रविवार, 30 जून 2013

कुदरत के साथ छेड़छाड़ रोकनी है तो कीट ज्ञान हासिल करें किसान : ढुल

किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र में किसानों को फसल में नजर आए नए कीट

नरेन्द्र कुंडू 
जींद। पृथ्वी पर जीवन यापन के लिए मौजूद सभी सुविधाएं कुदरत का इंसान को एक अनोखा तोहफा हैं लेकिन आज इंसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर कुदरत के इस अनमोल तोहफे के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इसलिए भविष्य में इंसान को इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा। अगर किसानों को कुदरत का साथ देना है तो उन्हें कीट ज्ञान हासिल करना होगा। यह बात ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल ने शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र के दौरान किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह चहल और डा. सुरेंद्र दलाल के पुत्र अक्षत भी मौजूद थे। पाठशाला की अध्यक्षता बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने की तथा संचालन कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने किया। पाठशाला में राजपुरा भैण, ईंटल कलां, ईंटल खुर्द, निडाना, निडानी, रधाना, ईगराह, रामराये, चाबरी, ललीतखेड़ा सहित दर्जनभर गांवों के किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों पर रिसर्च किया। पाठशाला के आरंभ में सभी किसानों ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का आंकड़ा दर्ज किया। 
पाठशाला के आरंभ में किसानों ने फसल में कीटों का अवलोकन कर कीट बही खाता तैयार किया। कीट बही खाते में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 1.9, हरे तेले की 1.8 और चूरड़े की 2.5 थी। किसानों ने बताया कि कीट बही खाते के अनुसार फसल में मौजूद शाकाहारी कीट कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई लक्ष्मण से कोसों दूर हैं। किसानों ने बताया कि शाकाहारी कीटों के साथ-साथ फसल में मांसाहारी कीट क्राइसोपा, क्राइसोपा के अंडे, फलहेरी बुगड़ा, बिंदुआ बुगड़ा, हंडेर बीटल तथा मकड़ी भी काफी संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इस बार कपास की फसल में कुछ नए कीट सलेटी भूंड, सुरंगी कीड़ा, टीडा भी नजर आए हैं। किसानों ने बताया कि कपास के इस खेत में कुल 4355 पौधे हैं और प्रति पौधा एक मांसाहारी कीट क्राइसोपा भी मौजूद है। एक क्राइसोपा 40 मिनट में 30 हरे तेलों तथा बुगड़े ढेड मिनट में 1 कीड़े का काम तमाम कर देते हैं। उन्होंने बताया कि कपास की फसल में किए गए रिसर्च के दौरान वह 43 किस्म के शाकाहारी तथा 161 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। डा. कमल सैनी ने बताया कि पृथ्वी पर सबसे पहले पौधों की उत्पति हुई थी। इसके बाद धरती पर कीटों ने दस्तक दी थी। क्योंकि जीवों को जीवित रहने के लिए आक्सिजन की जरुरत होती है और आक्सिजन की उत्पति का केवल एक मात्र साधन हैंपौधे। बिना पौधों के धरती पर जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी पर पौधों की लगभग 3 लाख किस्म की प्रजातियां हैं। इनमें से अढ़ाई हजार किस्म के पौधों को किसान फसलों के रूप में जानते हैं । 
 पाठशाला के आरंभ में कीट बही खाता तैयार करने के लिए फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान। 
डा. सैनी ने कहा कि फिजिक्स का नियम कहता है कि पृथ्वी पर जो वस्तु पैदा हुई है, वह कभी भी खत्म नहीं होती।  वह तो बस समय-समय पर अपना आकार बदलती रहता है। पृथ्वी में ऐसे सुक्ष्म जीवाणु हैं जो मृत जीव या बेकार की वस्तु को दोबारा से तोडफ़ोड़कर उसकी वास्तविक स्थिति में बदल देते हैं। प्रकृति अपने नियमानुसार ही किसी जीव को पैदा और नष्ट करती है। इसलिए हमें प्रकृति के साथ ज्यादा छेड़छाड़ करने की जरुरत नहीं है।उन्होंने कहा कि किसान भय व भ्रम के जाल में फंसकर कीटों को मारने में लगे हुए हैं, जबकि सच्चाई यह है कि कीड़ों को मारने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीड़ों को पहचानने और उनके क्रियाकलापों को समझने की। जो केवल कीट ज्ञान से संभव है। बिना कीट ज्ञान के किसान भय व भ्रम की स्थिति से बाहर नहीं निकल सकते। उन्होंने कहा कि एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमेरीका ने तो प्रकृति के साथ बढ़ती छेड़छाड़ को रोकने के लिए पौधों के साथ किसी भी प्रकार की छेडख़ानी करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। कीटाचार्य मनबीर रेढ़ू और रामदेवा ने बताया कि कीट इंसान से ज्यादा ताकतवर होते हैं। इसलिए वह अपने ऊपर आने वाली विपत्ति को पहले ही भांप लेते हैं और अपने वंश को बचाने के लिए अपना जीवन चक्र छोड़ा कर अपने अंड़े देने की क्षमता में वृद्धि कर लेते हैं। उन्होंने सफेद मक्खी का उदहारण देते हुए कहा कि सफेद मक्खी का जीवन काल 72 दिन का होता है और यह एक सप्ताह में 100 से 150 अंडे देती है लेकिन आपदा के समय सफेद मक्खी अपने जीवनकाल को छोटा कर 21 दिन का कर लेती है। 

 पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते कृषि अधिकारी तथा मौजूद किसान।





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