शनिवार, 30 जून 2012

....ये कैसा बालश्रम कानून

बालश्रम उन्मूलन दिवस पर विशेष

नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ 12 जून को विश्व स्तर पर बालश्रम उन्मूलन दिवस मनाया जा रहा है और सरकार द्वारा बाल श्रम के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ शहर में बालश्रम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। शहर में चाय, नाश्ता की दुकानों, होटलों और गैराज में छोटे-छोटे बच्चे मजदूरी करते नजर आ रहे हैं। शहर में सैंकड़ों दुकानों और होटलों पर छोटे बच्चे बाल मजदूरी करते देखे जा सकते हैं, लेकिन किसी अधिकारी की नजर इन पर नहीं पड़ रही है। पढ़ाई-लिखाई की उम्र में हाथों में औजार थामे ये बच्चे प्राथमिक स्तर की शिक्षा से भी दूर हैं। शहर में लगातार बढ़ती बाल मजदूरों की संख्या को देखकर लगता ही नहीं है कि जिले में बाल श्रम कानून लागू है। सरकारी अधिकारियों की उदासीनता के चलते देश का भविष्य गर्त में है।
बाल श्रम कानून के तहत कागजी तौर पर कई नियम कानून बनाए गए हैं, लेकिन हकीकत में नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। शहर में कई स्थानों पर छोटे बच्चे वाहनों को सुधारने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा होटलों और दुकानों में चाय-नाश्ता परोसने के काम में लगे हैं। बाल श्रम कानून का जिले में सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते व्यवसायी भी बच्चों को काम पर लगाने में डर का अनुभव नहीं कर रहे हैं। हालात यह है कि शहर में सैंकड़ों दुकानों पर छोटे-छोटे बच्चे बाल मजदूरी करते नजर आ रहे हैं। बाल मजदूरों को शिक्षित करने के लिए जहां सरकारी तौर पर किसी भी तरह के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, वहीं स्वयं सेवी संस्थाओं की ओर से भी इस ओर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। वैसे तो कई एनजीओ बालश्रम रोकने के लिए कागजी तौर पर लाखों रुपए के बजट से कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर संस्थाओं के प्रयास न के बराबर हैं।

शादी समारोह में जुल्म

शहर में छोटे बच्चों से शादी समारोह में बाल मजदूरी कराई जा रही है। बारात के दौरान बच्चों को उनके वजन से दोगुने लाइट के गमले पकड़ा दिए जाते हैं। तीन-चार घंटे तक बच्चे भारी भरकम गमले सिर पर रखकर चलते हैं, लेकिन किसी को इनकी स्थिति पर दया नहीं आती है। कई बार शराब के नशे में बाराती इन मासूम बच्चों के साथ मारपीट भी कर देते हैं। आर्थिक तंगी के शिकार बाल मजदूर मारपीट के बाद भी हर दिन काम पर निकल पड़ते हैं। इसके अलावा कई सरकारी कार्यक्रमों में भी छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा जा सकता है। लघु सचिवालय में भी हर दिन छोटे बच्चे कर्मचारियों को चाय बांटने का काम करते हैं, लेकिन किसी भी  अधिकारी की नजर शायद इस ओर नहीं जाती है।

सरकारी प्रयास विफल

 डीआरडीए के सामने रेहड़ी पर बर्तन साफ करता बच्चा।

सैनी रामलीला ग्राऊंड के सामने दुकान पर काम करता बच्चा।
छोटे बच्चों को मजदूरी करने से रोकने के लिए बनाए गए कायदे कानून संबंधित विभाग की उदासीनता के कारण विफल नजर आ रहे हैं। जिला मुख्यालय सहित तहसील स्तर पर होटलों और चाय-नाश्तों की दुकानों पर बड़ी संख्या में 12 साल से कम उम्र के बच्चे मजदूरी कर रहे हैं। सुबह से लेकर रात तक मासूम बच्चों से काम कराया जाता है और मेहनताने के रूप में इन्हें 30 से 40 रुपए मजदूरी दी जाती है। अप्रेवेशी बच्चों और बाल मजदूरों को शिक्षा से जोड़ने के लिए शिक्षा का अधिनियम कानून बनाया गया है, लेकिन सरकारी प्रयास इस दिशा में विफल नजर आ रहे हैं। जिले में लगातार बढ़ती बाल मजदूरों की संख्या जिले के आला अधिकारियों को शायद दिखाई नहीं दे रही है। यही कारण है कि संबंधित अधिकारियों द्वारा बालश्रम रोकने के लिए अभी तक कोई अभियान नहीं चलाया गया है।

कमेटी का किया गया है गठन

बाल मजदूरी को रोकने के लिए समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं। फिलहाल जिले में बाल श्रम को रोकने तथा बच्चों से मजदूरी करवाने वालों पर नकेल डालने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी दुकानों, ढाबों, फैक्टरियों, भट्ठों पर जाकर तीन दिवसीय सर्च अभियान चलाएगी। सर्च अभियान के दौरान दोषी पाए जाने वाले लोगों के चालान काटे जाएंगे।
अनिल शर्मा, लेबर इंस्पैक्टर

....ताकि बरकरार रहे सफेद सोने की चमक

कपास के रकबे को बढ़ाने के लिए कृषि वि•ााग अधिकारियों को दिलवाएगा ट्रेनिंग

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सफेद सोने की चमक को बरकरार रखने तथा कपास की खेती के प्रति किसानों का मोह बढ़ाने के लिए कृषि विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। इस योजना को मूर्त रुप देने के लिए कृषि विभाग अपने सभी कृषि विकास अधिकारियों (एडीओ) को खास तौर से प्रशिक्षित करेगा। कृषि विकास अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए विभाग द्वारा 21-21 दिनों के तीन प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाएगा। प्रत्येक 21 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में 30 कृषि विकास अधिकारी भाग लेंगे। जिनमें कपास उत्पादक क्षेत्रों से दो-दो तथा बिना कपास उत्पादन वाले क्षेत्रों से एक-एक अधिकारी को शामिल किया जाएगा। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कृषि विकास अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को कपास की खेती के लिए प्रेरित करेंगे तथा किसानों को कम खर्च से अधिक उत्पादन लेने के गुर सिखाएंगे। विभाग द्वारा इन प्रशिक्षण शिविरों पर दस लाख रुपए की राशि खर्च की जाएगी।
किसानों को कपास की तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने तथा जिले में कपास के रकबे को बढ़ाने के लिए कृषि विभाग कृषि अधिकारियों को ट्रेंड करेगा। इसके लिए विभाग द्वारा किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में 21-21 दिवसीय तीन प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाएगा। प्रत्येक शिविर में 30 कृषि विकास अधिकारी भाग लेंगे। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य कपास की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ाना है। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसानों को काफी लाभ मिलेगा। विभाग द्वारा ट्रेंड किए गए इन अधिकारियों से किसानों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा। शिविर के दौरान अधिकारियों को फसल में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए नई-नई तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करवाई जाएंगी। ताकि फील्ड में उतरने के बाद ये अधिकारी किसानों को खेती के क्षेत्र में आत्म निर्भर बना सकें। प्रशिक्षण शिविर में कपास उत्पादन वाले क्षेत्रों से दो-दो व बिना कपास उत्पादन वाले क्षेत्रों से एक-एक अधिकारियों को शिविर में शामिल किया जाएगा। विभाग द्वारा कृषि विकास अधिकारियों को हाईटैक बनाने के लिए प्रशिक्षण शिविरों पर 10 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कृषि विकास अधिकारी अपने क्षेत्र के किसानों को नवीनतम तकनीकों को जरिए कम खर्च से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के गुर सिखाएंगे।

कपास से संबंधित संस्थानों का भी करवाया जाएगा भ्रमण

विभाग द्वारा कृषि अधिकारियों को बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करवाने के लिए शिविर के दौरान कपास से संबंधित केंद्र सरकार के संस्थानों का भ्रमण करवाया जाएगा। यहां पर मास्टर ट्रेनरों द्वारा कृषि विकास अधिकारियों को कपास की खेती का व्यवहारिक ज्ञान देकर मौके पर ही इनकी सभी संकाओं का समाधान किया जाएगा। ताकि फील्ड में उतरने के बाद कपास की खेती से संबंधित किसी प्रकार की समस्या इनकी राह का रोड़ा न बन सके।

किसानों को हाईटैक बनाने के लिए उठाया कदम

विभाग ने कपास के रकबे को बढ़ाने तथा कपास उत्पादक किसानों को हाईटैक बनाने के लिए यह कदम उठाया है। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसानों को काफी लाभ होगा। शिविर में कृषि विकास अधिकारियों को इस तरह से ट्रेंड किया जाएगा कि अधिकारी मौके पर ही किसान की कपास की फसल से संबंधित समस्या का निपटारा कर सकें। तीनों प्रशिक्षण शिविरों पर विभाग द्वारा 10 लाख रुपए की राशि खर्च की जाएगी।
बीएस नैन, निदेशक
किसान प्रशिक्षण केंद्र, जींद


किसानों के लिए रोल मॉडल बना अशोक

जिद्दो को पूरा करने के लिए नौकरी को मारी ठोकर

जींद। होशियारपुर जिले (पंजाब) के नंदन गांव का अशोक कुमार अन्य किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरा है। किसानों को आत्मनिर्भर करने तथा खाने को जहर मुक्त बनाने का ऐसा जनून इंजीनियर की नौकरी को ठोकर मार कर खुद आर्गेनिक खेती में जुट गया। अब अशोक अपने साथ-साथ दूसरे किसानों को भी आर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित कर रहा है। अशोक कुमार की रफ्तार यहीं नहीं रुकी। अशोक ने किसानों के साथ-साथ महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए गांव में गांव में महिलाओं का सेल्फ हैल्प ग्रुप बनाकर उनके लिए स्व रोजगार शुरू करवा दिया तथा सामान की बिक्री के लिए गांव में मार्केटिंग सैंटर भी  खोल दिए। ताकि महिलाओं को अपने प्रोडेक्ट को बेचने के लिए बाजार जाने की जरुरत न पड़े। सेल्फ हैल्प गु्रप द्वारा एक-दूसरे की आर्थिक मदद के लिए हर माह 100 रुपए चंदे के तौर पर एकत्रित किए जाते हैं, ताकि जरुरत पड़ने पर इन पैसों के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की जरुत ना पड़े। होशियारपुर निवासी अशोक कुमार शनिवार को निडाना गांव के कीट साक्षरता केंद्र पर दौरे पर आया हुआ था। अशोक कुमार ने आज समाज से अपनी खास बातचीत में बताया कि वह बीटेक की पढ़ाई के बाद दिल्ली में इंजीनियर की नौकरी करता था। जहां उसे अच्छी-खासी तनख्वाह भी मिलती थी, लेकिन परिवार से दूरी उसे रास नहीं आई और उसने अपने पैतृक कार्य खेती करने का मन बनाया। जिसके बाद वह अपनी नौकरी छोड़ गांव में वापस आ गया। लेकिन खेती में कीटनाशकों पर ज्यादा पैसा खर्च होने के कारण खेती उसके लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी।  जिसके बाद उसने कीटनाशक रहित खेती की ओर कदम बढ़ाते हुए खेती से ही अपनी सभी आवश्यकताएं पूरी करने का संकल्प लिया। जहां पर उसने आर्गेनिक खेती की शुरूआत की। आर्गेनिक खेती से उसे जहां बढ़िया फसल मिली, वहीं बिना जहर युक्त फसल की अच्छी पैदावार भी मिली, जिसका आसपास के लोगों को फायदा मिल रहा है। अब अशोक कुमार स्वयं आर्गेनिक खेती करने के साथ-साथ अपने आसपास के किसानों को •ाी आर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित कर रहा है और इसमें कुछ हद तक उसे सफलता •ाी मिली है। उसका मानना है कि कीटनाशकों का प्रयोग करने से फसलें जहरीली होती जा रही है। वह नहीं चाहता कि वह अपने परिवार व आसपास के लोगों को कीटनाशक युक्त फसलों से बीमार करें ताकि वह बीमार होने के बाद पैसा डॉक्टरों के पास खर्च करे बल्कि इस पैसे को अपने परिवार की समृद्धि तथा आर्गेनिक खेती की तरफ लगाए। अशोक कुमार ने गांव में महिलाओं के सेल्फ हैल्प ग्रुप भी बनाए हैं, जहां पर महिलाओं को देसी खानों जैसे शहद, हल्दी, दाल, गुड़, शक्कर, नमकीन, बेसन की पकोड़ियां बनाने का काम दिया जाता है। यहीं नहीं फंड भी  एकत्रित करके जरूरत पड़ने पर संबंधित महिलाओं को लोन भी दिया जाता है, ताकि उसकी जरूरत पूरी हो सके। मार्केटिंग की समस्या से निजात पाने के लिए तथा अपने सामान को बेचने के लिए गांव में आउट लेट खोले गए हैं। ताकि किसानों को अपने सामान को बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़े। अपनी इस मुहिम को सफल बनाने में निडाना गांव की महिलाएं उनके लिए अच्छा माध्यम बनेंगी। डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में चल रही कीट पाठशाला में ये महिलाएं अच्छा काम कर रही हैं। इन महिलाओं से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला है।

बिचोलियों को खत्म करना है मकसद

अशोक कुमार ने बताया कि खाने में दो तरह से मिलावट होती हैं, एक तो फसल की पैदावार के दौरान किसान स्प्रे के माध्यम से करता है और दूसरा बाजार में मिडल मैन यानि बिचोलिए करते हैं। इसलिए बिचोलियों की इन खुरापातों को खत्म करने के लिए उसने गांव में ही आउट लेट खोले हैं, ताकि किसानों को अपना सामान बेचने के लिए बाहर नहीं जाना पड़े और लोगों तक बिना मिलावट के खाद पदार्थ पहुंच सकें। आउट लेट खुलने से किसानों को अपने प्रोडेक्ट की मार्केटिंग की चिंता भी नहीं सताएगी। 

दूसरे प्रदेशों में पहुंची जहर मुक्त खेती की मुहिम

निडाना की महिलाओं से कीट प्रबंधन के गुर सीखेंगे पंजाब के किसान


 मुख्य कृषि अधिकारी सरबजीत कंधारी को स्मृति चिह्न देते किसान।
कीट साक्षरता केंद्र पर मुख्य कृषि अधिकारी को कीटों की जानकारी देती महिला।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट प्रबंधन में माहरत हासिल कर चुकी निडाना कीट साक्षरता केंद्र की महिलाओं का डंका अब दूसरे प्रदेशों में भी बजने लगा है। निडाना के किसानों द्वारा शुरू की गई जहर मुक्त खेती की मुहिम अब दूसरे प्रदेशों तक पहुंचने लगी है। फेसबुक पर इन महिलाओं के चर्चे सुनकर खुद पंजाब के होशियारपुर जिले के मुख्य कृषि अधिकारी एवं आत्मा स्कीम के प्रोजैक्ट डायरेक्टर सरबजीत सिंह कंधारी ने शनिवार को निडाना के कीट साक्षरता केंद्र का दौरा किया। साक्षरता केंद्र की अनपढ़ महिलाओं के कीट प्रबंधन के ज्ञान को देखकर उन्होंने पंजाब के किसानों को भी यहां पर ट्रेनिंग दिलवाने की इच्छा जाहिर की। इस अवसर पर इनके साथ होशियारपुर जिले के प्रगतिशील किसान अशोक कुमार भी  साथ थे। मास्टर टेÑनर महिलाओं ने मुख्य कृषि अधिकारी को बताया कि अगर किसान को फसल में मौजूद माशाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान हो जाए तो उसे फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के स्प्रे की जरुरत नहीं पड़ेगी। महिलओं ने मुख्य कृषि अधिकारी को कपास के खेत में ले जाकर प्रत्यक्ष रुप से कीटों की पहचान करवाते हुए उनके देसी व वैज्ञानिक नाम भी  बताए। महिलाओं ने फिलहाल कपास के पौधों पर मौजूद मिलबग, लेडीबिटल, अंगीरा, मकड़ी व कपास के टिंडों में आने वाले कीट भी दिखाए। महिलाओं ने बताया कि कपास के पौधों का रस चुसने वाले मिलीबग को खत्म करने के लिए लेडीबिटल कपास में प्रर्याप्त संख्या में होती है। एक लेडीबिटल लगभग तीन हजार मिलीबग के बच्चों को चट कर जाती है। मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने कृषि अधिकारी को मिलबग के पेट में अपने बच्चों का पोषण करवाने वाले अंगीरा के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। अनपढ़ महिलाओं के ज्ञान को देखकर कृषि अधिकारी भी  हैरान रह गए। अंग्रेजो ने कृषि अधिकारी को कपास के पौधे पर मौजूद चार प्रकार की मकड़ी भी  दिखाई। रणबीर मलिक व राममेहर मलिक ने फ्लैक्स के माध्यम से मुख्य कृषि अधिकारी को कपास के कीट तंत्र को विस्तार से समझाया। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने बताया कि वे कपास व अन्य फसलों में कभी  की कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते। उन्होंने बताया कि मासाहारी कीट स्वयं फसल में नुकसान पहुंचाने वाले शाकाहारी कीटों को कंट्रोल कर लेते हैं। मुख्य कृषि अधिकारी सरबजीत सिंह ने भी महिलाओं के कीट प्रबंधन के ज्ञान को देखकर उनके किसानों को भी यहां पर कीट प्रबंधन के गुर सिखाने की इच्छा जाहिर की। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने सहर्ष उनकी हामी भरते हुए पूरा सहयोग करने का आश्वासन भी दिया। इस अवसर पर कृषि विभाग के अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल भी मौजूद थे। बाद में कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने मुख्य कृषि अधिकारी व प्रगतिशील किसान को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।

कीटनाशकों के प्रकोप को रोकने के लिए किसानों को करेंगे जागरुक

होशियारपुर (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी सरबजीत सिंह कंधारी ने आज समाज से अपनी विशेष बातचीत में बताया कि पंजाब में कॉटन बैल्ट के नाम से मसहूर मालवा व आस-पास के क्षेत्रों में किसान कपास व अन्य फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। जिस कारण वहां अधिकतर किसान कैंसर जैसी घातक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। कंधारी ने कहा कि जब हरियाणा की अनपढ़ महिलाएं कीटनाशकों के प्रति इतनी बड़ी मुहिम छेड़ सकती हैं तो वहां के किसानों क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि वे कीटनाशकों के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए वहां के किसानों को जागरुक करेंगे तथा समय-समय पर निडाना में किसानों का दल भेजकर उन्हें यहां के कीट साक्षरता केंद्र से ट्रेनिंग भी दिलवाएंगे और यहां के किसानों भी ट्रेनिंग देने के लिए पंजाब भी बुलाएंगे।
 


रविवार, 10 जून 2012

अब शिक्षा विभाग बच्चों को देगा यात्रा शुल्क

जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों से मांगी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की सूची

जींद। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (अपाहिज) को पढ़ाई के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा विभाग ने खास योजना तैयार की है। इस योजना के तहत विभाग इन बच्चों को स्कूल आने-जाने के लिए यात्रा शुल्क अदा करेगा। विभाग द्वारा इन बच्चों को यात्रा शुल्क के तौर पर हर वर्ष तीन हजार रुपए दिए जाएंगे। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। योजना को अमल में लाने के लिए विभाग के राज्य परियोजना निदेशक ने प्रदेश के सभी जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान कर सूची तैयार करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। विभाग की इस योजना से जिले में 2015 बच्चे लाभावित होंगे। इसके अलावा विभाग द्वारा इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी समर कैंपों का आयोजन भी किया जाता है।
 शिक्षा विभाग ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाई के प्रति प्रेरित करने के लिए कमर कस ली है। अब विभाग इन बच्चों को पैसे के अभाव के कारण पढ़ाई से मुहं नहीं मोड़ने देगा। इन बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए विभाग इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करेगा। विभाग की इस योजना के तहत इन बच्चों को स्कूल आने-जाने के लिए यात्रा शुल्क मुहैया करवाया जाएगा। विभाग द्वारा इन बच्चों को शुल्क के तौर पर हर वर्ष तीन हजार रुपए दिए जाएंगे। विभाग अपनी इस योजना के पीछे इन बच्चों को शिक्षा का अधिकारी दिलवाने तथा पढ़ा-लिखाकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के सपने संजोए हुए है। विभाग की इस योजना से इन बच्चों को प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, साथ-साथ इन बच्चों में शिक्षा प्राप्त कर अच्छा जीवन जीने की ललक भी पैदा होगी। योजना को अमल में लाने के लिए शिक्षा विभाग के राज्य परियोजना निदेशक ने प्रदेश के सभी जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचानकर सूची तैयार करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। ताकि अधिक से अधिक बच्चे इस योजना का लाभ उठा सकें।

आत्म निर्भर बनाने के लिए दिया जा रहा है प्रशिक्षण

विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ आत्म निर्भर बनाने के लिए समर कैंपों का आयोजन किया जा रह है। इन कैंपों में बच्चों को जीवन जीने के सही तरीके तथा स्वरोजगार चलाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। ताकि पढ़ाई के बाद रोजगार प्राप्त न होने की स्थिति में ये बच्चे हीन भावना का शिकार न होकर सही ढंग से अपना रोजगार चलाकर अपनी रोजी-रोटी कमा सकें।

समाज के साथ जोड़ना है मुख्य उद्देश्य

विभाग द्वारा शुरू की जाने वाली योजनाओं का मुख्य उद्देश्य विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। बच्चों में किसी प्रकार की हीन भावना न पनपे इसलिए इन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर समर कैंपों का भी आयोजन किया जाता है।
वंदना गुप्ता
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


‘आम के आम गुठलियों के दाम’

प्रशिक्षण के साथ-साथ शिविरों में छात्राओं को मिलेगा मिड-डे-मील

जिले में 60 प्रशिक्षण शिविरों पर खर्च होगी 23 लाख 82 हजार रुपए की राशि

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जीवन कौशल ग्रीष्मकालीन शिविर में भाग लेने वाली छात्राओं को अब भूखे पेट नहीं रहना पड़ेगा। सर्व शिक्षा अभियान द्वारा पढ़ाई के साथ छात्राओं को आत्म-निर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू किए गए इन प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण के साथ-साथ छात्राओं को मिड-डे-मील भी दिया जाएगा। हरियाणा के मौलिक शिक्षा निदेशक ने एसएसए के जिला परियोजना अधिकारी व जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र के माध्यम से आदेश जारी कर दिए हैं। इस योजना के तहत इस बार जिले में 60 प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाएगा। एसएसए द्वारा इन 60 शिविरों पर 23 लाख 82 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी।
पढ़ाई के साथ-साथ छात्राओं को आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से सर्व शिक्षा अभियान द्वारा 15 दिवसीय जीवन कौशल ग्रीष्मकालीन शिविरों का आयोजन किया जाता है। इन प्रशिक्षण शिविरों में पहली से आठवीं तक की छात्राओं को गर्मियों की छुट्टियों के दौरान सिलाई-कढ़ाई, अचार बनाना, कढ़ाई व कटाई करना, डाकखाने व बैंक में खाता खुलाते समय फार्म भरने, यातायात के नियमों, फर्स्ट एड, बागवानी तथा किशोर अवस्था में आने वाले परिवर्तन के बारे में विस्तार से जानकारी देकर आत्मनिर्भर बनने के गुर सिखाए जाते हैं। इस बार इन प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने वाली छात्राओं को आम के आम और गुठलियों के दाम मिलेंगे। हरियाणा के मौलिक शिक्षा निदेशक द्वारा जारी नए आदेशों के अनुसार अब शिविर में भाग लेने वाली छात्राओं को प्रशिक्षण के साथ-साथ मिड-डे-मील भी दिया जाएगा। मौलिक शिक्षा निदेशक द्वारा एसएसए के जिला परियोजना अधिकारियों व जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी कर तुरंत प्रभाव से नियम लागू करने को कहा गया है। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ छात्राओं को अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होगा। एसएसए द्वारा इस योजना के तहत जिले में 60 प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाएगा। प्रत्येक 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पर 39700 रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इस प्रकार एसएसए द्वारा 60 प्रशिक्षण शिविरों पर 23 लाख 82 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। 

फर्स्ट एड का भी दिया जा रहा है प्रशिक्षण

15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविरों में छात्राओं को सिलाई-कढ़ाई, अचार बनाना, कढ़ाई व कटाई करना, डाकखाने व बैंक में खाता खुलाते समय फार्म भरने, यातायात के नियमों, किशोर अवस्था में आने वाली समस्याओं के अलावा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा फर्स्ट एड के गुर भी सिखाए जा रहे हैं। विभाग द्वारा छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ आपदाओं से निपटने के लिए भी ट्रेंड किया जा रहा है, ताकि भविष्य में जरुरत पड़ने पर छात्राएं दूसरों पर आश्रित न रहकर स्वयं अपनी व दूसरों की मदद कर सकें।

शिविरों के प्रति बढ़ेगा रुझान

विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से छात्राओं को काफी लाभ मिलेगा। छात्राएं प्रशिक्षण शिविर में आत्म निर्भर बनने के गुर सिखने के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त कर सकेंगी। विभाग द्वारा शिविर में मिड-डे-मील देने के निर्णय से शिविरों के प्रति छात्राओं का रुझान भी काफी बढ़ेगा। एसएसए द्वारा इस बार जिले में 60 प्रशिक्षण शिविरों पर 23 लाख 82 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद

विभाग की लापरवाही से लुट रहे किसान

 बाजार में बिक रहा नकली बीज का पैकेट
नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले का कृषि विभाग कुंभकर्णी नींद सोया पड़ा है और बीज विक्रेता खुलेआम धरतीपुत्रों को लूट रहे हैं। डीलर कपास के बीज के नाम पर किसानों को घटिया बीज थमा रहे हैं और भोले-भाले किसान जानकारी के अभाव में बड़ी आसानी से इनके चुंगल में फंस रहे हैं। इन बीजों के पैकेटों पर ब्रांडनेम के साथ-साथ निर्माता कंपनियों का नाम भी  नदारद होता है। बीज अनुमोदित कमेटी के निमयों को दरकिनार कर बाजार में धड़ल्ले से नकली बीज उतारा जा रहा है। डीलर किसानों को नकली बीज थमाकर जमकर चांदी कूट रहे हैं। बाजार में नकली बीज आने से किसान तो ठगी का शिकार हो ही रहे हैं साथ-साथ फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि बीज विक्रेता इस तरह के बीजों की बिक्री के बाद किसानों को बिल भी  नहीं दे रहे हैं, ताकि भविष्य में अगर किसान की फसल में कोई नुकसान होता है तो कानूनी से कार्रवाई से बचा जा सके। लूट का यह खेल कृषि विभाग की ठीक नाक के तले खेला जा रहा है और विभागीय अधिकारी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं।

गजट नोटिफिकेशन के बाद होती है बीज की बिक्री

बीज अधिनियम 1966 के तहत बीज अनुमोदित कमेटी समनवीत परीक्षणों के जरिए बीज अनुमोदित करती हैं। समनवीत परीक्षणों में अव्वल रहने पर ही कमेटी बीज को क्षेत्र अनुसार सिफारिश कर सरकार के पास गजट नोटिफिकेशन के लिए भेजती है। बीज अनुमोदित कमेटी के अनुमोदन पर ही सरकार बीज को अपने गजट नोटिफिकेशन में अधिसूचित करती है और गजट नोटिफिकेशन के बाद ही बाजार में बीजों की बिक्री की जा सकती है।

बीज अनुमोदित कमेटी को कर दिया गया दरकिनार

हिंदूस्तान में बीटी के बीज की बिक्री के लिए इजाजत देने के लिए बीज अनुमोदित कमेटी को दरकिनार करते हुए सरकार ने अनुवांशिकीय अभियंत्रिकी अनुमोदन समिती का गठन किया। समिति के गठन के बाद पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत सरकार ने विशेष शर्तों के साथ इस सदी की शुरूआत में ही बीटी की 6 किस्मों को बैचने की इजाजत दे दी। इसके साथ ही इन बीजों के दुष्प्रभाव की निगरानी रखने के लिए जिला व राज्य स्तर पर पर्यावरण कमेटियों का गठन करने के निर्देश भी जारी कर दिए। सरकार के निर्देशानुसार पर्यावरण कमेटियों के गठन के बाद ही बीटी के बीजों की बिक्री शुरू करने का प्रावधान किया गया था। प्रदेश में 2005 में इन कमेटियों का गठन किया जाना था। इसके साथ दूसरी शर्त यह भी रखी गई थी कि जो भी  डीलर इस बीज की बिक्री करेगा वह किसान को बीज देने से पहले उसकी जमीन का नंबर लेकर पर्यावरण सुरक्षा कमेटियों को देगा, ताकि कमेटियां समय-समय पर किसान के खेत में जाकर यह सुनिश्चित कर सकें कि कहीं इन बीजों से किसी प्रकार के दुष्प्रभाव तो सामने तो नहीं आ रहे हों। लेकिन सरकार के ढीले रवैये व नए नियमों की आड़ में नकली बीज कंपनियों ने बाजार में पूरी तरह से अपनी जड़ें जमा ली हैं। आज बाजार में 6 किस्मों के अलावा 200 से भी ज्यादा किस्म के बीज बाजार में आ चुके हैं। इन बीज के पैकेटों पर न तो कंपनी के निर्माता का नाम है और न ही रेट का उल्लेख किया जाता है। इस प्रकार सरकार के नियमों की आड़ में नकली बीज कंपनियां खुलेआम किसानों की आंखों में धूल झोंक रही हैं और कृषि विभाग कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहा है।

पर्यावरण कमेटियों के बारे में भी नहीं है जानकारी

सरकार ने अनुवांशिकीय अभियंत्रिकी अनुमोदन समिती का गठन कर पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत बीटी के बीजों के दुष्प्रभावों पर निगरानी रखने के लिए जिला व राज्य स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा कमेटियों का गठन करने के निर्देश जारी किए थे। इन कमेटियों के गठन के बाद ही बीटी के बीज की बिक्री करने का प्रावधान था। प्रदेश में 2005 में जिला व राज्य स्तर पर कमेटियों का गठन किया जाना था, लेकिन खुद कृषि विभाग के अधिकारियों को भी अभी तक इन कमेटियों के बारे में पता नहीं है।

बिल देने से भी बच रहे हैं दुकानदार

बीज विक्रेता किसानों को नकली बीज देकर जमकर चांदी कूट रहे हैं। इतना ही नहीं बीज देने के बाद दुकानदार किसानों को बिल देने में भी आनाकानी करते हैं। ताकि अगर भविष्य में किसान की फसल में किसी प्रकार का नुकसान होता है तो वे कानूनी कार्रवाई से आसानी से बच सकें।

शिकायत मिलने पर होगी कार्रवाई

विभाग द्वारा समय-समय पर बाजार में जाकर जांच की जाती है। बाजार में नकली बीज की बिक्री का अभी तक कोई भी मामला उनके सामने नहीं आया है। अगर इस तरह की कोई शिकायत उन्हें मिलती है तो वे दुकानदार के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे।
आरपी सिहाग
कृषि उपनिदेशक, जींद

कृषि विभाग स्प्रे टंकियों पर देगा सब्सिडी

8 लाख 40 हजार रुपए की राशि खर्च 570 किसानों को दिया जाएगा योजना का लाभ

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। कृषि विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘स्टेट प्लान’ योजना के तहत अनुदान पर स्प्रे टंकियां मुहैया करवाई जाएंगी। इस बार कृषि विभाग द्वारा 8 लाख 40 हजार रुपए की राशि खर्च कर जिले में कुल 570 स्प्रे टंकियों पर सब्सिडी देने का टारगेट निर्धारित किया गया है। जिसमें ट्रेक्टर चालित, बैटरी चालित व हाथ से चलने वाले स्प्रे टंकियों पर अलग-अलग अनुदान दिया जाएगा। इसके अलावा विभाग द्वारा किसानों को कपास की खेती में पारंगत करने के लिए अलग से कैंपों का आयोजन कर ट्रेनिंग भी  दी जाएगी। विभाग द्वारा जिले में 10 ट्रेनिंग कैंपों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें प्रत्येक कैंप पर 5 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे।
कृषि विभाग द्वारा तकनीकी खेती को बढ़ावा देकर आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए समय-समय पर नई-नई किसान हितेषी योजनाओं को धरातल पर उतारा जाता है। ताकि किसानों को समय के अनुसार खेती की तकनीकी जानकारियों से अपडेट किया सके। इसी कड़ी के तहत इस बार कृषि विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टेट प्लान योजना के तहत स्प्रे टंकियों पर भारी अनुदान देने का निर्णय लिया है। इस योजना का सबसे ज्यादा लाभ कपास उत्पादक क्षेत्र के किसानों को दिया जाएगा। विभाग द्वारा इस योजना के तहत कुल 8 लाख 40 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। विभाग द्वारा इस राशि से ट्रैक्टर चालित 50, बैटरी चालित 20 व हाथ चालित 500 स्प्रे टंकियों पर अनुदान दिया जाएगा।

कैंपों का किया जाएगा आयोजन

कृषि विभाग द्वारा कपास उत्पादक किसानों को खेती में पारंगत करने के लिए कैंपों का आयोजन किया जाएगा। इन कैंपों में किसानों को कपास की बिजाई से लेकर कटाई तक फसल में आने वाली बीमारियां उनके उपचार व अन्य गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा जिले में 10 कैंपों का आयोजन किया जाएगा। प्रत्येक कैंप पर विभाग द्वारा 5 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इस प्रकार विभाग द्वारा कैंपों के आयोजन पर 50 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी।

स्प्रेपंप का नाम   संख्या  अनुदान राशि  कुल राशि

ट्रैक्टर चालित        50       10000           500000
हाथ चालित         500       600            300000
बैटरी चालित        20        2000            40000
क्या कहते हैं अधिकारी
स्टेट प्लान योजना के तहत किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए स्पे्र टंकियों पर अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना के तहत विभाग द्वारा 8 लाख 40 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। कपास की खेती करने वाले किसानों को ट्रेंड करने के लिए कैंपों का आयोजन किया जाएगा। कैंप में मास्टर ट्रेनरों द्वारा किसानों को कपास की खेती से संबंधी नवीनत जानकारियां दी जाएंगी।
अनिल नरवाल, एपीपीओ
कृषि विभाग, जींद

रविवार, 3 जून 2012

.....खत्म हुई ‘आत्मा’ की तलाश

बीटीएम व एसएमएस बनेंगे किसानों का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि विभाग ‘आत्मा’ को ‘देह’ तक लाने की कवायद में जुट गया है। विभाग ने सुस्त पड़ी आत्मा योजना को चुस्त करने के लिए मैनपॉवर का सहारा लेने का मन बनाया है। इससे ‘देह’ के लिए भटकती ‘आत्मा’ की तलाश पूरी हो गई है। इसके लिए विभाग द्वारा अनुबंध के आधार पर लगभग 210 नए अधिकारियों की भर्त्ती की गई है। जिनमें 91 ब्लॉक टेक्नोलाजी मैनेजर (बीटीएम) व 119 विषय विशेषज्ञों (एसएमएस) की भर्ती की है। बीटीएम व एसएमएस किसानों को समय-समय पर खेती की नई तकनीकी जानकारी देकर कम खर्च से अधिक उत्पादन लेने के गुर सिखाएंगे। विभाग बीटीएम व एसएमएस को फील्ड में उतारने से पहले किसानों के समक्ष आने वाली सभी समस्याओं व उनके समाधान के बारे में ट्रेनिंग देकर विशेष तौर पर ट्रेंड करेगा। इसकी सबसे खास बात यह है कि किसान सामुहिक रूप से अपना कोई भी प्रोजेक्ट तैयार कर बीटीएम के माध्यम से विभाग को भेज सकते हैं। अगर विभाग की तरफ से किसान के प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल जाती है तो विभाग किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उस प्रोजेक्ट पर स्वयं पैसे खर्च करेगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से किसान सीधे विभागीय अधिकारियों के साथ जुड़ सकेंगे।
लगातार घटती कृषि जोत व जानकारी के अभाव के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही थी। जिस कारण खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा था। जिसके बाद कृषि विभाग ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए आत्मा योजना शुरू की थी। इस योजना के माध्यम से विभाग द्वारा किसानों को समय-समय पर कई प्रकार की सहायता दी जाती थी। लेकिन विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी के कारण योजना के माध्यम से किसानों को समय पर किसी प्रकार का लाभा नहीं मिल पाता था। जिस कारण आत्मा योजना अपने मकशद में सफल नहीं हो पा रही थी। कृषि विभाग ने आत्मा योजना को दोबारा से खाड़ा करने के लिए अपनी मैनपॉवर बढ़ाने का निर्णय लिया और अनुबंध के आधार पर लगभाग 210 नए अधिकारियों की भर्त्ती की। जिसमें 91 ब्लॉक टेक्नोलाजी मैनेजर (बीटीएम) व 119 विषय विशेषज्ञों (एसएमएस) की नियुक्ती की है। विभाग बीटीएम व एसएमएस को फील्ड में उतारने से पहले किसानों के समक्ष आने वाली समस्याओं व उनके समाधान के बारे में ट्रेनिंग देकर विशेष रूप से ट्रेंड करेगा। इसके बाद ये बीटीएम व एसएमएस किसानों के बीच पहुंचकर उन्हें विभाग की नई-नई योजनाआ से अवगत करवाएंगे तथा आधुनिक तकनीकों की सहायता से कम खर्च से अधिक पैदावार लेने के गुर सिखाएंगे। बीटीएम के साथ कृषि संबंधी सभी विभागों जैसे बागवानी विभाग, पशुपालन, मछली पालन व अन्य विभाग से जुडेÞ सभी अधिकारियों की एक टीम होगी। इस प्रकार किसानों को कृषि विभाग से संबंधित जिस भी क्षेत्र में समस्या आएगी उसी विभाग से संबंधित अधिकारी किसान की उस समस्या का निदान मौके पर ही कर देगा। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से विभाग की सभी योजनाएं किसानों तक सीधे पहुंच सकेंगी और इससे किसानों के आर्थिक स्तर में भी सुधार हो सकेगा।

अपना प्रोजेक्ट भी विभाग को भेज सकते हैं किसान

इस योजना की सबसे खास बात यह है कि किसान सामुहिक रूप से कोई भी प्रोजेक्ट तैयार कर सकते हैं, जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सके। किसान इस तरह के प्रोजेक्ट को तैयार कर उसकी रिपोर्ट बीटीएम के माध्यम से विभाग को भेज सकते हैं। अगर विभागीय अधिकारियों को किसानों का वह प्रोजेक्ट पंसद आता है तो विभाग अधिक से अधिक किसानों तक उस प्रोजेक्ट को पहुंचाने के लिए अपने तरफ से पैसे खर्च करेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि किसान अपनी योजनाएं भी विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा सकेंगे।

किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है मुख्य उद्देश्य

मैनपॉवर की कमी के कारण विभाग की अधिकतर योजनाएं समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती थी। इसलिए विभाग ने अपनी योजनाओं को समय पर किसानों तक पहुंचाने तथा उनकी समस्याओं के समाधान के लिए बीटीएम व एसएमएस की नियुक्ती की है। विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, किसान प्रशिक्षण केंद्र, जींद

नशों में रम रहा नशा

नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकार धूम्रपान पर रोक लगाने के लिए हर साल करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करना निषेध माना गया है। कोर्ट के इन आदेशों के तहत सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करते पकड़े जाने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन लोगों को सरकार की इस मुहिम से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि नशा उनकी नश-नश में रम चुका है। जिस कारण लोगों में धुआं उड़ाने का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है। जिले में लोगों द्वारा हर माह लाखों रुपए धूएं में उड़ा दिए जाते हैं। सार्वजनिक स्थलों के अलावा सरकारी कार्यालयों में भी सरकारी बाबुओं द्वारा खुलेआम धूम्रपान निषेध कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। लोगों में तम्बाकू की बढ़ती लत के कारण प्रति वर्ष 8.5 लाख लोग मौत का ग्रास बन रहे हैं। पुरुषों के अलावा महिलाओं व बच्चों में भी धूम्रपान का क्रेज बढ़ रहा है। तम्बाकू व्यवसायियों की मानें तो शहर में रोजाना बीड़ी व सिगरेट के एक कैंटर की लोडिंग खप जाती है।
सरकार द्वारा धूम्रपान पर रोक लगाने के लिए लाखों प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार हर वर्ष विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन लोगों में धुआं उड़ाने का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है। बात यह नहीं है कि लोग तम्बाकू व गुटखे से होने वाली बीमारियों के बारे में अनजान हों। लोग धूम्रपान से होने वाले शारीरिक नुकसान के बारे में सबकुछ जानते हुए भी इस लत को नहीं छोड़ पा रहे हैं। तम्बाकू के जलने व उससे पैदा होने वाले धूएं से 4800 प्रकार के रासायनिक तत्व पैदा होते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। 60 प्रतिशत पुरुष व 12 प्रतिशत महिलाएं इस लत का शिकार हैं। धूम्रपान निषेध कानून लागू होने के चार साल बाद भी लोगों पर इसका कोई खासा प्रभाव नहीं पड़ा है। सरकार की धूम्रपान निषेधी मुहिम कागजों तक ही सिमट कर रह गई है। इस मुहिम का असर सरकारी कार्यालयों में बैठे बाबुओं पर भी नहीं पड़ रहा है। साल में एक बार तम्बाकू दिवस पर सरकारी कर्मचारी लोगों को जागरूक करने के लिए बरसाती मैंढ़कों की तरह बाहर आते हैं लेकिन इसके बाद इन कर्मचारियों द्वारा सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करने वाले लोगों के खिलाफ कोई मुहिम नहीं चलाई जाती।

प्रति वर्ष होते हैं 1.8 करोड़ रुपए खर्च

तम्बाकू व्यवसायियों की माने तो शहर में हर रोज लोग 30 हजार रुपए तम्बाकू व 20 हजार रुपए गुटखों पर खर्च करते हैं। इस प्रकार हर माह लोग 9 लाख रुपए धूएं में उड़ा रहे हैं तथा 6 लाख रुपए के गुटखे निगल रहे हैं। लोग प्रति वर्ष 1.8 करोड़ रुपए तम्बाकू व गुटखों पर खर्च करते हैं।

तम्बाकू में होते हैं घातक रासायनिक तत्व

वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिकतर लोग अपनी तलब को पूरा करने के लिए तम्बाकू व गुटखे का सेवन करते हैं। तम्बाकू में अमोनिया व आर्सेनिक जैसे घातक रसायन डाले जाते हैं। अमोनिया का प्रयोग फर्श की सफाई व आर्सेनिक का प्रयोग चींटियों को मारने के लिए बनाई जाने वाली दवाई में किया जाता है। तम्बाकू में निकोटिन पदार्थ भी होता है। निकोटिन शरीर में फेफड़ों व जबड़े के  कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को निमंत्रण देता है।
लघु सचिवालय के बाहर बीड़ी के कश लगाती बुजुर्ग महिला।

बस स्टेंड पर बीड़ी के कश लगाते यात्री।
 तम्बाकू से कोन-कोन सी होती हैं बीमारियां
चिकित्सक नरेश शर्मा ने बताया कि लंबे समय तक धूम्रपान करने से दिल का दौरा, प्रजजन विकार, जन्मदोष, मस्तिष्क संकोचन, अल्जाइमर रोग, स्ट्रोक, मोतिया बिंद, कैंसर, मुहं का कैंसर, भेजन नली, सरवाईकिल, फेफड़ा, पेट, जिगर, गुर्दा, गला, छाती व अधिवृक्त ग्रंथी, श्वसन विकार जैसे रोग उत्पन होते हैं। इस प्रकार धूम्रपान से होने वाली खतरनाक बीमारियों के कारण हर वर्ष 8.5 लोग मौत का ग्रास बन रहे हैं।


शुक्रवार, 1 जून 2012

किसानों के लिए सिर दर्द बनी ‘योजना’

टंकियों के नाम पर होता है फर्जीवाड़ा

नरेंद्र कुंडूजींद। कृषि विभाग द्वारा किसानों के उत्थान के लिए हर वर्ष अनेकों योजनाएं धरातल पर उतारी जाती हैं, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व लंबी प्रक्रिया के कारण विभाग की अधिकतर योजनाएं धरातल पर आने से पहले ही धराशाही हो जाती हैं। कृषि विभाग द्वारा अन्न के सुरक्षित भंडारण के लिए सब्सिडी पर किसानों को टंकियां मुहैया करवाने के लिए शुरू की गई यह योजना भी खामियों का शिकार हो चुकी है। किसानों को लाभावित करने के लिए शुरू की गई यह योजना किसानों के लिए सिर का दर्द बन चुकी है। यह इसी का परिणाम है कि इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा रखे गए 1195 टंकियों के टारगेट में से सिर्फ 450 टंकियां ही किसानों तक पहुंच पाई हैं। बाकी बचे हुए किसानों को टंकियों के लिए आए दिन सरकारी बाबूओं के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं। अधिकतर किसान तो इस लंबी प्रक्रिया से परेशान होकर बीच में ही योजना से मुहं मोड़ लेते हैं।
रबी के सीजन के दौरान कृषि विभाग किसानों को अन्न के सुरक्षति भंडारण के लिए मैटलिक बीन के लिए प्रेरित करता है। ताकि अन्न भंडारण के दौरान किसानों का अन्न सुरक्षित रह सके। किसानों को प्रेरित करने के लिए विभाग सब्सिडी पर करोड़ों रुपए खर्च कर देता है। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा हर वर्ष जिलानुसार टारगेट भी  दिया जाता है। इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में एससी व जरनल के कुल 1195 किसानों को धातु की टंकियों मुहैया करवाने का टारगेट निर्धारित किया गया है। विभाग द्वारा 75 व 50 प्रतिशत अनुदान पर किसानों को टंकियां उपलब्ध करवाई जा रही हैं। टंकियों के निर्माण का कार्य विभाग हरियाणा कृषि उद्योग निगम से करवाता है। कृषि विभाग के अधिकारी कृषि उद्योग निगम के अधिकारियों से बिना तालमेल बनाए ही किसानों को परमिट दे देते हैं, लेकिन जब किसान टंकियां लेने के लिए निगम के कार्यालय पहुंचते हैं तो वहां उन्हें निराशा के सिवाए कुछ हाथ नहीं लगता है। फसल की कटाई यानि एक अप्रैल से ही टारगेट के अनुसार टंकियां बांटने का कार्य शुरू हो जाता है। लेकिन इसे अधिकारियों की लापरवाही कहें या आपसी तालमेल का अभाव जो अभी  तक कृषि विभाग अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाया है। विभाग द्वारा इस वर्ष निर्धारित किए गए 1195 टंकियों के टारगेट में से विभाग सिर्फ 450 किसानों को ही टंकियां मुहैया करवा पाया है। बाकी बचे किसान हर रोज टंकियां लेने के लिए अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी तरफ से भी उन्हें कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। किसानों के हाथ में परमिट तो पहुंच गए हैं, लेकिन अभी टंकियां मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।

फार्म के नाम पर भी  होता है घोटाला

योजना का लाभा  लेने के लिए किसानों को फार्म मुहैया करवाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की होती है, लेकिन कृषि विभाग के अधिकारी टारगेट के अनुसार फार्म तैयार नहीं करवाते। अधिकारी नामात्र फार्म तैयार करवा एडीओ को दे देते हैं। उन्हीं फार्मों से किसानों को अपना काम चलाना पड़ता है। एडीओ किसान को फार्म भरने के लिए नहीं सिर्फ फोटो कॉपी करवाने के लिए ही देते हैं। किसानों को अपनी जेब से पैसे खर्च कर फार्म की फोटो कॉपी करवानी पड़ती है और फार्म के लिए जो पैसा विभाग की तरफ से जारी होता है उसे अधिकारी चट कर जाते हैं। इस प्रकार फार्म के नाम पर भी  अधिकारी घोटाला करने से नहीं चुकते।

इस वर्ष कितना है टारगेट

कृषि विभाग द्वारा इस वर्ष जिले के सभी किसानों के लिए 1195 टंकियां वितरित करने का टारगेट रखा गया है। टारगेट के आधार पर 10 क्विंटल की 500 टंकियां जरनल व 600 टंकियां एससी के लिए निर्धारित की गई हैं। इसके अलावा 5.6 क्विंटल की 95 टंकियां एससी को दी जानी हैं।

बाहर से नहीं खरीद सकते टंकियां

टारगेट के आधार पर किसानों को टंकियां दी जाती हैं। विभाग किसानों के लिए बाहर से टंकियां नहीं खरीद सकता। टंकियों का निर्माण विभाग द्वारा हरियाणा कृषि उद्योग निगम द्वारा करवाया जाता है। टंकियों के निर्माण में प्रयोग होने वाला मैटीरियल विभाग चंडीगढ़ से खरीद कर भेजता है। समय पर मैटीरियल न मिलने के कारण टंकियों के निर्माण में देरी हो जाती है। जिस कारण समय पर किसानों को टंकियां नहीं मिल पाती। विभाग सभी  किसानों को टंकियां मुहैया करवाने के हर संभव प्रयास करता है।
अनिल नरवाल, एपीपीओ
कृषि विभाग, जींद

....टूट रही सांसों की डोर

एम्बुलेंस के साथ नहीं मिलती ईएमटी की सुविधा

 सामान्य अस्पताल में खड़ी एम्बुलेंस का फोटो
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अस्पताल में बढ़ती मरीजों की संख्या पर सुविधाओं का टोटा हावी हो रहा है। खासकर दुरुह स्थिति में गंभीर मरीजों को तुरंत यहां से बाहर रेफर कर देना यहां की नियति बन गई है। अस्पताल प्रशासन द्वारा मरीजों को एम्बुलेंस की सुविधा तो दी जा रही है, लेकिन एम्बुलेंस के साथ मैडीकल टैक्नीशियन की ड्यूटी नहीं लगाई जाती है, जोकि नियम के अनुसार सबसे पहले जरुरी होती है। आपातकालीन परिस्थितियों में मरीज को समय पर प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध न होने के कारण अधिकतर मरीज अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। इस प्रकार अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण मौत मरीज के सिर पर तांडव करती रहती है और मरीज के तामीरदारों के पास सिवाए आंसू बहाने के कोई रास्ता नहीं होता।
जिले के सामान्य अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया न होने के कारण लोगों का विश्वास अस्पताल प्रशासन से उठ चुका है। अस्पताल में वर्तमान में एमरजेंसी एवं आईसीयू दोनों जगह गहन चिकित्सीय सुविधा का अभाव बना हुआ है। डाक्टरों की कमी एवं आधुनिकतम सुविधा के अभाव में अधिकांश मरीज बाहर रेफर कर दिए जाते हैं। खासकर दुर्घटना एवं हाइपरटेंशन के शिकार मरीजों को तो यहां किसी भी हाल में नहीं रखा जाता है। ऐसे थोड़ी सी गंभीर स्थिति में मरीजों को रोहतक पीजीआई रेफर करने की यहां आदत बनी हुई है। मरीज को रेफर करते वक्त एम्बुलेंस में चालक के अलावा ईएमटी या स्टाफ नर्स मौजूद नहीं रहती। जबकि नियम के अनुसार गंभीर परिस्थितियों के दौरान साधान एम्बुलेंस में भी एक ईएमटी होना अनिवार्य होता है। लेकिन शहर के सामान्य अस्पताल में ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता। एम्बुलेंस में प्राथमिक चिकित्सा के आधुनिक उपकरण न होने व तकनीशियन की कमी के कारण मरीज को पीजीआई तक मौत के साए में सफर तय करना पड़ता है। रेफर के दौरान समय पर प्राथमिक चिकित्सा न मिलने के कारण कई बार मरीज भय के कारण ही अपने प्राण त्याग देता है। इस प्रकार अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण मरीज के जीवन की रक्षक एम्बुलेंस खुद ही मरीज के लिए भक्षक बन जाती है।

ऐसे जाती है जान

हाई रिस्की केश व एक्सिडेंट के अधिकतर मामलों में चिकित्सक घायल को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवा पीजीआई रेफर कर देते हैं। लेकिन साधारण एम्बुलेंस में प्राथमिक चिकित्सा उपकरण व अन्य सुविधाएं मौजूद न होने के कारण कई बार मरीज पीजीआई तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं, तो वहीं कई मरीज घंटों तक तड़पते रहते हैं। गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए भी अस्पताल प्रशासन द्वारा किसी ईएमटी या स्टाफ नर्स को साथ नहीं भेजा जाता। जिस कारण बीच रास्ते में ही तड़फ-तड़फ कर मरीज अपनी जान दे देता है।

हर कोई उदासीन

मरीजों को तत्काल उपचार की अच्छी व्यवस्थाओं को लेकर कोई भी चिंतनशील नहीं है। अस्पताल प्रशासन संसाधनों की कमी बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं तो डॉक्टर स्थिति की नजाकत को देखते हुए मरीज को रेफर कर देते हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि व आला अधिकारी प्रदेश सरकार से अस्पताल में पर्याप्त चिकित्सकीय उपकरणों की व्यवस्था कराने में अब तक सफल नहीं हो पाए हैं।

क्या-क्या सुविधाएं हैं अनिवार्य

किसी भी हादसे में घायल हुए मरीज को सही सलामत अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस में सबसे पहले फर्स्ड एड बॉक्स होना अनिवार्य है। ताकि अस्पताल पहुंचाने से पहले घायल को प्राथमिक उपचार देकर बचाया जा सके। इसके अलावा एम्बुलेंस में आक्सिजन सिलेंडर, चिकित्सा संबंधी सभी उपकरण व एमरजेंसी मेडीकल टेक्नीशियन (ईएमटी) होना चाहिए, जो घायल को समय पर सही उपचार देकर उसकी सांसों की डोर को टूटने से बचा सके।

चालकों को भी दिया जाएगा प्रशिक्षण

गंभीर परिस्थतियों में मरीज के साथ एक ईएमटी होना अनिवार्य होता है। अस्पताल प्रशासन द्वारा गंभीर परिस्थितियों के दौरान मरीज के साथ ईएमटी भेजने का प्रावधान किया गया है। लेकिन अब मरीजों की इस समस्या को खत्म करने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा ईएमटी के अलावा एम्बुलेंस के चालकों को भी प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि रेफर करते समय अगर रास्ते में मरीज को किसी प्रकार की परेशानी होती है तो चालक उसे प्राथमिक उपचार देकर बचा सके।
डा. राजेंद्र प्रसाद
सिविल सर्जन, जींद

बिना बस्ता, पढ़ाई हुई खस्ता

 आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी नहीं पहुंची पुस्तकें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
गर्मियों की छुट्टियां सिर पर हैं और अभी तक सरकारी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं। पुस्तकों के बिना विद्यार्थी किसी तरह की पढ़ाई कर पा रहे होंगे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी विद्यार्थियों तक पुस्तकें नहीं पहुंच पाने से प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर राजकीय स्कूलों में मुफ्त में बेहतर शिक्षा देने के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न करवाकर शिक्षा विभाग विद्यार्थियों के भविष्य के साथ सीधे तौर पर खिलवाड़ कर रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रदेशभर के 4476 सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी आज भी पुस्तकों का इंतजार कर रहे हैं। इससे अध्यापकों को भी सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट तैयार करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आखिर अध्यापक बिना पुस्तकों के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर उनकी रिपोर्ट तैयार कर पाएंगे।
प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर छह से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। मुफ्त शिक्षा के लिए कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों को किताबें, कॉपियां, अन्य स्टेशनरी, स्कूल वर्दी व दूसरी पाठन सामग्री मुफ्त देने के भी दावे किए जा रहे हैं। लेकिन प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। दरअसल 2012-13 का शैक्षणिक सत्र एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। लेकिन अभी तक स्कूलों में पाठयक्रम की पुस्तकें ही नहीं पहुची हैं। जबकि विभाग द्वारा पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक राजकीय स्कूलों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को दाखिले लेते समय ही  पाठयक्रम की सभी पुस्तकें निशुल्क मुहैया करवाई जाने का प्रावधान है। नियमों के अनुसार पाठयक्रम की पुस्तकें शैक्षणिक सत्र के शुभारम्भ पर ही विद्यार्थियों को मिलनी चाहिएं। लेकिन आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी अभी तक विद्यार्थियों को किताबें नहीं मिल पाई हैं। किताबें न मिलने से बच्चे व उनके अभिभावक दोनों निराश हैं। पाठयक्रम की पुस्तकें उपलब्ध न होने से विद्यार्थियों की व्यापक स्तर पर पढ़ाई प्रभावित हो रही है। पुस्तकों की स्थिति को देखते हुए सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा के सुधार के बड़े-बड़े दावों की पोल खुल रही है। पिछले शैक्षणिक सत्र में भी राजकीय स्कूलों में समय पर पुस्तकें नहीं पहुची थी। वर्तमान में भी शिक्षा विभाग ने इस दिशा में कोई सुधार नहीं किया।

नए-नए प्रयोगों से गिर रहा है शिक्षा का स्तर

शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा पर हर बार किए जा रहे नए-नए प्रयोगों से प्रदेश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। विभाग भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त में अच्छी शिक्षा देने के दावे कर रहा हो, लेकिन इसके परिणाम भी उल्टे ही निकल कर सामने आ रहे हैं। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी जब बच्चों को पुस्तकें नहीं मिलेंगी तो बच्चे किस तरह प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का मुकाबला कर पाएंगे। विभाग की तरफ से मुफ्त में पुस्तकें मिलने के लालच में अभिभावक भी बच्चों के लिए किताबें खरीदने से परहेज करते हैं। इस प्रकार विभाग की लापरवाही व अभिभावकों के लालच के फेर में आखिर नुकसान तो बच्चे को ही उठाना पड़ेगा।

कैसे तैयार करें सत्त शिक्षा मूल्यांकन की रिपोर्ट

शिक्षा विभाग द्वारा सत्त शिक्षा मूल्यांकन नियम के तहत कक्षा पहली से कक्षा आठवीं कक्षा तक किसी भी विद्यार्थियों को फेल न किए जाने का प्रावधान किया गया है। सत्त मूल्यांकन के तहत अध्यापक को हर रोज प्रत्येक बच्चे का मूल्यांकन कर उसकी रिपोर्ट तैयार करनी होती है। लेकिन बच्चों को समय पर पुस्तकें उपलब्ध न होने के कारण यह सवाल उठाना भी लाजमी है कि आखिर अध्यापक बिना पुस्तक के किस तरह बच्चों का मूल्यांकन कर पाएंगे।
परीक्षा परिणाम पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभव
आधा शैक्षणिक सत्र बीत चुका है, लेकिन अभी तक बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। इससे बच्चे पढ़ाई के क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। जिसका परीक्षा परिणाम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बाद में विभागीय अधिकारियों द्वारा परीक्षा परिणाम खराब आने पर उल्टा अध्यापक को ही इसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
राजेश खर्ब, जिला प्रधान
हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ

प्रिंटिंग में देरी के कारण नहीं पहुंची पुस्तकें

प्रिंटिंग में हुई देरी के कारण उनके पास समय पर पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। जिस कारण अभी तक स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। इस बारे में विभागीय अधिकारियों को भी लिखित में सूचना दी जा चुकी है। ऊपर से पुस्तकें आते ही सभी स्कूलों में भिजवा दी जाएंगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकार
एसएसए, जींद

खुलेआम बट रहा मौत का सामान

 शाम होते ही सजने लगती हैं नशे की दुकानें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में स्मैक का गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। नशे के सौदागर कस्बे में अपनी जड़ें जमा चुके हैं। शाम होते ही सार्वजनिक स्थानों पर स्मैक की महफिलें सज जाती हैं और यहां खुलेआम मौत का सामन बटता है। मंडी में ही दर्जभर से ज्यादा प्वाइंट हैं, जहां पर स्मैक की धड़ल्ले बिक्री की जा रही है। नशे के सौदागरों का निशाना कम उम्र के युवा वर्ग पर सबसे ज्यादा है। इसकी का परिणाम है कि यहां का युवा वर्ग सबसे ज्यादा नशे की गिरफ्त में आ चुका है। पुलिस सब कुछ जानकर भी अनजान बनी बैठी है। हैरानी की बात यह है पुलिस ने नशे के सौदागरों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे पुलिस की कार्य प्रणाली भी संदेह के घेरे में आ रही है।
शहर में नशे का कारोबार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। स्मैक के नशे ने युवाओं में अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। इसीलिए नशे के कारोबारी भी अपने कारोबार को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। स्मैक के अलावा कस्बे में अफीम, गांजा, चरस का कारोबार भी खुल चल रहा है। नशे के सौदागर नशे के साथ-साथ लोगों को कई प्रकार की बीमारियां भी परोस रहे हैं। शहर के अनेक सम्पन्न व गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस व्यवसाय के बढ़ते कारोबार से कस्बे के होनहार बच्चों का भविष्य खतरे में हैं।

किस-किस जगह पर सजती हैं महफिलें

पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में पिछले काफी समय से नशे का कारोबार लगातार पैर पसार चुका है। जिस कारण कस्बे में एक दर्जन से भी ज्यादा स्थानों पर खुलेआम नशे का कारोबार चलता है। इनमें सबसे प्रमुख स्थान कस्बे का प्रभूनगर, सत्यम कॉलोनी, रेलवे फाटक, रेलवे स्टेशन, धड़ोली मोड़, अमरावली रोड, तहसील कैंप के पास, नई अनाज मंडी, रेलवे कॉलोनी, कालवा रोड मुख्य अड्डे बन चुके हैं। इन अड्डों पर शाम होते ही खुलेआम मौत का सामान बटने लगता है।   

आपराधिक घटनाओं में संलिप्त हो रहे हैं युवा

इन दिनों शहर के युवा कम उम्र में ही नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। नशे के सौदागर कम उम्र के युवकों पर अपने निशाने पर लेते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव के कारण ये आसानी से इनकी गिरफ्त में आ जाते हैं। नशे के सौदागर युवाओं को अपने जाल में फांसने के लिए पहले युवाओं में नशे का शोक पैदा करते हैं और नामात्र कीमत पर इन्हें नशा उपलब्ध करवा देते हैं। बाद में जब ये नशे के आदि हो जाते हैं तो नशे के बदले में इनसे मुहं मांगे दाम वसूले जाते हैं। जिस कारण अधिकतर युवा अपनी लत को पूरा करने के लिए गलत रास्ते का सहारा लेकर आपराधिक घटनाओं में संलिप्त हो जाते हैं।

खत्म हो जाती है स्मरण शक्ति

स्मैक का नशा काफी खतरनाक होता है। एक बार इसकी लत लगने के  बाद यह आसानी से नहीं छुटती है। स्मैक की जकड़ में आने के बाद व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। शरीर कमजोर पड़ जाता है। वजन काफी तेजी से घटने लगता है। व्यक्ति का अपने शरीर पर कोई कंट्रोल नहीं रहता। व्यक्ति मानसिक व शारीरिक रूप से पूरी तरह से टूट जाता है।
दिलबाग दूहन, प्रोजैक्ट डायरेक्टर
नशा मुक्ति केंद्र, जींद

पुलिस नहीं उठा रही सख्त कदम

कस्बे में कई स्थानों पर नशे का कारोबार खुलेआम चल रहा है। लेकिन नशे की दुकानों को बंद करवाने में पुलिस की भूमिका सक्रीय नहीं है। पुलिस के ढुलमुल रवैये के कारण नशे के कारोबारी अपने कारोबार को चमकाने में जुटे हुए हैं। पुलिस सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी हुई है। पुलिस की नकारात्मक भूमिका के कारण कस्बे के लोगों में पुलिस प्रशासन के प्रति गहरा रोष पनप रहा है। 
नवीन गोयल, प्रधान
भारत विकास मंच, पिल्लूखेड़ा

शिकायत मिलने पर की जाती है कार्रवाई

कस्बे में कई लोग स्मैके के कारोबार में शामिल हैं। पुलिस नशे के सौदागरों की हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है। नशे के कई कारोबारियों को पुलिस सलाखों के पीछे पहुंचा चुकी है। शिकायत मिलने पर पुलिस तुरंत रेड डाल कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है।
राजेंद्र सिंह थाना प्रभारी
पिल्लूखेड़ा

धरती पुत्रों को हाइटैक बनाने की योजना पर ग्रहण

किसानों को अभी  तक नहीं मिली वित्तवर्ष 2011 की सब्सिडी

सब्सिडी के लिए किसान काट रहे हैं कार्यालयों के चक्कर
नरेंद्र कुंडू
जींद।
धरती पुत्र को हाइटैक बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय  कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) पर कृषि विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया है। विभाग की तरफ से कृषि यंत्रों पर मुहैया करवाई जाने वाली वित्त वर्ष 2011 की सब्सिडी किसानों को अभी तक नहीं मिल पाई है। हालांकि किसानों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर कृषि यंत्र तो खरीद लिए हैं, लेकिन सब्सिडी के लिए किसानों को अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप व कल्टीवेटर की खरीद करने वाले जिले के 170 किसान अभी तक सब्सिडी से वंचित हैं। इस प्रकार कृषि विभाग किसानों की लगभग 25 लाख रुपए की सब्सिडी राशि पर कुंडली मारे बैठा है।
किसानों को हाईटैक बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्टÑीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) शुरू की गई है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार हर वर्ष किसानों को कृषि यंत्र खरीदवाने के लिए कृषि विभाग के माध्यम से लाखों रुपए की राशि जारी करती है। कृषि विभाग योजना पर अमल करते हुए कृषि यंत्र खरीदने के लिए किसानों से आवेदन मांगता है और जिस किसान ने पहले योजना का लाभा न लिया हो, उन किसानों का ड्रा सिस्टम के तहत ड्रा निकाल कर पात्र प्रमाण पत्र जारी कर कृषि यंत्र खरीदने की अनुमती प्रदान करता है। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2011 में कृषि विभाग ने किसानों से ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप, कल्टीवेटर, स्ट्रा रिपर, जीरो ड्रिल मशीन, कोटन ड्रिल मशीन व अन्य कृषि यंत्र खरीदने के लिए आवेदन मांगे थे। इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को सबिसडी देने के लिए विभाग को लाखों रुपए की राशि भी जारी कर दी गई थी। जिसके बाद कृषि विभाग ने किसानों से आवेदन मांगे थे। विभाग ने किसानों से आवेदन भी मांग लिए, ड्रा भी निकाल दिया तथा किसानों को कृषि यंत्र खरीदने के लिए पात्र प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए, लेकिन सब्सिडी अभी तक जारी नहीं की। कृषि अभियंत्रिक विभाग की तरफ से पात्र प्रमाण पत्र जारी होने के बाद किसानों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर कृषि यंत्र खरीद लिए, लेकिन अब किसानों को सब्सिडी लेने के लिए विभागीय अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी सब्सिडी लेने के लिए किसानों को कृषि अभियंत्रिक अधिकारियों के कार्यालय व कृषि अभियंत्रिक विभाग के अधिकारी उलटा कृषि विभाग के कार्यालय भेज देते हैं। इस प्रकार कृषि अभियंत्रिक व कृषि विभाग के अधिकारी अपनी खाल बचाने के चक्कर में किसानों की चक्करघिरनी बनाए हुए हैं।

कितने किसानों को नहीं मिली सब्सिडी

आरकेवीवाई योजना के तहत कृषि विभाग ने वित्त वर्ष 2011 में किसानों से ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप, कल्टीवेटर, स्ट्रा रिपर, जीरो ड्रिल मशीन, कोटन ड्रिल मशीन व अन्य कृषि यंत्र खरीदने के लिए आवेदन मांग थे। विभाग ने सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद किसानों को पात्र प्रमाण पत्र देकर कृषि यंत्र खरीदने की अनुमति दे दी थी। किसानों द्वारा कृषि यंत्र खरदीने के बाद विभाग ने कुछ किसानों को तो सब्सिडी दे दी, लेकिन ट्रेक्टर चालित स्प्रे पंप खरीदने वाले 100 व कल्टीवेटर खरीदने वाले 70 किसानों को अभी तक सब्सिडी का लाभ नहीं मिला है।

ग्रांट आते ही मुहैया करवा दी जाएगी सब्सिडी

विभाग द्वारा ज्यादातर किसानों को मार्च माह तक सब्सिडी मुहैया करवा दी थी, लेकिन ट्रेजरी में ई-सैलरी सिस्टम शुरू होने के कारण केंद्र सरकार की तरफ से विभाग को समय पर ग्रांट नहीं मिल सकी। जिस कारण किसानों को सब्सिडी मिलने में देरी हुई है। अभी सरकार की तरफ से लगभग 25 लाख रुपए की ग्रांट आनी बाकी है। ग्रांट आते ही सभी किसानों को सब्सिडी मुहैया करवा दी जाएगी।
जिले सिंह, सहायक कृषि अभियंता
कृषि अभियंत्रिक विभाग, जींद

कम्प्यूटर शिक्षा के पहिये पर ब्रेक

टेंडर अलाट न होने के कारण नहीं हो सकी कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। पिछले दो वर्षो से सरकारी स्कूलों में बच्चों की कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति ही हो रही है। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा के पहिये पर ब्रेक लगा हुआ है। सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा टेंडर अलाट कर प्राइवेट कंपनी के माध्यम से प्रदेश के हाई स्कूलों के लिए 2622 कम्प्यूटर शिक्षक नियुक्त किए जाने थे, लेकिन सरकार द्वारा अभी   तक किसी भी कंपनी को टेंडर ही अलाट नहीं किए गए हैं। टेंडर अलाट न होने के कारण कम्प्यूटर शिक्षा अधर में लटकी पड़ी है। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी  कम्प्यूटर शिक्षकों की नियुक्ती न होने से सरकार की कार्य प्रणाली पर तो प्रश्न चिह्न लग ही रहा है, साथ में यह सवाल भी  खड़ा हो रहा है कि आखिर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी बिना गुरु के किस तरह कम्प्यूटर शिक्षा में दक्ष हो सकेंगे।
सूचना क्रांति के साथ आई कम्प्यूटर क्रांति ग्रामीण सरकारी स्कूलों में समय पर तो पहुंची, लेकिन सरकारी अव्यवस्था के कारण वह सिरे नहीं चढ़ सकी। इसके चलते विभिन्न योजनाओं के तहत स्कूलों में आए कम्प्यूटर अब प्रशिक्षक न होने के कारण धूल फांक रहे हैं। अगर फिलहाल प्रदेश के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था पर नजर डाली जाए तो वहां पर कम्प्यूटर तो हैं, लेकिन बच्चों को इसका ज्ञान देने के लिए कोई शिक्षक उपलब्ध ही नहीं है। प्रदेश के अधिकतर स्कूलों की कम्प्यूटर लैब के कमरों पर से तो आज तक ताला ही नहीं खुल सका है। सरकारी स्कूलों में पिछले दो वर्षों से कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हो रही है। सीनियर सेकेंडरी स्कूलों को छोड कर किसी भी हाई स्कूल में अभी तक कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती नहीं हो पाई है। इस वर्ष सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा टेंडर अलाट कर प्राइवेट कंपनी के माध्यम से प्रदेश के हाई स्कूलों के लिए 2622 कम्प्यूटर शिक्षक नियुक्त किए जाने थे, लेकिन सरकार द्वारा अभी तक किसी भी कंपनी को टेंडर ही अलाट नहीं किए गए हैं। आधा शैक्षणिक सत्र बीत जाने के बाद भी कम्प्यूटर शिक्षकों की नियुक्ती न होने के कम्प्यूटर लैब में पड़े-पड़े धूल फांक रहे हैं और विद्यार्थी शिक्षकों के इंतजार में हैं। शिक्षकों के अभाव में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को अपना कम्प्यूटर शिक्षा का सपना साकार होता नहीं दिख रहा है।

चाहकर भी नहीं ले पा रहे शिक्षा

सूचना क्रांति के इस दौर में हर ग्रामीण विद्यार्थी कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करना चाहता है, लेकिन सरकारी स्कूलों में व्यवस्था नहीं होने से उसे निजी इंस्टीट्यूटों में जाकर महंगे दामों पर यह शिक्षा प्राप्त करनी पड़ रही है। वे चाहकर भी सरकारी स्कूल में कम्प्यूटर भी शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं। शिक्षकों के अभाव के कारण सरकारी स्कूलों की लैब में रखे लाखों रुपए की कीमत के कम्प्यूटर धूल फांक रहे हैं।

टेंडर नहीं हुए हैं अलाट

लैब सहायक का टेंडर सरकार ने उनकी कंपनी को दिया हुआ है। सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर टीचर की नियुक्ती के लिए सरकार द्वारा टेंडर निकाले गए थे। जिसके तहत प्रदेशभर में 2622 कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती की जानी थी, लेकिन अभी  तक सरकार ने किसी भी  प्राइवेट कंपनी को टेंडर अलाट नहीं किए हैं। टेंडर अलाट न होने के कारण ही अभी  तक कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती नहीं हो पाई है।
आकाश रस्तोगी
सीनियर मैनेजर, एनआईसीटी
 सरकारी स्कूल में कम्प्यूटर लैब पर लटका ताला

प्राइवेट कंपनी की है जिम्मेदारी

सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर के रखरखाव के लिए लैब सहायकों की नियुक्ती के लिए सरकार ने एनआईसीटी को टेंडर दिया हुआ है। हाई स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती के लिए सरकार द्वारा प्राइवेट कंपनी को टेंडर दिया जाना है। टेंडर के बाद ही स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती हो सकेगी। सीनियर सैकेंडरी स्कूलों में कम्प्यूटर टीचरों की नियुक्ती की जा चुकी है।
साधू राम रोहिल्ला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


अब किसान घर पर ही जान सकेंगे मंडी के भाव व मौसम का हाल

किसान क्लब ने किसानों के लिए तैयार की वेबसाइट

नरेंद्र कुंडू
जींद। अब किसानों को मौसम की चिंता नहीं सताएगी। किसान घर बैठे-बिठाए ही प्रदेश की सभी  मंडियों के भावों की जानकारी भी ले सकेंगे। इसके लिए चौ. छोटू राम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों द्वारा एक वेबसाइट तैयार की गई है। वेबसाइट पर अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओं में जानकारी उपलब्ध करवाई गई है। वेबसाइट के माध्यम से किसान आगामी 5 दिनों तक मौसम में होने वाले परिर्वतन का हाल जान सकेंगे। किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट पर मौसम व मंडी के भावों के अतिरिक्त किसानों को फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक की पूरी प्रक्रिया व कम लागत से अधिक पैदावार लेने संबंधी जानकारी  उपलब्ध करवाई जाएंगी। किसानों तक जो जानकारियां कृषि विभाग नहीं पहुंचा पा रहा है वह सभी जानकारियां किसान क्लब वेबसाइट के माध्यम से पहुंचाएगा। इसके पीछे क्लब का मुख्य उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना है।
किसान अब कम्प्यूटर के माध्यम से घर बैठे-बिठाए ही कृषि संबंधी सभी जानकारियां हासिल कर सकेंगे। मौसम से लेकर प्रदेश की सभी मंडियों के भावों तक की सारी जानकारी किसानों को एक ही वेबसाइट पर मिल जाएगी। किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से चौ. छोटू राम किसान क्लब द्वारा एक वेबसाइट तैयार की गई है। क्लब द्वारा तैयार की गई डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट किसानक्लब डॉट कॉम वेबसाइट किसानों के लिए एक प्रकार से मास्टर ट्रेनर का काम करेगी। इस वेबसाइट से किसान फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक की सारी प्रक्रिया तथा फसल में समय-समय पर आने वाली बीमारियां व उनके उपचार के बारे में विस्तार से जानकारी ले सकेंगे। घटती कृषि जोत को देखते हुए किसानों को कम लागत से अधिक पैदावार लेने के लिए विशेष टिप्स दिए जाएंगे। कृषि विभाग किसानों तक जो जानकारियां नहीं पहुंचा पा रहा है, वह सभी जानकारियां क्लब द्वारा वेबसाइट पर डाली जाएंगी। इस वेबसाइट की एक खास बात यह भी है कि कृषि विभाग मुख्यालय से किसानों के लिए जो योजनाएं लागू की जाएंगी वेबसाइट के माध्यम से उसकी जानकारी भी किसानों को साथ की साथ मिल जाएगी।

वेबसाइट से किसानों को क्या-क्या मिलेगी जानकारियां

चौ. छोटू राम किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट पर फसल की बिजाई से लेकर कटाई तक तथा इस दौरान फसल में आने वाली बीमारियां व उनके उपचार। कम लागत से अधिक पैदावार लेने, कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए शुरू की गई योजनाएं, प्रदेश की सभी मंडियों के भाव, उत्तम कृषि उत्पाद लेने के टिप्स, प्रदेश व जिले के मौसम की जानकारी सहित कृषि संबंधी अन्य सभी जानकारियां वेबसाइट पर अपडेट रहेंगी। इस वेबसाइट की सबसे खास बात यह है कि किसान आगामी 5 दिनों तक मौसम में होने वाले परिवर्तन की जानकारी लेकर फसल को मौसम से होने वाले नुकसान से भी बचा सकेंगे तथा मौसम के अनुसार ही फसल में खाद व पानी दे कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार वेबसाइट के माध्यम से किसान अपडेट रह सकेंगे।
कीटनाशक रहित खेती की जगाएंगे अलख
 किसान क्लब द्वारा तैयार की गई वेबसाइट का फोटो।

किसान क्लब के सलाहकार सुनील आर्य ने बताया कि किसानों को खेती के क्षेत्र में सशक्त करने के उद्देश्य से यह वेबसाइट तैयार की गई है। आर्य ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव के कारण फसल में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग करने लगे हैं। फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण हमारा भेजना तो जहरिला हो ही रहा है, साथ-साथ पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण को बचाने व खान-पान को जहर मुक्त करने के लिए किसानों को कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा।