जींद व दूसरे जिलों के किसानों को जागरूक करने का बीड़ा उठाये हुए हैं। डॉ. कत्यान ने कहा कि किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसल में जिस पेस्टीसाइड का प्रयोग किया जाता है, उसका महज एक प्रतिशत ही पौधों पर प्रयोग होता है। बाकि 99 प्रतिशत पेस्टीसाइड जमीन, हवा व पानी में घुलकर हमारे वातावरण को दूषित करता है। आज देश में 90 हजार करोड़ रुपये फर्टीलाइजर पर खर्च होते हैं। उन्होंने कहा कि जींद जिले के जो किसान अपने खर्च पर कीट ज्ञान की मुहिम को चलाए हुए हैं, वह इन किसानों के लिए आयोग की मार्फत सरकार को मानदेय देने तथा जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने वाले किसानों को अवार्ड देने की सिफारिश करेंगे। कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे देश के किसानों तक पहुंचाने के लिए इसे एक कैंपेन बनाने की जरूरत है। इस दौरान कीटाचार्या महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, कांधे ऊपर जहर की टंकी मेरै कसुती रड़कै हो' गीत के माध्यम से फसलों में बढ़ रहे जहर तथा 'हे बीटल म्हारी मदद करो तेरा एक सहारा सै, जमींदार का खेत खा लिया आकै तनै बचाना है' गीत के माध्यम से फसल में कीट के महत्व के बारे में बताया। वहीं 'खेत में खड़ी ललकारूं देखे हो तू जहर ना लाइये' गीत के माध्यम से फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करने का आह्वान किया।

कीटों का पौधे के साथ होता है गहरा संबंध

महिला किसान सविता, अंग्रेजो, शकुंतला ने बताया कि कीटों और पौधों का गहरा रिश्ता होता है। उन्होंने 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। शाकाहारी कीट पौधों के अतिरिक्त भोजन को बाहर निकालने का काम करते हैं, वहीं मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। रणबीर मलिक ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है। इनमें से अकेले 76 लाख लोगों की मौत कैंसर के कारण तथा दो लाख 20 हजार लोगों की मौत प्रति वर्ष जहर के सेवन से होती है। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपये खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। मलिक ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कीट से फसल को 22 प्रतिशत नुकसान होता है और कीटनाशकों से 22 प्रतिशत में से महज सात प्रतिशत नुकसान की रिकवरी ही की जा सकती है। इस सात प्रतिशत रिकवरी के चक्कर में किसान का इससे ज्यादा खर्च कीटनाशक पर हो जाता है।  

अकेले ईगराह में प्रति वर्ष होती है साढ़े चार करोड़ के कीटनाशकों की बिक्री 

ईगराह गांव निवासी मनबीर रेढ़ू ने मांसाहारी कीटों पर चर्चा करते हुए बताया उनके द्वारा अभी तक 161 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान की जा चुकी है। उन्होंने सभी कीटों के नाम उनके क्रियाकलापों व शारीरिक बनावट के आधार पर रखे हुए हैं। रेढू ने बताया कि उनके गांव में कुल १९ हजार बीघे जमीन है और अकेले उनके गांव में साढ़े चार करोड़ रुपये का जहर बिकता है। कीड़े द्वारा फसल में किए गए 22 प्रतिशत नुकसान में से सात प्रतिशत की रिकवरी के लिए अकेले उनके गांव में 13 लाख 30 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग होता है। 

500 में से 150 के लग चुके हैं चश्में

डैफोडिल्स स्कूल की छात्रा अंजू ने आयोग के सदस्यों को बताया कि उनके स्कूल में 500 विद्यार्थी हैं और आज दूषित खान-पान के कारण इन 500 में से 150 विद्यार्थियों को चश्में लग चुके हैं। छात्रा ने कहा कि आज दूषित खान-पान के कारण उनका भविष्य खतरे में है। 

 

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने फिर उठाए मैरिट की भर्ती पर सवाल

कहा जींद के युवा नौकरी की उम्मीद छोड़ लोन लेकर शुरू करें स्वरोजगार

कोई मैनेजर लोन से इंकार करे तो बताएं, करूंगी सीधा 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बाद अब उनकी पत्नी एवं उचाना कलां से विधायक प्रेमलता ने भी लोगों के काम नहीं करने वाले अधिकाररियों को खुली चेतावनी दी है। वहीं उन्होंने एक बार फिर सरकार की मैरिट लिस्ट के आधार पर नौकरी देने की प्रक्रिया पर फिर सवाल उठाए हैं। प्रेमलता का कहना है कि मैरिट के आधार पर नौकरियां मिली तो जींद के युवा पिछड़ जाएंगे। विधायक प्रेमलता का कहना है कि जींद शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। यहां पर शिक्षा के प्रर्याप्त संसाधन व अच्छे शिक्षण संस्थान नहीं है। इसलिए मैरिट सूची के आधार पर नौकरी देने से जींद के युवा नौकरी से वंचित रह जाएंगे। प्रेमलता शनिवार को विश्व मृदा दिवस पर जाट धर्मशाला में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करने पहुंची थी।   
कार्यक्रम के दौरान मंच पर मौजूद विधायक प्रेमलता।
प्रेमलता ने कहा कि मैरिट के आधार पर तो जींद के युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाएगी। इसलिए जींद के युवाओं को नौकरी की उम्मीद छोड़कर अपना स्वरोजगार स्थापित करना चाहिए। स्वरोजगार स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा बहुत ही रियायती ब्याज दरों पर युवाओं को लोन देने के लिए योजनाएं शुरू की गई हैं। युवा सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाकर बैंक से लोन लेकर अपना स्वारोजगार स्थापित कर सकते हैं। प्रेमलता ने कहा कि यदि कोई बैंक मैनेजर उन्हें लोन देने से मना करता है और वह लोन के लिए पात्र हैं तो वह इसकी शिकायत सीधे मुझे करें। मैं खुद ऐसे बैंक मैनेजरों को सीधा करुंगी। उन्होंने किसानों से भी आह्वान किया कि बैंक से लोन लेने के बाद वह नियमित रूप से लोन को चुकता करते रहें। ताकि बैंकों के साथ किसानों का लेन-देन बना रहे। 

पीएम मोदी के विदेशी दौरों को लेकर विपक्ष पर साधा निशाना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों को लेकर सवाल उठाने वाले विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए विधायक प्रेमलता ने कहा कि विश्व मृदा दिवस प्रधानमंत्री की सोच की ही देन है। प्रधानमंत्री विदेशों में घुमने के लिए नहीं बल्कि देश के किसानों के लिए नई-नई तकनीकों की खोज के लिए जाते हैं। विदेशों से नई-नई तकनीक की जानकारी लेकर वह उन तकनीकों को देश में लागू करवा रहे हैं। ताकि हमारा देश हर क्षेत्र में तरक्की कर सकें।  
  

किसानों के साथ बीज व दवाइयों के नाम पर हो रहे धोखे के लिए विभाग जिम्मेदार : प्रेमलता

अंग्रेजी भाषा में जारी किए गए सॉयल हैल्थ कार्ड पर भी उठाए सवाल
किसानों से किया प्राकृतिक पद्धति से खेती करने का आह्वान
अनाज मंडी में धान की बिक्री के दौरान किसानों के साथ हुई लूट का मुद्दा भी उठाया
कृषि विभाग द्वारा जाट धर्मशाला में विश्व मृदा दिवस पर किया गया जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। विधायक प्रेमलता ने कहा कि फसलों में साल दर साल बढ़ रही बीमारियों व कीटों के प्रकोप का मुख्य कारण बाजार में बिक रहे निम्र श्रेणी के बीज व घटिया क्वालिटी की दवाइयां हैं। बीज व दवाइयों के नाम पर किसानों के साथ जो धोखा हो रहा है उसके लिए विभाग जिम्मेदार है। जींद के बिल्कुल साथ लगते हिसार जिले में एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है। विभाग के अधिकारियों व कृषि विशेषज्ञों को चाहिए कि वह इस यूनिवर्सिटी से किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज व दवाइयां मुहैया करवाएं। ताकि किसानों को फसल की अच्छी पैदावार मिल सके और फसलों में आने वाली बीमारियों व कीटों को नियंत्रित किया जा सके। विधायक प्रेमलता शनिवार को कृषि विभाग द्वारा जाट धर्मशाला में विश्व मृदा दिवस पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करने पहुंची थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता उपायुक्त विनय ङ्क्षसह ने की। इस अवसर पर कृषि उपनिदेशक आत्मराम गौदारा समेत कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र पांडू पिंडारा के अधिकारी व कर्मचारी मौजूद थे।
मंच पर मौजूद विधायक प्रेमलता व डीसी विनय सिंह
प्रेमलता ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि जमीन व मनुष्य की सेहत एक तरह की होती हैं। जिस तरह हम अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं वैसे ही हमें जमीन की सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए। अगर किसान फसलों में सही मात्र में खाद एवं दवाइयों का प्रयोग करें तो खेती मुनाफे का सौदा बन सकती है। उन्होनें किसानों से अपील की वे फसलों में अधिक खाद एवं दवाइयों का प्रयोग न करें। खाद एवं दवाइयों का अधिक मात्र में प्रयोग करने से खेती की लागत तो बढ़ती ही है, साथ ही अनेक बीमारी भी पैदा होती हैं। उन्होनें फसलों में देशी खाद के प्रयोग पर बल देते हुए कहा कि ऐसा करने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और पैदावारी में भी खासी बढ़ौतरी होगी। उन्होंने किसानों को आह्वान करते हुए कहा कि किसान कृषि में नवीन तकनीकों का प्रयोग करें। कृषि विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे किसानों को नई-नई तकनीकों के बारे में जागरूक करने के लिए समय-समय पर जागरूकता शिवरों का आयोजन करें और किसानों को साधारण भाषा में पूरी जानकारी दें। डीसी विनय सिंह ने कहा कि पूरे जिले की मिट्टी जांच कर रिकोर्ड तैयार करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। राष्ट्रीय कृषि मिशन योजना के तहत फिलहाल जींद तथा जुलाना खंड में मिट्टी जांच के लिए सैंपल लिए जा रहे हैं। आगामी एक अप्रैल से उचाना तथा नरवाना खंडों में मिट्टी जांच का कार्य शुरू करवाया अलेवा, सफीदों तथा पिल्लूखेड़ा खंडों में मिट्टी जांच का कार्र्य प्रारम्भ होगा। इस अवसर पर विधायक प्रेमलता तथा डीसी विनय सिंह ने किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड भी वितरित किए। कार्यक्रम में जाट धर्मार्थ सभा के प्रधान आजाद पवार, संजीव डूमरखां, हरेंद्र डूमरखां भी मौजूद रहे। इस अवसर पर कृषि विभाग के अधिकारियों ने विधायक व डीसी से शहर के रोहतक रोड पर स्थित हमेटी में बॉयो फर्टीलाइजर लैब स्थापित करने की मांग भी की।

सॉयल हैल्थ कार्ड की भाषा पर उठाए सवाल 

कृषि विभाग द्वारा कार्यक्रम के दौरान किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड वितरित किए गए। कृषि विभाग द्वारा जारी इन सॉयल हैल्थ कार्ड को अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित करवाया गया था। विधायक प्रेमलता ने कृषि विभाग द्वारा जारी किए गए सॉयल हैल्थ कार्ड की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि हमारे किसान ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और इन्हें अंग्रेजी भाषा की जानकारी भी नहीं है। ऐसे में कृषि विभाग द्वारा किसानों को अंग्रेजी भाषा में छपे सॉयल हैल्थ कार्ड जारी किए जाने से किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि किसान इस कार्ड पर दी गई जानकारी को समझ नहीं पाएंगे।

डीसी की थपथपाई पीठ

विधायक प्रेमलता ने डीसी विनय ङ्क्षसह की पीठ थपथपाते हुए कहा कि उनकी आधी से ज्यादा चिंता तो इसलिए दूर हो गई है कि विनय ङ्क्षसह जैसे ईमानदार अधिकारी ने उनके जिले की कमान संभाल ली है। विधायक ने कहा कि डीसी विनय ङ्क्षसह जिले से भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म कर जिले के विकास को नई गति देेंगे। क्योंकि वह एक ईमानदार व धरातल से जुड़े हुए अधिकारी हैं।

धान के भाव बढऩे से किसानों को नहीं हुआ फायदा

विधायक प्रेमलता ने कहा कि उन्होंने इस बार विधानसभा में सीजन के अंत में बढ़े धान के भाव को लेकर अपना सवाल उठाया था लेकिन विधानसभा में किसी के पास भी उनके इस सवाल का जवाब नहीं था। उन्होंने कहा कि धान के भाव उस समय बढ़े जब किसानों की ज्यादातर धान मंडियों में बिक चुकी थी। इसलिए इसका फायदा किसान को नहीं आढ़तियों को सबसे ज्यादा हुआ है।
कार्यक्रम में मौजूद किसान।

जींद को बना रखा है रैली स्थल

विधायक प्रेमलता ने कहा कि जिले के विकास में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। जिले के सभी हलकों में सम्मान रूप से विकास कार्य करवाये जाएंगें। उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने 22 मांगें रखी थी और मुख्यमंत्री ने उनकी सभी मांगें पूरी कर दी हैं। जींद के बाईपास के निर्माण को लेकर भी मुख्यमंत्री से बातचीत की गई है। मुख्यमंत्री ने जल्द ही बाईपास का निर्माण करवाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं ने तो जींद को रैली स्थल बनाकर रख दिया है। रैली करने के लिए तो यहां आ जाते हैं लेकिन विकास के नाम पर कोई भी यहां एक ईंट तक नहीं लगवाता। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश ने चौटाला नरवाना से विधायक बनने के बाद भी यहां कोई विकास नहीं करवाया, वहीं हुड्डा सरकार के शासन काल में भी पूरी तरह से जींद की अनदेखी हुई। विधायक ने कहा कि यहां तो गोपाल कांडा जैसे लोग भी रैली करके चले गए जिनका जींद के साथ कोई लेना देना नहीं है। इसलिए यहां के लोगों को जागरूक होना चाहिए और किसी राजनेता के रैली, जलसों में नहीं जाना चाहिए।
 किसानों का पंजीकरण करते कृषि विभाग के अधिकारी।

'डीएपी और स्प्रे करकै मेरी काढ़ ली जान तनै'

कार्यक्रम के दौरान खेड़ी निवासी लीला कवि ने धरती पर आधारित अपनी कविता 'डीएपी और स्प्रे करकै मेरी काढ़ ली जान तनै' तथा 'आज छिड़क कै जहर जमीन-जीवाणु सारे मार दिए हैं' के माध्यम से फसलों में प्रयोग हो रहे अंधाधुंध स्प्रे के बारे में किसानों को जागरूक किया।







विश्व मृदा दिवस के लिए विशेष

न मशीन, न स्टाफ कैसे होगी सैंपलों की जांच
कृषि विभाग की मिट्टी-पानी की जांच के जागरूकता अभियान को झटका
16 हजार में से महज 400  सैंपलों की ही हो पाएगी जांच 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग आज विश्व मृदा दिवस मना रहा है और किसानों को मिट्टी-पानी की जांच करवाने के लिए जागरूक करने का काम कर रहा है लेकिन हकीकत यह है कि कृषि विभाग की प्रयोगशाला में मिट्टी-पानी की जांच के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही पूरा स्टाफ है। ऐसे में विभाग के इस जागरूकता अभियान को करारा झटका लग रहा है। क्योंकि विभाग की लैब में किसान जांच के लिए अपने खेत से मिट्टी-पानी तो लेकर आ रहे हैं लेकिन यहां पर किसानों के सैंपलों की जांच नहीं हो पा रही है। क्योंकि जिला कृषि विभाग की
कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जांच के लिए आए मिट्टी के सैंपल।   
प्रयोगशाला में मिट्टी-पानी के सूक्ष्म तत्व की जांच के लिए रखी गई मशीन पिछले काफी लंबे अर्से से खराब पड़ी है। ऐसे में यहां जांच के लिए आने वाले सैंपलों की सूक्ष्म तत्वों की जांच नहीं हो पा रही है। वहीं प्रयोगशाला को संभालने के लिए विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है। लैब में न तो अधिकार है और न ही सैंपलों की जांच करने वाले एक्सपर्ट। महज एक कर्मचारी के सहारे विभाग की लैब चल रही है।

16 हजार सैंपल में से जांच के लिए भेजे गए सिर्फ 400

कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जिले के विभिन्न गांवों से किसानों द्वारा लगभग १६ हजार सैंपल मिट्टी-पानी की जांच के लिए भेजे गए हैं लेकिन प्रयोगशाला में सैंपलों की जांच के लिए कोई सुविधा नहीं है। यहां पर सिर्फ न तो सैंपलों की जांच के लिए मशीन की सुविधा है और न ही सैंपलों की जांच करने वाले अधिकारी। विभाग की प्रयोगशाला में आए १६ हजार सैंपलों में से महज 400 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। यहां पर जांच के लिए सुविधा नहीं होने के कारण इन 400 सैंपलों को भी दूसरे जिलों की प्रयोगशाला में भेजा गया है।

फसल की अच्छी पैदावार के लिए 16 पोषक तत्व की होती है जरूरत 

फसलों की उचित पैदावार के लिए जमीन में 16 पोषक तत्व की आवश्यकता होती है। इनमें जिंक, आयरन, मैगनीज व तांबा जो सूक्ष्म पोषक तत्व हैं। इसके अलावा दूसरे पोषक तत्व नाइट्रोजन, पोटास, फासफोर्स, पोटाश, कैलशियम, मैगनिशियम, सल्फर, बोरोन, मोलीबिडनम व क्लोरीन शामिल हैं। इनमें से कार्बन, हाईट्रोजन, ऑक्सीजन को पौधा हवा व पानी से प्राप्त कर लेता है तथा अन्य पोषक तत्वों को जमीन से ग्रहण करता है। किस पोषक तत्व की जमीन में कमी यह जानने के लिए मिट्टी की जांच करवाई जाती है।

खेत में जिंक की कमी के लक्षण 

खेत में पोषक तत्व की कमी के कारण फसल पर अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं। ऐसे में यदि खेत में जिंक की कमी है तो फसल के पत्तों के नीचे लाल चितके जंग के रूप के निशान हो जाते हैं।

खेत में बढ़ रही ऑर्गेनिक कार्बन की कमी 

किसानों द्वारा खेतों में फसलों के बचे हुए अवशेषों को जला दिया जाता है। फसल के बचे हुए अवशेष ऑर्गेनिक कार्बन का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं लेकिन किसानों द्वारा यह अवशेष जला देने के कारण ऑर्गेनिक कार्बन भी नष्ट हो जाती है। इससे जमीन की पानी रोकने की क्षमता कम हो जाती है और जमीन के अंदर के सूक्ष्म पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। जमीन की विद्युत चालकता भी कम होती है। इससे जमीन में नमक की मात्रा भी बढ़ जाती है।

खेत में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाने की विधि 

जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाने के लिए किसान गोबर की खाद, बॉयोगैस की खाद, हरी खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें। इन खादों के प्रयोग से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।

नमूना लेने की विधि 

भूमि परीक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी का सही प्रकार से नमूना लेना होता है। नमूना लेने की सही विधि निम्न प्रकार है।
1. जिस खेत का नमूना लेना हो उसमें 5-6 अलग-अलग स्थानों से 15 सैंटीमीटर  का गड्ढ़ा खोदकर खुरपे या कस्सी से नीचे तक की मिट्टी लें।
2. इस मिट्टी को कागज या ट्रे में अच्छी तरह से मिला कर इकठा कर लें। अब मिट्टी को चार भागों में बांटकर आमने-सामने के दो भाग की मिट्टी रख कर बाकी मिट्टी फैंक दें।
3 . आमने-सामने की मिट्टी के दो भागों की मिट्टी को अच्छी तरह मिला कर उसमें से लगभग 250  ग्राम मिट्टी का नमूना थैली में भरकर उस पर अपना नाम, पूरा पता खेत का नंबर व मोबाइल नंबर लिखकर प्रयोगशाला में भेजें।

नमूना लेने में यह रखें सावधानी 

1. नमूना रूढ़ी या कंपोस्ट खाद व खेत की मेढ़ के पास से बिल्कुल न लें।
2. नमूना खेत में उगे किसी पेड़ की जड़ के पास व खड़ी फसलों वाले खेत से नहीं लें।
3. नमूना ऊंची-नीची जगह से न लेकर समतल स्थान से लें।
4. यदि खेत कल्लर से प्रभावित हो तो नमूना तीन फुट गहराई तक, पहले दो नमूनें छह-छह इंच की गहराई से व अगले दो नमूने एक-एक फुट की गहराई से लें
5. बागवानी के लिएखेत से नमूने छह फुट की गहराई तक के गड्ढ़े से सात नमूने इकठा करें।
6. मिट्टी के साथ अपने खेत के पानी के नमूने की जांच भी करवाएं। ट्यूबवैल को आधा घंटा चलाकर प्लास्टिक या कांच की साफ बोतल में नमूना भरें।
बॉक्स
किसान एक-दूसरे की देखादेखी फसल में जरूरत से ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। जबकि किसान को जमीन की जरूरत के अनुसार ही रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। विश्व मृदा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में किसानों को इस बारे में ही जागरूक किया जाएगा और किसानों को मिट्टी हैल्थ कार्ड भी दिए जाएंगे। ताकि किसान अपनी जमीन की आवश्यकता अनुसार ही उसमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर सकें। जींद की लैब में सूक्ष्म पोषक तत्व की जांच की मशीन खराब है। इसके लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को लिखित में शिकायत दी गई है। सरकार द्वारा मिट्टी-पानी की जांच के लिए चलाए गए अभियान को देखते हुए यहां तैनात स्टाफ को उन लैबों में भेज दिया गया जहां पर सूक्ष्म पोषक तत्व की जांच की सुविधा है। ताकि उन लैबों में आ रहे सैंपलों की समय पर जांच की जा सके।
डॉ. धर्मपाल बजाज, सहायक मृदा परीक्षण अधिकारी
मिट्टी-पानी जांच प्रयोगशाला, जींद 



कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जांच के लिए आए मिट्टी के सैंपल।   


जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनने का रास्ता साफ

12 करोड़ ३९ लाख से बनेगा अंडर पास
अंडर पास बनाने के लिए रेलवे ने जिला प्रशासन को भेजा एस्टीमेट
अंडर पास की प्रथम प्रक्रिया के लिए जिला प्रशासन को जमा करवाने होंगे 19 लाख
अंडर पास बनने से शहरवासियों को जाम से मिलेगी निजात

नरेंद्र कुंडू 
जींद। शहर के मिनी बाईपास पर जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनने का रास्ता साफ हो गया है। रेलवे ने अंडर पास बनाने का एस्टीमेट तैयार कर जिला प्रशासन को सौंप दिया है। अंडर पास के निर्माण पर लगभग 12 करोड़ 39 लाख रुपये का खर्च आएगा। अंडर पास के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करवाने के लिए जिला प्रशासन को रेलवे को 19 लाख रुपये जमा करवाने होंगे। इसके बाद रेलवे द्वारा अंडर पास के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंडर पास का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद शहर के लोगों को जाम से निजात मिलेगी और पिछले दो वर्षों से अंडर पास का निर्माण नहीं होने के कारण रद्द पड़े मिनी बाईपास पर वाहनों का आवागमन शुरू हो पाएगा।

यह है पूरा मामला 

जींद शहर के लोगों को जाम से निजात दिलवाने के लिए तीन जून 2012 को जींद की नई अनाज मंडी में हुई कांग्रेस की विकास रैली में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा ने मिनी बाईपास के निर्माण की घोषणा की थी। शहर के सफीदों रोड से बस स्टैंड के पास से रजवाहे के ऊपर से होते हुए यह मिनी बाईपास भिवानी रोड पर निकाला गया है। मार्च २०१३ में इस मिनी बाईपास का निर्माण कार्य पूरा हो गया था लेकिन मिनी बाईपास के बीच में पडऩे वाली जींद-पानीपत तथा दिल्ली-जींद रेलवे लाइन पर अंडर पास या ओवर ब्रिज नहीं बनाए जाने के कारण यह आज तक शुरू नहीं हो पाया है। मिनी बाईपास पर अंडर पास बनवाकर इसे शुरू करवाना शहर के लोगों की मुख्य मांग थी।

अब ऐसे चलेगी आगामी कार्रवाई  

रेलवे द्वारा जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनाने के लिए प्रोजैक्ट तैयार कर जिला प्रशासन को भेज दिया गया है। रेलवे द्वारा अंडर पास बनाने के लिए 12 करोड़ 39 लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया है। जिला प्रशासन को रेलवे के पास अभी 19 लाख रुपये जमा करवाने है। अब जिला प्रशासन द्वारा सरकार से 19 लाख रुपये की ग्रांट लेने के लिए प्रोजैक्ट को बीएंडआर के एसई को भेजा जाएगा। यहां से इस प्रोजैक्ट को चंडीगढ़ भेजा जाएगा। इसके बाद सरकार द्वारा इस प्रोजैक्ट को मंजूर कर रेलवे को ग्रांट भेजी जाएगी।

प्रदेश सरकार को ही उठाना होगा अंडर पास का पूरा खर्च

रेलवे के नियमों के अनुसार यदि रेलवे ट्रैक पर कोई फाटक हो तो वहां पर अंडर पास या ओवर ब्रिज बनाने का आधा खर्च सरकार को देना पड़ता है और आधा खर्च रेलवे उठाता है लेकिन मिनी बाईपास पर कोई फाटक नहीं लगती और यहां पर अंडर पास बनाने का प्रोजैक्ट प्रदेश सरकार का है। इसलिए इस अंडर पास के निर्माण पर आने वाला पूरा खर्च प्रदेश सरकार को ही उठाना पड़ेगा।

जल्द से जल्द अंडर पास का निर्माण करवाना हमारी प्राथमिकता 

जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनाने के लिए रेलवे द्वारा प्रोजैक्ट तैयार कर भेजा गया है। अंडर पास के निर्माण पर 12 करोड़ 39 लाख रुपये का खर्च आएगा। इसके निर्माण की प्रथम चरण की प्रक्रिया शुरू करवाने के लिए जिला प्रशासन की तरफ से रेलवे को 19 लाख रुपये जमा करवाए जाने हैं। इसके लिए प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। जल्द ही सरकार से यह ग्रांट मंजूर करवाकर रेलवे को भेज दी जाएगी और अंडर पास का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया जाएगा। अंडर पास पर जल्द से जल्द निर्माण कार्य शुरू करवाना हमारी प्राथमिकता है।
विनय कुमार, डीसी
जींद

अन्ना टीम के प्रयास लाए रंग 

मिनी बाईपास पर अंडर पास बनवाने के मामले को अन्ना टीम काफी प्रमुखता से उठा रही थी। अन्ना टीम द्वारा इस मांग को लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारियों से लेकर प्रदेश के मंत्रियों से लेकर रेलवे मंत्री तथा रेलवे विभाग के आला अधिकारियों तक को कई बार ज्ञापन दिए गए थे। वहीं अन्ना टीम द्वारा अंडर पास के निर्माण के लिए मिनी बाईपास पर धरना भी दिया गया था। अन्ना टीम व शहर के लोगों के कड़े प्रयासों के बावजूद अंडर पास का प्रोजैक्ट तैयार हो पाया है।
हितेश, हिंदुस्तानी, कार्यकत्र्ता
अन्ना टीम

 जींद-पानीपत रेलवे लाइन से होकर गुजरते वाहन चालक।
 डीसी विनय ङ्क्षसह का फोटो।
 अन्ना टीम के कार्यकत्र्ता हितेश हिंदुस्तानी का फोटो।
स्थानीय निवासी अमित का फोटो।

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

उम्र 19 और 50 से ज्यादा प्रतियोगिताओं में मनवा चुकी है लोहा

हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी की कनिष्का ने पेंटिंग में हासिल किया गवर्नर अवार्ड
कन्या भ्रूण हत्या व नशाखोरी है मुख्य विषय 
माता-पिता को भी है अपनी बेटियों पर नाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। इस कहावत को सिद्ध कर रही है शहर की हाऊङ्क्षसग बोर्ड कॉलोनी निवासी कनिष्का। कनिष्का बहुमुखी प्रतिभा की धनी है और पेटिंग के क्षेत्र में काफी महारत हासिल कर चुकी है। राजकीय प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी महिला महाविद्यालय की बीएससी अंतिम वर्ष की छात्रा कनिष्का महज 19 वर्ष की उम्र में 50 के करीब प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता कर चुकी है। तीसरी कक्षा से ही कनिष्का ने प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता शुरू कर दी थी। अपनी प्रतिभा के दम पर कनिष्का ने वर्ष 2014 में राज्य स्तर पर आयोजित हुई पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर गवर्नर अवार्ड भी हासिल किया था। पेंटिंग के साथ-साथ पढ़ाई के क्षेत्र में भी कनिष्का काफी रुचि है। कनिष्का की एक खास बात यह भी है कि पेंटिंग प्रतियोगिताओं में उसका सबसे खास विषय कन्या भ्रूण हत्या तथा नशाखोरी रही है। कनिष्का अपनी पेंटिंग के माध्यम से  कन्या भ्रूण हत्या तथा नशाखोरी पर कटाक्ष करती रहती है। कनिष्का के परिवार में माता-पिता के साथ-साथ उसकी एक छोटी बहन राधिका भी है। कनिष्का के पिता नरेश तायल शहर में एक कॉरियर कंपनी चलाते हैं, वहीं इसकी मम्मी मीनू तायल शहर के ही गोपाल स्कूल में साइंर्स टीचर है। 

तीसरी कक्षा से ही शुरू हो गया था प्रतियोगिताओं में शामिल होने का सफर

कनिष्का का कहना है कि बचपन से ही उसकी पेंटिंग के प्रति काफी रुचि रही है। जब वह गोपाल स्कूल में तीसरी कक्षा की छात्रा थी तो उस समय जिला स्तर पर आयोजित हुई पेंटिंग प्रतियोगिता में उसने पहली बार भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में उसने जिलेभर में प्रथम स्थान हासिल किया था। इसके बाद पांचवीं कक्षा में उसने क्वीज प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर प्रथम, सातवीं कक्षा में साईंस प्रतियोगिता में जोन स्तर पर तीसरा, योग प्रतियोगिता में प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल किया था। इसके बाद तो कनिष्का की सफलता का सफर शुरू हो गया। कनिष्का ने बताया कि प्रतियोगिताओं में भाग लेना उसे काफी पसंद है और वह अभी तक पेंटिंग, डिबेट, पोस्टर मेकिंग, स्लोगन, साइंर्स, क्वीज, योग जैसे इवेंट में 50 के करीब प्रतियोगिताओं में शामिल हो चुकी है। प्रत्येक प्रतियोगिता में उसे कोई ने कोई स्थान जरुर मिला है। कॉलेज में भी वह समय-समय पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहती है। 
  कन्या भ्रूण हत्या पर पेंटिंग तैयार करती छात्रा कनिष्का।

पेंटिंग के बल पर हासिल किया गवर्नर अवार्ड 

इलेक्शन कमीशन द्वारा वर्ष 2014 में राज्य स्तर पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। कनिष्का ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में कनिष्का ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और इलेक्शन कमीशन द्वारा कनिष्का की पेंटिंग को गवर्नर अवार्ड के लिए चुना गया। तत्कालीन राज्यपाल महामहिम जगननाथ पहाडिया द्वारा कनिष्का को गवर्नर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। कनिष्का ने बताया कि उसकी सफलता का श्रेय उसके माता-पिता तथा उसके ड्राइंर्ग अध्यापक दीपक कौशिक को जाता है। दीपक कौशिक ने उसकी प्रतिभा को पहचान कर निखारने का काम किया है। 

माता-पिता को है बेटियों पर है नाज 

कनिष्का की मां मीनू तायल व पिता नरेश तायल का कहना है कि उन्हें दो बेटियां हैं। उन्हें इस बात का भी कतई मलाल नहीं है कि उनके पास बेटा नहीं है। क्योंकि उन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है। उनकी बेटियों ने कभी उन्हेें बेटे की कमी महशूस नहीं होने दी। वे अपनी दोनों बेटियों को बेटों से भी बढ़कर प्यार करते हैं तथा दोनों बेटियों का पालन-पोषण बिल्कुल बेटों की तरह कर रहे हैं। नरेश तायल व मीनू तायल ने बताया कि आज उनकी दोनों ही बेटियां उनका नाम रोशन कर रही है। बड़ी बेटी कनिष्का जहां गवर्नर अवार्ड हासिल कर चुकी है, वहीं उनकी छोटी बेटी राधिका भी बड़ी बहन के पदचिह्नों पर चलते हुए राष्ट्रपति को पेंटिंग भेंट कर चुकी है।  



ममता सोधा ने जिद्द से फतेह किया एवरेस्ट

लोगों के ताने सुन कर किया एवरेस्ट फतेह करने का इरादा
चिकित्सकों की सलाह की परवाह किए बिना लहराया एवरेस्ट पर तिरंगा

नरेंद्र कुंडू
 डीएसपी ममता सौदा का फोटो।
जींद। 'सपने उनके ही पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है।" इन पंक्तियों को सच कर दिखाया है एवरेस्ट विजेता डीएसपी ममता सोधा ने। समाज से मिल रहे ताने व परिवार की आर्थिक कमजोरी भी उसकी राह का रोड़ा नहीं बन पाई। 2003 में पर्वतारोहण के दौरान हुए हादसे में बुरी तरह से घायल होने के बाद भी ममता ने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और चिकित्सकों की सलाह को नजरअंदाज कर जान पर खेलते हुए एवरेस्ट फतेह करने का काम किया। एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा कर पर्वतारोही ममता सोधा ने यह साबित कर दिया है कि नारी अबला नहीं सबला है। इतना ही नहीं ममता सोधा ने पिता की मौत के बाद अपना लक्ष्य पूरा करने के साथ-साथ परिवार के मुखिया का भी फर्ज अदा किया। परिवार में सभी भाई-बहनों में बड़ी होने के कारण पिता की मौत के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी ममता के कंधों पर आ गई थी। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी। परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ममता सोधा ने बीच में ही अपना प्रशिक्षण छोड़ अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाई। परिवार के सिर से दुख के बादल छटने के बाद दोबारा से ममता ने अपना प्रशिक्षण शुरू कर देश की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतेह कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश का नाम रोशन किया। एवरेस्ट फ़तहे करने के बाद सरकार ने ममता सोधा को हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर नौकरी दी।

बचपन में ही दिमाग में घर कर गई थी माउंटेन की पिक्चर

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि जब वह छोटी थी तो उसी समय माउंटेन के प्रति उसकी रुचि पैदा हो गई थी। उसके घर में लगी पहाड़ों की एक तस्वीर ने पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सुकता को बढ़ा दिया था। आठवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान जब वह परिवार के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए कटरा गई तो वहां पहली बार उसने पहाड़ों को देखा था। इसके बाद तो पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सकता ओर भी बढ़ गई। 

बीए की पढ़ाई के दौरान लिया पर्वतारोहण का प्रशिक्षण

कैथल के आरकेएसडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र से एमफील की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान ममता ने पैराग्राइडिंग, पैरा सैलिंग, माउंटेनिंग, सरवाइवर, साइकिलिंग, रिवर राफ्टिंग, माउंटेनिंग का बेसिक व एडवांस कोर्स ए ग्रेड के साथ पूरा किया। ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ  माउंटेनियरिंग से लिया। 

मां छिपाकर खिलाती थी घी, दूध

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि उसके माता-पिता ने बड़े नाज से उसका पालन-पोषण किया है। घर में उसका पालन-पोषण बिल्कुल लड़कों की तरह हुआ है। उसके माता-पिता ने बेटा व बेटी में कोई फर्क नहीं किया लेकिन उसकी दादी थोड़ी पुराने विचारों की थी। इसलिए वह उसकी बजाए उसके भाई को खाने के लिए घी-दूध ज्यादा देती थी लेकिन उसकी मां उसकी दादी से छिपाकर उसे भी घी-दूध खाने के लिए देती थी।

समाज ने उड़ाया था मजाक और चिकित्सकों ने दी थी माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह 

वर्ष 2003 में ममता अपनी सहेलियों के साथ मनाली में पर्वतारोहण के लिए गई थी। पर्वतारोहण के दौरान वहां हुए हादसे में उसका पैर टूट गया और उसे उपचार के लिए चंडीगढ़ ले जाया गया। इस हादसे के बाद वह दो साल तक बैड पर रही। चिकित्सकों ने उसे माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह दी। दूसरे लोग भी उसे ताने कसने लगे थे और उसका मजाक उड़ाते थे  लेकिन उसकी मां मेवा देवी ने उसकी पूरी सहायता की और उसका हौंसला बढ़ाया। समाज से मिले तानों ने उसे झकझोर कर रख दिया और उसने हर हाल में अपना लक्ष्य पूरा करने का संकल्प लिया और 2010 में एवरेस्ट फतेह कर अपना सपना पूरा किया।  

पिता की मौत के बाद टूट गया था परिवार

ममता सोधा ने बताया कि उसके पिता लक्ष्मण दास सोधा खाद्य एवं पूर्ति विभाग में इंस्पेक्टर थे और 2004 में बीमारी के कारण उसके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद एक वर्ष तक विभाग या सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली। परिवार पूरी तरह से आर्थिक संकट से जूझ रहा था। वह एकदम से निराश हो चुकी थी। इसके बाद ममता सोधा ने हरियाणा टूरिज्म में नौकरी शुरू की। पांच साल यहां नौकरी करने के बाद फतेहाबाद कॉलेज में तीन वर्षों तक प्राध्यापिका के पद पर नौकरी की। 

2010 में एवरेस्ट पर लहराया तिरंगा

पिता की मौत के बाद नौकरी के साथ-साथ 2007 में दोबारा से ममता ने प्रशिक्षण शुरू किया। बिना कोच के ही वह अकेली अभ्यास करती थी। ममता का कहना है कि हरियाणा टूरिज्म के तत्कालीन इंचार्ज राजीव मिढ़ा ने उनकी बहुत सहायता की। 2009 में एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए आवदेन किया और इसमें उसका चयन हुआ। चयन के बाद परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता थी कैंप के लिए रुपयों की व्यवस्था की। इसके लिए उसे 21 लाख रुपये की जरूरत थी लेकिन परिवार के पास एक पैसा भी नहीं था। इसके बाद उसने कैथल की तत्कालीन डीसी अमित पी कुमार से संर्पक किया। ममता सौदा ने बताया कि प्रशासन, सामाजिक लोगों तथा मीडिया ने उसकी काफी मदद की। इसके बाद उसकी फीस के लिए रुपयों का इंतजाम हो पाया था। 

कदम-कदम पर खड़ी थी मौत

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बीच-बीच में कई शव भी मिले, जिन्हें देखकर कई बार उसका मनोबल कमजोर पड़ा। पैर में दर्द होने के कारण उसके लिए यह सफर ओर भी कठिन हो गया था। सफर के दौरान कई बार शरीर भी जवाब दे गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं जारी। ममता ने बताया कि एवरेस्ट से चंद किलोमीटर पहले हिलरी स्टेप को देखकर वह बुरी तरह से डर गई थी। क्योंकि इस रास्ते के दोनों तरफ गहरी खाई थी और उस खाई में कई शव भी पड़े हुए थे। इसके बाद जब उसने एवरेस्ट की चोटी को सामने देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक पल के लिए उसे लगा कि वक्त उसके लिए ठहर सा गया है। इसके बाद उसने एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया और आधे घंटे वहां रूककर वापस नीचे लौट आई।  




सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

हॉकी के दम पर राजरानी ने देश में बनाई पहचान

परिस्थितियों से हार मानने वाली लड़कियों के लिए मिशाल बनी राजरानी
रियालटी शो की विजेता बन चुकी है राजरानी 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। संसाधनों के अभाव में जो लड़कियां अपना लक्ष्य छोड़कर परिस्थितियों से समझौता कर लेती हैं राजरानी उन लड़कियों के लिए एक मिशाल है। हॉकी खिलाड़ी राजरानी ने ग्रामीण क्षेत्र से निकल कर देश के मानचित्र पर अपने जिले व प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। राजरानी ने खेल ही नहीं  बल्कि छोटे पर्द पर भी अपनी सफलता की पहचान छोड़ी है। उचाना क्षेत्र के खेड़ीसफा गांव में किसान बारूराम के घर में जन्मी राजरानी ने वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर आयोजित रियालटी शो 'सरवाइवर इंडिया' की विजेता बनकर शो में शामिल बड़े-बड़े स्टार को हरियाणा के दूध-दही की ताकत का ऐहसास करवाया था। टीवी चैनल व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के क्षेत्र में अपना नाम रोशन करने वाली राजरानी अब चंडीगढ़ में एक फिटनेश सेंटर पर लोगों को फिटनेश का प्रशिक्षण देती है। फिटनेश सेंटर से फ्री होने के बाद राजरानी शाम के समय स्टेडियम में जाकर खिलाडिय़ों को हॉकी के टिप्स भी सिखाती है।
रियालटी शो की विजेता राजरानी ट्राफी के साथ।
खेड़ीसफा निवासी राजरानी ने बताया कि परिवार में चार बहनें व एक भाई है। वह सभी भाई-बहनों में सबसे छोटी है। उसके पिता बारू राम खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं और मां कृष्णा देवी गृहणी है। राजरानी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से ही शुरू की। इसके बाद राजरानी ने आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए नरवाना के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ-साथ राजरानी ने खेलों के क्षेत्र में भी रुचि दिखाई। हॉकी राजरानी का पसंदीदा खेला था। हॉकी में पूरी तरह से पारंगत होने के लिए वह घंटों मैदान पर पसीना बहाती थी लेकिन घर की आर्थिक परिस्थिति मजबूत नहीं होने के कारण उसे अपनी पढ़ाई व खेल को आगे बढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाद में खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद खेल विभाग की तरफ से राजरानी को आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई तो राजरानी ने तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाए। 27 वर्षीय राजरानी ने बताया कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से उसको आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई। इसके बाद उसने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की।

सुबह लिफ्ट मांगकर गांव से शहर में जाती थी अभ्यास करने 

हॉकी खिलाड़ी राजरानी पर खेल का जुनून इस कदर सवार था कि वह सुबह जल्दी उठकर अभ्यास करने के लिए नरवाना जाती थी। राजरानी ने बताया कि गांव से शहर के लिए सुबह-सुबह कोई साधन नहीं होने के कारण उसे दूसरे वाहनों से लिफ्ट मांगनी पड़ती थी। शुरू-शुरू में तो कोई उसे लिफ्ट नहीं देता था लेकिन जब बाद में लोगों को उसके खेल के बारे में पता चला तो लोग उन्हें लिफ्ट देने लगे।

राजरानी ने इंडिया कैंप में बनाई जगह 

स्कूली खेलों से ही राजरानी ने मैदान पर अपनी हॉकी का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। इसी की बदौलत राजरानी ने स्कूल नेशनल, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में कई पदक प्राप्त किए। इसके बाद वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय खेलों में भी राजरानी ने पदक प्राप्त किया। अपनी कड़ी मेहनत व उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर ही राजरानी ने इंडिया कैंप में अपने लिए जगह बनाई।

सरवाइवर इंडिया में दिखाया हरियाणा के दूध-दही का जोश

वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर शुरू हुए रियालटी शो सरवाइवर इंडिया में राजरानी के साथ-साथ कई बड़े स्टार इस शो में शामिल हुए। इस शो में शामिल प्रतिभागियों को आयोजकों द्वारा कठिन से कठिन टास्क दिए जाते थे। इन टॉस्क के दौरान बड़े-बड़े स्टार भी अपना हौंसला छोड़ कर हार मानने पर मजबूर हो जाते थे। शो के दौरान कई-कई दिनों तक जंगलों में भूखी रहकर भी राजरानी ने हिम्मत नहीं खोई। कठिन से कठिन टास्क को भी राजरानी ने अपनी हिम्मत व हौंसले से पूरा किया। रियालटी शो की विजेता बनकर कर राजरानी ने शो में शामिल बड़े-बड़े स्टारों को भी हरियाणा के दूध-दही का जोश दिखाया।





जिंदगी के गुणा-भाग ने बना दिया गणित टीचर

अमरेहड़ी की रितू ने विपरीत परिस्थितियों से जूझ पाया मुकाम
पिता की मौत के बाद संघर्ष कर पूरी की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। आंखें खोलते ही जिंदगी में आई मुसीबतों ने ऐसा उलझाया कि मुसीबतों के गुणा-भाग से प्रेरणा लेकर वह गणित की टीचर बन गई। यह कहानी है अमरेहड़ी निवासी 23 वर्षीय रितू की। रितू ने विपरित रिस्थितियों से जूझ कर मैथ से एमएससी की अपनी पढ़ाई पूरी की। अब रितू हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ की प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे कर परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ दूसरी छात्राओं का जीवन संवार रही है। मैथ प्राध्यापिका रितू अब दूसरी छात्राओं के लिए पे्ररणा स्त्रोत बन चुकी है। रितू का अगला लक्ष्य अब नेट की परीक्षा पास करना है। रितू अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है। इसके लिए वह कॉलेज से घर जाने के बाद गांव में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती है। रितू की मां कृष्णा देवी तथा उसकी बड़ी बहन संगीता भी उसके सपने को पूरा करने के लिए उसका पूरा सहयोग कर रही है। अमरेहड़ी निवासी रितू ने बताया कि वह डेढ़ वर्ष की थी जब उसके पिता राजकपूर की मौत हो गई थी। पिता की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। रितू तथा उसकी बड़ी बहन संगीता के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी अब उसकी मां कृष्णा देवी के कंधों पर आ गई। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। रितू ने बताया कि परिवार के सामने आए आर्थिक संकट के चलते उसकी मां ने आंगनवाड़ी में काम कर परिवार का पालन-पोषण किया।
 अपनी मां व बहन के साथ मौजूद रितू। 
 परिवार के पास पूर्वजों की लगभग डेढ़ एकड़ जमीन थी। इस जमीन को ठेकेपर देकर जो थोड़ी बहुत आमदनी होती थी उससे रितू व उसकी बहन संगीता की पढ़ाई का खर्च चलता था। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में रितू व उसकी बहन संगीता ने अपनी पढ़ाई पूरी की। रितू व उसकी बहन संगीता ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई तो गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद रितू ने 12वीं कक्षा जींद के एसडी स्कूल और मैथ ऑनर्स से बीए की पढ़ाई हिंदू कन्या महाविद्यालय से पूरी की। इसके बाद रितू ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीएड व एमएससी की पढ़ाई पूरी की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मैथ से एमएससी की पढ़ाई पूरी कर रितू अब हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही है। वहीं रितू की बड़ी बहन संगीता आर्ट एंड क्राफ्ट का कोर्स करने के बाद अब जेबीटी कर रही है। पिता की मौत के बाद रितू ने बिल्कुल विपरित परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई पूरी की और अब रितू अपने परिवार का सहारा बन चुकी है। 

मां से मिली प्रेरणा

रितू का कहना है कि आज वह जो कुछ भी है उसके पीछे उसकी मां कृष्णा देवी का पूरा योगदान है। परिवार की विपरित परिस्थितियों में भी उसकी मां ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही उसने अपनी पढ़ाई का सफर जारी रखा। रितू ने बताया कि उसको आगे बढ़ाने में उसके ताऊ के लड़के दीपक ने भी पूरा सहयोग किया। भाई दीपक से मिले सहयोग ने भी उसके अंदर उर्जा का संचार करने का काम किया। 

गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी होने पर है गर्व

रितू आज अपने गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की है। गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने के कारण ही उसे 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने का अवसर हासिल हुआ। रितू ने बताया कि जब सरकार की बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान के तहत स्कूल की तरफ से सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने पर 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस दिन उसे अपनी पढ़ाई व परिवार पर गर्व हुआ। 



शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

'व्हाइटफ्लाई की रफ्तार पर ड्रेगनफ्लाई ने लगाये ब्रेक'

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं शाकाहारी कीटों को नियंत्रित
जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास की फसल में नहीं सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इस बार हरियाणा तथा पंजाब में व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिला। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण पंजाब तथा हरियाणा में लाखों हैक्टेयर कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई। महंगे से महंगे कीटनाशक भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में बेअसर साबित हुए। किसानों द्वारा अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने के बावजूद भी सफेद मक्खी की संख्या कम होने की बजाए उलटा बढ़ती चली गई। कई जगह तो ऐसे हालात पैदा हो गए की किसानों को अपनी खराब हुई कपास की फसलों को मजबूरन ट्रैक्टर से जोतना पड़ा। इस वर्ष कपास की फसलों पर बड़ी तेजी के साथ सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ा लेकिन जींद जिले के कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने ड्रेगनफ्लाई (तुलसामक्खी) व अन्य मांसाहारी कीटों की मदद से सफेद मक्खी की इस रफ्तार पर ब्रेक लगा दिए और परिणाम यह रहे कि इन किसानों की फसलों को सफेद मक्खी से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। जींद जिले में लगभग एक हजार एकड़ ऐसा रकबा है जहां पर सफेद मक्खी से कपास की फसल में कोई नुकसान नहीं हुआ है। पिछले सात-आठ वर्षों से यहां के किसान बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए सभी फसलों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने में मेजर कीट मानी जाने वाली सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इन किसानों को किसी प्रकार के कीटनाशकों के प्रयोग की भी जरूरत नहीं पड़ती है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में यहां के किसानों ने कीटों पर शोध शुरू किया था और इसके बाद से ही यह किसान इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।
कपास की फसल को दिखाते किसान।

इस प्रकार फसल को नुकसान पहुंचाती है सफेद मक्खी    

सफेद मक्खी एक शाकाहारी कीट है। सफेद मक्खी का आकार पेन की नौक के आकार जितना होता है।  यह पौधे के पत्तों से रस चूसकर अपना गुजारा करती है। सफेद मक्खी कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) के फैलाने में सहायक का काम करती है। लीपकरल का वायरस सफेद मक्खी के थूक में मिलकर एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचता है। यदि खेत में एक भी पौधे में लीपकरल है तो 10 सफेद भी उस लीपकरल के वायरस को पूरे खेत में फैला सकती हैं। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता भोजन बनाना बंद कर देता है।

यह कीट हैं सफेद मक्खी के कुदरती कीटनाशी 

ड्रेगनफ्लाई (तुलसा मक्खी) तथा छैल मक्खी उड़ते हुए सफेद मक्खी के प्रौढ़ का शिकार करती हैं। इनो, इरो नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनो और इरो दोनों ही परपेटिये कीट हैं और यह सफेद मक्खी के बच्चों के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो के बच्चे सफेद मक्खी को अंदर ही अंदर से खाकर खत्म कर देते हैं। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होते हैं। इसलिए बीटल क्राइसोपा के बच्चे तथा मकडिय़ां इनके बच्चों का आसानी से भक्षण कर देती हैं।

पौधों को दें पर्याप्त खुराक

कीटाचार्य किसान प्रमिला रधाना
फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट पर्याप्त संख्या में मौजूद होते हैं। मांसाहारी कीट अपने आप ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों को पर्याप्त खुराक देनी चाहिए। इसके लिए ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर 100 लीटर पानी में फसल पर इसका छिड़काव करें। पिछले कई वर्षों से हम इस पद्धति से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
प्रमिला रधाना, कीटाचार्य किसान

ऐसे बढ़ती है शाकहारी कीटों की संख्या 

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक
कई प्रकार के मांसाहारी कीट ऐसे हैं जो शाकाहारी कीटों के पेट में अपने बच्चे या अंडे देते हैं। वहीं कई प्रकार के मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों से छोटे आकार के होते हैं। जब किसान फसल पर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो शाकाहारी कीट के पेट में पनप रहे मांसाहारी कीट के बच्चे व छोटे आकार वाले मांसाहारी कीट मर जाते हैं। इस प्रकार फसल में कुदरती कीटनाशियों की संख्या कम होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है और इससे फसल को नुकसान पहुंचता है। पिछले सात-आठ वर्षों से जींद जिले के दर्जनभर गांव के किसान कीटों पर अपना शोध कर रहे हैं।
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान





बुधवार, 9 सितंबर 2015

'देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान'

डीडी किसान चैनल की टीम ने कीटाचार्य किसानों के अनुभव किए कैमरे में कैद

कृषि अधिकारियों व कीटाचार्य किसानों के बीच हुए सीधे सवाल-जवाब 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम से अब पूरे देश के किसान सीख लेंगे। डीडी किसान चैनल के माध्यम से कीटाचार्य किसान देश के दूसरे किसानों को बिना कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के खेती कैसे संभव है इसके बारे में बारिकी से जानकारी देंगे। डीडी किसान चैनल द्वारा प्रश्र मंच कार्यक्रम के तहत थाली को जहरमुक्त बनाने के विषय पर जींद जिले के कीटाचार्य पुरुष व महिला किसानों के दो घंटे का प्रोग्राम तैयार किया है। इस कार्यक्रम में किसानों के साथ-साथ कृषि अधिकारियों से भी कीट ज्ञान के बारे में उनकी राय ली गई है। कार्यक्रम के दौरान कीटनाशकों के बिना खेती संभव है या नहीं, सफेद मक्खी तथा अन्य कीटों की रोकथाम के क्या उपाय हैं। इन विषयों पर पूरा फोक्स रहा। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि किस तरह वह पिछले सात-आठ वर्षों से बिना पेस्टीसाइड के अच्छा उत्पादन ले रहे हैं और इस बार भी उनकी फसल सफेद मक्खी से सुरक्षित है जबकि प्रदेश में सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ रहा है। कीटाचार्य पुरुष किसानों के कार्यक्रम का प्रसारण बृहस्पतिवार शाम को साढ़े सात बजे किया जाएगा। जबकि महिला किसानों के कार्यक्रम का अभी समय निर्धारित नहीं हो पाया है।
कीटाचार्य किसानों के सुझाव लेते टीम के सदस्य।

कार्यक्रम में यह-यह लोग रहे मौजूद 

जिला कृषि उपनिदेशक  डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार से जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, डॉ. सर्वजीत सिंह, डीडी किसान चैनल से टेक्रिकल डायरेक्टर डीआर जाटव, प्रोड्यूसर विकास डबास, एंकर मुकुल शर्मा, टेक्रिकल सहायक जोगेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार, कृपाल सिंह, सर्वेश कुमार, कैमरामैन विभू प्रसाद साहू, अजय यादव, रूपचंद, बराह कला खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप प्रधान इंद्र सिंह ढुल, प्रगतिशील क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, महासचिव कर्मबीर यादव, रोहताश ढांडा, जाट धर्मशाला के पूर्व प्रधान रामचंद्र भी मौजूद रहे।
कार्यक्रम में अपने सुझाव देते कृषि अधिकारी।

यह हुए सीधे सवाल-जवाब

1. सवाल : क्या कीटनाशकों के बिना खेती संभव है। 
कीटाचार्य किसान : कीट को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे अचूक शस्त्र है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार ही कीट को भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर बुलाते हैं। जब पौधे को शाकाहारी कीट की जरूरत नहीं होती जब पौधे उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है।
कृषि अधिकारी : कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से कीटों की संख्या बढ़ती है। इसलिए किसानों को बिना कृषि अधिकारी की सलाह के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए
2. सवाल : कीटनाशकों से मिट्टी को क्या नुकसान होता है। 
कीटाचार्य किसान : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म कीट मर जाते हैं तथा इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट होती है।
कृषि अधिकारी : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी के सूक्ष्म जीव खत्म हो जाते हैं। क्योंकि किसान जानकारी के अभाव में सही तरीके से कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं।
3. सवाल: कपास में कौन-कौन से कीट नुकसान पहुंचाते हैं। 
कीटाचार्य किसान : प्रकृति ने सभी जीवों को जीने का अधिकार दिया है। कीट किसी को नुकसान या फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। कीट तो अपना जीवन चक्र चलाने के लिए आते हैं और पौधे अपनी जरूरत के अनुसार उन्हें बुलाते हैं। लेकिन किसान जागरूकता के अभाव में इन कीटों को मार रहे हैं। ईटीएल लेवल पार करने के बाद ही कीट नुकसान पहुंचाने के स्तर तक पहुंच पाते हैं लेकिन अगर कीटों के साथ छेडख़ानी नहीं की जाए तो कीट ईटीएल लेवल पार नहीं करते हैं।
कृषि अधिकारी : कीट वैज्ञानिकों ने कीट द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाने का एक आर्थिक स्तर निर्धारित किया हुआ है। कीट वैज्ञानिकों की भाषा में इसे ईटीएल लेवल बोला जाता है। जब कीटों की संख्या इस ईटीएल लेवल से ऊपर चली जाती है तो कीट फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
4. सवाल : कौन-कौन से दो कीट रस चूसक हैं।
कीटाचार्य किसान : सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, माइट रस चूसक कीट हैं। इनमें से फिल्हाल सफेद मक्खी, हरा तेला तथा चूरड़ा मेजर रस चूसक कीटों की स्टेज पर हैं।
कृषि अधिकारी : पिछले दो-तीन वर्षों से रस चूसक कीटों में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा बढ़ा है।
5. सवाल : सफेद मक्खी की रोकथाम के क्या उपाय हैं।
कीटाचार्य किसान : सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए कोई उपाय नहीं हैं। यदि किसान पौधों पर कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। किसान को चाहिए कि वह पौधे को पर्याप्त खुराक दे।
कृषि अधिकारी : सफेद मक्खी के प्रकोप के कई कारण होते हैं। फसल की बिजाई सही समय व सही तरीके से हुई है या नहीं यह भी मुख्य कारण होता है। यह भी सही है कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से भी सफेद मक्खी का स्तर बढ़ता है। इसलिए किसानों को बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
6. सवाल : क्या फसल मेंं स्प्रे के सही तरीके से छिड़काव की जानकारी देने के लिए कृषि अधिकारी खेत में पहुंचकर किसानों को जागरूक करते हैं। 
कीटाचार्य किसान : कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों को कीटों की रोकथाम के लिए स्प्रे के प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर कीटाचार्य किसानों का सहयोग किया जाता है।
कृषि अधिकारी : किसानों को जागरूक करने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर कैंपों का आयोजन किया जाता है। किसान जानकारी लेने के लिए सीधे कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं।
7. सवाल : बेलदार सब्जियों का अधिक उत्पादन कैसे लिया जा सकता है। 
कीटाचार्य किसान : बेलदार सब्जियों को जमीन पर फैलाने की बजाए बांस इत्यादी खेत में गाड़कर बेल को तार के माध्यम से ऊपर की तरफ बढ़ाया जाए तथा समय पर पर्याप्त पौषक तत्व दिए जाएं।
कृषि अधिकारी : किसानों की बात से सहमत हैं। बेल को ऊपर चढ़ाने से फल की गुणवत्ता भी सही रहती है और फल खराब भी नहीं होता। किसान को कम जगह में अधिक उत्पादन मिल जाता है।





सोमवार, 7 सितंबर 2015

'कीट ज्ञान पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे सवाल-जवाब करेंगी कीटों की मास्टरनी'

दूरदर्शन में किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम में होगी कीट ज्ञान पर चर्चा

आठ सितंबर को निडाना पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ी कीटों की मास्टरनी अब कीट ज्ञान पर कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे सवाल-जवाब करेंगी। दिल्ली दूरदर्शन पर प्रशारित होने वाले किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम में कीटाचार्य महिला एवं पुरुष किसान कृषि वैज्ञानिकों के साथ विशेष रूप से चर्चा करेंगे। आगामी आठ सितंबर को कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम निडाना पहुंचेगी। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य महिला तथा पुरुष किसान कृषि विशेषज्ञों के बीच सीधे सवाल-जवाब होंगे। लगातार दो घंटे तक कृषि विशेषज्ञों तथा कीटाचार्य किसानों के बीच कीट ज्ञान पर बहस चलेगी। कार्यक्रम में एनसीआईपीएम दिल्ली के कृषि विशेषज्ञ तथा जिले के कृषि अधिकारी भाग लेंगे।
फसलों में लगातार बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण किसान की जेब पर बढ़ रहे आर्थिक बोझ तथा दूषित हो रहे खान-पान को देखते हुए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जींद जिले के निडाना गांव से वर्ष 2008 में खेती को जहरमुक्त बनाने के लिए कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत की गई थी। ताकि फसलों में बढ़ते कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम कर थाली में बढ़ रहे जहर के स्तर को कम किया जा सके। डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में दर्जनभर गांव से ज्यादा किसान इस मुहिम से जुड़े और इन किसानों ने फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों पर अपना शोध किया। शोध के दौरान किसानों ने पौधे के साथ मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का क्या रिश्ता है और यह फसल में कीट क्यों आते हैं तथा फसल पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है, इस विषय पर बारिकी से जानकारी जुटाई। शोध के दौरान किसानों के सामने आया कि कीटों तथा पौधे का आपस में गहरा रिश्ता है। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की गंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। पुरुषों के साथ-साथ महिला किसान भी कंधे से कंधा मिलाकर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। पिछले सात-आठ वर्षों से यह किसान बिना कीटनाशकों के प्रयोग के अच्छी पैदावार लेकर थाली को जहरमुक्त बनाने का अभियान चलाए हुए हैं। इसी विषय पर कृषि वैज्ञानिकों तथा किसानों की राय जानने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा आगामी आठ सितंबर को निडाना गांव में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के दौरान लगातार दो घंटे तक किसानों तथा कृषि विशेषज्ञों के बीच कीट ज्ञान के विषय पर बहस होगी। कीटाचार्य किसान कृषि विशेषज्ञों से सीधे सवाल-जवाब करेंगे। बाद में दिल्ली दूरदर्शन द्वारा किसान प्रश्र मंच कार्यक्रम के माध्यम से इसका प्रसारण किया जाएगा।

एक-एक घंटे के दो प्रोग्राम होंगे रिकार्ड

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा आठ सितंबर को कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष तथा महिला किसानों के दो कार्यक्रम रिकार्ड किए जाएंगे। इसमें एक घंटे का कार्यक्रम पुरुष किसानों का होगा तथा दूसरा एक घंटे का कार्यक्रम महिला किसानों का होगा। दूरदर्शन की टीम द्वारा एक-एक घंटे के दो कार्यक्रम रिकार्ड किए जाएंगे।


बीटी कपास के जर्रे-जर्रे में होता है जहर

कीटों के मामले में बीटी से ज्यादा सुरक्षित है अमेरिकन व देशी कपास

नरेंद्र कुंडू
बरवाला/जींद।
कीटाचार्य महिला किसान अंग्रेजो, राजवंती, बीरमती, गीता तथा केलो ने कहा कि शाकाहारी कीटों के मामले में बीटी की बजाए अमेरिकन कपास काफी सुरक्षित है। इस बार अमेरिकन कपास की बजाए बीटी कपास में कीटों का प्रकोप काफी ज्यादा है। जहां-जहां पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं हुआ है, वहां-वहां कपास की फसल कीटों के मामले में सुरक्षित है। कीटाचार्य महिला किसान शनिवार को बरवाला के जेवरा गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को संबोधित कर रही थी। इस अवसर पर हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण भी मौजूद रहे। इस मौके पर अमर उजाला फाउंडेशन की तरफ से कीटाचार्य महिला किसानों को 500-500 रुपये आर्थिक सहायता मुहैया भी करवाई गई।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्य महिला किसानों ने कहा कि प्राकृतिक द्वारा पैदा किए गए प्रत्येक जीव का अपना महत्व है लेकिन आए दिन प्राकृतिक के साथ हो रही छेड़छाड़ के कारण प्राकृतिक का तालमेल गड़बड़ा रहा है। उन्होंने बताया कि बीटी को कीड़ों के मामले में सबसे सुरक्षित माना जाता था लेकिन अगर आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो बीटी में ही सबसे ज्यादा कीट इस समय मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि बीटी के जर्रे-जर्रे में जहर है और यह जहर पत्ते चबाकर खाने वाले कीटों के लिए खतरनाक है। जबकि रस चूसक कीटों के लिए यह फसल काफी सुरक्षित मानी जाती है। उन्होंने आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताय कि अमेरिकन कपास में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता तीन, तेले व चूरड़े की शून्य तथा माइट 10 है। वहीं बीटी में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता नौ, तेले व चूरड़े की शून्य तथा माइट की शून्य प्वाइंट पांच है। उन्होंने बताया कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया, उस फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप नामात्र है। उन्होंने बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में मौजूद कूदरती कीटनाशनी यानि के मांसाहारी कीट मारे जाते हैं। मांसाहारी कीटों के खत्म होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि इस समय कपास की फसल में सफेद मक्खी व दूसरे शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए इनो, इरो, छैल मक्खी, ड्रेगनफ्लाई, दीदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, बीटल तथा क्राइसोपा जैसे मांसाहारी कीट मौजूद हैं। इनो-इरो सफेद मक्खी के पेट में अपने बच्चे पलवाती हैं तो डे्रगनफ्लाई, छैल मक्खी इसके प्रौढ़ का उड़ते हुए शिकार करती हैं। वहीं डाकू बुगड़ा व दीदड़ बुगड़ा सफेद मक्खी के बच्चों का ख्ूान चूसकर इसको नियंत्रित करते हैं तो बीटल व क्राइसोपा सफेद मक्खी के बच्चों का काम तमाम कर देते हैं। इसलिए हमें कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने की जरूरत है।


 कीटाचार्य किसानों को प्रोत्साहन राशि भेंट करते जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण।





सोमवार, 31 अगस्त 2015

राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के साथ जोड़ेंगे कीट ज्ञान की मुहिम : डॉ. बराड़

 कहा, कीटों पर हुए शोध पर बनाई जाए डाक्यूमेंटरी 
कपास की फसलों के नुकसान का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने किया जींद का दौरा 
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण खराब हो रही किसानों की कपास की फसलों का अवलोकन करने के लिए कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. जगदीप बराड़ मंगलवार को जींद पहुंचे। इस दौरान डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ जिले के रधाना, शादीपुर, किनाना, ईंटल कलां, ईंटल खुर्द, राजपुरा सहित दर्जनभर गांवों का दौरा कर किसानों की फसलों का अवलोकन किया। रधाना गांव में किसानों की फसलों का अवलोकन करने के साथ ही डॉ. बराड़ कीटाचार्य किसानों से भी रूबरू हुए। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने अतिरिक्त निदेशक के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि किस तरह वह पिछले सात-आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। किसानों द्वारा कीटों पर किए गए शोध की बारिकी से जानकारी लेने के बाद अतिरिक्त निदेशक ने कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश में फैलाने का आश्वासन दिया। इस मौके पर उनके साथ जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, पौध संरक्षण अधिकारी डॉ. अनिल नरवाल, एडीओ डॉ. सुनील, डॉ. महेंद्र, मैडम कुसुम दलाल भी मौजूद थी।
डॉ. बराड़ ने कहा कि पूरे प्रदेश में कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ रहा है। इसके चलते किसानों की कपास की फसल खराब हो रही है। डॉ. बराड़ ने कहा कि कपास की फसम में सफेद मक्खी के प्रकोप के बढऩे का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। जागरूकता के अभाव में किसान बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि
अतिरिक्त निदेशक को कीटों की जानकारी देती कीटाचार्या महिला किसान
जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग ना के बराबर हुआ है, वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है। जींद जिले में डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम की प्रशांसा करते हुए उन्होंने कहा कि जींद के कीटाचार्य किसानों द्वारा कीटों पर किए गए इस अनोखे शोध के अब कृषि विभाग के अधिकारी भी मुरीद हो गए हैं लेकिन यह कृषि विभाग का दुर्भाग्य रहा है कि विभाग इन किसानों का सार्थक रूप से प्रयोग नहीं कर पाया। इसलिए कीट ज्ञान की मुहिम को प्रदेश के प्रत्येक किसान तक पहुंचाने के लिए कीटाचार्य किसानों को राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के तहत जोड़कर इनकी सहायता से दूसरे जिले के किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के प्रति जागरूक किया जाएगा। इस दौरान डॉ. बराड़ ने किसानों की कीटनाशक रहित फसलों का अवलोकन भी किया और बताया कि कीटनाशक के प्रयोग वाली फसलों उनकी फसल काफी बेहतर है। इस अवसर पर डॉ. बराड़ ने कृषि विभाग के अधिकारियों को अगले रबी के सीजन से कीटाचार्य किसानों के शोध पर एक डाक्यूमेंटरी बनाने के निर्देश दिए। कीटाचार्य किसानों ने भी अतिरिक्त निदेशक को इस मुहिम को आगे बढ़ाने के सुझाव रखे।

सोमवार, 24 अगस्त 2015

'व्हाइट फ्लाई के प्रकोप से काला पडऩे लगा किसानों का सफेद सोना'

पिछले वर्ष हुई प्राकृतिक आपदा के बाद अब सफेद मक्खी ने मचाई तबाही
खराब हो रही कपास की फसलों पर किसान चला रहे ट्रेक्टर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले वर्ष प्राकृतिक आपदा के कारण खराब हुई खरीफ व रबी की फसलों से हुए आर्थिक नुकसान से किसान अभी तक ठीक से उभर भी नहीं पाए थे कि इस बार फिर से किसानों की कपास की फसल सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) की भेंट चढ़ गई है। महज तीन मिलीमीटर का यह कीट किसानों के सफेद सोने का भस्मासुर साबित हो रहा है। दिन-प्रतिदिन कपास की फसल पर सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। सफेद मक्खी ने किसानों के साथ-साथ कृषि विभाग के अधिकारियों की भी नींद उड़ा रखी है। कृषि विभाग के अधिकारी भी इस कीट का तोड़ नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। जिले में लगभग 15 हजार हैक्टेयर कपास की फसल सफेद मक्खी की भेंट चढ़कर खराब हो चुकी है। सफेद मक्खी के प्रकोप से अपनी कपास की फसल को बचाने के लिए किसान महंगे से महंगे कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन महंगे-महंगे कीटनाशक भी इस पर बेअसर साबित हो रहे हैं। सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप के कारण किसान अपनी खड़ी कपास की फसल को ट्रैक्टर से नष्ट करने पर मजबूर हैं लेकिन जिन किसानों द्वारा फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया है, वहां पर कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत कम है।   
 कपास की फसल को ट्रेक्टर से जोतते किसान।

15 हजार हैक्टेयर चढ़ चुका है सफेद मक्खी की भेंट  

जिले में लगभग ६३ हजार हैक्टेयर में कपास की खेती होती है। उचाना, नरवाना, जुलाना क्षेत्र में कपास की खेती पर किसानों का ज्यादा जोर है लेकिन कपास की फसल में आई सफेद मक्खी ने किसानों की फसलों को बुरी तरह से तबाह कर दिया है। सफेद मक्ख के प्रकोप के कारण 15 हजार हैक्टेयर में खड़ी कपास की फसल बुरी तरह से नष्ट हो गई है।  

2001 में अमेरिकन सूंडी और 2005 में मिलीबग ने मचाई थी तबाही

जब-जब भी कीटनाशकों की सहायता से कीटों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए हैं, तब-तब यह कीट बेकाबू हुए हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग द्वारा मचाई गई तबाही इसका प्रमाण हैं। 2001 में अमेरिकन सूंडी को काबू करने के लिए किसानों ने कपास की फसलों में 30 से 40 स्प्रे किए थे लेकिन उसके बाद भी यह कीट काबू नहीं हुआ और परिणाम शून्य रहे। इस तीन सेंटीमीटर के कीट ने पूरी की पूरी फसलों को तबाह कर दिया था। यही हालात 2005 में किसानों के सामने पैदा हुए थे। 2005 में मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन महज चार सेंटीमीटर के इस कीट ने उस दौरान कीट वैज्ञानिकों की खूब फजिहत करवाई थी। मिलीबग से प्रकोपित फसलों को किसानों ने टे्रक्टर की सहायता से खेत जोत दिए थे। इसी प्रकार अब पिछले दो-तीन वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ रहा है। 

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में कूदरती कीटनाशी हैं कारगर 

सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है और यह अपने जीवनकाल में 100 से 125 अंडे देती है। यह पौधे से रस चूसती है। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता काला हो जाता है और भोजन बनाना बंद कर देता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं है। इनो, इरो, बीटल नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही इसे नियंत्रित कर लेते हैं। जिस-जिस खेत में कीटनाशक का प्रयोग नहीं हुआ है, उन खेतों में सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है लेकिन जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट इसे खुद ही नियंत्रित कर लेते हैं। किसानों को कीटों को मारने की नहीं, कीटों की पहचान करने की जरूरत है। 
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान
जींद।  

पछेती बिजाई वाली फसलों में ज्यादा नुकसान है। 

पछेती बिजाई वाली फसलों में ज्यादा नुकसान है। जिन किसानों ने समय पर कपास की बिजाई की है, वहां पर कम नुकसान है। कुछ किसानों का फसल की बिजाई व रख-रखाव की मैनेजमेंट सही नहीं है। मैनेजमेंट सिस्टम गड़बड़ाने के कारण फसल में नुकसान होता है। जहां-जहां नुकसान हुआ है, वहां-वहां सर्वे करवाया जा रहा है। सर्वे रिपोर्ट के बाद हकीकत सामने आ पाएगी। किसानों को जागरूक करने के लिए कैंपों का आयोजन किया जा रहा है। किसानों को चाहिए कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं करें। कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग के कारण भी सफेद मक्खी को पनपे का अवसर मिल जाता है। 
डॉ. आरपी सिहाग, जिला कृषि उपनिदेशक
कृषि विभाग जींद


रविवार, 23 अगस्त 2015

कीटनाशकों के प्रयोग से ही फसल में बढ़ती है कीटों की संख्या

नरेंद्र कुंडू
बरवाला/जींद।
कीटों की मास्टरनी सीता देवी, शांति, धनवंति व नारों ने बताया कि जहां-जहां कपास की फसल में कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग कर छेडख़ानी की गई है, उन-उन खेतों में कीटों की संख्या निरंतर बढ़ रही है लेकिन जहां पर कीटों के साथ कोई छेडख़ानी नहीं की गई है, वहां कीटों की संख्या नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर (ईटीएल लेवल) से काफी नीचे है। कीटों की मास्टरनियां शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा जेवरा गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में मौजूद महिला तथा पुरुष किसानों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में अवगत करवा रही थी। इस अवसर पर पाठशाला में आकाशवाणी केंद्र रोहतक से कार्यक्रम अधिकारी नरेश गोगिया, वरिष्ठ उद्घोषक संपूर्ण सिंह, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, डॉ. महाबीर शर्मा भी विशेष रूप से मौजूद रहे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कपास तथा सब्जियों की फसल में कीटों का निरक्षण किया और उसके बाद फसल में मौजूद कीटों के आंकड़े को चार्ट पर उतारा।
 फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।
उन्होंने बताया कि कीटों की सबसे खास बात यह होती है कि उन्हें आने वाले खतरे का पहले ही अहसास हो जाता है और वह खतरे को देखते हुए अपने जीवन काल को छोटा करके अपने बच्चे पैदा करने कर क्षमता को बढ़ा लेता है। इसलिए कीटनाशकों के माध्यम से कीटों पर नियंत्रित पाना संभव नहीं है। यदि हमें अपनी फसलों को कीटों से बचाना है तो हमें कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों की पहचान करनी चाहिए। क्योंकि कीट की कीटों को नियंत्रित करने का एक अचूक अस्त्र हैं।

मरोडिये से प्रकोपित पौधे को दें पर्याप्त खुराक

मास्टर ट्रेनर किसानों ने बताया कि मरोडिय़ा (लीपकरल) विषाणु से फैलता है और विषाणु न तो जीवित होता है और न ही कभी मरता है। इस विषाणु को अनुकूल मौसम मिलने पर यह जीवित हो जाता है। इस विषाणु के प्रभाव को रोकने के लिए आज तक कोई दवाई नहीं बनी है। यदि हम मरोडिय़े से प्रकोपित पौधे को काट कर जला भी देते हैं तो भी उसकी जड़ों में यह वायरस बच जाता है। इससे पार पाने का केवल एक ही उपाय है कि हम मरोडिय़े से प्रकोपित फसल में जिंक, यूरिया व डीएपी के घाल का फोलियर स्प्रे करते रहें। इससे पौधे को पर्याप्त खुराक मिलती रहेगी और इससे उत्पादन में भी कोई कमी नहीं आएगी।

फसल में मौजूद प्रति पत्ता कीटों की संख्या

फसल का नाम        सफेद मक्खी    हरा तेला    चूरड़ा       माइट
बीटी कॉटन                     5.4                  0.9            0            2.4
नॉन बीटी कॉटन              4.3                   0.4          0            1.2
भिंडी                               2.4                   3.1          0              6
करेला                                 0                     0          0               2
 

आकाशवाणी केंद्र रोहतक के वरिष्ठ उद्घोषक संपूर्ण सिंह डॉ बलजीत भ्यान से बातचीत करते हुए





रविवार, 9 अगस्त 2015

शाकाहारी कीटों के साथ भी होता है पौधे का गहरा रिश्ता

कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत 

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला/जींद। शाकाहारी कीटों के साथ भी पौधों का गहरा रिश्ता है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। इसलिए हमें कीटों को मारने की नहीं बल्कि कीटों को पहचानने की जरूरत है। यह बात कीटाचार्या किसान विजय, प्रमिला, कमल, आशीम, शकुंतला ने शनिवार को बरवाला के जेवरा गांव में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सब्जियों की फसल पर आयोजित की जा रही महिला किसान खेत पाठशाला को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्यान भी मौजूद रहे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों द्वारा ग्रुप बनाकर करेला, मिर्च, बैंगन, भिंडी, घीया की बेल पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों के बारे में किसानों को बारिकी से जानकारी दी गई। 
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि किसानों को भय व भ्रम के जाल में फंसाया जा रहा है। इसी के चलते शाकाहारी कीटों के डर से किसान फसलों पर अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कीटों को मारने की नहीं उनको पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पौधा एक दिन में साढ़े चार ग्राम भोजन बनाता है। डेढ़ ग्राम भोजन ऊपर के हिस्से, डेढ़ ग्राम भोजन जड़ व तने को देता है जबकि डेढ़ ग्राम भोजन को रिजर्व के तौर पर रखता है। ताकि मुसिबत के समय में 
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं। 
रिजर्व भोजन का प्रयोग कर पौधा अपना जीवन बचा सके लेकिन अगर पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो उसके पास वह भोजन जमा हो जाता है। एकत्रित किए गए इस भोजन को निकालने के लिए ही पौधा भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाता है और शाकाहारी कीट इस अतिरिक्त भोजन को खाकर अपना गुजारा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में रक्तदान करता है। उसी प्रकार पौधे भी अपने इस अतिरिक्त भोजन को शाकाहारी कीटों को दान करते हैं। जब शाकाहारी कीटों की संख्या बढऩे लग जाती है तो इन्हें नियंत्रित करने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधे के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। पौधे व कीटों की इस प्रक्रिया में किसान का काम चल जाता है। उन्होंने बताया कि सब्जियों में इस समय सफेद मक्खी, तेला व माइट देखने को मिल रहे हैं। जबकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट बीटल, बीटल के बच्चे, क्राइसोपा, ड्रेगन फ्लाई, हथजोड़ा, कातिल बुगड़ा भी काफी संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि भिंडी में तेला ईटीएल लेवल से पार पहुंच चुका है और इसके चलते भिंडी में महज पांच प्रतिशत का नुकसान ही देखने को मिल रहा है। इसके अलावा दूसरी सब्जियों में कीटों की संख्या ईटीएल लेवल से कम ही दर्ज की गई है। किसी भी फसल में शाकाहारी कीट नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बैंगन की सब्जी में गोभ वाली सूंडी आई हुई है लेकिन इससे फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है। गोभवाली सूंडी के आने के बाद पौधा दूसरी फूट निकाल लेता है। इसलिए किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। 

चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार करती मास्टर ट्रेनर किसान। 




रविवार, 2 अगस्त 2015

कीटनाशकों से शाकाहारी कीटों के साथ मर जाते हैं कुदरती कीटनाशी

कपास के साथ-साथ सब्जियों पर भी शुरू हुआ प्रयोग 
कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पंजाब से भी पहुंचे किसान 

नरेंद्र कुंडू 
बरवाला/जींद। आज कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप से किसान बुरी तरह से भयभीत हैं। क्योंकि सफेद मक्खी को काबू करने में कीटनाशक भी बेअसर साबित हो रहे हैं। यह बात कीटों की मास्टरनी राजवंती, कमलेश, बिमला, रोशनी व सुमन ने शनिवार को जेवरा गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में किसानों को संबोधित करते हुए कही। पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बरवाला व आस-पास के सैंकडों किसानों के अलावा नूरमहल जालंधर से गुरप्रीत, चैनलाल, सरपंच लखविंद्र ने भी शिरकत की। पाठशाला में मौजूद किसानों ने सब्जियों व कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया। किसानों को कीटों के जीवन चक्र व क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 
मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण शाकाहारी कीट सफेद का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि किसानों द्वारा सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जिस कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, उस कीटनाशक से सफेद मक्खी के साथ-साथ उसे नियंत्रित करने के लिए उसके पेट में पल रहे दूसरे मांसाहारी कीट भी मर जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृति ने एक चैन सिस्टम बनाया हुआ है लेकिन मनुष्य ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर इस चैन सिस्टम को तोड़ दिया है और इसी के कारण यह परेशानी आज किसानों के सामने आ रही है। पौधा अपनी जरूरत के अनुसार ही शाकाहारी कीटों को बुलाता है लेकिन उसके साथ ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीटों को भी बुला लेता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इनो व इरो नामक परपेटिया मांसाहारी कीट फसल में मौजूद होते हैं। इनो व इरो सफेद मक्खी के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो का अंडा, बच्चा व प्यूपा तीन ही प्रक्रिया सफेद मक्खी के पेट में होती हैं। प्रौढ़ बनने के बाद यह सफेद मक्खी के पेट से बाहर आती है लेकिन जब किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करता है तो सफेद मक्खी के साथ-साथ उसके पेट में पल रहे इन मांसाहारी कीटों की तीनों स्टेज खत्म हो जाती है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किए गए कीटना
 पाठशाला में मौजूद महिलाएं। 
शक से सफेद मक्खी तो मुश्किल से 50 प्रतिशत ही खत्म होती है लेकिन उसके पेट में पल रहे मांसाहारी कीट इनो-इरो की तो तीनों स्टेज खत्म हो जाती हैं। इसलिए किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए जहर डालने की बजाए पौधों को खुराक देने का काम करना चाहिए। ताकि सफेद मक्खी द्वारा पौधे का जो रस चूसा गया है उस खुराक से पौधा उसकी रिकवरी कर सके। महिला किसानों ने बताया कि इस बार यह देखने में आया है कि सफेद मक्खी का प्रकोप नॉन बीटी हाईब्रिड व देशी कपास की बजाए बीटी कपास में ज्यादा है। उन्होंने बताया कि  भिंडी, घीया, मिर्च व बैंगन की सब्जियों पर भी उनका प्रयोग चल रहा है। इनमें भिंडी की फसल में हरेतेले की संख्या ज्यादा है लेकिन इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इन्हें नियंत्रित करने के लिए मकड़ी, क्राइसोपा, इनो-इरो, अंगीरा हथजोड़ा, दैत्यामक्खी, डाकू बुगड़ा पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि दिव्य ज्योतिग्राम के नाम से उनकी संस्था है और यह संस्था लगभग 200 एकड़ में बिना पेस्टीसाइड की खेती कर रही है। यहां पर उनका आने का उद्देश्य कीटों के बारे में प्रशिक्षण हासिल करना था ताकि वह वहां के दूसरे किसानों को भी इसके बारे में प्रशिक्षित कर सकें। 


 सब्जी के पौधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं।