शनिवार, 31 दिसंबर 2011

सुलगने लगी आंदोलन की चिंगारी

नए साल से करेंगे आंदोलन की शुरूआत
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अपने साथ हो रहे सौतेले व्यवहार व अपने हक के लिए डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों में आंदोलन की चिंगारी सुलगने लगी है। मुख्यमंत्री द्वारा अनुबंधित अध्यापकों को वेतनवृद्धि का तोहफा दिए जाने के बाद डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों के अंदर छिपी ये चिंगारी अब उग्र रूप धारण कर रही है, जो जल्द ही आंदोलन का रूप धारण कर सकती है। समान काम व समान वेतन की मांग को लेकर लड़ाई लड़ने के लिए ये कर्मचारी आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं। अपने इस आंदोलन में अपनी मांगों के साथ-साथ काल का ग्रास बन चुके डीसी रेट के 93 कर्मचारियों के हक के लिए भी आवाज उठाई जाएगी। डीसी रेट के कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले आंदोलन के संकेत अभी गत दिवस 28 दिसंबर को नेहरू पार्क में हुई बैठक के माध्यम मिल चुके हैं। आंदोलन को सफल बनाने के लिए डीसी रेट के कर्मचारी सूचना एवं प्रौद्योगिकी का भी सहारा ले रहे हैं। एसएमएस के माध्यम से सभी कर्मचारियों को आंदोलन के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है।
हरियाणा बिजली वितरण निगम ने कर्मचारियों की तंगी से राहत पाने के लिए 2008 में 6 हजार असिस्टेंट लाइनमैन (एएलएम) भर्ती किए थे। पिछले तीन साल से जान हथेली पर लेकर काम कर रहे ये कर्मचारी निगम व सरकार द्वारा कोई विशेष सुविधा मुहैया न करवाए जाने से निराश हैं। टूल किट व अन्य सुविधाओं के अभाव के कारण इन तीन सालों में डीसी रेट पर कार्यरत 93 कर्मचारी अपनी जान गवां चुके हैं। काम के दौरान जान गवाने वाले इन कर्मचारियों को निगम या सरकार द्वारा आज तक किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। निगम में कर्मचारियों की कमी के चलते डीसी रेट के कर्मचारियों के कंधों पर ही काम का सारा भार है। काम ज्यादा व वेतन कम होने के कारण ये कर्मचारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा हाल ही में अनुबंधित अध्यापकों को दिए गए वेतन के तोहफे के बाद डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों के सब्र का बांध टूट गया है। अपने साथ हो रहे सौतेले व्यवहार से परेशान ये कर्मचारी अब अपने हक के लिए लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। डीसी रेट के कर्मचारियों द्वारा भविष्य में किए जाने वाले आंदोलन के संकेत हाल ही में 28 दिसंबर को शहर के नेहरू पार्क में हुई बैठक के माध्यम से मिल चुके हैं। अपने इस आंदोलन के लिए ये कर्मचारी रणनीति तैयार कर रहे हैं। कर्मचारियों द्वारा इस आंदोलन की शुरूआत भी नए साल से की जाएगी। नए साल पर शहर के नेहरू पार्क में होने वाली बैठक में पूरे प्रदेश के डीसी रेट के बिजली कर्मचारी भाग लेंगे और आंदोलन की आगामी रूपरेखा तैयार करेंगे।  
एसएमएस के माध्यम से दे रहे हैं निमंत्रण
समान काम, समान वेतन की मांग को लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ने वाले इन कर्मचारियों ने आंदोलन को सफल बनाने के लिए हाईटेक विधि को अपनाया है। सूचना एवं प्रौद्योगीकी के इस युग में इन कर्मचारियों ने इंटरनेट  को अपना हथियार बनाया है। अपने आंदोलन को सफल बनाने के लिए डीसी रेट के कर्मचारियों ने नेट पर एसएमएस का अपना एकाऊंट बनवा लिया है और एसएमएस के जरिये अपने साथियों को निमंत्रण दे रहे हैं। ताकि आंदोलन में किसी भी प्रकार की कमी न रहे। अभी एसएमएस के माध्यम से एक जनवरी 2012 को जींद के नेहरू पार्क में एकत्रित होने के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है।
मृतक कर्मचारियों के हक के लिए भी लड़ेंगे लड़ाई
इस आंदोलन के जरिये अपनी मांगों के साथ-साथ काम के दौरान काल का ग्रास बने उन 93 कर्मचारियों के हक के लिए भी आवाज उठाई जाएगी। सब डिविजन प्रधान रविंद्र राणा, सुनिल, जसबीर, सागर व योगेश बताया कि मृतक कर्मचारियों के परिजनों को कम से कम 5 लाख रुपए मुआवजा दिलवाने की मांग की जाएगी। ताकि मृतक कर्मचारी के परिजन आसानी से अपना गुजर-बसर कर सकें। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए हरियाणा उत्तरी बिजली निगम के पदाधिकारियों से भी सहयोग लिया जाएगा।
क्या है आंदोलन की रणनीति
अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए डीसी रेट के कर्मचारियों ने नए साल से आंदोलन की शुरूआत करने का निर्णय लिया है। एक जनवरी 2012 को शहर के नेहरू पार्क में पूरे प्रदेश के डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारी इकट्ठा होकर आंदोलन की आगामी रूप रेखा तैयार करेंगे। एक जनवरी 2012 को शहर के नेहरू पार्क में एकत्रित होंगे। यहां से शहर में प्रदर्शन कर उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री व बिजली मंत्री के नाम अपना ज्ञापन सौंपेंगे। इसके बाद 7 जनवरी को बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के आवास का घेराव करेंगे। इसके बाद भी अगर मांगें पूरी नहीं हुई तो अन्ना हजारे के रास्ते पर चलते हुए जिला स्तर पर भूख हड़ताल करेंगे।
क्या हैं डीसी रेट के कर्मचारियों की मांगें
  1. नई भर्ती को रोक कर डीसी रेट पर कार्यरत कर्मचारियों को पक्का किया जाए।
  2. डीसी रेट के सभी कर्मचारियों को टूल किट उपलब्ध करवाई जाएं।
  3. पक्के कर्मचारियों के समान वेतन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाएं।
  4. काम के दौरान काल का ग्रास बने सभी कर्मचारियों को 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए।

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

टूटे दिलों को जोड़ने की कवायद

परिवार परामर्श केंद्र ने निपटाए 867 मामले 
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केन्द्र रिश्तों में आई दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केन्द्र में अब तक 876 मामले सामने आए। जिसमें से परामर्शदाताओं ने 867 परिवारों को जोड़ने का काम किया। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष ज्यादा मामले निपटारे के लिए परिवार परामर्श केंद्र में आए हैं। हर वर्ष औसतन 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। जागरूकता के अभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहट को दूर करने व लोगों को जागरूक करने के लिए जिला बाल कल्याण परिषद ने गांव व कस्बों में जाकर जागरूकता शिविर लगाने का निर्णय लिया है।
आधुनिकता की चकाचौंध व भागदोड़ भरी जिंदगी के कारण आज इंसान अपने वास्तविक रिश्तों की पहचान खो रहा है। आपसी तालमेल के अभाव व जागरूकता की कमी के कारण दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट बढ़ रही है। जिस कारण कई बार तो दोनों में तलाक तक की नौबत आ जाती है और लोग जागरूकता के अभाव के कारण कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ जाते हैं। कोर्ट-कचहरी की लंबी प्रक्रिया से हार-थक जाने के बाद भी जब उन्हें न्याय नहीं मिलता तो उन्हें अपनी गलती का अहसार होता और जब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वहीं जिला बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाया जा रहा परिवार परामर्श केंद्र रिश्तों में आई इस दरार को जोड़ने में वरदान साबित हो रहा है। परिवार परामर्श केंद्र में 1995 से लेकर अब तक 876 केश रजिस्टर्ड हुए हैं। जिनमें से 867 मामलों का निपटारा किया जा चुका है और आज वो परिवार बड़े अच्छे ढंग से अपना जीवन बसर कर रहे हैं। परिवार परामर्श केंद्र के प्रति अब लोगों की सोच बदल रही है। अब अधिक से अधिक लोग परिवार परामर्श केंद्र के माध्यम से अपने मामलों का निपटारा करवाने में रुचि दिखा रहे हैं। हर वर्ष केंद्र में 50 से 60 मामले रजिस्ट्र हो रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2010 की बजाए 2011 में ज्यादा मामले परिवार परामर्श केंद्र के पास पहुंचे हैं। 2010 में 54 मामले परिवार परामर्श केंद्र में आए थे, जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत मामलों का समाधान आपसी सुलह से करवा दिया गया है और अप्रैल 2011 से सितंबर यानि 6 माह में 41 मामले रजिस्टर्ड हुए हैं, जिनमें से 32 मामलों का निपटारा आपसी सुलह से करवा दिया गया है और 9 केश अब भी विचाराधीन चल रहे हैं।
क्या होती है प्रक्रिया
जिला बाल कल्याण अधिकारी सुरजीत कौर आजाद व प्रोग्राम अधिकारी मलकीत चहल ने बताया कि कोई भी  पीड़ित व्यक्ति या महिला उनके पास आकर साधारण पत्र पर अपना केस रजिस्ट्र करवा सकता है। यहां पर सारी प्रक्रिया निशुल्क होती है, पीड़ित व्यक्ति से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। उन्होंने बताया कि उनके पास केस आने के बाद वे पीड़ित पक्ष से सारी जानकारी जुटाते हैं और फिर दूसरे पक्ष को एक नोटिस देते हैं। दोनों पक्षों को केंद्र में बुलाकर उनसे पूरी जानकारी जुटाते हैं और फिर दोनों पक्षों की मीटिंग ले कर उनके बीच सुलह करवा कर उन्हें नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
किस तरह के केसों की होती है सुनवाई
दहेज पीड़ित महिलाओं के मामलों की
असहाय, लाचार व पीड़ित महिलाओं के मामलों
पति-पत्नी की पारिवारिक व व्यक्तिगत समस्याओं के मामलों की
गरीब, बेसहारा महिलाओं व व्यक्तियों के केसों की
दिमागी रूप से परेशान बच्चों व महिलाओं के मामलों की सुनवाई की जाती है।
किस तरह के मामले भेजे जाते हैं परिवार परामर्श केंद्र में
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि परिवार परामर्श केंद्र के पास पीड़ित व्यक्ति सीधा आकर भी केस रजिस्ट्र करवा सकता है। इसके अलावा कोर्ट व डीसी द्वारा भी केस भेजे जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि मजिस्ट्रेट द्वारा घरेलू हिंसा संरक्षण की प्रक्रिया के दौरान किसी भी स्तर पर दोनों पक्षों के आपसी तालमेल के लिए परामर्शदाता के पास भेजा जा सकता है, यदि दोनों पक्ष समझोते के लिए तैयार होते हैं तो न्यायालय द्वारा समझोते के दृष्टिगत आदेश जारी कर परिवार परामर्श केंद्र के पास भेजे जा सकते हैं।
दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं अधिक मामले
परामर्शदाता सुरेंद्र दुग्गल व सोमलता सैनी ने बताया कि उनके पास मारपीट, महिलाओं का शोषण, गलतफहमी, अतिरिक्त वैवाहिक सम्बंध, दहेज, असमायोजन, नशे की लत, सम्पत्ति विवाद, सैक्ष्वल प्रॉब्लम, वायदा खिलाफी, नाबालिग बच्चों की शादी, दूसरा विवाह, मनोवैज्ञानित समस्या, ससुराल पक्ष का अत्याधिक हस्तक्षेप के मामले आते हैं। इनमें सबसे अधिक मामले दहेज, असमायोजन व मारपीट के होते हैं। 
दोनों पक्षों में सुलह न होने पर क्या होती है कार्रवाई
परिवार परामर्श केंद्र में अधिकत्तर मामलों का निपटारा अपसी सुलह से करवा दिया जाता है। अगर किसी मामले में दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती हो मामले को जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास भेज दिया जाता, जहां पर महिला संरक्षण अधिकारी द्वारा अपने स्तर पर अग्रीम कार्रवाई की जाती है। उन्होंने बताया कि अब तक उनके द्वारा सिर्फ दो ही मामले जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास •ोजे गए हैं।  

अब तहसील स्तर पर खुलेंगे कृषि विज्ञान केंद्र

हिसार कृषि विवि से शुरू होगी पहल
कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए वरदान साबित होगी योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में शहरीकरण और औद्योगिकरण से कम हो रही कृषि जोत तथा कृषि क्षेत्र में लागत बढ़ने के बावजूद कृषि उत्पादन व मुनाफे में आ रही कमी के कारण असमंजसता के दौर से गुजर रहे किसानों के लिए अच्छी खबर है। कृषि क्रियाओं में उनकी तकनीक को बढ़ाने तथा मुनाफे के तरीके शेयर करने के लिए तहसील स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र खोले जाएंगे। आमतौर पर हर जिले में एक ही कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहा है। नए केंद्रों के लिए हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने रणनीति बनाकर उसे मूर्त रूप देने की तैयारी शुरू कर दी है।
प्रदेश के अधिकांश जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से किसानों को कृषि तथा अन्य सहायक गतिविधियों से रूबरू कराने वाले हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह साफ हो गया था कि किसानों को खेती प्रबंधन से लेकर अपनी लागत निकालने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके कारण किसानों का कृषि क्षेत्र से मोह भंग हो रहा है। उनके खेती से विमुख होने के संभावित खतरे को टालने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने किसानों को अपने से सीधे जोड़ने की कवायद में कई योजनाएं शुरू की हैं। इसी कड़ी में अब प्रदेश की सभी तहसीलों में कृषि विज्ञान केंद्र शुरू करने की प्रक्रिया शुरू हो रही है।
किसानों की चुनौतियों पर गंभीर एचएयू
प्रदेश में कृषि क्रियाओं पर सबसे ज्यादा असर भूमि अधिग्रहण कर नए प्रोजेक्टों को शुरू करने से पड़ रहा है। अधिकांश क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि इन प्रोजेक्टों का हिस्सा बन रही है। इन क्षेत्रों के किसानों के ना चाहते हुए भी खेती से दूर होना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर पैसों की चमक-धमक को देखते हुए कृषि क्षेत्र में बढ़ रही मुसीबतों के कारण भी किसानों के माथे पर शिकन है। शहरीकरण, औद्योगिकरण से कम हो रही जोत, तापमान में बढ़ोतरी, पानी की कमी, बीज की गुणवत्ता, मौसम की मार तथा पुरानी तकनीकों पर काम करने से किसान न तो ठीक से फसल का उत्पादन ले पा रहा है और न ही अपना मुनाफा बढ़ा रहा हैं। इसके कारण उसे खेती घाटे का सौदा नजर आने लगा है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रबंधन का मानना है कि प्रदेश की 11 प्रतिशत की विकास दर में किसानों का बड़ा रोल है, ऐसे में किसानों के सामने आ रही चुनौतियों को एचएयू गंभीरता से ले रहा है।
किसानों तक पहुंच बढ़ाएंगे कृषि विज्ञान केंद्र
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार ने अब तहसील स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। यहां बता दें कि प्रत्येक जिले में संचालित कृषि विज्ञान केंद्रों में प्रगतिशील किसानों को कृषि, बागवानी, पशुपालन समेत सभी कृषि सहायक गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि किसानों के आर्थिक स्तर को बढ़ाने में मदद की जा सके। लेकिन विवि प्रबंधन को लगने लगा था कि जिले में इकलौते कृषि विज्ञान केंद्र के सहारे हर किसान को कृषि की तकनीकों से अवगत कराना मुमकिन नहीं है। इसलिए हर तहसील में एक कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किया जाएगा। इन केंद्रों में किसानों को घटती जोत, पानी की कमी, बीजों की गुणवत्ता में सुधार लाते हुए तकनीक तौर पर समक्ष बनाकर फसल उत्पादन में इजाफा करते हुए मुनाफ की ओर बढ़ना है।

नए साल पर कर्मचारियों की रहेगी मौज

हर माह कर्मचारियों को एक साथ मिलेंगी तीन-तीन छुट्टियां
नरेंद्र कुंडू
जींद।
वर्ष 2012 कर्मचारियों के लिए खासी सौगात लेकर आएगा। नए साल की शुरूआत छुट्टी से होगी और समाप्त वर्किंग डे पर होगा। सालभर में छुट्टियों की रेल चलती रहेगी। नए वर्ष में कर्मचारियों के लिए तीन का आंकड़ा काफी मजेदार रहेगा। कर्मचारियों को हर माह 3-3 छुट्टियों की सौगात एक साथ मिलती रहेगी। जिसके चलते कर्मचारी अपने परिवार को टाइम दे पाएंगे। एक जनवरी को रविवार पड़ने से सरकारी कर्मचारियों के लिए नए साल का जश्न दो गुणा हो जाएगा। दूर-दराज नौकरी करने वाले कर्मचारी इस बार अपने परिवार के साथ नया साल मना पाएंगे। हर माह एक साथ तीन-तीन छुट्टियों पड़ने के कारण सरकारी कार्यालयों में कामकाज भी काफी धीमी गति से चलेगा, जिस कारण आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
लोग शायद सच ही कहते हैं कि साल की शुरूआत जैसा होगी, पूरा साल उसी तहर चलेगा। इस बार नया साल सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छा बितेगा। क्योंकि नए साल की शुरूआत ही छुट्टी से हो रही है। इस बार सरकारी कर्मचारियों को हर माह एक साथ तीन-तीन छुट्टियों की सौगात मिलेगी। यही कारण है कि नए साल को एक पर्व की तरह मनाने वाले लोगों का मजा दोगुणा होने जा रहा है। खासकर जॉब करने वालों के लिए नए साल के जश्न में भाग लेने का अच्छा मौका है। नए साल की शुरूआत छुट्टी से होगी तथा वर्किंग डे के साथ साल समाप्त होगा। एक जनवरी को रविवार होने के कारण साल की शुरूआत छुट्टी से होगी तो 31 दिसंबर 2012 को सोमवार के दिन साल वर्किंग डे के साथ समाप्त होगा। इतना ही नहीं जिन लोगों के सरकारी विभागों में काम लटके हैं वे एक-दो दिन में काम निपटा लें, अन्यथा उनका काम कुछ दिन के लिए लटक जाएगा। क्योंकि साल की बची छुट्टियां भी कर्मचारी दिसंबर में ही मनाते हैं। इसलिए दिसंबर में सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या कम हो जाती है। नए साल में तीन का फेर कर्मचारियों की मौज के लिए काफी है। दूर-दराज नौकरी करने वाले कर्मचारी त्योहारों पर लगातार मिलने वाली तीन-तीन छुट्टियों से परिवार को समय दे पाएंगे। तीन के फेर की शुरूआत जनवरी से होगी। 13 जनवरी को लोहड़ी है, इस दिन शुक्रवार पड़ेगा। इसके बाद 14 व 15 जनवरी को शनिवार व रविवार को खुद-ब-खुद छुट्टी मिल जाएगी। इसके बाद 18 व 19 फरवरी को शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी तो 20 फरवरी सोमवार को महाशिवरात्रि की छुट्टी रहेगी। 23 मार्च को शुक्रवार के दिन शहीदी दिवस पर सरकारी छुट्टी रहेगी तथा 24 व 25 मार्च को शनिवार व रविवार की तीन छुट्टियों का योग स्वयं ही बन जाएगा। अप्रैल माह में 13 को बैशाखी है, उस दिन शुक्रवार है। इसके बाद फिर शनिवार व रविवार की छुट्टी का लाभ कर्मचारियों को मिलेगा। इसके बाद 25 मई को गुरु अर्जुन देव दिवस पर छुट्टी रहेगी, इस दिन शुक्रवार पड़ता है। इस प्रकार शनिवार व रविवार को फिर तीन का आंकड़ा चलेगा। जून माह में 4 जून को सोमवार के दिन कबीर जयंती की छुट्टी रहेगी। इसके पहले शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी। 10 अगस्त को शुक्रवार पड़ता है इस दिन जन्माष्टमी की छुट्टी रहेगी। इसके बाद फिर शनिवार व रविवार की छुट्टी का योग रहेगा। अगस्त माह में 20 अगस्त को सोमवार के दिन ईद उल फितर की छुट्टी रहेगी। इससे पहले शनिवार व रविवार की छुट्टी रहेगी। कुल मिलाकर वर्ष 2012 में 10 त्योहार कर्मचारियों के लिए तीन का फेर लेकर आएंगे। ऐसे में कर्मचारियों की नए साल में मौज रहेगी।
इन छुट्टियों पर लगेगा ग्रहण
वर्ष 2012 में जो सरकारी छुट्टी शनिवार व रविवार के दिन आई हैं, उनमें 28 जनवरी को शनिवार के दिन छोटू राम जयंती और बसंत पंचमी की छुट्टी, 5 फरवरी को ईद उल मिलाद की छुट्टी के दिन रविवार रहेगा। इसके बाद एक अप्रैल को रामनवमी की छुट्टी भी रविवार के दिन ही होगी। 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के दिन शनिवार रहेगा। 6 मई को बुध पूर्णिमा व 22 जुलाई को तीज का त्योहार भी रविवार के दिन ही पड़ता है। इसके बाद सितंबर माह में 23 तारीख को हरियाणा शहीदी दिवस भी रविवार को ही पड़ता है। 27 अक्टूबर को ईद उल जुहा तथा 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के दिन भी शनिवार है। नवंबर माह में 25 तारीख को मोहर्रम के त्योहार के दिन भी रविवार रहेगा।

मौत के साये में पढ़ाई

जर्जर हो चुका है स्कूल का भवन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, वहीं क्षेत्र के कई स्कूलों के पास या तो भवन की कमी है या भवन जर्जर हो चुके है। ऐसे में गांव भूरायण के राजकीय प्राथमिक पाठशाला का भवन की छत्त टूटने के कगार पर है। जिसके कारण स्कूली छात्र मौत के साये में पढ़ाई करने पर मजबूर हैं। स्कूल स्टाफ द्वारा शिक्षा विभाग को भवन के निर्माण के लिए मौखिक व लिखित शिकायत दी जा चुकी है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी शिकायत मिलने के बाद भी लंबी तानकार सोये हुए हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण लगभग 500 विद्यार्थियों के सिर पर मौत का साया मंडरा रहा है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है, जो स्कूल में पढ़ रहे इन नौनिहालों को मौत के मुहं में धकेल सकता है।
प्रदेश सरकार शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ अनेकों सुविधाएं देने के दावे कर रही है। लेकिन प्रदेश सरकार के यह दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। सरकार के इन दावों की वास्तविकता कुछ ओर ही होती है। पिल्लूखेड़ा खंड के भूरायण गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में भी ऐसा ही मामला सामने आया है। इस पाठशाला में लगभग 500 बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। गांव की प्राथमिक पाठशाला के भवन का निर्माण हुए 5 दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। बिल्डिंग ज्यादा पुरानी होने के कारण यह जर्जर हो चुकी है। बिल्डिंग की दीवारों में दरार आ चुकी है। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर होने के कारण बच्चे मौत के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। स्कूल के अधिकतर कमरों की छत से लैंटर व कड़ियां टूट चुकी हैं। छत से कड़ियां टूटने के कारण छत कभी भी गिर सकती है। छत के अलावा बिल्डिंग की दीवारों में भी दरार आ चुकी हैं। बिल्डिंग में जगह-जगह दरार आने के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इस बारे में स्कूल स्टाफ से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि वे कई बार जिला स्तर पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को मौखिक व लिखित शिकायत दे चुके हैं। लेकिन विभाग ने इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। शिकायत मिलने के बाद विभाग द्वारा बिल्डिंग का जायजा लेने के लिए इंजीनियर तो भेजा गया था, लेकिन इंजीनियर ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ दिया कि जब तक बिल्डिंग गिर नहीं जाती तब-तक वो इस बिल्डिंग का निर्माण नहीं कर सकते। इसके बाद विभाग द्वारा दोबारा इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां हर वक्त बड़ा हादसा होने का अंदेशा बना रहता है।
                                                                                            खतरे में बचपन
अगर अधिकारियों की बातों पर विश्वास किया जाए तो बिल्डिंग के निर्माण के लिए काफी लंबी प्रक्रिया चलेगी। इस प्रक्रिया में कई माह का समय लग जाएगा। लेकिन अनहोनी तो विभाग की इस लंबी प्रक्रिया का इंतजार नहीं करेगी। वह तो कभी भी मौत बनकर इन मासूम बच्चों को अपने चुंगल में ले सकती है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को तो शायद इस बात का इलम भी नहीं होगा कि अपने कलजे के टुकड़े को वे जहां पढ़ाने के लिए भेज रहे हैं, वहां पढ़ाई के अलावा मौत भी फन फैलाए बैठी है। स्कूल का जर्जर भवन कभी भी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकता है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण  आज स्कूल में पढ़ने वाले इन मासूम बच्चों का बचपन खतरे में है।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

चिठ्ठी ना कोई संदेश....

मोबाइल संचार क्रांति के बाद घटा ग्रीटिंग का क्रेज
इस बार मार्केट में आए नए ग्रीटिंग कार्ड को दिखाता दुकानदार।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
चिठ्ठी  ना कोई संदेश.... जी हां हम बात कर रहे हैं उस जमाने की जब लोग चिठ्ठी  या पत्र के माध्यम से दूर बैठे अपने प्रियजनों का हालचाल मालूम करते थे। काफी दिनों तक उनका कोई संदेश या चिठ्ठी  न मिलने पर इस गजल को गुणगुणा कर उन्हें याद भी करते थे। होली, दीपावली व नव वर्ष पर ग्रीटिंग के माध्यम से लोग अपने शुभचिंतकों को शुभकामनाएं देते थे। जिसके चलते त्योहारी सीजन पर कई-कई दिनों तक ग्रीटिंग कार्डों का आदान-प्रदान चलता था। करीबन एक डेढ़ दशक तक सूचना एवं संदेश भजने के कारोबार में ग्रीटिंग का साम्राज्य कायम रहा है, लेकिन इस साम्राज्य को अब मोबाइल टेक्नोलाजी ने हिलाकर रख दिया है। अब महंगे ग्रीटिंग कार्ड खरीदना और दो दिन बाद मिलने का जमाना लदने लगा है। अब यह काम एक पैसे व एक सैकेंड में हो जाता है। अब मार्केट में अच्छे से अच्छे ग्रीटिंग आए हुए हैं, लेकिन अब इनके खरीदार बहुत कम रह गए हैं। पहले त्योहारी सीजन पर ग्रीटिंग का करोड़ों रुपए का कारोबार होता था, लेकिन अब यह कारोबार सिकुड़ने लगा है।
होली, दिवाली हो या नव वर्ष का अवसर लोग ग्रीटिंग कार्ड भेज कर अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं देना नहीं भूलते थे। उस समय लोगों में शुभ अवसरों पर ग्रीटिंग कार्ड भेजने का काफी क्रेज होता था। कई-कई दिनों पहले बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की दुकानें सज जाती थी और लोग अपने शुभचिंतकों की खैर खबर लने व उन्हें बधाई देने के लिए जमकर ग्रीटिंग कार्डों की खरीदारी करते थे। उस समय लोगों के पास अपने प्रियजनों को बधाई देने का इसके अलावा कोई दूसरा माध्यम भी नहीं था। भले ही इस प्रक्रिया में शुभकामनाएं भेजने व अपने शुभचिंतकों का हालचाल मालूम करने में कई-कई दिनों का समय लग जाता हो, लेकिन जब भी उनका कोई पत्र या चिठ्ठी  मिलती थी तो दिल को बड़ा सकून मिलता था। उस जमाने के प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह की  ‘चिठ्ठी  न कोई संदेश’ नामक गजल भी शायद इसी कारण से काफी हिट रही थी। लोगों की जुबान पर इसी गजल के चर्चे रहते थे और कई दिनों तक अपने प्रियजनों का कोई संदेश न मिलने पर इस गजल को गुणगुणा कर वे अपने दिल का बोझ हलका करते थे। करीबन एक-डेढ़ दशक तक सूचना एवं संदेश भेजने के कारोबार में ग्रीटिंग का साम्राज्य भी कायम रहा, लेकिन अब मोबाइल व टेक्नोलाजी ने ग्रीटिंग के कारोबार पर ग्रहण लगा दिया है। पिछले 4-5 सालों से ग्रीटिंग का कारोबार सिकुड़ रहा है। ग्रीटिंग कार्ड विक्रेता मनोज ने बताया कि इस बार उनके पास 20 रुपए से लेकर  300 रुपए तक के ग्रीटिंग कार्ड हैं। जिसमें म्यूजिकल व खुशबूदार कार्ड भी मौजूद हैं। राजेश ने बताया कि 4-5 साल पहले ग्रीटिंग का कारोबार अच्छा चलता था, लेकिन अब मोबाइल टेक्नोलाजी ने ग्रीटिंग कार्ड के कारोबार को हिला कर रख दिया है। लोग अब फोन द्वारा एसएमएस या कॉल करके अपने शुभचिंतकों को शुभकामनाएं दे देते हैं और उनका हालचाल पूछ लेते हैं। लोगों का मोह अब ग्रीटिंग की तरफ से कम हो रहा है। अब तो एक पैसे व एक सैकेंड में ही शुभकानाएं देने का यह काम आसानी से हो जाता है। इसलिए अब महंगे ग्रीटिंग खरीदने व भेजने का जमाना लदने लगा है।
म्यूजिकल, खुशबुदार व डिजाइनिंग कार्डों की बहार
मोबाइल टैक्नोलाजी आने के बाद से ग्रीटिंग कार्डों का कारोबार लगातार सिकुड रहा है, लेकिन लोगों का रूझान ग्रीटिंग की ओर बनाए रखने के लिए हर बार बाजार में नए-नए डिजाइनदार कार्ड उतारे जा रहे हैं। इस बार बाजार में म्यूजिकल कार्ड, खुशबुदार कार्ड, डिजाइनिंग कार्ड मौजूद हैं। पहले लोग साधारण कार्ड के माध्यम से ही शुभकामनाएं देते थे, लेकिन अब लोग साधारण ग्रीटिंग की बाजाये म्यूजिकल, खुशबुदार व डिजाइनिंग कार्डों की ही खरीदारी करते हैं।
 

सरवाइकल बन रहा युवाओं का दुश्मन


नरेंद्र कुंडू                                                                   
जींद।
सावधान! अगर आप कम्प्यूटर पर ज्यादा समय बिताते हैं, आपका सोने का तरीका व बिस्तर सही नहीं है या आप एक ही अवस्था में ज्यादा देर तक टीवी देखते हो तो आप सरवाइकल का शिकार हो सकते हैं। आज सरवाइकल की बीमारी युवाओं की दुश्मन बनी हुई है। सरवाइकल की चपेट में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी आ रही है। शहर के सामान्य अस्पताल के आयुर्वैदिक पंचकर्म केंद्र पर रोजाना औसतन 15 केस सरवाइकल के पहुंच रहे हैं। पंचकर्म केंद्र पर आने वाले सरवाइकल के मरीजों में ज्यादातर युवा शामिल हैं। चिकित्सक इसके लिए ज्यादा देर तक कम्प्यूटर पर कार्य करना, टीवी देखना, सोने का तरीका व बिस्तर सही नहीं होना व डिप्रेशन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
युवाओं में इंटरनेट के बढ़ते क्रेज के कारण ज्यादा समय कम्प्यूटर पर बिताने, दिनचर्या सही न होने के कारण सरवाइकल की बीमारी दस्तक दे रही है। युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा इस बीमारी का शिकार हो रही है। सरवाइकल युवा पीढ़ी की दुश्मन बनी हुई है। कम्प्यूटर पर काम करते समय बैठने व काम करने का तरीका सही नहीं होने, एक ही अवस्था में लेट कर ज्यादा देर तक टीवी देखने व उपयुक्त बिस्तर न होने के कारण सरवाइकल की बीमारी अपने पैर पसार रही है। सामान्य अस्पताल के पंचकर्म केंद्र पर हर रोज 20 से 25 मरीज इलाज के लिए आते हैं। जिनमें से रोजाना औसतन 15 मरीज सरवाइकल के आते हैं। पंचकर्म के थैरेपिस्ट की मानें तो सबसे ज्यादा युवा इसका शिकार हो रहे हैं।
क्यों बढ़ रहे हैं सरवाइकल के मरीज
थैरेपिस्ट की मानें तो आज सबसे ज्यादा युवा वर्ग इस बीमारी की चपेट में आ रहा है। क्योंकि आज इंटरनेट का प्रयोग काफी बढ़ गया है, जिस कारण युवा ज्यादा समय कम्प्यूटर पर बिताते हैं। कम्प्यूटर पर काम करने  व बैठने का सही तरीका न होने के कारण मासपेसियों में खींचाव बन जाता है। जिससे व्यक्ति सरवाइकल की शिकार हो जाता है। इसके अलावा एक ही अवस्था में ज्यादा देर तक टीवी देखने, रात को सोते समय ऊंचे तकीये का प्रयोग करने व डिप्रेशन के कारण युवा सरवाइकल का शिकार हो रहे हैं। सरवाइकल होने पर व्यक्ति की गर्दन में दर्द रहने लगता है। सरवाइकल होने पर व्यक्ति ज्यादा देर तक बैठकर काम नहीं कर पाता। रात को देर तक नींद नहीं आती। शरीर में बेचैनी रहती है। बिस्तर से उठने के बाद सारे शरीर में दर्द रहता है।
क्या है सरवाइकल का उपचार
सामान्य अस्पताल में चल रहे आयुर्वैदिक पंचकर्म केंद्र पर रोजाना सरवाइकल, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द, सिर दर्द, गठिया बाय, अनीद्रा, थाइराइड के 20 से 25 मरीज रोजाना आते हैं। इन मरीजों में सबसे ज्यादा सरवाइकल के मरीज होते हैं। पंचकर्म केंद्र पर रोजाना 15 मरीज सरवाइकल के पहुंच रहे हैं। पंचकर्म केंद्र पर थैरेपिस्ट द्वारा फिजियोथैरेपी, एक्यूप्रैसर, योग से सरवाइकल व अन्य बीमारियों का इलाज किया जाता है।
क्या रखें सावधानियां
कम्प्यूटर पर काम करते समय बीच-बीच में थोड़ा आराम करते रहें। कम्प्यूटर पर बैठने का तरीका सही होना चाहिए। कम्प्यूटर पर काम करते समय कंधों व हाथों का खिंचाव ज्यादा नहीं होना चाहिए। काम करते समय बीच-बीच में गर्दन को हिलाते रहना चाहिए। रात को सोते समय ज्यादा ऊंचे तकीए का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा बिस्तर न तो ज्यादा सख्त व न ही ज्यादा मुलायम होना चाहिए। हर रोज नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।
समय पर इलाज न होने से गंभीर हो सकते हैं परिणाम : गोयल
जिला आयुर्वैदिक आफिसर डा. रामनिवास गोयल ने बताया कि अगर व्यक्ति की दिनचर्या सही हो तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। अगर समय पर इलाज नहीं करवाया जाए तो यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है। इसलिए सरवाइकल के शुरूआती दौर में ही इसका सही व पूरा इलाज जरूरी है। पंचकर्म केंद्र पर फिजियोथैरेपी, एक्यूप्रेसर व योग के माध्यम से इसका पूरा इलाज किया जाता है।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

थाली से जहर कम करने का महिलाओं ने उठाया बीड़ा

पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को सीखा रही हैं कीट प्रबंधन के गुर


नरेंद्र कुंडू
जींद।
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के इस्तेमाल को
विद्यार्थियों को कीटों की जानकारी देती महिलाएं।
रोकने तथा मित्र कीटों को बचाने के लिए कीट प्रबंधन का बीड़ा निडाना की महिलाओं ने उठाया है। महिलाओं ने स्वयं इस कार्य में दक्षता हासिल करने के बाद विद्यार्थियों को मित्र कीटों के बारे में जागरूक करने की ठानी है। निडाना गांव के डैफोडिल पब्लिक स्कूल में ये महिलाएं हर शनिवार को विद्यार्थियों की क्लास लेती हैं। विद्यार्थियों को व्यवहारिक ज्ञान देने के लिए खेतों में ले जाकर इन्हें मित्र कीटों की पहचान करवाती हैं।  पूरे भारत में यह बच्चों की अकेली मित्र कीट पाठशाला है।
फसलों की अधिक से अधिक पैदावार लेने के लिए किसान आज फसलों पर जमकर कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों पर अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति तो कम ही रही है साथ-साथ हमारे खाद्य पदार्थ भी  विषैले हो रहे हैं। जिस कारण हमारी सेहत पर भी इनका विपरित प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने तथा मनुष्य की थाली से इस जहर कम करने की बीड़ा अब निडाना की महिलाओं ने उठाया है। ये महिलाएं सप्ताह के हर शनिवार को निडाना स्थित डैफोडिल पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों को कीट प्रबंधन व इससे होने वाले लाभ के बारे में जागरूक करती हैं। मित्र कीटों पर प्रयोग के लिए विद्यार्थियों को खेतों में ले जाकर मित्र कीटों की पहचान करवाई जाती हैं। पूरे भारत में इस तरह की यह एकमात्र मित्र कीट पाठशाला है, जहां पर विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ मित्र कीटों के बारे में जागरूक किया जाता है।
अनपढ़ता को ही बना लिया हथियार
मित्र कीट पाठशाला चालने वाली महिलाओं की संख्या 30 से 35 के बीच है। इन महिलाओं मैं चार-पांच महिलाओं को छोड़ बाकि सभी महिलाएं अनपढ़ हैं। इन महिलाओं ने अनपढ़ता को ही अपना हथियार बना लिया। पहले स्वयं इस कार्य में दक्षता हासिल की और बाद में अपने लक्ष्य को शिखर तक पहुंचाने के लिए इन्होंने मित्र कीट पाठशाला शुरू की।
प्रति एकड़ पर होता है दो से अढ़ाई हजार रुपए की बचत
अंग्रेजो, राजवंती, मीनी, बिमला, कमलेश, गीता ने बताया कि अगर फसल पर कीटनाशकों का प्रयोग न करके मित्र कीटों का संरक्षण किया जाए तो किसान का कीटनाशकों पर होने वाला खर्च बच जाता है और पैदावार भी  अच्छी होती है। उन्होंने बताया कि मित्र कीटों की सहायता से किसान को प्रति एकड़Þ पर दो से अढ़ाई हजार रुपए की बचत हो जाती है।
जागरूकता के लिए गीतों की भी की है रचना
इन महिलाओं ने लोगों को मित्र कीटों के प्रति जागरूक करने के लिए गीतों की भी रचना की है। ताकि गीतों के माध्यम से अधिक से अधिक किसानों तक अपनी बात पहुंचाकर उन्हें जागरूक कर सकें। ‘कीड़यां का पाट रहया चाला ए मनै तेरी सूं’ तथा बीटल कीट पर ‘बीटल हूं मैं कीटल हूं’ गीत की रचना की है। 
मासाहारी कीट करते हैं फसल की सुरक्षा
उत्प्रेरक डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने बताया कि एक एकड़ कपास की फसल में लगभग 26 किस्म के शाकाहारी व 57 किस्म के मासाहारी कीट पाए जाते हैं। शाकाहारी कीट फसल पर निर्भार करते हैं और मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों पर निर्भर करते हैं। माशाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण शाकाहारी कीट फसल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाते।

विदेशों में छाए म्हारे किसान

कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने के लिए छेड़ी मुहिम
इंटरनेट पर महिला खेत पाठशाला नामक ब्लॉग पर लिखी गई जानकारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
  निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे किसानों ने देश ही नहीं विदेशों में भी धूम मचा दी। किसानों द्वारा मित्र कीटों की पहचान कर कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने के बारे में ब्लॉग पर लिखी गई जानकारियों में विदेशी लोग भी रूचि ले रहे हैं। ठेठ हरियाणवी भाषा में ब्लॉग लिखे जाने के बावजूद भी भारत सहित अन्य देशों से 10589 लोग इन ब्लॉगों को पढ़ चुके हैं। इसके अलावा किसानों द्वारा यू-ट्यूब पर डाली गई कीटों के क्रिया क्लापों की लाइव वीडियों को भारत सहित अन्य देशों के 51845 लोग देख चुके हैं। यू-ट्यूब पर डाली गई वीडियो को सबसे ज्यादा अमेरीका के लोगों द्वारा देखा जा रहा है। 45 से 54 आयु वर्ग के लोग इनमें सबसे ज्यादा रूचि ले रहे हैं। इन किसानों द्वारा अब तक 77 प्रकार के कीटों की पहचान की जा चुकी है। ताज्जूब की बात तो यह है कि ब्लॉग पर किसानों द्वारा लिखे गए सवालों का जवाब देने में वैज्ञानिक भी असमर्थ हैं। किसानों के इस कारनामे से निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला के चर्चे विदेशों में चल रहे हैं।
निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में प्रशिक्षित हुए किसान आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी धाक जमाए हुए हैं। इन किसानों के पास न तो किसी प्रकार की डिग्री है और न ही इन्हें किसी वैज्ञानिक द्वारा कोई विशेष ट्रेनिंग दी गई है। इन्होंने यह सब सौहरत सिर्फ अपनी मेहनत के बलबुते पर हासिल की है। जिस कारण आज ये किसान अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं। जमाने के साथ कदम से कदम मिलाते हुए ये किसान इंटरनेट से जुड़ कर हाईटेक हो चुके हैं और इंटरनेट पर ब्लॉग लिखकर ये अन्य किसानों को भी  जागरूक कर रहे हैं। अब तक ये किसान 77 प्रकार के शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर फसल पर इनके सकारात्मक व नकारात्मक परिणामों के बारे में खोज कर चुके हैं। इस मुहिम के पीछे किसानों का उद्देश्य मित्र कीटों की पहचान कर कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देना है। प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में खेती के ढांचे को सुधारने तथा किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए बनाए गए किसान आयोग को भी ये किसान ब्लॉग के माध्यम से अपने सुझाव भेज रहे हैं।
किस-किस नाम से बनाए गए हैं ब्लॉग
प्रशिक्षित किसानों ने अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए 2009 में डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में ब्लॉग लिखने शुरू किए थे। सबसे पहले ‘प्रभात कीट पाठशाला’ के नाम से ब्लॉग बनाया। इस ब्लॉग में कीटों की पहचान कर उनके क्रिया क्लापों के बारे व फसल पर इनके नकारात्मक व सकारात्मक परिणाम के बारे में विस्तार से जानकारी लिखनी शुरू की। इस ब्लॉग को अभी तक देश व विदेशों में 6582 लोग पढ़ चुके हैं। इसके बाद महिला किसानों ने ‘महिला खेत पाठशाला’ के नाम से ब्लॉग बनाया। इस ब्लॉग में महिला किसान खेत पाठशाला में प्राप्त किए गए प्रशिक्षण व अन्य जानकारी के बारे में लिखती हैं। इस ब्लॉग को अभी तक देश व विदेशों में 4004 लोग पढ़ चुके हैं। इसके बाद ‘कृषि चौपाल’ के नाम से एक ब्लॉग ओर बनाया गया। इस ब्लॉग में किसानों द्वारा खेती पर की गई बहस व उसके परिणामों के बारे में जानकारी देते हैं। इसके अलावा किसान रणबीर मलिक द्वारा ‘निडाना गांव के गौरे से’ तथा मनबीर द्वारा ‘नौगामा’ नाम से ब्लॉग लिखे जाते हैं। ‘निडाना गांव के गौर से’ नामक ब्लॉग में रणबीर द्वारा निडाना गांव में चल रही किसान पाठशाला की गतिविधियों व ‘नौगाम’ नामक ब्लॉग में मनबीर द्वारा गांवों के किसानों की समस्याओं के बारे में चर्चा की जाती है। इन ब्लॉगों में सहलेखक रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रतन सिंह, मीनी मलिक, सुदेश मलिक, डा. श्वेता, डा. जयपाल सिंह द्वारा सभी किसानों के विचार सांझा किए जाते हैं।
अमेरीका के लोग दिखा रहे हैं सबसे ज्यादा रूचि
किसान खेत पाठशाला में प्रशिक्षण के दौरान बनाई गई कीटों की वीडियो को किसानों ने 22 नवंबर 2008 से यू-ट्यूब पर डालना शुरू किया। इन किसानों द्वारा अब तक कीटों के क्रिया क्लापों की सैंकड़ों वीडियो यू-ट्यूब पर डाली जा चुकी हैं। जिन्हें देश ही नहीं विदेशों के लोग भी पसंद कर रहे हैं। यू-ट्यूब पर डाली गई वीडियो को अब तक 51845 लोग देख चुके हैं। जिनमें 80.2 प्रतिशत पुरुष व 19.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। बुद्धिजीवी वर्ग के दायरे में आने वाले 45 से 54 आयु वर्ग के लोग इनमें सबसे ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं। कीटों की इस वीडियो को सबसे ज्यादा अमेरीका के लोगों द्वारा देखा जा रहा है। इसके अलावा इन किसानों द्वारा याहू की फ्लीकर पर भी  77 से ज्यादा किस्म के कीटों के फोटो डाले जा चुके हैं।
किस-किस देश में पढ़े जा रहे हैं ब्लॉग
देश का नाम    पढ़ने वालों की संख्या
भारत            2972
अमेरीका         760
जर्मनी             568
रसिया             438
नीदरलेंड          224
औकरेन           144
फ्रांस                136
इंगलेंड               89
इज्राइल             79
ब्राजिल              72
नोट : यह आंकडे सिर्फ प्रभात कीट पाठशाला में अलग-अलग देशों के लोगों द्वारा पढ़े गए ब्लॉग के हैं। महिला खेत पाठशाला व यू-ट्यूब के आंकड़े इससे अलग हैं।

किसानों का सहारा बनेंगे पॉली हाऊस


किसानों का आधुनिक खेती के प्रति रूझान बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा दी जा रही 65 प्रतिशत की सब्सिडी
नरेंद्र कुन्डू
जींद।
जिले में बागवानी विभाग ने किसानों को आधुनिक खेती के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए पॉली हाऊस स्थापित करने का निर्णय लिया है। जिसमें विभाग की तरफ से किसानों को पॉली हाऊस स्थापित करने पर 65 प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। पॉली हाऊस के माध्यम से किसान स्वास्थ्य व बेमौसमी सब्जियों की पैदावार ले सकेंगे। प्रदेश सरकार की इस योजना से अब किसान सब्जी उत्पादन में इजाफा कर पाएंगे। सरकार की इस योजना का लाभ लेने के लिए जिले के दर्जनों किसान पॉली हाऊस के लिए आवेदन का चुके हैं।
बागवानी विभागकरने का निर्णय लिया है। इस कड़ी के तहत किसानों को पॉली हाऊस लगाने पर 65 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान है। इस तकीनीक से सीमित स्थान में कम से कम खर्च पर अधिक से अधिक गुणवत्ता वाली पौध तैयार की जा सकती है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से किसानों का आधुनिक खेती के प्रति रूझान बढ़ेगा और किसान आर्थिक तौर पर मजबूत हो सकेंगे। पॉली हाऊस के माध्यम से किसान बेमौसमी सब्जियों की अधिक से अधिक पैदावार कर सकेंगे और सब्जियों को बाजार में उस समय पहुंचा सकेंगे जब सब्जियों की मांग अधिक होगी और आपूर्ति कम होगी। पॉली हाऊस के निर्माण पर सरकार की तरफ से बागवानी मिशन के तहत किसान को 935 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से खर्च दिया जाता है। जिले में इस समय दो पॉली हाऊसों का ढांचा बन कर तैयार हो चुकाहै तथा एक दर्जन से अधिक किसान इसके निर्माण के लिए आवदेन कर चुके हैं। बागवानी विभाग द्वारा शहर में नहर के पास स्थित नर्सरी में 500 वर्ग मीटर में ग्रीन हाऊस तथा 250 वर्ग मीटर में पॉली हाऊस डैमों के तौर पर तैयार किए गए हैं। सरकार की इस योजना से बागवानी विभाग किसानों को पॉली हाऊस के प्रति आकर्षित करने में कामयाब होगा।
फसल पर नहीं पड़ता वातावरण का प्रभाव
सब्जी विशेषज्ञ डा. एसके अरोड़ा ने बताया कि पॉली हाऊस पूरी तरह से पॉलीथिन से कवर होता है। इसलिए इसके अंदर पैदा होने वाली फसल पर आंधी व बारिश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और फसल सुरक्षित रहती है। पॉली हाऊस में किसान उच्च गुणवत्ता की अगेती व बेमौसमी फसल ले सकते हैं। इसमें बेल वाला टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, तोरी, टिंडा, लोकी, कद्दू, खरबूजा, तरबूज, अगेती बेल वाली सब्जियां, करेला व अन्य बेमौसमी सब्जियाँ ली जा सकती हैं। 
क्या है पॉली हाऊस
प्रोजैक्ट मैनेजर डा. सतेंद्र यादव ने बताया कि किसान बांस व पॉलीथिन की सहायता से अपनी आवश्यकता अनुसार एक झोपड़ी नुमा घर बना सकते हैं। इसमें पॉलीथिन के छोटे-छोटे लिफाफों में रेत, मिट्टी, गोबर या कम्पोस्ट खाद का मिश्रण करके लिफाफे में भरा जाता है। इन लिफाफों में 2-2 बीजों की बिजाई एक साथ की जा सकती है। पॉलीथिन में होने के कारण इसकी मिट्टी व खाद में नमी ज्यादा समय तक बनी रहती है। जिससे पानी की काफी बचत होती है। जरूरत पड़ने पर आवश्यकता अनुसार फव्वारों से सिंचाई की जा सकती है। पॉली हाऊस में जनवरी के आखरी व फरवरी के प्रथम सप्ताह में रोपाई करके डेढ़ माह अगेती फसल तैयार की जा सकती है। 
फोटो कैप्शन
13जेएनडी16 : बागवानी वि•ााग की नर्सरी में डैमो के तौर पर तैयार किया गया पॉली हाऊस।

उपेक्षा का दंश झेल रहा रानी का ऐतिहासिक कुआं

सोम तीर्थ पर स्थित रानी का कुआं। 
जींद। पिंडारा गांव स्थित सोमतीर्थ पर प्रशासन भले ही करोड़ों रुपए खर्च करने के दावे कर रहा हो, लेकिन तीर्थ पर ही मौजूद रानी के ऐतिहासिक कुएं  के जीर्णोदार के लिए एक फुटी कौड़ी भी  खर्च नहीं हुई है। प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा रानी का ऐतिहासिक कुआं अपना अस्तित्व खो चुका है। रानी के कुए व रानी घाट का निमार्ण जींद के राजा गणपत सिंह ने 1785 ई. में वास्तु शास्त्र के अनुसार करवाया था। इस तीर्थ पर यह एकमात्र सबसे प्राचीन कुआं है। जिला प्रशासन, पुरातात्विक विभाग, सामाजिक व धार्मिक संगठनों को इस प्राचीन धरोहर की सुध लेने तक की फुर्सत नहीं है।
पिंडारा गांव में मौजूद सोम तीर्थ की प्रदेश में एक अलग ही पहचान है। इस तीर्थ का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। इस ऐतिहासिक तीर्थ पर जींद के राजा गणपत सिंह द्वारा 1785 ई. में रानी के लिए कुएं व एक घाट का निर्माण करवाया गया था। कुएं व घाट का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुसार करवाया गया था। कुएं की गहराई 50 मीटर से •भी ज्यादा थी। जिस कारण इसका पानी बहुत मीठा होता था। इस तीर्थ पर रानी घाट व रानी कुआं सबसे प्राचीन धरोहर हैं। रानी घाट व कुएं के निर्माण से पहले इस तीर्थ पर एक शिव जी का मंदिर होता था। इस मंदिर को सोमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर में ही पांडवों ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी। इसके बाद जींद के राजा गणपत सिंह ने यहां रानी के लिए घाट व कुएं का निर्माण करवाया था। जब भी रानी तीर्थ पर स्रान करने के लिए आती थी तो इस कुए से पानी निकाल कर रानी को स्रान करवाया जाता था। कुए का पानी मीठा होने के कारण लोग इस पानी का प्रयोग दूध में भी करते थे। तीर्थ पर स्थित रानी घाट व कुआं इस तीर्थ पर सबसे प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर हैं। जिला प्रशासन व कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की तरफ से तीर्थ के सौंदर्यकरण के लिए लगभग अढ़ाई करोड़ रुपए की ग्रांट खर्च की जा चुकी है। लेकिन तीर्थ पर ही स्थित रानी के ऐतिहासिक कुएं पर इस ग्रांट से एक फुटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई है। प्रशासन व विकास बोर्ड की अनदेखी के कारण आज यह ऐतिहासक कुआं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। अब कुएं को चारों ओर से जंगली घास ने ढक लिया है। कुए पर बनी छत्तरी व चारदीवारी में दरार आ चुकी है। कुएं से पानी का प्रयोग बंद होने के कारण कुआं ठप हो चुका है।
तीर्थ पर नहीं रहेगी पीने के पानी की कमी
ऐतिहासिक तीर्थ होने के कारण यहां हर अमावस्या पर दूर-दूर से श्रद्धालु पिंडदान करने के लिए आते हैं। लेकिन तीर्थ पर श्रद्धालुओं के लिए पीने के पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। अगर प्रशासन कुएं को दोबारा से रिपेयर करवार इसका प्रयोग शुरू कर दे तो तीर्थ पर स्रान करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं व ग्रामीणों के लिए तीर्थ पर पीने के पानी की कमी नहीं रह सकेगी।

मत्स पालन विभाग को अब मिश्रित मछली पालन योजना का सहारा


नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि व्यवसाय किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा था, जिससे प्रदेश के किसान बेहाल हो गए थे। प्रदेश के किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने और किसानों को नई दिशा देने के उद्देश्य से सरकार ने श्वेत क्रांति व हरित क्रांति के बाद प्रदेश में नीली क्रांति लाने की योजना बनाई थी।लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जिले में मछली पालन व्यवसाय खड़ा नहीं हो पा रहा था। इसलिए अब जिले में नीली क्रांति को परवान चढ़ाने के लिए विभाग द्वारा मिश्रित मछली पालन को अपनाया जा रहा है। इस बार जिले में 645 हैक्टेयर में मछली पालन का कार्य किया जा रहा है। जिले में 409 तालाबों में 220 लाख मछली का बीज डाला गया है। इस वर्ष जनवरी से अगस्त माह तक यानि 8 माह में जिले में 1758 टन मछली का उत्पादन हुआ है। जिले में एक हजार से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं तथा हजारों नौजवानों को भी इसमें रोजगार मिल रहा है।
सरकार द्वारा एक दशक पहले शुरू की गई मछली पालन व्यवसाय की योजना से किसानों को ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा है। क्योंकि इस योजना के तहत तालाब में सिर्फ एक ही किस्म की मछली पाली जाती थी। तालाब में एक किस्म की मछली होने के कारण अधिकतर मछली बीमारी की चपेट में आकर मर जाती थी। जिससे मछली पालक को काफी नुकसान हो जाता था। लेकिन अब मछली पालन विभाग किसानों की आमदनी को  बढ़ाने तथा किसानों को नीली खेती के प्रति आकर्षित करने के लिए किसानों को मिश्रित मछली पालन के लिए प्रेरित कर रहा है। बाजार में इन मछलियों की अन्य मछलियों से ज्यादा मांग होती है। एक साथ तालाब में 6 किस्म की मछली तैयार होने से किसान को एक साथ अच्छी पैदावार मिलती है। जिससे किसान को काफी लाभ मिलता है।
क्या है मिश्रित मछली पालन
पहले मछली पालक तालाब में सिर्फ एक ही किस्म की मछली का बीज डालते थे, जिससे मछली पालक को ज्यादा लाभ नहीं होता था। लेकिन अब मछली पालन विभाग द्वारा मिश्रित मछली पालन की जो योजना तैयार की गई है वो किसानों के लिए काफी कारगर सिद्ध हो रही है। इस योजना के तहत एक तालाब में 6 किस्म की मछलियां पाली जा सकती हैं। तालाब में एक साथ पाली जाने वाली मछली की नस्ल सामान्य तौर पर कतला मछली, रोहु, मिरगल, कामन कार्प, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प सबसे ज्यादा फायदेमंद हैं। इन मछलियों की सबसे खास बात यह है कि सभी मछलियां पानी में अलग-अलग स्तह पर रहती हैं और इनका फीड भी  अलग-अलग होता है। अलग-अलग स्तह पर रहने के कारण ये मछली किसी दूसरी किस्म की मछली को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं। बाजार में इन मछलियों की मांग भी अन्य मछलियों से ज्यादा होती है। बाजार में ज्यादा मांग होने व तालाब में एक साथ कई किस्म की मछलियां तैयार होने से किसान को अच्छी आमदनी मिल जाती है।
विभाग की तरफ से क्या मिलती हैं सुविधाएं
मछली पालन विभाग के एफएफडीए वाईएस सांगवान ने बताया कि मछली पालन व्यवसाय किसानों के लिए आमदनी का अच्छा साधन है। इस व्यवसाय को मुर्गी पालन, डेयरी व अन्य दूसरे व्यवसाय के साथ-साथ भी  किया जा सकता है। क्योंकि मुर्गी व पशुओं के मलमूत्र से मछली को फीड मिल जाता है। सांगवान ने बताया कि मछली पालन पर विभाग द्वारा काफी सुविधाएं दी जाती हैं। विभाग की तरफ  से मछली पालन के लिए समय-समय पर निशुल्क ट्रेनिंग कैंप का आयोजन किया जाता है तथा किसानों को तकनीकि सहायता भी  दी जाती है। इसके अलावा बैंकों से कर्जा देने के साथ सब्सिडी भी  उपलब्ध करवाई जाती है। इसमें 3 से 15 लाख रुपए तक के कर्ज की व्यवस्था रहती है। सजावटी मछली की हेचरी पर 15 लाख का ऋण व डेढ़ लाख का अनुदान तथा सादी मछली की हेचरी पर 12 लाख रुपए का ऋण व 1 लाख 20 हजार रुपए का अनुदान देने का प्रावधान है। इसके अलावा नीजि भूमि में तालाब बनाने पर 3 लाख रुपए का ऋण व 60 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि मछली के बीज पर भी सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। इस स्कीम के तहत जनरल को 20 प्रतिशत तथा एससी व एसटी को 25 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। विभाग द्वारा 65 रुपए में एक हजार बीज दिया जाता है तथा तालाब की मिट्टी व पानी की जांच के लिए भी लैब की सुविधा दी जाती है। किसान लैब में 10 रुपए का नामात्र खर्च कर पानी व मिट्टी की जांच करवा सकता है।

महिला सैल बनी मायका

आधुनिकत्ता की चकाचौंध व आपसी कलह से टूट रहे हैं परिवार
नरेंद्र कुन्डू
जींद।
आधुनिकत्ता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। परिवारिक कलह के कारण पुलिस महिला सैल पीड़ित महिलाओं के लिए मायका बन गई है। जिले में हर रोज दो परिवार दहेज व घरेलू कलह की आग से झुलस कर टूट रहे हैं। इसी का परिणाम है कि हर माह 40 से 50 मामले न्याय की तलाश में महिला सैल के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। पिछले 9 माह में महिला सैल के पास 360 मामले आ चुके हैं। इन मामलों में सबसे ज्यादा दहेज, मार पिटाई व हरासमैंट के होते हैं।
आधुनिकता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आज दाम्पत्य जीवन में दरार लगातार बढ़ रही है। परिवारिक कलेह व दहेज प्रताड़ना से विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। महिलाओं व उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए दहेज विरोधी कानून में लचिलेपन के कारण सामाजिक ताना-बाना टूटने के कारण परिवार लगातार टूट कर बिखर रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हर माह दहेज व घरेलू कलेह की आग में झुलस कर 40 से 50 मामले महिला सैल के पास आ रहे हैं। दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही कड़वाहट के कारण सैंकड़ों परिवार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। टूटते हुए परिवारों को बचाने के लिए सरकार ने प्रत्येक जिले में पुलिस महिला सैल का गठन किया गया है। ताकि टूटते परिवारों में अपसी सुलह करवाकर उन्हें एक नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जा सके। पुलिस महिला सैल की परिवारों को जोड़ने की मुहिम कुछ हद तक तो सफल रहती है, लेकिन कुछ प्रतिशत लोगों के परिवार  को सहमत करने में नाकाम साबित हो रही है। पिछले नौ माह में अब तक महिला सैल के पास 360 से अधिक दहेज व अन्य घरेलू विवाद के मामले आ चुके हैं। जिनमें से सैल ने 290 मामलों में आपसी सुलह करवा कर परिवारों को जोड़ने का काम किया है तथा बाकि 70 मामलों पर अभी कार्रवाई जारी है।
एक्ट का हो रहा है दुरूपयोग
दहेज प्रथा को बंद करने के लिए दहेज निरोधक अधिनियम कड़ा कानून बनाया था। लेकिन कानून में लचीलेपन के कारण लोग इसका दुरूपयोग कर रहे हैं। जिला पुलिस महिला सैल के पास पहुंचने वाले अधिकतर मामले घरेलू कलह के होते है, लेकिन ससुराल पक्ष पर दबाव बनाने के लिए महिला दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगा देती हैं। कानून विशेषज्ञों के अनुसार दहेज निरोधक अधिनियम के तहत 85 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिनमें महिला द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जाता है। कानून को हथियार बना कर पति व अन्य परिवार के सदस्यों पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है।
टूट रहा परिवारों का तानाबाना
महिला सैल में पहुंचने वाले ज्यादात्तर मामलों में महिलाओं की एकल परिवार में रहने की इच्छा से विवाद शुरू होता है। लेकिन बाद में यह दहेज प्रताड़ना के मामले बनकर अदालत तक पहुंच जाते हैं। एकल परिवार में रहने की इच्छा के कारण संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहा हैं। संयुक्त परिवारों का चलन समाज में गिने-चूने जगह पर ही दिखाई देता है। संयुक्त परिवार से टूटकर मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिससे एकल परिवार के बच्चों में भी संस्कारों की कमी भी दिखाई देने लगी है।



लाखों रुपए फूंकने के बावजूद भी बेरोजारी की मार झेल रहे हैं लाइसेंसधारक

नरेंद्र कुंडू
जींद।
  पीएसओ व सिक्योरिटी गार्ड की एक अदद नौकरी के लिए प्रदेश से हजारों युवा हथियारों पर लाखों रुपए फूंक रहे हैं, लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा आर्म्ज लाइसेंस के नियमों में किए गए परिवर्तनों के बाद लाखों रुपए के हथियार खरीदने के बावजूद भी हजारों युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। सरकारी क्षेत्र में कम हो रहे रोजगार के अवसरों के बाद युवा पर्सनल सिक्योरिटी आॅफिसर (पीएसओ)व सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की ओर रूख कर रहे थे। इस क्षेत्र में युवाओं को अच्छी सफलता प्राप्त हो रही थी, लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा आर्म्ज लाइसेंस के नियमों में परिवर्तन कर आल इंडिया के लाइसेंस बंद कर दिए गए। जिस कारण युवाओं के लिए इस क्षेत्र में  भी रोजगार के अवसर बंद हो गए। 
सरकार भले ही बेरोजगारी को कम करने के लिए लंबे-चौड़े दावे कर रही हो, लेकिन सरकार खुद ही नए-नए नियम बनाकर युवाओं के रास्ते में अड़ंगा डाल रही है। सरकारी क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं कम होने तथा प्राइवेट सैक्टर में ज्यादा कम्पीटीशन होने के कारण युवाओं ने पीएसओ व सिक्योरिटी गार्ड के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमानी शुरू की थी। इस क्षेत्र में युवा अच्छी सफलता प्राप्त कर रहे थे। प्रदेश से हजारों युवा आर्म्ज का आॅल इंडिया का लाइसेंस प्राप्त कर कर देश के विभीन्न बड़े नगरों में जाकर अपना रोजगार चला रहे थे। पीएसओ व सिक्योरिटी के क्षेत्र में युवा सुरक्षा जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हुए अपने कैरियर को संवार रहे थे। लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के नियमों में की गई फेरबदल व आॅल इंडिया के लाइसेंस बंद करने के बाद इस क्षेत्र में भी युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बंद हो गए। आर्म्ज लाइसेंस के नियमों में संसोधन कर बनाए गए नए नियमों के अनुसार अब व्यक्ति राज्य स्तर पर लाइसेंस बनवाने के बाद आल इंडिया का लाइसेंस नहीं बनवा सकता। आल इंडिया के स्थान पर अपने प्रदेश के साथ लगते तीन राज्यों का ही लाइसेंस बनवा सकता है। गृह मंत्रालय द्वारा बनाए गए इन नए नियमों के बाद अब लाखों रुपए के हथियार खरीदने के बाद भी  लाइसेंसधारक प्रदेश से बाहर जाकर पीएसओ की नौकरी नहीं कर सकता। गृह मंत्रालय द्वारा बनाए गए नए नियमों के फेर में फसे प्रदेश के हजारों युवा अब लाखों रुपए के हथियार खरीदने के बावजूद भी  बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। निडानी निवासी सुरेश पूनिया, राजेश, हाडवा निवासी गोविंद, उचाना निवासी हिम्मत, पिंडारा निवासी संदीप, करसोला निवासी सुनील व शामलो निवासी संदीप ने बताया कि उन्होंने स्टेट स्तर पर लाइसेंस बनवा कर लाखों रुपए के हथियार तो खरीद लिए हैं, लेकिन आॅल इंडिया का लाइसेंस नहीं बनने के कारण वे आज भी  बेरोजगार हैं। क्योंकि प्रदेश ओद्योगिक क्षेत्र में ज्यादा विकसित नहीं है इसलिए प्रदेश में इस क्षेत्र में रोजगार की ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं। लेकिन प्रदेश से बाहर देश के अन्य राज्यों में वे बिना लाइसेंस के नौकरी नहीं कर सकते। जिस कारण उनका रोजगार का यह मार्ग भी बंद हो गया है।
किस खत्म हो रही हैं रोजगार की संभावनाएं
 पहले युवा आल इंडिया का आर्म्ज लाइसेंस बनवाकर पीएसओ व सिक्योरिटी के क्षेत्र में अच्छे रोजगार प्राप्त कर रहे थे। आल इंडिया का लाइसेंस लेने के बाद देश के बड़े-बड़े नगरों में जाकर पर्सनल सिक्योरिटी आफिसर के क्षेत्र में सुरक्षा जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए युवा अपने व्यक्तित्व को निखार रहे थे। इस दौरान युवा पिस्टल शूटिंग जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेकर भी अपना कैरियर स्थापित कर रहे थे। लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा आल इंडिया का लाइसेंस बंद कर दिए। आल इंडिया के लाइसेंस बंद होने के बाद अकेले हरियाणा प्रदेश में इस क्षेत्र में रोजगार की ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं। जिस कारण नए नियमों के कारण  युवाओं के लिए पीएसओ व सिक्योरिटी के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर कम हो गए।
क्या हैं नए नियम
पहले कोई भी पात्र व्यक्ति स्टेट लेवल पर आर्म्ज लाइसेंस बनवाने के बाद आल इंडिया का लाइसेंस ले सकता था। लेकिन 2010 में गृह मंत्रालय ने इन नियमों में संसोधन कर नए नियम बना डाले। नए नियमों के तहत रोजगार के लिए कोई लाइसेंस जारी नहीं किया जा सकता। लाइसेंस सिर्फ उसी व्यक्ति को जारी किया जा सकता है। जिसको जान-माल की हानि का खतरा हो। इन नियमों के तहत कोई भी पात्र व्यक्ति सिर्फ स्टेट लेवल का ही लाइसेंस बनवा सकता है। आल इंडिया के स्थान पर व्यक्ति को सिर्फ अपने राज्य के साथ लगते तीन अन्य राज्यों का लाइसेंस दिया जा सकता है। लेकिन उसके लिए उस व्यक्ति को उन तीनों राज्यों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता के पुख्ता सबूत पेश करने होंगे।

किराए के लाइसैंस पर चल रहे हैं मैडीकल स्टोर

 नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में अधिकत्तर मैडीकल स्टोर किराए के लाइसैंस पर चलाए जा रहे हैं। दवा विक्रेताओं द्वारा खुलेआम नियमों को ताक पर रख कर कानून की धज्जियां उडाई जा रही हैं। मैडीकल स्टोर पर फार्मासिस्ट न होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। लेकिन जिनके कंधों पर लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी है, उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है। जिला प्रशासन व ड्रग्स विभाग लंबी तानकर सोया हुआ है। ड्रग्स विभाग के अधिकारी सबकुछ जानकार भी अनजान बने बैठे हैं। फार्मासिस्ट का लाइसैंस किराए पर लेकर अनट्रेंड लोगों द्वारा दवाइयां बेचकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
जिले में अंग्रेजी दवाइयों के 240 मैडीकल स्टोर हैं। इनमें से अधिकत्तर ऐसे दवा विक्रेता हैं, जिनके पास लाइसैंस तो है, लेकिन वो इनका खुद का नहीं है बल्कि किसी फार्मासिस्ट से किराए पर लिया गया है। इस प्रकार दवा विक्रेताओं द्वारा खुलेआम नियमों को ताक पर रख कर कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। लेकिन ड्रग्स विभाग व जिला प्रशासन द्वारा आज तक इस तरह के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जाहिर सी बात है कि यह सारा खेल आपसी रजामंदी से चल रहा है। विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा आमजन को भूगतना पड़ रहा है। अगर किसी अनजान दवा विक्रेता ने किसी भी मरीज को कोई गलत दवाई दे दी तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। अयोग्य दवा विक्रेताओं द्वारा खुले आम चलाए जा रहे इस गौरख धंधे से लोगों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैँ। लेकिन जिला प्रशासन व ड्रग्स विभाग सबकुछ जानकार भी अनजान बना बैठा है।
 
फार्मासिस्ट को दिए जाते हैं दो विकल्प

सूत्रों के अनुसार दवा विक्रेताओं द्वारा फार्मासिस्ट को दो विकल्प दिए जाते हैं। एक यह कि वह खुद दवाइयों की दुकान संभालेगा तो उसे इसकी एवज में 8 से 10 हजार रुपए मेहनताना दिया जाएगा। दूसरा यह कि यदि वह स्वयं दुकान पर नहीं बैठेगा तो उसे लाइसैंस के बदले 2 से 3 हजार रुपए किराया दिया जाएगा।
 
क्या है नियम

नियम के अनुसार दवाई की दुकान पर फार्मासिस्ट का होना बेहद जरूरी हैताकि मरीज को दवा देते समय किसी प्रकार की लापरवाही न हो। इसके अलावा दवाई के बिल पर फार्मासिस्ट के हस्ताक्षर •ाी होने जरूरी हैं। लेकिन यहां अधिकत्तर मैडीकल स्टोर किराए के लाइसैंस पर चल रहे हैं।
 
लाइसैंस बनवाने के लिए क्या होती है प्रक्रिया

लाइसैंस बनवाने के लिए सबसे पहले व्यक्ति के पास डी फार्मा का डिप्लोमा होना आवश्यक होता है। इसके बाद दुकान का नक्शा बनवा कर ड्रग्स विभाग के  इंस्पैक्टर के पास फार्म अपलाई किया जाता है। ड्रग्स इंस्पैक्टर अगली कार्रवाई के लिए अंबाला में सीनियर ड्रग्स इंस्पैक्टर के पास आवेदक की फाइल भेजता है। सीनियर ड्रग्स इंस्पैक्टर आवेदक की फाइल की जांच कर उसके लाइसैंस पर डीएल नंबर लगा कर वापिस संबंधित इंस्पैक्टर के पास भेजता है। उसके बाद आवेदक को दवा विक्रेता का लाइसैंस दिया जाता है। पूरे प्रदेश के दवा विक्रेताओं को अलग-अलग डीएल नंबर दिया जाता है।

कागजी खिलाड़ियों के दम पर मैडल की आश

जिला खेल कार्यालय के बाहर खिलाड़ियों की लिस्ट तैयार करते स्कूली विद्यार्थी।

डीपीई व पीटीआईओं के भेदभाव पूर्ण रवैये के कारण स्कूली चारदीवारी में ही कैद हो गए योग्य खिलाड़ी
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेल विभाग भले ही खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रहा हो, लेकिन स्कूली स्तर पर डीपीई व पीटीआई विभाग की इन योजनाओं पर पलिता लगा रहे हैं। स्कूलों में खिलाड़ियों की ट्रायल न लेकर केवल कागजों में ही खिलाड़ी तैयार किए जा रहे हैं। डीपीई व डीपीआई स्कूल से अपने चहेतों के नाम खेल की लिस्ट में डाल कर आगे भेज देते हैं। डीपीई व पीटीआईओं की इस लापरवाही के कारण अच्छे खिलाड़ी खेलों में भाग नहीं ले पाते, जिस कारण खेल प्रतिभाएं स्कूलों की चारदीवारी में ही दम तोड़ रही हैं।
खेलविभाग द्वारा खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए शुरू की गई स्पोर्ट्स एंड फिजिकल एप्टीट्यूड टेस्ट (स्पैट) योजना के तहत 18 अक्टूबर तक स्कूल स्तर पर सभी खिलाड़ियों की ट्रॉयल लेकर आगामी ट्रॉयल के लिए जिला खेल विभाग को चयनित खिलाड़ियों की लिस्ट सौंपनी थी। खेल विभाग के आदेशानुसार डीपीई व पीटीआईओं ने जिला स्तर पर ट्रॉयल के लिए खिलाड़ियों की लिस्ट तो तैयार कर दी, लेकिन स्कूली स्तर पर खिलाड़ियों की ट्रॉयल लेना लाजमी नहीं समझा। अधिकतर डीपीई व पीटीआईओं ने जिला खेल कार्यालय को सौंपी गई लिस्ट में योग्य खिलाड़ियों के नाम देने की बजाय अपने चहेतों के नाम दर्ज कर दिए। ताज्जूब की बात तो यह है कि अधिकतर डीपीई व पीटीआईओं ने तो स्वयं जिला खेल कार्यालय पर पहुंचकर खिलाड़ियों के फार्म जमा करवाने भी उचित नहीं समझा। उन्होंने खिलाड़ियों की लिस्ट तैयार कर अपने चहेतों को ही जिला खेल कार्यालय पर  फार्म भरने के लिए भेज दिया। शिकायत मिलने पर आज समाज की टीम ने जब जिला खेल कार्यालय पर जाकर मौके का जायजा लिया तो देखा की जो काम डीपीई व पीटीआईओं को करना चाहिए वह काम विद्यार्थी कर रहे हैं। जिला खेल कार्यालय के बाहर बैठकर विद्यार्थी स्वयं ही अपने स्कूलों के खिलाड़ियों के फार्म भर रहे थे। इसके बाद जब आज समाज की टीम ने जिला खेल कार्यालय में फार्म ले रहे कर्मचारियों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अधिकतर डीपीई व पीटीआईओं द्वारा स्कूल में बिना ट्रायल लिए ही झूठी लिस्ट तैयार करवार कर उनके पास भेज दी है। जिला खेल कार्यालय को प्राप्त फार्मों में ज्यादातर डीपीई व पीटीआईओं ने तो सभी खिलाड़ियों को एक जैसे ही मार्क दिए हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि इन डीपीई व पीटीआईओं द्वारा खिलाड़ियों की ट्रायल लिए बिना ही झूठी लिस्ट तैयार की गई है। खेल अधिकारियों के साथ-साथ डीपीई व पीटीआईओं की लापरवाही के कारण ही खेल विभाग की योजनाएं खिलाड़ियों के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पाती हैं।
अपने चहेतों को दी जाती है प्राथमिकता
डीपीई व पीटीआईओं द्वारा खुलेआम खेल विभागों के नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। सूत्रों की मानें तो अधिकतर स्कूलों में तो डीपीई व पीटीआई बच्चों की ट्रॉयल लिए बिना ही लिस्ट तैयार कर देते हैं और इस लिस्ट में योग्य खिलाड़ियों की जगह अपने चहेतों के नाम डाल देते हैं। डीपीई व पीटीआईओं के भेदभाव पूर्ण रवैये के कारण अच्छी खेल प्रतिभाएं स्कूलों की चारदीवारी में ही दम तोड़ देती हैं। जिससे अच्छे खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता।
जिला खेल कार्यालय को ब्लॉक अनुसार प्राप्त आवेदनों का विवारण 
ब्लॉक का नाम    आवेदन
अलेवा        303
जींद           1210
जुलाना       569
नरवाना        17
पिल्लूखेड़ा  457
उचाना        411

बंक मारने वाले अध्यापकों पर नकेल डालने में नाकामयाब शिक्षा विभाग

 स्कूल में बायो मैट्रिक मशीन के बारे में जानकारी देते प्राचार्य
नरेंद्र कुंडू
जींद। शिक्षा विभाग द्वारा स्कूल से बंक मारने वाले अध्यापकों पर नकेल डालने के लिए शुरू की गई बायोमैट्रिक योजना अधिकारियों की लापरवाही के कारण सफल नहीं हो पा रही है। विभाग के आदेशानुसार स्कूलों में बायोमैट्रिक सिस्टम तो पहुंच गए हैं, लेकिन अभी  तक यह सिस्टम शुरू नहीं हो पाए हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण विभाग के करोड़ों रुपए के सिस्टम स्कूल में धूल फांक रहे हैं। विभाग करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी स्कूल से नदारद रहने वाले अध्यापकों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहा है।
शिक्षा विभाग ने स्कूलों से नदारद रहने तथा स्कूल में लेट आने वाले अध्यापकों को सबक सिखाने के लिए सभी स्कूलों में बायोमैट्रिक सिस्टम लगाने के आदेश दिए थे। विभाग के आदेशानुसार स्कूलो में बायोमैट्रिक सिस्टम तो पहुंच गए, लेकिन अधिकतर स्कूलों में यह प्रणाली अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। कई स्कूलों में ये सिस्टम लाए जा चुके हैं, लेकिन कई स्कूलों में अभी  तक ये सिस्टम डिब्बों में बंद रखे हैं। शिक्षा विभाग के लाखों प्रयासों के बाद भी स्कूलों में बायो मैट्रिक्स सिस्टम लगाए जाने की योजना अभी  तक सिरे नहीं चढ़ पाई है। हालांकि शिक्षा विभाग ने इन्हें गर्मी की छुट्टियों के तुरंत बाद शुरू करने का दावा किया था। शिक्षा विभाग ने इन सिस्टम को लागू करने व चलाने के लिए मुंबई की कंपनी एमएस कोर प्रोजेक्ट्स एंड टेक्नोलॉजी को पांच साल के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसके चलते उक्त कंपनी ने लगभग  सभी  स्कूलों में सामान भेज दिया था, लेकिन अब तक यह सुविधा शुरू नहीं हो पाई है। इस सिस्टम के तहत अध्यापकों को स्कूलों में दिन में दो बार हाजिरी लगानी होगी, जिसमें स्कूल शुरू होने से 15 मिनट पहले और स्कूल की पूरी छुट्टी होने से 15 मिनट पहले हाजिरी लगानी होगी। स्कूल में हाजिरी लगने के बाद सारा रिकार्ड उसी समय जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय व निदेशक शिक्षा विभाग के कार्यालय में नेट के द्वारा उपलब्ध हो जाएगा। इस सिस्टम को स्कूलों में चलने के लिए स्कूलों में ब्राडबैंड के कनेक्शन लगाए जाने थे, जो अब तक लग नहीं पाए हैं। इसके अलावा स्कूलों में कंप्यूटर लैब भी बनाई जानी थी जो अभी  तक नहीं बनी है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण शिक्षा विभाग द्वारा शुरु की गई बॉयोमेट्रिक्स योजना अभी  तक सिरे नहीं चढ़ पाई है। साल बीतने को जा रहा है, जबकि शिक्षा विभाग का दावा था कि गर्मी की छुट्टियां खत्म होते ही इन्हें चालू कर दिया जाएगा। अब छुट्टियां तो बीती ही बल्कि साल भी बीतने वाला है। लेकिन अब तक ये बॉयोमेट्रिक्स मशीन सभी  स्कूलों में शो पीस बनी हुई हैं। किसी स्कूल में दीवार पर लटकी है तो किसी में अभी तक डिब्बों में बंद रखी हुई हैं।
क्यों पड़ी बायो मैट्रिक की जरूरत
शिक्षा विभाग को हमेशा शिकायत मिल रही है कि कुछ शिक्षक समय पर स्कूल समय पर नहीं पहुंचते और पहुंचते हैं तो छुट्टी होने से पहले ही रजिस्टर में हाजरी भर कर चले जाते हैं। कई स्कूलों में ऐसा भी देखने को मिला रहा है कि जिस दिन शिक्षक अपने घरेलू काम से बाहर गया है और स्कूल नहीं पहुंचा तो उस दिन उसका हाजिरी का कोलम खाली छोड़ दिया जाता है। अध्यापक अगले दिन स्कूल पहुंचकर अपनी हाजिरी भर देते हैं। ऐसे शिक्षकों पर रोक लगाने के लिए शिक्षा विभागने बायोमैट्रिक्स सिस्टम लगाने की योजना बनाई। इस सिस्टम के तहत शिक्षा को दिन में दोबार दो बार हाजिरी लगानी होगी। जिसमें स्कूल लगने से 15 मिनट पहले व स्कूल की छुट्टी होने से 15 मिनट पहले हाजिरी लगानी होगी। उसी समय शिक्षक की हाजिरी का रिकार्ड जिला व शिक्षा निदेशक के पास नेट के जरिए पहुंच जाएगा।
प्राइवेट कंपनी को दिया है ठेका
शिक्षा विभाग ने इस सिस्टम को लागू करने व चालू करने के लिए मुंबई की कंपनी एमएस कोर प्रोजेक्ट्स एवं टेक्नोलॉजी को पांच साल के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है। कंपनी ने सभी स्कूलों में ये मशीन तो  भेज दी। लेकिन अब तक यह सुविधा शुरु नहीं हो पाई। साथ ही इस सिस्टम को शुरू करने के लिए स्कूलों में ब्राड बैंड कनेक्शन लगाए जाने थे जो अभी तक लग नहीं पाए हैं। इसके अलावा कम्प्यूटर लैब बनानी थी, वे भी अधूरी पड़ी हैं।
नहीं चाहते शिक्षक


कई स्कूल शिक्षकों से जब इस संबंध में बात की तो उनका कहना है कि जो शिक्षक स्कूल में अपनी मनमर्जी से आ रहे हैं, वह बॉयो मैट्रिक्स सिस्टम लगने के पक्ष में नहीं हैं। इस तरह के शिक्षक नहीं चाहते की स्कूल में बायो मैट्रिक सिस्टम चालू हो। क्योंकि बायो मैट्रिक्स सिस्टम शुरू होने पर उनकी लापरवाही उजागर हो जाएगी। वे स्कूल से गायब नहीं रह सकेंगे। स्कूल में हाजिर होना उनकी मजबूरी हो जाएगा।
स्कूल से नदारद रहने वाले अध्यापकों को सबक सिखाने के लिए बनाई है योजना : प्राचार्य
राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्राचार्य बलबीर सिंह ने बताया कि स्कूल से नदारद रहने वाले अध्यापकों को सबक सिखाने के लिए विभाग ने यह योजना बनाई है। इस योजना के तहत उनके स्कूल में अक्टूबर माह में बायो मैट्रिक मशीन लगाई गई थी। योजना को शुरू करने की स•ाी तैयारी हो चुकी है। लेकिन मशीन के लिए सिम कार्ड आने बाकि हैं। कार्ड डालने के बाद मशीन को प्रयोग में लाया जा सकेगा। वि•ााग की इस योजना से स्कूल में टाइम पर पहुंचना  अध्यापकों की मजबूरी बन जाएगा।
क्या कहती हैं डीईओ 
इस योजना को लागू करने का प्रयास जारी है। हमारे पास सारा सामान आ चुका है। जल्द ही इस पर काम शुरू हो जाएगा। इसके लिए सभी स्कूलों में ब्राडबैंड नेट की सुविधा शुरू कर दी है। सिस्टम को शुरू करने के लिए सभी स्कूलों में अध्यापकों को ट्रेनिंग भी  दी जाएगी। ताकि सिस्टम को चलाने में अध्यापकों को किसी प्रकार की परेशानी न आए।
सुमन लता अरोड़ा
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद

इतिहास समेटे हुए है जींद का बारात घर


विरासत के तौर पर रखा गए एडीईएन का बंगल
 रेलवे जंक्शन स्थित बारात घर।
नरेन्द्र कुन्डू
जींद। रेलवे जंक्शन के पास बनाया गया बारात घर अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है। कभी यहां पर अंग्रेजों की महफिलें सजती थी। उस समय इस स्थल को रेलवे इंस्टीट्यूट के नाम से जाना जाता था और यहां पर पार्टियों के दौर चलते थे। इंस्टीट्यूट के भवन के अंदर फ्लोर बनाया गया था, जिस पर अंग्रेज दंपत्ति डांस किया करते थे। यह इंस्टीट्यूट अंग्रेज अधिकारियों का प्रमुख मनोरंजन स्थल होता था। इसके अलावा यहां पर बैडमिंटन, चौपड़शाल, शतरंज इत्यादी खेल भी  खेले जाते थे। अंग्रेजों के जाने के बाद रेलवे विभीग द्वारा कर्मचारियों के मनोरंज के लिए यहां पर एक थियेटर का निर्माण किया गया। थियेटर में केवल रेलवे कर्मचारी व उनके परिवार के लोग ही फिल्मों देख सकते थे। बाद में रेलवे ने इसे बंद कर बारात घर में तबदील कर दिया। अब इस बारात घर पर लाखों रुपए खर्च कर शहर के उच्च श्रेणी के होटलों की तर्ज पर डेवेलोप किया जा रहा है।
अंग्रेजों द्वारा जींद में 1936 में रेलवे जंक्शन की स्थापना की गई थी। जींद में रेलवे की स्थापना करने के बाद अंग्रेजी अधिकारियों के मनोरंज के लिए यहां पर रेलवे इंस्टीट्यूट बनाया गया। इस इंस्टीट्यूट में एक लकड़ी का फ्लोर बनाया गया था। जिस पर अंग्रेज दंपत्तियां डांस किया करती थी। इस फ्लोर की विशेष खूबी यह थी कि इस फ्लोर पर डांस के दौरान अजीब सी धूनें पैदा होती थी। इसलिए उस समय इस फ्लोर का अपना अलग से महत्व होता था। यह इंस्टीट्यूट अंग्रेज अधिकारियों का एक प्रमुख मनोरंजन स्थल होता था। इस इंस्टीट्यूट के अंदर शतरंज, बैडमिंटन, चौपड़शाल व अन्य खेल  भी खेले जाते थे। यहां पर देर रात तक अंग्रेजों की महफिलें सजा करती थी। अंग्रेजों के जाने के बाद रेलवे विभग ने यहां पर कर्मचारियों व उनके परिवारों के मनोरंज के लिए यहां पर एक थियेटर का निर्माण किया। इस थियेटर में केवल रेलवे कर्मचारी व उनके परिवार के लोग ही फिल्में देख सकते थे। उस समय रेलवे कर्मचारियों ने इस थियेटर का जमकर लुत्फ उठाया। यहां पर कई वर्षों तक फिल्मों का दौर चलता रहा। उस समय इस थियेटर में केवल 50 पैसे की टिकट लगती थी। लेकिन 1985 में रेलवे विभग ने इस थियेटर को बंद कर इसे बारात घर में तबदील कर दिया। इसके बाद यहां रामलीला व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाने लगा। इसके साथ-साथ बारात घर को शादी समारोह व अन्य आयोजनों के लिए किराये पर दिया जाने लगा। बाद में नार्दन रेलवे मैंस यूनियन की मांग पर बारात घर पर 35 लाख रुपए खर्च इसका कायाकल्प किया गया।
लाखों रुपए खर्च कर उच्च श्रेणी के होटलों की तर्ज पर किया जाएगा डेवेलोप
एनआरएमयू के सचिव रवि चौपड़ा ने बताया कि रेलवे विभग के जीएम मुदला कोटी व डीआरएम अश्वनी लौहानी के नेतृत्व में बारात घर का सुधारिकरण किया गया था। चौपड़ा ने बताया कि अब इस बारात घर पर लाखों रुपए खर्च कर इसे शहर के उच्च श्रेणी के होटलों की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बारात घर का पूरा बैंक्वेट हाल एसी बनाया जाएगा। बारात घर को विकसित करने के पीछे उनका मकशद कम कीमत में शहर के लोगों को अच्छी सुविधाएं देना है। बारात घर को रेलवे कर्मचारियों के अलावा शहर के अन्य लोग भी शादी समारोह व अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिए किराए पर ले सकते हैं। अन्य लोगों को इसकी सुविधा लेने के लिए रेलवे कर्मचारियों से थोड़ा ज्यादा खर्च वहन करना पड़ेगा। नामात्र खर्च पर मिलती हैं उच्च श्रेणी के होटलों जैसी सुविधाएं
शहर में लगातार बढ़ रही होटलों की कीमत के कारण आम लोग केवल नामात्र पैसे खर्च कर बारात घर की सुविधाएं ले सकते हैं। रवि चौपड़ा ने बताया कि बढ़ रही महंगाई के कारण आज शादी समारोह के लिए होटल का खर्च आम आदमी के बजट से बाहर है। इसलिए आम आदमी होटल की बजाय केवल नामात्र खर्च बारात घर की सुविधाएं ले सकता है। शादी समारोह में रेलवे कर्मचारी 2100 रुपए व आम आदमी 5100 रुपए का शुल्क दे कर बारात घर की सुविधाएं प्राप्त कर सकता है। बारात घर में एक बैंक्वेट हाल 3 कमरे, रसोई, लैटरिन, बॉथरूम, व र्पाकिंग के लिए खुला मैदान है।
एतिहासिक है रेलवे जंक्शन की बिल्डिंग
जींद में रेलवे जंक्शन की स्थापना 1936 में हुई थी। उसी समय जंक्शन की विशाल बिल्डिंग का निर्माण किया गया था। 1936 में निर्मित यह बिल्डिं आज भी ज्यों की त्यों है। 1936 के बाद इस बिलिडग का केवल कुछ मैंटिनैंश ही किया गया है। इसलिए यह की बिल्डिंग एतिहासिक है। इसके अलावा यहां बने एडीईएन के बंगले को विरासत के तौर पर रखा गया है। रेलवे विभग के इंजीनियर रवि सहगल ने बताया कि नार्दन रेलवे के पास इस तरह के सिर्फ दो ही बंगले हैं। जिनमें से एक जींद व दूसरा मेरठ (यूपी) में हैं। इन दोनों बंगलों को विरासत के तौर पर रखा गया है।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

विज्ञानिकों को हजम नहीं हो रही कीटनाशक रहित खेती


गेहूँ की फसल में चेपे को नस्ट करती सिर्फड मक्खी का बच्चा
खेतों में सरसों व गेहूं की फसल तैयार हो रही है, लेकिन फसल में आने वाली बीमारियों को लेकर कृषि वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैंं। गेहूं की फसल में होने वाली पेंटिडबग व सरसों की फसल में होने वाली एफिड (अल या चेपे) की बीमारी का उपचार कृषि वैज्ञानिक स्प्रे के रूप में ढुंढ़ रहे हैं। लेकिन इसके विपरित कीट प्रबंधन के प्रति जागरूक किसान पिछले 6-7 सालों से इस बीमारी का उपचार कीट प्रबंधन से ही कर रहे हैं। ताकि प्राकृतिक रूप से इस बीमारी पर कंट्रोल किया जा सके और हमारे खान-पान को जहरीला होने से बचाया जा सके। किसान फसल में पाई जाने वाली सिरपट मक्खी व लेडी बिटल को इन बीमारियों का वैद्य मानकर स्प्रे से परहेज कर रहे हैं। लेकिन कृषि वैज्ञानिक किसानों द्वारा इसके नए-नए प्रमाण प्रस्तुत किए जाने के बाद भी उनकी इस उपलब्धि को अस्वीकार कर रहे हैं।
एक समय था जब किसानों को फसल में होने वाली बीमारियों व उनके  उपचार की जानकारी नहीं होती थी। जिस कारण किसान इन बीमारियों के उपचार के लिए कृषि वैज्ञानिकों के पास दौड़ते थे। फसलों में आने वाली इन बीमारियों का उपचार किसानों को महंगे से महंगे स्प्रों में नजर आता था। ज्यों-ज्यों किसान ने इन साधारण बीमारियों के उपचार के लिए स्प्रे व दवाइयों का प्रयोग किया, त्यों-त्यों ये बीमारियां असाधारण होती चली गई। इसके बाद इन बीमारियों पर कंट्रोल करना स्प्रे व दवाइयों के काबू से भी बाहर हो गया। ज्यों-ज्यों नई-नई किस्मों की कीटनाशक दवाइयां व स्प्रे बाजार में आए त्यों-त्यों अलग-अलग प्रकार की बीमारियों ने भी फसलों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया। स्प्रे व दवाइयों के प्रयोग से फसलों में तो बीमारियां बढ़ी ही रही हैं, साथ-साथ हमारा खान-पान भी जहरीला होता जा रहा है। लेकिन उधर कुछ किसान हैं जो आज भी इन बीमारियों का उपचार स्प्रे व दवाइयों में नहीं कीट प्रबंधन में देख रहे हैं। ये जागरूक किसान प्राकृतिक तौर पर ही इन बीमारियों से निपटने में सक्ष्म रहे हैं और पिछले 6-7 वर्षों से किसानों व कृषि वैज्ञानिकों को इसका प्रमाण भी दे रहे हैं, लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि किसानों की इन उपलब्धियों के बावजूद भी कृषि वैज्ञानिक कीट प्रबंधन को मानने से इंकार कर रहे हैं। कीट प्रबंधन के प्रशिक्षित किसान रणबीर मलिक व मनबीर रेढू ने बताया वे पिछले 6-7 वर्षों से उन्होंने किसी भी फसल में स्प्रे या कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग नहीं किया। कीट प्रबंधन के माध्यम से ही वे इन बीमारियों पर काबू पा लेते हैं। गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली पेंटिडबग व एफिड (अल व चेपे) की बीमारी को कंट्रोल करने के लिए फसल में सरफड़ो (सिरपट मक्खी)व फेलपास (लेडी बिटल) नामक मासाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो फसल में मौजूद अल को खाकर अपना जीवन चक्र चलाते हैं। कीट प्रबंधन के दौरान उन्होंने फसल में 6 से 7 किस्म की सिरपट मक्ख्यिों व 9 किस्म की लेडी बिटल कीटों की पहचान की है। जिनके नाम उनके आचार-विचार व शक्ल-सूरत के आधार पर रखे गए हैं। ये कीट परभक्षी कीट होते हैं और अपने शरीर से छोटे कीटों को खाते हैं। ये कीट अपना जीवन यापन करने के लिए फसल पर आते हैं और इनके जीवनचक्र में ही किसान को लाभ मिलता है। जिस फसल में अल होता है, उस फसल में ये कीट जरूर मौजूद होते हैं। एफिड या पेटिडबग को खाकर ही ये अपना जीवनचक्र चलते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है, उन्हें जरूरत है बस कीटों की पहचान की। कीटों की पहचान से ही इस तरह की बीमारियों को कंट्रोल किया जा सकता है और खान-पान को जहरीला होने से बचाया जा सकता है।

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
इस बारे में जब गांव पांडू पिंडारा कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. आरडी पवार से बातचीत की गई तो उन्होंने किसानों की कीट प्रबंधन की बात को नकारते हुए कहा कि यह बीमारी कीटों के माध्यम से कंट्रोल नहीं होती है। इस बीमारी पर काबू पाने के लिए स्प्रे की जरूरत होती है और उन्होंने स्वयं अपने फार्म में मौजूद फसल पर स्प्रे कर इस बीमारी से छुटकारा पाया है।

सरसों की फसल में अल को नस्ट करता सिर्पित