शनिवार, 28 जुलाई 2012

आखरी सांस तक जारी रखेंगी लड़ाई


 नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट चाहे शाकाहारी हों या मासाहारी दोनों ही किस्म के कीटों ने कीट मित्र महिलाओं के साथ दोस्ती कर ली है। जैसे ही महिलाएं महिला किसान पाठशाला में पहुंचती हैं, वैसे ही कीट महिलाओं के पास आकर  बैठ जाते हैं। बुधवार को ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पूनम मलिक के खेत पर जैसे ही महिलाओं का आगम शुरू हुआ, वैसे ही कीटों ने भी पाठशाला में दस्तक दे दी। पाठशाला शुरू होने से पहले ही सुमित्रा के हाथ पर कातिल बुगड़ा तथा सुषमा के हाथ पर मटकु बुगड़ा आकर बैठ गया। पाठशाला का आरंभ खाप पंचायतों के संचालक कुलदीप ढांडा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मृत्यु पर दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर की। ढांडा ने बताया कि कैप्टन लक्ष्मी सहगल नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रानी झांसी रेजिमेंट की कैप्टन थी और इन्होंने देश की आजादी के बाद गरीबों के इलाज का बीड़ा उठाया था। उन्होंने बताया कि सहगल ने मृत्यु के तीन दिन पहले तक कानपुर में मरीजों का इलाज किया था। अंग्रेजो ने कहा कि देश को जहर से बचाने के लिए छेड़ी गई इस लड़ाई को वे आखरी सांस तक जारी रखेंगी और यही कैप्टन लक्ष्मी सहगल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसके बाद महिलाओं ने कपास के खेत में कीटों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में पाया कि कोई भी कीट पूनम मलिक के कपास के इस खेत में अगले एक सप्ताह हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। सुमित्रा  ने बताया कि कातिल बुगड़ा अपने बराबर व अपने से छोटे आकार के कीटों का खून पीकर अपनी वंशवृद्धि करता है। कातिल बुगड़ा शिकार को पकड़े ही उसका कत्ल कर देता है। सुषमा ने बताया कि मटकु बुगड़ा कपास में पाए जाने वाले लाल बनिए का खून पीकर अपना गुजारा करता है। सुषमा ने बताया कि अभी कपास में एकाध ही लाल बनिया आया है, लेकिन लाल बनिए की दस्तक के साथ ही मटकु बुगड़े ने भी कपास में दस्तक दे दी है। गीता ने कपास की फसल में फलेरी बुगड़े के बच्चे व प्रौढ़ देखा। शीला ने सर्वेक्षण के दौरान डायन मक्खी तथा सविता ने गोब की चितकबरी सुंडी के प्रौढ़ को पकड़ा।

कीटों को राखी बांध कर मनाएंगे रक्षाबंधन का पर्व

महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने बताया कि वे रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को पौंची (राखी) बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाएंगी। रक्षा बंधन पर भाई बहन से राखी बंधवाता है और बहन की रक्षा की सौगंध लेता है, लेकिन इस बार वे कीटों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेंगी। ताकि उनके बच्चों व उनके भाइयों की थाली जहर मुक्त हो सके। 

अनावरण यात्रा के लिए दिल्ली जाएंगी महिलाएं

सर्वेक्षण के बाद कीट बही-खाते की रिपोर्ट तैयार करवाती महिला।
कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कृषि विभाग की तरफ से महिलाओं को 27 जुलाई को दिल्ली में लगने वाले कृषि मेले की अनावरण यात्रा पर ले जाया जाएगा। ताकि कृषि मेले में महिलाएं ज्ञान प्राप्त कर सकें और इन महिलाओं में कृषि के प्रति और रुचि पैदा हो।


....खेलों के क्षेत्र में छात्राओं को तरासने की कवायद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पढ़ाई के साथ-साथ लड़कियों को खेल के क्षेत्र में और आगे बढने के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा एक नई पहल शुरू की गई है। इस पहल के अनुसार एसएसए पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं के लिए खेलकूद प्रतियोगिताएं व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाएगा। प्रतियोगिता को दो ग्रुपों में बांटा जाएगा। पहले ग्रुप में पहली से पांचवीं तथा दूसरे ग्रुप में छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राओं को शामिल किया जाएगा। इसके लिए एसएसए ने जिले को दो भागों में बांटा है। पहले ग्रुप में शैक्षणिक रुप से पिछड़े तथा दूसरे ग्रुप में सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। प्रदेश में इस वर्ष से पहली बार इन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान द्वारा छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ाने के लिए छात्राओं के लिए खेलकूद व सहपाठयक्रम गतिविधियों का आयोजन करवाया जाएगा। इन गतिविधियों में पहली से आठवीं तक की छात्राएं ही भाग ले सकेंगी। प्रतियोगिताओं की शुरूआत खंड स्तर से होगी। खंड स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली छात्राएं जिला स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेंगी। इसके बाद जिला स्तर पर प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्राएं राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकेंगी। एसएसए ने इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए जिले को दो भागों में बांटा है। एक भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। जिले के सातों खंडों में अलग-अलग तिथि को प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाया जाएगा। ताकि एसएसए के अधिकारी स्वयं इन प्रतियोगिताओं में मौजूद होकर इन प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन करवा सकें। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य पढ़ाई के साथ-साथ छात्राओं को खेलकूद के क्षेत्र में मजबूत करना है। ताकि नींव की शुरूआत से ही छात्राओं में खेलकूद के प्रति रुचि पैदा हो और ये आगे चलकर खेलों के क्षेत्र में प्रदेश व देश का नाम रोशन कर सकें। प्रतियोगिताओं में भाग लेने आने वाली छात्राओं को आने-जाने का खर्च व रिफरेशमेंट का प्रबंध भी एसएसए द्वारा किया जाएगा।
यहां होगी प्रतियोगिता
एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना को अमलीजामा पहनाने का कार्य शुरू हो चुका है। खंड स्तर पर ये प्रतियोगिताएं शुरू हो चुकी हैं। जिला स्तर पर इन प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए एसएसए ने तिथि निर्धारित कर दी है। 27 जुलाई को जींद पुलिस लाइन में जींद, जुलाना, पिल्लूखेड़ा, सफीदों खंडों के खिलाडि़यों के लिए तथा 28 जुलाई को नरवाना के नवदीप स्टेडियम में नरवाना, उचाना, अलेवा के खिलाडि़यों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।

ये होंगे खेल

एसएसए द्वारा शुरू की गई इन खेलकूद प्रतियोगिताओं के प्राथमिक स्तर पर 100 व 200 मीटर दौड़, 4 गुणा 100 रीले दौड़, बैडमिंटन खेल आयोजित होंगे, जबकि मध्य स्तर पर प्रतियोगिता में 400 व 1500 मीटर दौड़ए 4 गुणा 400 मीटर रीले दौड़, शतरंज, कबड्डी, लंबी कूद व ऊंची कूद खेल करवाए जाएंगे। प्राथमिक स्तर में पहली से पांचवीं तथा मध्य स्तर पर छठी से आठवीं कक्षा तक की छात्राएं भाग लेंगी।

जिले को बांटा गया है दो भागों में।

एसएसए ने अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए जिले को खंडों के आधार पर दो भागों में बांटा है। पहले भाग में शैक्षणिक रूप से पिछड़े तथा दूसरे भाग में शैक्षणिक रूप से सामान्य खंडों को शामिल किया गया है। शैक्षणिक रूप से पिछड़े खंडों में नरवाना, उचाना, अलेवा को शामिल किया गया है। सामान्य खंडों में जींद, सफीदों, पिल्लूखेड़ा, जुलाना को शामिल किया गया है।

छात्राओं में बढ़ेगा आत्मविश्वास

लड़कियों में खेलों के प्रति रुचि पैदा करने के लिए एसएसए द्वारा यह योजना तैयार की गई है। अधिक से अधिक छात्राओं को इन गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने से छात्राओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा उनके अंदर छिपी प्रतिभा निखर कर सामने आएगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियाजना अधिकारी
एसएसए, जींद

कीटों-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधि

कहा कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र

नरेंद्र कुंडू   
जींद। ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ अर्थात कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र है। यह बात कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों के सामने कीटों की पैरवी करते हुए रखी। पिछले कई दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने के लिए खाप पंचायत की अदालत में आए मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधि किसान पाठशाला में पहुंचे थे। खाप पंचायत की तरफ से आए सफीदों बारहा प्रधान रणबीर देशवाल, किनाना बाराह के प्रधान दरिया सिंह सैनी, हाट बारहा के प्रधान दयारनंद बूरा व हटकेश्वर धाम कमेटी के प्रधान बलवान सिंह बूरा ने कीट कमांडो किसानों के साथ खेत में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा सीखने के लिए प्रयास किए। पाठशाला में किसानों ने 6 ग्रुप बनाकर कीटों का सर्वेक्षण किया। खाप प्रतिनिधियों ने कीट सर्वेक्षण में पाया कि कपास के इस खेत में रस पीकर गुजारा करने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा हानि पहुंचाने की स्थिति से काफी नीचे हैं। दर्जनभर गांवों से आए किसानों ने भी अपने-अपने खेतों से तैयार की कीट सर्वेक्षण रिपोर्ट को पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कीट हानि पहुंचाने की स्थिति से दूर नजर आए। खेत अवलोकन के दर्शय प्रस्तुत करते हुए किसान संदीप ने बताया कि उनके ग्रुप ने मकड़ी द्वारा सलेटी भूड को खाते देख। रोशन मुनिम ने बताया कि इनके गु्रप ने क्राइसोपा के बच्चों को लेडी बिटल का गर्भ खाते देखा। इस दौरान उन्हें फसल में फलेरी बुगड़ा व हथजोड़ा कीट भी  देखे। लोहिया व जोगेंद्र ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान उन्हें मकोड़े को सलेटी भूड का काम तमाम करते हुए देखा। इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप ने डायन मक्खी, लोपा मक्खी, दीदड़ बुगड़ा के बच्चे, कातिल बुगड़ा, सिंगु बुगड़ा आदि मासाहारी कीडे देखे। चतर सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए महाबीर व सुरेश ने कहा कि कपास की फसल में 6 किस्म की मासाहारी मकड़ी उन्होंने देखी हैं। सर्वेक्षण के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उस रिपोर्ट को देखते हुए अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कहा कि कपास के इस खेत में तो मासाहारी कीटों के लिए दो दिन का भी भेजन नहीं है। किसान अजीत ने बताया कि डायन मक्खी पौधे के पत्ते को मचाम (ज्योंडे) के रुप में इस्तेमाल करती है और वहीं पर बैठकर कीटों पर घात लगाती है। डायन मक्खी शिकार को पकड़ कर लुंज करने के लिए उसके शरीर में जहर छोड़ती है और उसके बाद अपने ठिकाने पर ले जाकर उसका भक्षण करती है। कातिल बुगड़ा शिकार को  पहले कत्ल करता है उसके बाद उसके मास को तरल कर उसको चूसता है। किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खुशी की बात तो यह है कि पाठशाला में ट्रेनिंग ले रहे किसानों को अभी तक फसल में स्प्रे के इस्तेमाल की जरुरत नहीं पड़ी। रणबीर मलिक ने बताया कि 2008 से वह इस मुहिम से जुड़ा हुआ है और इस दौरान उसने कभी भी स्प्रे नहीं किया है। वह पिछले दो सालों से देसी कपास की खेती ले रहा है। कपास की बिजाई के लिए बाजार से बीज खरीदने की बजाए कपास की लुढ़वाई करवाकर घर पर ही कपास का बीज तैयार कर देसी कपास की बिजाई करता है। इगराह के किसान मनबीर रेढू ने कहा कि उसने पिछले चार साल से एक बार भी अपनी फसल में स्प्रे का प्रयोग नहीं किया है। रमेश व रामदेवा ने बताया कि उन्होंने तीन साल से स्प्रे का प्रयोग
किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते किसान।
पूरी तरह से बंद कर रखा है। जयभगवान ने बताया कि उसने पिछले दो वर्षों से एक बार भी स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया है। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि हमारी तो सिर्फ 36 बिरादरी ही हैं, लेकिन कीटों की तो 10 लाख किस्में हैं, तीस लाख किस्म के जीवाणु हैं। अगर खुदा ना खास्ता इस पृथ्वी से ये जीव लुप्त हो जाएं तो मानव समाज अपने बलबुते तो दो साल भी  जीवित नहीं रह सकता। ढांडा ने कहा कि 30 अक्टूबर को 18वीं पंचायत होगी और इस पंचायत के बाद खाप प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर नवंबर माह में 19वीं पंचायत के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। इस पंचायत में पूरे प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि भाग लेंगे तथा दशकों से चले आ रहे इस विवाद को निपटाने के लिए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे। किसान पाठशाला के किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर सम्मानित किया।
अपने मचाम बना कर शिकार के इंतजार में बैठी डायन मक्खी।


रविवार, 22 जुलाई 2012

दूसरी फसल के कीटों ने भी दी महिला किसान पाठशाला में दस्तक



नरेंद्र कुंडू
जींद। नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही मास्टर ट्रेनर महिला किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं होंगे तो सुंडी नहीं
नए किस्म की लोपा मक्खी
आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी  फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं। कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट
फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो।
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।

किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें

किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
 किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है। अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है।






चौधरियों ने गहनता से किया ‘किसान-कीट’ मुकदमे का अध्ययन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवानों व किसानों को मजबूत करने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। लेकिन आज चंद स्वार्थी लोगों की मुनाफे की चाह में उनके इस नारे की चमक फीकी पड़ रही है। हम भगवान विष्णु को देश का पालनहार मानते हैं, लेकिन वास्तव में पालनहार का फर्ज तो किसान अदा करता है जो अपने पसीने से धरती को सींचता है और धरती का सीना चीर कर देश के लिए अन्न पैदा करता है। शरहद पर जो जवान खड़े हैं वो भी किसान के ही बेटे हैं। लेकिन बढ़ते रासायनिकों के प्रयोग के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है और देश का पालनहार अपना ही पालन-पोषण ढंग से नहीं कर पा रहा है। यह बात देशवाल खाप के प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान खाप पंचायत की तरफ से आए खाप प्रतिनिधियों ने कीट मित्र किसानों के साथ बैठकर कीटों व किसानों के इस मुकदमे का गहन अध्ययन किया। इस अवसर पर उनके साथ नंदगढ़ बारहा के प्रधान होशियार सिंह दलाल भी मौजूद थे। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कीटों को मारने की जरुरत नहीं है अगर जरुरत है तो कीटों को पहचानने की, कीटों को समझने की व कीटों को परखने की। सबसे पहले किसान को कीटों की पहचान होना जरुरी है। कीट की पहचान के साथ ही किसान को यह पता होना चाहिए कि कीट उसके खेत में क्या करते हैं। उन्होंने कहा कि खेत में पाई जाने वाली लेडी बिटल को स्कूली बच्चे फैल-पास के नाम से जानते हैं। डा. दलाल ने कहा कि अगर चूरड़ा रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाता है तो माइटल कीट को खाकर फसल को नुकसान से बचाता भी है। उन्होंने बताया कि देश में 221 किस्म की पेस्टीसाइड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें से 53 पेस्टीसाइडों को कैंसर की जननी घोषित किया जा चुका है। किसान मनबीर रेढू ने बताया कि कातिल बुगड़ा पहले कीट का कत्ल करता है उसके बाद उसका खून चूसता है। दीदड़ बुगड़ा मात्र 30 सैकेंड में मिलीबग का काम तमाम कर देता है। सिंगु बुगड़े के दोनों कंधों पर सिंग होते हैं और यह भी कीट का खून चूसकर गुजारा करता है। बिंदू बुगड़े के कंधों पर बिंदू होते हैं और यह रक्त चूसकर अपनी वंशवृद्धि करता है। रेढू ने देसी कपास व घर पर लुढ़वा कर बोई गई बीटी के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। इसी दौरान निडानी के किसान जयभगवान ने किसानों को अंड़े में से सिंगु बुगड़े के बच्चे निकलते तथा डाकू बुगड़े के बच्चों द्वारा चूरड़े को खाते हुए दिखाया। ईगराह, अलेवा, खरकरामजी, ललीतखेड़ा, निडाना, इंटलकलां व निडानी से आए किसानों ने मासाहारी व शाकाहारी कीटों का अलग-अलग बही खाता तैयार किया। जिसके अनुसार कपास की फसल 100 दिन की होने के बावजूद भी स्प्रे के प्रयोग की कोई जरुरत नजर नहीं आई। बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने बताया कि  कीटों की हड्डियां बाहर व मास अंदर होता है। कीटों में रक्त का संचार इंसान की तरह नलियों में नहीं खुले में होता है और कीट का खून हवा के संपर्क में आने के बाद भी नहीं जमता। अंडे से पर्याप्त भेजन न मिलने के कारण कीट का बच्चा विकसित होने के लिए बाहर आता है। पाठशाला में रुस्तम ऐ हिंद पहलवान दारा सिंह व किसान सुनील के के पिता के निधन पर दो मिनट का मौन धारण कर शोक प्रकट किया। इस अवसर पर गांव भैणी सुरजन (महम) से भी कुछ किसान कीट ज्ञान प्राप्त करने के लिए पाठशाला में पहुंचे।

नया प्रयोग किया शुरू

 खेत पाठशाला में बही खाता तैयार करते किसान।

कपास के पौधे से बोकियां तोड़ते खाप प्रतिनिधि।

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि कपास की फसल में बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है। पौधे पर क्षमता से ज्यादा बोकी आ जाती हैं तो पौधा कुछ बोकियों को गिरा देता है। अगर शाकाहारी कीट कुछ बोकियों को खा लेता है तो पैदावार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस बात को पुख्ता करने के लिए तीन पौधों को प्रयोग के लिए चुना गया। इन पौधों पर नौ व दस बोकियां मिली। जिनमें से प्रत्येक पौधे से दो या तीन बोकियां खाप प्रतिनिधियों ने अपने हाथों से तोड़कर गिरा दी।



अब जरुरतमंदों को ही मिलेगा हथियार चलाने का प्रशिक्षण


बदमाशों का निशाना बने लोगों को दी जाएगी प्रशिक्षण में वरीयता

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लंबे अर्से के बाद जिले में हथियार प्रशिक्षण की शुरूआत होने जा रही है। एक वर्ष की कड़ी मशक्कत के बाद होमगार्ड विभाग को कुछ कारतूस मिल पाए हैं। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन व होमगार्ड विभाग ने विशेष व्यक्तियों को ही हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार अभी सिर्फ उन्हीं लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी जो बदमाशों का निशाना बने हैं या निशाने पर हैं, ताकि ये लोग ट्रेनिंग लेकर अपना आर्म्ज लाइसेंस बनवाकर हथियार खरीद कर अपनी सुरक्षा खुद कर सकें। फिलहाल होमगार्ड विभाग को सिर्फ 40 लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए एमिनेशन मिल पाया है।
जिले में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में पिछले एक वर्ष से कारतूसों की कमी के चलते होमगार्ड की ट्रेनिंग नहीं हो पा रही थी। ट्रेनिंग बंद होने के कारण आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के इच्छु आवेदकों में मायूसी छाई हुई थी। हथियारों का प्रशिक्षण न मिलने के कारण जरुतमंद लोग भी लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे थे। दरअसल लाइसेंस बनवाने के लिए प्रक्रिया शुरू करने की पहली सीढ़ी होमगार्ड में हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। बिना होमगार्ड या एनसीसी के प्रमाण पत्र के आर्म्ज लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। लेकिन होमगार्ड विभाग के पास कारतूस उपलब्ध न होने के कारण सारी प्रक्रिया बंद पड़ी थी। जिले में बढ़ते आपराधिक ग्राफ व लोगों के दबाव को देखते हुए जिला प्रशासन ने होमगार्ड मुख्यालय से कारतूसों की डिमांड की थी। जिसके बाद होमगार्ड मुख्यालय द्वारा ट्रेनिंग शुरू करवाने के लिए कारतूस मुहैया करवाए गए। फिलहाल होमगार्ड मुख्यालय द्वारा सिर्फ 40 लोगों को ही ट्रेनिंग देने के लिए कारतूस उपलब्ध करवाए गए हैं। एमिनेशन की कमी को देखते हुए फिलहाल जिला प्रशासन व गृहरक्षी विभाग के जिला कमांडेंट ने जरुरतमंद लोगों को ही ट्रेनिंग देने की योजना तैयार की है। जिला प्रशासन द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार सिर्फ ऐसे लोगों को ही प्रशिक्षण में प्राथमिकता दी जाएगी जो बदमाशों के निशाने पर आ चुके हैं या फिर जिन पर बदमाशों का निशाना टिका हुआ है। गृहरक्षी विभाग द्वारा ट्रेनिंग के लिए उन्हीं आवेदकों को दाखिला दिया जाएगा, जिन्हें पुलिस प्रशासन की तरफ से मंजूरी दी जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य जरुरतमंदों को लाइसेंस उपलब्ध करवाना है, ताकि जरुरतमंद व्यक्ति अपना स्वयं का हथियार खरीदकर अपनी सुरक्षा कर सकें।

हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर लगेगा अंकुश

जिले के युवाओं में हथियारों के प्रति काफी क्रेज बढ़ रहा है। लाइसेंस बनवाने की होड़ में युवाओं में मारामारी रहती है। पुलिस प्रशासन व होमगार्ड विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना के बाद हथियारों के प्रति युवाओं में बढ़ रहे क्रेज पर भी अंकुश लगेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से दिखावे या शौक के लिए लाइसेंस बनवाने वाले युवाओं पर अब नकेल कसी जा सकेगी।

जरुरतमंदों को दी जाएगी प्राथमिकता

 जिला कमांडेंट बीरबल कुंडू का फोटो।
कारतूसों की कमी के कारण एक वर्ष से प्रशिक्षण का कार्य बंद था। मुख्यालय की तरफ से अभी 40 व्यक्तियों की ट्रेनिंग के लिए एमिनेशन उपलब्ध करवाय गया है। कारतूसों की कमी को देखते हुए जिला प्रशासन ने विभाग से ऐसे लोगों को ही ट्रेनिंग में प्राथमिकता देने की मांग की थी जो बदमाशों के निशाने पर हैं। इसलिए इस ट्रेनिंग में उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी गई है, जिन्हें इसकी जरुरत है। उन्होंने विभाग से ओर एमिनेशन की मांग की है। ताकि बचे हुए आवेदकों को भी प्रशिक्षण दिया जा सके।
बीरबल कुंडू, जिला कमांडेंट
गृहरक्षी विभाग, जींद 

आईटी विलेज के इतिहास में जुड़ा एक ओर नया अध्याय

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ बिगुल बजाकर पंचायत ने शुरू की नई पहल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
आईटी विलेज बीबीपुर के इतिहास में शनिवार को एक ओर अध्याय जुड़ गया। ग्राम पंचायत ने सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के नेतृत्व में कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति के विरोध में बिगुल बजा दिया। गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हुई इस महापंचायत में हरियाणा के अलावा दूसरे प्रदेशों से आए खाप चौधरियों ने खुलकर कन्या भ्रूण हत्या को विरोध किया। खाप चौधरी के अलावा महिला खाप प्रतिनिधि व अन्य सामाजिक संगठनों से आई महिला अधिकारी भी इस सामाजिक बुराई के विरोध में जमकर बरसी। बीबीपुर पंचायत ने महापंचायत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में यह लड़ाई शुरू कर 2004 में खाप पंचायतों द्वारा शुरू किये गए अभियान को गति प्रदान कर दी है। इस महापंचायत के फैसले को सुनने के लिए आस-पास के लोगों के अलावा दूर-दूर से शोधार्थी, शिक्षाविद व सामाजिक संगठनों के लोग भी आए हुए थे। इस महापंचायत के फैसले पर प्रदेश ही नहीं अपितू दूसरे प्रदेशों के लोगों की भी नजर टिकी हुई थी। लोगों को उम्मीद थी कि महापंचायत कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कोई नया फतवा जारी करेगी और बड़े-बडेÞ विवादों को चुटिकियों में सुलझाने वाली खाप पंचायतें शायद इस समस्या का भी कोई तोड़ निकाल कर दुनिया को नया रास्ता दिखाएंगी।

जागरुकता के अलावा नहीं नजर आया कोई रास्ता

खाप पंचायतों ने भले ही वर्षों पुराने विवादों का तोड़ ढुंढ़ कर दुनिया के सामने मिशाल कायम की हो, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए खाप चौधरियों को केवल जागरुकता के अलावा ओई कोई उपाय नहीं सुझा। लगातार पांच घंटे तक हुए गहन मंथन के बाद खाप प्रतिनिधि इसी फैसले पर पहुंचे कि अगर कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है तो इसके लिए उन्हें लोगों को जागरुक करना होगा। इसलिए महापंचायत में चौधरियों ने पूरे उत्तर भारत के लोगों को जागरुक करने का फैसला लिया और सभी खाप पंचायतों को अपने-अपने क्षेत्र में जागरुकता अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी।

पढ़े लिखे लोगों ने ही बोया कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई का बीज

महापंचायत में जितने भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे सभी के विचारों से एक बात तो साफ हो गई कि इस बुराई का बीज गांव के अनपढ़ लोगों ने नहीं बल्कि पढ़े लिखे शहरी बाबूओं ने बोया है। खाप प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि गांव के अनपढ़ लोगों को तो इस रास्तों का पता ही नहीं था। शहरी लोगों ने ही उन्हें यह रास्ता दिखाया है। इसलिए तो आज भी गांवों में एक-एक परिवार में कई-कई लड़कियां मिल जाती हैं, लेकिन शहर में 99 प्रतिशत परिवारों में एक लड़की के सिवाए दूसरी लड़की नहीं मिलती। इससे यह बात साफ है कि शहर के पढ़े लिखे लोग जिन्हें समाज की प्रगति की सीढ़ी कहा जाता है कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में आगे हैं।

लेडिज फर्स्ट

महापंचायत में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। महापंचायत की कार्रवाई राजकीय कॉलेज की लेक्चरार सुप्रिया ढांडा द्वारा ‘कोर्ट मै एक कसूता मुकदमा आया, एक सिपाही कुत्ते नै बांध कै लाया’ कविता के साथ शुरू हुई। इसके साथ ही गांव की महिलाएं हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार गीत गाती व नाचती हुई स्कूल में पहुंची। इसके बाद सरपंच सुनील जागलान की बहन रीतू जागलान द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियों ने ‘बेटी है अनमोल’ नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष किया। नाटक में लड़कियों ने ‘चाहे मुझको प्यार न देना चाहे मुझको दुलार ने देना, करना बस इतना काम मुझको गर्भ में न देना मार’ गीत प्रस्तुत कर पंचायत में मौजूद लोगों को भावुक कर दिया।

बेटी पर खर्च होता है प्रोपार्टी का केवल दस प्रतिशत हिस्सा

 महापंचायत में पहुंचने के बाद हरियाणवी रीति-रिवाज के अनुसार नृत्य करती महिलाएं।

 कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में नाटक प्रस्तुत करती लड़कियां।

 पंचायत की कार्रवाई शुरू होने से पहले कविता प्रस्तुत करती सुप्रिया ढांडा।
महिला प्रधान डा. संतोष दहिया ने कहा कि उन्होंनें कन्या भ्रूण हत्या पर काफी शोध किया है और वे लोगों को जागरुक करने के लिए 35 हजार हस्ताक्षर भी करवा चुकी हैं। इस दौरान महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या करवाने का मुख्य कारण यह सामने आया है कि महिलाएं समझती हैं कि जो दुख उन्होंने सहन किए हैं, वे दुख उनकी बेटी का न सहन करना पड़े इसलिए वे कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कार्य में संलिप्त होती हैं। दहिया ने बताया कि आज महिलाएं घर व बाहर कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत महिलाएं अपनी जमीन अपने भाई के नाम कर देती हैं। लेकिन क्या कभी कोई ऐसा भाई देखा है जिसने अपनी जमीन अपनी बहन या दूसरे भाई के नाम की हो। दहिया ने कहा कि प्रत्येक बाप अपनी प्रोपार्टी का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही बेटी पर खर्च करता है।



कन्या भ्रूण हत्या पर खापों ने सुनाया फतवा

कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों पर दर्ज हो 302 का मुकदमा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आईटी विलेज बीबीपुर में शनिवार को उत्तर भारत की सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा के अलावा दिल्ली व उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने शिरकत की। महापंचायत की अध्यक्षता नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये व कार्यकारी चंद्रभान नंबरदार ने संयुक्त रुप से की। पंचायत में विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने-अपने विचार प्रकट किए तथा इस सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए पांच घंटों तक गहन मंथन किया। सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत का फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। इस महापंचायत की सबसे खास बात यह रही कि इसमें महिलाओं को भी पुरुषों के साथ मंच पर बैठने के लिए बराबर स्थान दिया गया।
आईटी विलेज बीबीपुर में 18 जून को पहली महिला ग्रामसभा का आयोजन कर महिलाओं द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रस्ताव डाल कर सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत बुलाने की मांग की थी। जिसके तहत शनिवार को गांव में सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में हरियाणा, दिल्ली व उत्तर प्रदेश की विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया था इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए अपने-अपने विचार पंचायत के समक्ष रखे। इस महापंचायत में पुरुषों के साथ-साथ महिला प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने सुझाव खाप चौधरियों के सामने रखे। पंचायत के दौरान सभी खाप प्रतिनिधियों ने इस मसले को हल करने के लिए गहन मंथन किया। सभी प्रतिनिधियों के विचार सुनने के बाद इस मामले में ठोस निर्णय लेने के लिए एक 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। लेकिन सभी खाप प्रतिनिधियों ने पंचायत द्वारा मंच पर ही किए गए फैसले को अपना समर्थन देकर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पास करवाने की मांग की। सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने महापंचायत द्वारा लिया गया फैसला सुनाते हुए कहा कि महापंचायत उत्तर भारत के लोगों को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का आह्वान करेगी। सभी खाप पंचायतें अपने-अपने क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जागरुकता अभियान चलाएंगी तथा कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों के साथ सख्ती से निपटेंगी। इसके अलावा सरकार से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए अधिनियम में संसोधन करवाने की मांग करते हुए कन्या भ्रूण हत्या में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज कर सख्त से सख्त कार्रवाई करवाने का प्रस्ताव पास किया गया। महापंचायत में मौजूद सभी प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर कन्या भ्रूण हत्या न करने की शपथ ली। इस अवसर पर पंचायत में 103 वर्षीय वयोवृद्ध समाजसेवी उदय सिंह मान, बाल्याण खाप के प्रधान राकेश टिकैत, भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर, रामकरण सोलंकी प्रधान पालम 360 खाप दिल्ली, नौगामा खाप प्रधान कुलदीप रामराये, चंद्रभान नंबरदार, देशवाल खाप प्रतिनिधि रामचंद्र देशवाल, कंडेला खाप प्रधान टेकराम कंडेला, राव मान सिंह, सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की महिला अध्यक्ष डा. संतोष दहिया केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय से उमा अय्यर, मानवाधिकार आयोग के प्रदेशाध्यक्ष मनोज दहिया, सहित अन्य खाप प्रतिनिधि मौजूद थे।

दारा सिंह को दी श्रद्धांजलि

महापंचायत में मौजूद सभी खाप प्रतिनिधियों ने रुस्तम ऐ हिंद व हिंदी सिनेमा के महानायक दारा सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया। पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व अन्य लोगों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण कर स्व. दारा सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। कुलदीप ढांडा ने कहा कि दारा सिंह की मृत्यु से देश को गहरा आघात पहुंचा है।
पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधि।

पंचायत में मौजूद महिलाएं।

पंचायत में मंच पर बैठे खाप प्रतिनिधि।



सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौत के साये में सफर करने को मजबूर हैं नौनिहाल

बड़े हादसे को अंजाम दे सकती है जरा सी लापरवाही

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नौनिहालों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। विगत जनवरी माह में अम्बाला में हुए भयंकर स्कूल बस हादसे से भी शायद जिला प्रशासन व स्कूल संचालकों ने कोई सबक नहीं लिया है। जिला प्रशासन, पुलिस व स्कूल संचालक इस हादसे को पूरी तरह से भूला चुके हैं। अम्बाला हादसे के कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन अब फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौट आया है। स्कूल बसों व आटो का वही खतरनाक मंजर फिर से शुरू हो गया है। स्कूली वाहनों में बच्चों को बेतरतीब व खचाखच भरा जाता है। आटो व रिक्शाओं में तो बच्चे लटक कर सफर करने पर मजबूर हैं। स्कूली बस व आटो चालक खुलेआम ट्रेफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और इसकी परवाह  न तो पुलिस प्रशासन को है और न ही स्कूल संचालकों को। लगता है जिला प्रशासन व स्कूल संचालक फिर से किसी बड़े हादसे के इंतजार में हैं।
ट्रैफिक पुलिस जिले में ट्रैफिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुरस्त करने की बड़ी-बड़ी ढींगें हांक रही है। लेकिन दूसरी ओर शहर की सड़कों पर हर रोज स्कूल वाहन चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ट्रैफिक पुलिस, स्कूल संचालकों व वाहन चालकों की लापरवाही के चलते हर रोज हजारों बच्चों को घर से स्कूल तक का सफर मौत के साये में तय करना पड़ रहा है। पुलिस प्रशासन की यह लापरवाही कभी भी अभिभावकों पर भारी पड़ सकती है। विगत 2 जनवरी को साहा (अम्बाला) में स्कूल वाहन हादसे में 13 बच्चों की मौत के बाद कुछ दिन प्रशासन चौकस रहा तथा स्कूलों ने भी  इस ओर गंभीरता दिखाई, सख्ती भी  हुई, व्यवस्था में कुछ सुधार भी होता दिखा। लेकिन फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौटता दिख रहा है। प्रशासन सो चुका है और स्कूल प्रबंधन ढीले पड़ गए हैं। ऐसे में बच्चों की जान की किसी को परवाह नहीं है। प्रशासन की आंखों के सामने फिर से स्कूली बच्चों की जान से खिलवाड़ एक बार फिर शुरू हो चुका है। ट्रैफिक पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन सड़कों पर स्कूली बसों, आटो और प्राइवेट वाहनों में सामान की तरह ठूंसे गए बच्चे खतरनाक तस्वीर को पेश करते हैं। स्कूल वाहन चालकों की लापरवाही को देखकर ऐसा लगता है जैसी जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर किसी हादसे के बाद ही खुलेगी। ‘आज समाज’ की टीम ने जब कई स्कूलों के वाहनों को चेक किया तो प्राइवेट स्कूलों की छुट्टी के समय अधिकांश स्कूली बसों के ड्राइवर नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए सड़कों पर दौड़ते नजर आए। सबसे गंभीर स्थिति आटो में सवार बच्चों की थी। सामान्यत तीन से चार की क्षमता वाले आटो में फिर से 10 से 15 बच्चों को भरकर ले जा रहे हैं। इन पर न तो ट्रेफिक पुलिस की नजर इन पर पड़ रही है और न ही प्रशासन इस संबंध में कोई कार्रवाई कर रहा है। स्कूल संचालक भी  वाहन चालकों की लापरवाही की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। पुलिस भले ही कानूनी कार्रवाई की बात कहे, लेकिन हर रोज सड़कों पर स्कूली बसों, आॅटो और प्राइवेट वाहनों में बच्चों को बुरी तरह से सामान की तरह ठुंस-ठुंस कर भरकर ले जाते देखा जा सकता है। स्कूल वाहन चालकों की यह तस्वीर देखकर ऐसा लगता है जैसे जिला पुलिस और प्रशासन की नींद फिर से किसी बड़े हादसे के बाद ही खुलेगी।

की जाएगी सख्त कार्रवाई

स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चों को आॅटो में भरकर ले जाता आटो चालक।
ट्रेफिक नियमों की अवहेलाना करने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा। ट्रेफिक पुलिस की टीम गठित कर पूरे शहर में अभियान चलाए जाएंगे। स्कूलों में जाकर वाहन चालकों को भी ट्रेफिक नियमों का पालन करने के लिए जागरुक किया जाएगा। पहले वाहन चालकों को अभियान चलाकर जागरुक किया जाएगा। अगर फिर भी वाहन चालक नियमों की अवहेलना करते पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सज्जन सिंह
ट्रेफिक इंचार्ज, जींद


गुरुवार, 12 जुलाई 2012

महापंचायत में ‘नायक’ की भूमिका निभाएंगी खाप पंचायतें

खापों की छवि पर लगे तालिबानी के दाग को धोने के लिए उठाया कदम

नरेंद्र कुंडू  
जींद। तुगलकी फरमान जारी करने तथा तालिबानी के नाम से जानी जाने वाली उत्तर भारत की खाप पंचायतें अब कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ मोर्चा खोलकर दुनिया को अपना सामाजिक चेहरा दिखाएंगी। इसके लिए 14 जुलाई को बीबीपुर गांव के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में एक सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है। इस महापंचायत में पूरे उत्तर भारत की तमाम खापों के चौधरी भाग लेंगे तथा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सर्व सम्मति से फैसला कर अपना फतवा जारी करेंगे। इस मुहिम से जुड़ने के बाद जहां खाप पंचायतों का एक नया चेहरा दुनिया के सामने आएगा, वहीं खाप पंचायतें एक अलग इतिहास रच कर दूसरी खाप पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेंगी। खाप पंचायतों के अलावा गांव की महिलाएं भी इस महापंचायत में एक अहम रोल अदा करेंगी। जिन महिलाओं पर पंचायत में बोलने पर प्रतिबंध होता था, वही महिलाएं गीतों व नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर कटाक्ष कर चौधरियों से न्याय की गुहार लगाएंगी।    

उदय सिंह मान व राजराम मील ने भी स्वीकारा निमंत्रण

14 जुलाई को बीबीपुर गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में होने वाले सर्व खाप महापंचायत में 103 बसंत देख चुके रोहतक निवासी उदय सिंह मान भी शिरकत करेंगे। यह उदय सिंह मान और कोई नहीं बल्कि वही हैं, जो बंसीलाल सरकार में चंडीगढ़ को पंजाब में मिलाने की कोशिश के दौरान प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि के रूप में 47 दिन तक भूख हड़ताल पर बैठे थे। रोहतक निवासी उदय सिंह मान ने बीबीपुर गांव की पंचायत द्वारा 14 जुलाई के भेजे गए सर्व खाप महापंचायत के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 103 वर्षीय उदय सिंह मान अपने पोते राजीव मान के साथ महापंचायत में शिरकत करेंगे। वहीं महापंचायत में आने के लिए राजस्थान की जाट महासभा के प्रधान राजाराम मील ने भी हामी भर दी है। वह भी अपने प्रतिनिधियों के साथ 14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली महापंचायत में शिरकत करेंगे।

दो मिनट का ही मिलेगा समय

14 जुलाई को बीबीपुर गांव में होने वाली सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत में पूरे उत्तर भारत से 150 खाप प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। महापंचायत के आयोजन का मुख्य एजेंडा गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कोई ठोस निर्णय लेना है। सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि पंचायत में सभी प्रतिनिधियों को अपने विचार प्रकट करने के लिए सिर्फ दो मिनट का ही समय मिल पाएगा। महापंचायत में खाप पंचायत प्रतिनिधियों की संख्या को देखते हुए समय सीमा तय की गई है। ताकि सभी प्रतिनिधियों को पंचायत के सामने अपने विचार रखने का मौका मिल सके।

नाटक व गीतों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या पर करेंगी कटाक्ष

महापंचायत में खाप चौधरियों के सामने अपने विचार रखने के लिए गांव की महिलाएं तैयारियों में जुटी हुई हैं। महिलाओं को ट्रेंड करने के लिए सरपंच की बहन रीतू जागलान हर रोज महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग दे रही है। कन्या भ्रूण हत्या पर के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए महिलाओं ने एक लघु नाटक ‘कन्या है अनमोल’ तैयार किया है। नाटक में खुद रीतू जागलान एक जागरुक महिला की भूमिका निभाएंगी। नाटक के साथ-साथ इन महिलाओं ने ‘सुन कन्या की बात देख कै क्यूं रोया निर्भग जगत में आ लेनदे’ गीत भी तैयार किया है। इस गीत के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले लोगों पर कटाक्ष किया गया है। इस गीत को गांव की ही एक अनपढ़ महिला शीला ने खुद तैयार किया है। इसके अलावा महिलाओं ने ‘एक अजनमी बच्ची की पुकार’ कविता तथा डांस भी तैयार किया है। इस सारे कार्यक्रम के लिए रीतू जागलान 6 लड़कियों व 12 महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही है।

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे।  
 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पढ़ रहे कीटों की पढ़ाई

लड़ाई में दोनों पक्ष हो रहे हैं घायल 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है जब भी लड़ाइयां हुई हैं सिवाये विनाश के कुछ हाथ नहीं लगा है। इसलिए तो कहा जाता है कि लड़ाई का मुहं हमेशा काला ही होता है। अगर समय रहते किसानों व कीटों के बीच दशकों से चली आ रही इस लड़ाई को खत्म नहीं किया गया तो इसके परिणाम ओर भी गंभीर होंगे। जिसका खामियाजा हमारी आने वाली पुश्तों को भुगतना पड़ेगा। इस झगड़े को निपटाने का बीड़ा जो खाप पंचायतों ने उठाया है वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। लेकिन दशकों से चले आ रहे इस झगड़े को निपटाना इतना आसान काम नहीं है। यह एक बड़ा ही पेचीदा मसला है। इसलिए खाप पंचायत प्रतिनिधियों को इस विवाद को सुलझाने के लिए अपना फैसला देने से पहले इस विवाद की गहराई तक जाने तथा कीटों की भाषा सीखने की जरुरत पड़ेगी। ताकि पंचायत इस मसले को हल करते वक्त निष्पक्ष फैसला दे सकें। यह सुझाव कीट कमांडो किसान मनबीर रेढू ने मंगलवार को निडाना में खाप पंचायत में पहुंचे विभिन्न खाप पंचायत प्रतिनिधियों के सामने रखा। खाप पंचायत की तीसरी बैठक में अखिल भारतीय जाट महासभा  व मान खाप के प्रधान ओमप्रकाश मान, पूनिया खाप के प्रतिनिधि दलीप सिंह पूनिया, सांगवान खाप प्रतिनिधि कटार सिंह सांगवान, जाटू खाप चौरासी के प्रतिनिधि राजेश घनघस तथा सतरोल खाप प्रतिनिधि धूप सिंह खर्ब विशेष तौर पर मौजूद थे। पंचायत में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों ने कीटों की भाषा सीखने के लिए नरमा के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ गहन मंथन किया।
 पाठशाला में बही-खाता तैयार करते किसान।

पौधों के पत्ते काटते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि आज लोगों में जो खून की कमी के मामले सामने आ रहे हैं उसका मुख्य कारण हमारा खान-पान का जहरीला होना है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान पूरी तरह से जहरीला हो चुका है। अगर यही परिस्थितियां रही तो हमारी आने वाली पीढि़यों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। डा. दलाल ने कहा कि किसान कीटों को मारने के लिए जब कीटनाशकों का स्प्रे करता है तो उसका सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा ही कीटों पड़ता है, बाकी 99 प्रतिशत हिस्सा हवा, पानी व जमीन में घूल जाता है। कीटों के पत्ते खाने या रस चूसने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि फसल के उत्पादन बढ़ाने में तो कीटों की अहम भूमिका होती है। क्योंकि कीटों का परागरन में विशेष योगदान होता है। फसल के उत्पादन का मुख्य कारण खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होना है। डा. दलाल ने मासाहारी मक्खियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि दैत्य मक्खी उड़ते हुए कीटों को खाती है और अपने वजन से ज्यादा मास खाने वाली यह दुनिया की एकमात्र मक्खी है। हमारे किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से जानते हैं। तुलसा मक्खी चूरड़े, हरातेले को खाती है और जब इसे भोजन नहीं मिलता है तो यह खुद के वंश को भी खा जाती है। डायन मक्खी उंचाई पर बैठकर शिकार करती है तथा शिकार को लुंज कर उसका खून पीती है। सिरफोड़ मक्खी कीटों को उछाल-उछाल कर खाती है। इसके अलावा टिकड़ो मक्खी सुंडी पर अपने अंडे देती है तथा अंडों में से बच्चे निकलने के बाद टिकड़ो मक्खी के बच्चे सुंडी को अपना भोजन बनाते हैं। डा. कमल सैनी ने कहा कि इन 20 वर्षों में कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिंदुस्तान में लगभग 40 हजार करोड़ के कीट रसायनों, लगभग 50 हजार करोड़ के खरपतवार नाशकों तथा लगभग 30 हजार करोड़ बीमारी, फफुंद व जीवाणु नाशक रसायनों का कारोबार होता है। इस कारोबार से होने वाली आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों में जा रहा है। सैनी ने राजपुरा भेंण का उदहारण देते हुए कहा कि इस गांव के अड्डे पर कीटनाशक बिक्री की चार दुकानें हैं, जिनका साला का चार करोड़ का कारोबार है और इसमें से अकेले तीन करोड़ के कीटनाशक राजपुरा भेंण के किसान खरीदते हैं।

कैंसर के मरीजों पर जताई चिंता 

पाठशाला में पहुंचे किसानों ने बढ़ते कैंसर के मरीजों की संख्या पर चर्चा की। चाबरी निवासी सुरेश ने कहा कि उनके गांव में 8 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन चुके हैं। ललीतखेड़ा निवासी रामदेवा ने बताया उनके गांव में कैंसर के कारण एक परिवार की दो पीढि़यां खत्म हो चुकी हैं। लाडवा (हिसार) से आए एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 25, अलेवा निवासी जोगेंद्र ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के 10 लोग, निडानी में 9, ईगराह में 11 तथा सिवाहा निवासी एक किसान ने बताया कि उनके गांव में कैंसर के कारण 7 लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।

सवाल का निकाला तोड़

रणबीर मलिक ने गत सप्ताह पंचायत के सामने अपना सवाल रखा था कि पौधे रंग-बिरंगे फूलों से श्रंगार क्यों करते हैं। इन्हें श्रंगार की क्या आवश्यकता है। इस मंगलवार को हुई पंचायत में किसानों ने रणबीर मलिक के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पौधे कीटों को अपनी ओर आकृषित करने के लिए रंग-बिरंगे फूलों का श्रंगार करते हैं। अगर कीट फूल के पत्तों को खा लेते हैं तो उससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पत्तों का काम तो   केवल कीटों को आकर्षित करना है। कीट फसल में परागन की भूमिका निभाते हैं। इसलिए पौधे कीटों को आकर्षित करने के लिए फूलों का श्रंगार करते हैं।

जाट महासभा प्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान

दुसरे खाप प्रतिनिधिओं  को भी लांगे पाठशाला में 

आज 25 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण कैंसर है और कैंसर का कारण पेस्टीसाइड का बढ़ता प्रयोग है। खाप पंचायत के सामने निडाना के कीट मित्र किसानों ने इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पंचायत को इस झगड़े की गहराई तक जाकर कीटों की भाषा सीखने की जरुरत है। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधि बारी-बारी किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर इनकी भाषा सीख रहे हैं। अगली बार वे भिवानी से 84 श्योराण खाप व तोशाम से फौगाट खाप सहित 6 खापों के प्रतिनिधियों को यहां लेकर आएंगे।
ओमप्रकाश मान, प्रधान
अखिल भारतीय जाट महासभा






खुले पड़े मौत के बोरवेल

नरेंद्र कुंडू
जींद।
अभी हाल ही में गुड़गांव में बोरवले में फंसने के कारण हुई 5 वर्षीय माही की मौत ने भले ही हर किसी की आंखें खोल दी हों , लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी जिला प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। इससे यह बात साफ हो रही है कि जिला प्रशासन ने माही की मौत से भी कोई सबक नहीं लिया है। सरकार द्वारा खुले बोरवेलों को बंद करने के आदेशों के बाद  जिला प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। शायद प्रशासन को अभी और बच्चों को भी प्रिंस और माही बनने का इंतजार है। इसलिए तो जिला प्रशासन ने जिले में खुले बोरवेलों को बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। शायद प्रशासनिक अधिकारियों को नरवाना के नेहरु पार्क में खुले बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। पार्क में खुले पड़े ये बोरवेल व मेनहाल कभी भी किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकते हैं। शहर के हजारों लोग हर रोज सुबह-शाम यहां अपने बच्चों के साथ घूमने के लिए आते हैं। जिस कारण यहां जरा सी लापरवाही दोबारा फिर गुड़गांव या अंबाला के हादसे को ताजा कर सकती है। सार्वजनिक स्थान पर खुले पडे इस बोरवेल व मेनहाल ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
देश में खुले बोरवेल के कारण हो रहे हादसों से प्रशासन सबक नही ले रहा। पिछले दिनों गुड़गांव में बोरवेल में गिरने से 5 वर्षीय माही की मौत के बाद तो प्रदेश सरकार ने खुले पड़े बोरवेलों को बंद करने के आदेश जारी किए थे। खुले बोरवेलों को बंद करने के साथ-साथ सरकार ने खुले बोरवेल की जानकारी देने वाले को ईनाम तक देने की भी घोषणा की थी। इतना ही नहीं बिना अनुमति के बोरवले खोदने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने के आदेश जारी किए गए थे। लेकिन सरकार के आदेशों के बावजूद भी नरवाना के नेहरू पार्क में खुला बोरवेल व सीवरेज का खुला मेनहाल कभी भी अंबाला व गुड़गांव के हादसे को दोहरा सकता है। यहां के अधिकारियों पर तो जब सैईयां भैये कोतवाल तो डर काहे का वाली कहावत स्टीक बैठ रही है। क्योंकि नरवाना का पुराना वाटर वर्कस व नेहरू पार्क एक साथ लगते हैं और जिसके रख-रखाव की जिम्मेवारी खुद जन स्वास्थ्य विभाग की है। शहर का एकमात्र पार्क होने के कारण यहां पर सुबह-शाम शहर से सैकड़ों की संख्या में नन्हे-मुन्ने बच्चे अपने माता-पिता के साथ सैर करने के लिए आते हैं तथा पार्क में आकर मौज-मौस्ती करते हैं। ऐसे में पार्क में खुले बोरवेल व मेनहोल किसी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकते हैं। शायद अधिकारियों को इस बात का भी अंदाजा नहीं कि उनकी जरा सी लापरवाही किसी माता-पिता के लिए उम्र भर की सजा बन सकती है।

उनकी जानकारी में नहीं है सूचना

इस बारे में जब जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता ऐके पाहवा से बातचीत की गई तो उनका वही रटा-रटाया जवाब मिला कि इसके बारे में उनको जानकारी नही है। यह मामला अभी उनकी जानकारी में आया है। खुले पड़े इस बोरवेल व सीवरेज के मेनहाल को तुरंत बंद करवा दिया जाएगा।

नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया बोरवेल

 नेहरू पार्क में खुला छोड़ा गया सीवरेज का खुला मेन हॉल।

बिना सुविधाओं के टोल वसूल रही मोबाइल कंपनियां

किसानों को नहीं मिल पा रही किसान कॉल सेंटर की फ्री हैल्प लाइन सुविधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इसे ट्राई की लापरवाही कहें या मोबाइल कंपनियों की दादागीरी जिसके चलते किसानों को ‘किसान हैल्प लाइन’ सुविधा का लाभ  नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा घर बैठे-बिठाए ही किसानों की समस्या के निदान के लिए 2007 में किसान हैल्प लाइन सुविधा शुरू की गई थी। किसान मोबाइल के माध्यम से किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों के सामने अपनी समस्या रखकर उसका निदान करवा सकें इसके लिए सरकार द्वारा 1551 टोल फ्री नंबर जारी किया गया। अधिक से अधिक किसान इस सुविधा का लाभ ले सकें इसके लिए सरकार द्वारा प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। लेकिन ट्राई (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी आफ  इंडिया) की सुस्ती के चलते किसान हैल्प लाइन की इस सुविधा पर प्राइवेट मोबाइल कंपनियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया। हालांकि प्राइवेट मोबाइल कंपनियां इन सेवाओं के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूलती हैं। लेकिन मोबाइल कंपनियां द्वारा इस सुविधा को बंद कर सरकार व उपभोक्ता दोनों को चूना लगाया जा रहा है।
भले ही सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रुप से सुदृढ़ करने के लिए अनेकों योजनाएं क्रियविंत कर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों, लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो सरकार द्वारा शुरू की गई किसान हितैषी योजनाएं किसानों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। एक ऐसी ही किसान हितेषी योजना केंद्र सरकार द्वारा 2007 में ‘किसान हैल्प लाइन’ के नाम से शुरू की गई थी। इसके लिए 1551 नंबर निर्धारित किया गया था। सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसान कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से किसानों की समस्याओं का निदान करवाना था। इस योजना के तहत किसान घर बैठे-बिठाए ही मोबाइल के माध्यम से कॉल सेंटर में बैठे कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर उनके सामने कृषि संबंधी अपनी समस्याएं रखकर उनका समाधान जान सकते थे। अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा इसका खूब प्रचार-प्रसार किया गया था। इसके प्रचार-प्रसार पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे। सभी  नेटवर्कों पर किसानों को यह सुविधा मिल सके इसके लिए सरकार ने ट्राई के माध्यम से सभी प्राइवेट मोबाइल कंपनियों के साथ टाईअप किया गया था। ट्राई द्वारा तय किए गए निमयों के अनुसार मोबाइल कंपनियां इस सुविधा के बदले अपने उपभोक्ताओं से कॉल रेट के माध्यम से कुछ हिस्सा वसूल सकती हैं। शुरूआत में तो सभी नेटवर्क पर ये सुविधा ठीक-ठाक चली, लेकिन बाद में ट्राई के सुस्त रवैये के चलते सभी मोबाइल कंपनियों ने इस सुविधा पर पर्दा डालना शुरू कर दिया। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के चलते यह सुविधा अब पूरी तरह से ठप हो चुकी है। किसी भी प्राइवेट मोबाइल कंपनी के नेटवर्क से हैल्प लाइन के टोल फ्री नंबर 1551 पर कॉल नहीं हो पा रही है। प्राइवेट मोबाइल कंपनियां खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। इस प्रकार मोबाइल कंपनियों की लापरवाही के कारण यह योजना आगाज के साथ ही दम तोड़ गई।

उपभोक्ताओं को लग रहा है चूना

सरकार द्वारा योजना शुरू करने के बाद ट्राई द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की निशुल्क सेवाएं देने के बदले उपभक्ताओं से कॉल रेट में कुछ हिस्सा वसूल सकती थी। जिसके बाद प्राइवेट मोबाइल कंपनियों ने कॉल रेट में इस सुविधा के शुल्क को भी शामिल कर अपने कॉल रेट निर्धारित किए थे। लेकिन फिलहाल मोबाइल कंपनियों द्वारा यह सुविधा बंद किए जाने के कारण मोबाइल कंपनियां सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी मोटा चूना लगा रही हैं।      

बंद नहीं होने दी जाएंगी टोल फ्री सेवाएं

प्राइवेट मोबाइल कंपनियां किसान हैल्प लाइन की सुविधा को बंद कर खुलेआम ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। इससे किसानों को भी काफी परेशानी हो रही है और सरकार द्वारा इस योजना पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए भी बर्बाद हो रहे हैं। संघ इस सुविधा को दोबारा शुरू करवाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए उन्होंने ट्राई को इसकी शिकायत की है। संघ किसी भी कीमत पर टोल फ्री सुविधाओं को बंद नहीं होने देगा।
हितेष ढांडा, संस्थापक
हरियाणा तकनीकी संघ

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

‘लाडो’ को बचाने के लिए मैदान में आएंगी प्रदेश की पंचायतें

गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए गांव में बनाई जाएंगी कमेटियां

नरेंद्र कुंडू  
जींद। प्रदेश की ग्राम पंचायतें अब विकास कार्यों के साथ-साथ कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में भी खड़ी नजर आएंगी। अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ने के लिए सभी पंचायतों को हाईटैक पंचायत बीबीपुर की तर्ज पर महिला ग्राम सभा का आयोजन भी करना होगा। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने के लिए पंचायत द्वारा गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन भी किया जाएगा। इन कमेटियों की पूरी कार्रवाई पंचायत की निगरानी में चलेगी। पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए की जाने वाली सभी कार्रवाइयों को पंचायत द्वारा अपने कारवाही रजिस्टर में कलमबद्ध करना होगा। प्रदेश में इस मुहिम को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र जारी कर जल्द से जल्द इस मुहिम पर काम शुरू करने के सख्त निर्देश जारी किए हैं।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में शुरू की गई लड़ाई ने अब युद्ध का रुप धारण कर लिया है। गौरतलब है कि बीबीपुर पंचायत की उपलब्धियों को देखते हुए पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने 29 मई को बीबीपुर गांव का दौरा किया था। यहां उन्होंने महिलाओं के समक्ष पंचायत में अपनी भागीदारी करने तथा महिला ग्राम सभा की बैठक करने की बात कही थी। अतिरिक्त सचिव के दिशा-निर्देशों पर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने 18 जून को गांव में पहली महिला ग्राम सभा का आयोजन करवाया था। महिला ग्राम सभा का मुख्य एजेंडा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ महिलाओं को जोड़ना था। इस ग्राम सभा में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सबसे पहले गर्भवती महिलाओं पर कड़ी नजर रखना था। जिसके लिए पंचायत ने गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने तथा उनका पंजीकरण करने के लिए गांव में वार्ड स्तर पर कमेटियों का गठन किया था। बीबीपुर पंचायत द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद यह मुद्दा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था। जिस पर पंचायती राज मंत्रालय ने भी गहन मंथन किया था। अब पंचायती राज मंत्रालय ने पूरे हरियाणा प्रदेश की ग्राम पंचायतों को आईटी विलेज बीबीपुर के नकशे कदम पर चलाने के निर्देश दिए हैं। पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. ऋषिकेश पांडा ने प्रदेश के पंचायती राज विभाग के वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव को पत्र लिखकर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायतों की मुख्य भूमिका निभाने की जिम्मेदारी देने के लिए कहा है। इसके तहत पंचायतें अपने गांवों में महिला ग्राम सभा का आयोजन कर अधिक से अधिक महिलाओं को इस मुहिम में जोड़ने का काम करेंगी। इसके बाद ये महिलाएं गांवों में वार्ड स्तर पर कमेटियां बनाकर गर्भवती महिलाओं पर नजर रखेंगी। कमेटियों द्वारा पंचायत को दी गई रिपोर्ट को पंचायत को अपने कारवाही रजिस्टर में दर्ज करना इसका पूरा रिकार्ड तैयार करना होगा।

भविष्य में सकारात्मक परिणाम आएंगे सामने

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जो निर्णय लिया गया है वह काफी सराहनीय है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ग्राम पंचायतों का अहम योगदान रहेगा। अब तक यह मुहिम केवल कागजों में ही चल रही थी, लेकिन पंचायती राज मंत्रालय के इस निर्णय के बाद यह मुहिम वास्तव में धरातल पर शुरू हो सकेगी। भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

‘पाठशाला’ में पढ़ रही कीड़ों की पढ़ाई

खेती के औजारों की जगह हाथ में होते हैं कॉपी, पैन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सुबह के आठ बजे थे नजारा था गोहाना रोड पर स्थित ललीतखेड़ा गांव के पास का। कुछ महिलाएं सिर पर पानी का मटका लिए पूरे उत्साह के साथ गीत गुणगुनाती खेतों की तरफ जा रही थी। गीत के बोल थे ‘किड़यां का कट रहया चाला ऐ मैंन तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैंन तेरी सूं’ और इन महिलाओं के हाथों में खेती के औजारों की जगह थे कॉपी, पैन। यह नजारा वाकई में चौकाने वाला था। ये महिलाएं खेत में खेती के काम के लिए नहीं बल्कि कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए जा रही थी। इन महिलाओं को कीट ज्ञान देने का जिम्मा उठाया है निडाना गांव की महिला कीट पाठशाला की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने। कीटों की पहचान में माहरत हासिल करने के बाद अब इन महिलाओं ने ललीतखेड़ा गांव की तरफ अपनी टीम का रुख किया है। इन दिनों कीट पाठशाला की ये मास्टरनियां ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर उत्पादन बढ़ाने के गुर सीखा रही हैं। ललीतखेड़ा की महिला किसान पूनम मलिक के खेत को पाठशाला के लिए चुना गया है। सप्ताह के हर बुधवार को पूनम मलिक के खेत पर महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है।

कीटों के साथ-साथ पढ़ाया जाता है अनुशासन का पाठ

महिला किसान पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि इस पाठशाला में कीटों के पाठ के साथ-साथ महिलाओं को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ताकि सभी महिलाएं समय पर खेत में पहुंच सकें और उनकी दिनचर्या न डगमगाए। बुधवार को जब ललीतखेड़ा की यशवंती पाठशाला में लेट पहुंची तो मास्टर ट्रेनर अंग्रेजों ने लेट आने पर उसकी खूब खिंचाई करते हुए उससे लेट आने का कारण पूछा। अंग्रेजो के सवाल का जवाब देते हुए यशवंती ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे घर का कामकाज निपटाकर पाठशाला में आने के लिए चली तो घर पर कुछ मेहमान आ गए। मेहमानों की आवभगत में उसे पाठशाला में आने में देर हो गई। 

कीटों की भी होती खाप पंचायत

बराह कलां बारहा प्रधान कुलदीप ढांडा जब महिला किसान पाठशाला में पहुंचे तो पाठशाला की प्रशिक्षु शीला ने कहा कि ढांडा साहब खाप पंचायत सिर्फ मानस-मानसों की नहीं किड़यां की भी होवा सै। देखो पिछली बार तो दूसरे हथजोड़े ने आपका स्वागत किया था और इस बार कीटों की खाप के प्रतिनिधि दूसरा हथजोड़ा आपके स्वागत के लिए आया है।

पैदल ही तय करती हैं तीन किलोमीटर का सफर

निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं में कीट ज्ञान की अलख जगाने का बहुत चाव है। इसलिए लिए तो वो निडाना से ललीतखेड़ा तक आने के लिए किसी व्हीकल का भी सहारा नहीं लेती हैं। झुलसा देने वाली इस गर्मी में वो निडाना से ललीतखेड़ा तक के तीन किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय कर लेती हैं। इस सफर के बाद उन्हें घर का कामकाज भी निपटाना पड़ता है।

कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 पाठशाला में बही-खाते में कीटों की संख्या दर्ज करवाती महिला।

 कांग्रेस घास के पौधे पर मिलीबग का खात्मा करता मासाहारी कीट अंगीरा।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं। म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा। मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता इत्यादि।

‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’


नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों व कीटों के बीच छिड़ी इस जंग ने खाप पंचायतों को भी असमंजश में डाल दिया है। बड़े-बडे विवादों को चुटकियों में निपटाने के लिए मशहूर हरियाणा की खाप पंचायतों के लिए यह मशला अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्योंकि प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के किसानों व पंचायतों की नजर अब हरियाणा की खाप पंचायतों पर टिक गई हैं। 18 पंचायतों के बाद 19वीं पंचायत में खाप के प्रतिनिधि जो फैसला सुनाएंगे वह कोई मामूली नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक फैसला होगा और उस फैसले पर ही हमारी आने वाली पीढि़यों की जिंदगी की नींव रखी जाएगी। इस झगड़े को निटवाने तथा अपने वंश को बचाने के लिए खाप पंचायत की शरण में पहुंचे जीव प्रणियों को अब प्रदेश की खाप पंचायत से बड़ी उम्मीद है। मंगलवार को निडाना में हुई सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत की बैठक में कीट मित्र किसानों ने खाप के चौधरियों के समक्ष आवाज उठाते हुए कहा कि ‘कोई समझाए इन किसानों को क्यों मार रहे बेजुबानों को’। पंचायत के समक्ष उठे इस स्लोगन ने पंचायत में मौजूद चौधरियों के दिलों पिंघला कर रख दिया। जिसके बाद पंचायत के प्रतिनिधियों के लिए भी बिना अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किए वहां से निकला मुश्किल कर हो गया। आइए जाने क्या रही खाप प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया।

पंचायत के सामने पहली बार आया है ऐसा मामला

 नफे सिंह नैन
आज तक पंचायतों के सामने इस तरह का मामला नहीं आया है। पंचायत के सामने इस तरह का यह पहला मामला है।इस मुद्दे पर फैसला देने से पहले पंचायत को मामले को गं•ाीरता से लेते हुए इसकी तहत तक जाना होगा। किसी चौपाल या बैठक में बैठकर इस मुद्दे पर फैसला देना पंचायत के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस मामले पर फैसला देने से पहले पंचायत को किसानों के बीच पहुंचकर इस झगड़े की असलियत को जानना होगा। 
नफे सिंह नैन, प्रधान
बिनैन खाप


 

 

काफी पेचीदा है मामला

सूबे सिंह गिल।



यहां आने से पहले उन्हें इसका बिल्कुल ही अहसास नहीं था कि यह झगड़ा वास्तव में इतना पेचीदा है। जब कीट हमारी फसल में किसी तरह का नुकसान ही नहीं करते हैं तो फिर में हम उन्हें बिना वजह क्यों मारने पर तुले हुए हैं। अगर किसान कीटों की पहचान कर लें तो उन्हें कीटनाशकों के लिए बाजार में भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। 
सूबे सिंह गिल, प्रतिनिधि
समैन-बिठमड़ा खाप

  

 

क्यों पड़ रही है कीटों को मारने की जरुरत

 अमीर सिंह पूनिया
किसानों ने बताया कि कपास की फसल में 109 किस्म के शाकाहारी व मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। जिसमें 27 किस्म के शाकाहारी व 82 किस्म के मासाहारी कीट  शामिल हैं। जब मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से ज्यादा है तो फिर किसानों को इन कीटों को मारने की जरुरत क्यों पड़ती है तथा कीटों व किसानों का झगड़ा किस बात पर है। इन सवालों के जवाब लिए बिना इस मुद्दे पर किसी प्रकार का फैसला नहीं दिया जा सकता।
अमीर सिंह पूनिया
पंचग्रामी प्रधान, खरक पूनिया

झगड़े निपटाने के लिए मशहूर हैं हरियाणा की पंचायतें

 कुलदीप ढांडा
मनुष्य का जीवन कीटों पर ही निर्भर करता है। प्राकृतिक ने सभी जीवों के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं, लेकिन इंसान अपने स्वार्थ के वशभूत होकर प्राकृतिक के निमयों को तोड़ रहा है। अगर किसान इसी तरह रासायनिक पदार्थों के प्रयोग पर जुटे रहे तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे तथा फसल पैदा होनी बंद हो जाएगी। लखनऊ के नवाब का किस्सा सुनाते हुए ढांडा ने कहा कि हरियाणा की पंचायतें विवादों को निपटाने के लिए दूसरे प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इसलिए इस झगड़े का भी समाधान जरुर ढुंढ़ निकालेंगी।
कुलदीप ढांडा, प्रधान
बराह कलां बारहा
 

 

क्या है किसानों व कीटों की लड़ाई

खाप पंचायत के प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 
कीट कमांडो किसान रोशन ने बताया कि किसानों व कीटों की लड़ाई फसल की पैदावार को लेकर है। रोशन ने उदहारण देते हुए कहा कि पिछले वर्ष उसकी चार एकड़ में कपास के 8502 पौधे थे, प्रति एकड़ के हिसाब से उसके खेत में 2125 पौधे थे। 8502 पौधों से उसे 34 क्विंटल यानि 85 मण कपास की पैदावार मिली। प्रति एकड़ के हिसाब से उसे 21 से 22 मण की औसत पड़ी। रोशन ने कहा कि अगर किसान अपने खेत में सवा तीन बाई सवा तीन फुट पर कपास का पौधा लगाए तो एक एकड़ में 4100 से 4200 के करीब पौधे लगाए जा सकते हैं। जब उसे एक एकड़ में 2125 पौधों से 21 मण की औसत पड़ती है तो उसी एक एकड़ में दो गुणा पौधे लगने से पैदावार अपने आप ही बढ़ जाएगी। रोशन ने कहा कि पैदावार बढ़ाने के लिए कीटों को मारने की नहीं, बल्कि पौधों की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है।

खाप चौधरियों ने किसानों के साथ की माथा-पच्ची


सर्व जातीय सर्व खाप की दूसरी बैठक संपन्न

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीटों व किसानों के बीच कई दशकों से चले आ रहे झगड़े में खाप पंचायत के हस्तक्षेप के बाद मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पेचीदा मसले को हल करने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का कोई गलत निर्णय न हो इसके लिए खाप के चौधरियों ने बारी-बारी से किसान खेत पाठशाला में पहुंच कर कीट मित्र किसानों के साथ माथा-पच्ची करनी शुरू कर दी है। क्योंकि यह कोई गांव का छोटा-मोटा विवाद नहीं है। यह झगड़ा तो उन दो पक्षों में है, जिसमें एक पक्ष में तर्क-वितर्क करने वाले किसान व दूसरे पक्ष में बेजुमान जीव हैं। कीट साक्षरता केंद्र के कीट मित्र किसानों के आह्वान पर इस झगड़े को निपटाने उतरी खाप पंचायत की दूसरी बैठक मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की। बैठक में खरक पूनिया से पूनिया पंचग्रामी के प्रधान अमीर सिंह पूनिया, समैन-बिठमड़ा खाप के प्रतिनिधि व खाप प्रेस प्रवक्ता सूबे सिंह गिल तथा बरहा कलां बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने भी विशेष तौर पर शिरकत की। सर्व जातीय सर्व खाप के प्रतिनिधियों ने किसान पाठशाला में पहुंचकर लगातार साढ़े चार घंटे इस मुद्दे पर गहन मंथन किया। इस दौरान मास्टर ट्रेनर किसानों ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष बेजुबान कीटों का पक्ष रखा।

पारा भी नहीं तोड़ पाया हौंसला

गर्मी के इस मौसम में जहां लोग 10 बजते ही घरों में दुबक जाते हैं, वहीं इतनी भयंकर गर्मी के बावजदू भी किसान खेतों में बैठकर कीटों की पढ़ाई करते नजर आए। 47 डिग्री का पारा भी किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाया। किसानों ने झुलसा देने वाली इस गर्मी में खेत में बैठकर खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ बहर की।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। किसानों ने पंचायत में पहुंचे खाप के पांचों प्रतिनिधियों के हाथों खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटवा दिया। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि पत्ते काट कर फसल को जितना नुकसान उन्होंने किया है उतना नुकसान कोई कीट फसल में नहीं कर सकता। दलाल ने कहा कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कौन-कौन से कीट थे फसल में मौजूद

खाप प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते डा. सुरेंद्र दलाल।

प्रयोग के लिए पत्तों को काटते पूनिया पंचग्रामी के प्रधान।
60 से 70 दिन की कपास की फसल में फिलहाल कौन-कौन से कीट मौजूद हैं इसकी पहचान करने के लिए किसानों के पांच ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के किसानों ने दस-दस पौधों पर मौजूद कीटों को बही-खाते में उतारा। इस दौरान किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चूरड़ा, डाकू बुगड़ा, क्राइसौपा, मकड़ी, मकड़ी, सलेटी भूँड, अंगीरा नामक कीट मौजूद थे। रणबीर मलिक ने बताया कि सफेद मक्खी, चूरड़ा व हरा तेला पत्तों से रस चुस कर तथा सलेटी भूँड पत्तों के किनारे खाकर अपना गुजारा करते हैं। डाकू बुगड़ा चूरड़ा का खून पी कर तथा क्राईसौपा शाकाहारी कीटों को खाकर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंगीरा मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाता है और इस प्रक्रिया में मिलीबग का खत्मा हो जाता है। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों की जीवन यापन की प्रक्रिया में किसान को लाभ मिल जाता है।

क्या करें किसान?

खाप पंचायत के प्रतिनिधियों ने जब डा. सुरेंद्र दलाल से पूछा कि जब तक किसानों को कीटों का ज्ञान नहीं होता, तब तक किसानों को फसल में किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। डा. दलाल ने कहा कि अगर फसल में किसानों को किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नजर आए तो किसान जिंक, यूरिया व डीएपी का घोल तैयार कर उसका छिड़काव कर सकते हैं। डा. दलाल ने कहा कि आधा केजी जिंक, अढ़ाई केजी यूरिया व अढ़ाई केजी डीएपी का 100 केजी पानी में घोल तैयार कर फसल पर स्प्रे कर सकते हैं।
फोटो कैप्शन


मंगलवार, 3 जुलाई 2012

इंद्र देव की बेरुखी से धरतीपुत्रों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें

महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझा रहे हैं किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मानसून की बेरुखी ने धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है। धान का सीजन सिर पर है, लेकिन बढ़ते पारे ने किसानों की सांसें फुला दी हैं। भीषण लू के थपेड़ों में हर रोज किसानों की उम्मीद दम तोड़ रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। इंद्र देवता की बेरुखी के कारण किसानों को महंगे भाव का डीजल फूंक कर तपती धरती की प्यास बुझानी पड़ रही है। कृषि विभाग द्वारा इस बार एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का टारगेट निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी।
भीषण गर्मी से जहां जनजीवन प्रभावित हो गया है वहीं किसानों की फसल भी सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। मानसून नहीं आने से खेती किसानी पूरी तरह बिखरने लगी है। इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। बरसात न होने के कारण जहां किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों की फसल भी खराब हो रही हैं। बारिश के लिए आसमान ताक रहे किसानों की धान की रोपाई अधर में लटकी हुई है। वहीं दलहन फसलों, ज्वार, बाजरे व कपास की फसलें भी बिना बारिश के चौपट हो रही हैं। भीषण गर्मी और उमस से परेशान लोगों को राहत की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। किसानों का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ  की आधी फसल तो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक दो दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपाई संकट में पड़ जाएगी। किसान अपनी फसल को बचाने के लिए अब आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बार जिले में कृषि विभाग द्वारा एक लाख पांच हजार हैक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन मानसून में हुई देरी के कारण अब तक सिर्फ 10 से 15 हजार हैक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। जबकि पिछले वर्ष इस समय तक जिले में 30 से 40 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी थी। इसके अलावा जिले में इस बार किसानों द्वारा 60 हजार हैक्टेयर में कपास की बिजाई की गई है। किसानों का मानना है कि अगर मानसून में थोड़ी सी देरी ओर हुई तो धान की रोपाई का सीजन हाथ से निकल जाएगा और किसानों को मजबूरन दूसरी फसलों की बिजाई करनी पड़ेगी। 

पानी के स्रोत सूखे

गर्मी के कारण पानी का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जिससे कई ट्यूबवेल भी सूखने लगे हैं। नदियों में भी पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। बढ़ते पारे के कारण जहां भू जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, वहीं बिना बारिश के तालाब भी खाली होने लगे हैं। पानी के स्त्रोत सूखने के कारण पशुधन पर भी संकट मंडरा रहा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार पेयजल संकट गहरा रहा है।

कब तक है बिजाई का सीजन

 बिना बारिश के सूखा पड़ा धान का खेत।
कृषि अधिकारियों के अनुसार 14 जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू हो जाता है। 14 जून से पहले धान की रोपाई का कार्य पूर्ण रुप से प्रतिबंधित है। 14 जून के बाद पूरे जुलाई माह तक धान की रोपाई का कार्य चलता है। 20 जुलाई के बाद तो किसान केवल बासमती धान की रोपाई पर ही जोर देते हैं।

चिंतित न हों किसान

मानसून में देरी के कारण धान की रोपाई का कार्य थोड़ा लेट चल रहा है। लेकिन किसानों को किसी प्रकार की चिंता करने की जरुरत नहीं है। अगर मानसून थोड़ा लेट आता है तो फसल की पैदावार को कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी किसानों के पास धान की रोपाई के लिए काफी समय है। जुलाई के आखिरी सप्ताह तक किसान धान की रोपाई कर सकते हैं। कपास, ज्वार, सब्जियों की फसलों में किसान हल्का-हल्का पानी लगाकर फसल को नुकसान से बचा सकते हैं।
अनिल नरवाल, सहायक पौध संरक्षण अधिकारी
कृषि विभाग, जींद