बुधवार, 4 सितंबर 2013

मकडिय़ों ने किया फसलों से हर किस्म के कीटों का सफाया

पाठशाला में किसानों ने की शाकाहारी कीटों पर चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। इस समय धान व कपास की फसल में आने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस समय फसलों में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। कपास की फसल में इस समय मकडिय़ों की औसत प्रति पौधा 4-5 दर्ज की जा रही है और मकडिय़ां हर प्रकार के कीटों को अपना भोजन बना लेती हैं। बशर्त यह की किसान द्वारा अपनी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन कर कीटों का बही खाता भी तैयार किया। पाठशाला में किसानों ने कपास की फसल में अब तक देखे गए शाकाहारी कीटों पर भी विस्तार से चर्चा की।
फसल में पाई जाने वाली मकडिय़ों का फोटो।
डा. कमल सैनी ने कहा कि मकड़ी किसी भी कीट को खाने से परहेज नहीं करती है। यह हर प्रकार के कीट को आसानी से अपना शिकार बना लेती है। इस समय धान व कपास की फसल में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। उन्होंने परीक्षण वाले खेत का जिक्र करते हुए कहा कि इस खेत में कपास के 4325 पौधे हैं और प्रति पौधे पर 4-5 मकडिय़ों की संख्या दर्ज की जा रही है। इस प्रकार कपास के इस खेत में 17 से 18 हजार मकडिय़ां हैं। एक मकड़ी एक समय में 10 से 12 तेलों, 18 से 20 सफेद मक्खी के बच्चों तथा 30 से 35 चूरड़ों का खात्मा कर देती है। इस प्रकार अगर एक खेत में इतनी ज्यादा संख्या में मकडिय़ां हैं तो किसानों को फसल में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं है। मकडिय़ां खुद ही किसान के खेत में कीटनाशक का काम कर देती हैं। डा. सैनी ने साप्ताहिक कीट समीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अगर साप्ताहिक कीट समीक्षा पर नजर डाली जाए तो अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नुक्सान पहुंचाने के आॢथक स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं। साप्ताहिक कीट समीक्षा के आधार पर सफेद मक्खी की औसत 1.7, हरा की तेला 0.8 और चूरड़े की संख्या 0.1 दर्ज की गई है। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने शाकाहारी कीटों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक कीटों की पहचान की है। इन 20 कीटों में से सिर्फ सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को ही यहां के किसान मेजर कीट मानते हैं, जो फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन जिन-जिन किसानों ने अपनी फसलों में
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है, उन फसलों में अभी तक इन कीटों का नुक्सान सामने नहीं आया है और जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां इन कीटों ने खूब हाहाकार मचाया हुआ है। इनके अलावा लाल बानिया, काला बानिया, माइट, मिलीबग व अल को यहां के किसान सूबेदार मेजर मानते हैं। लाल व काला बानिया कपास के बिनोले का रस चूसकर किसानों को नुक्सान पहुंचाता है लेकिन किसान को लाल व काले बानिये का नुक्सान कभी नजर नहीं आता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये का पक्का ग्राहक होता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये को अपना शिकार बनाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। इसी प्रकार बिटल अल तथा अंगीरा, जंगीरा और फंगीरा मिलीबग को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं।



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